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डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना जी के लिखल जाड़ा गीत

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डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना जी
डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना जी
डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना जी

जाड़ा भइल जवान, देह अँईंठत आइल बा
सभनी के कँपकँपी धरा के, अगराइल बा।

बबुआ, लागे घाम,चले ठुमकत अँगना में
झाँके रहि रहि रुप,छोट दिन के ऐना में
दिनवो लागे हीन कि मुहँवा मेहराइल बा।

भोरभोर कुहासा ,चलल मोंछ फहरवले
अगते उनका पछिया खाड़, घान घहरवले
कहँवा मिली तरान सोचि मन झरुआइल बा।

माने लागल हार बा कम्बल रूई रजाई
शीतलहर ठिठुरावत बा बनि के हरजाई
चिड़ियो चुरुंग हरान, पतईयो पियराइल बा।

हाड़ हाड़ में जाड़ , हिलावत बा हियरा के
हो जाता दिन देखले कय कय दिन दुअरा के
दलके देह परान मुरहवा बउराइल बा।

कनिया भइलें सूरूज, ओस के ओटे झाँकस
भसुर नियर कुहरा बा ठाढ़ त केने माकस
अजबे रिश्ता टेंढ मेंढ मन कुफताइल बा।

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