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सुनील प्रसाद शाहाबादी जी के लिखल कथाकार मधुकर सिंह एक परिचय

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कथाकार मधुकर सिंह
कथाकार मधुकर सिंह

२ जनवरी १९३४ गुलाम भारत के जिला मेदनीपुर बंगाल में जनमल बालक गुलामी के बेड़ी में कsसल भारतीय समाज मे गते गते होशगर होत माई के कोरा में बंगाली आ भोजपुरी गीत कहानी सुनत बालक,बाबूजी उहां के जेल में सिपाही रहीं तब बचपन मे अंग्रेज अफसर किहाँ अपना बाबूजी के नौकर नियन काम करत देखले रहीं लगभग दस बरिस के अवस्था मे आपन माई जरे आपन पैतरिक गाँव तब के जिला शाहाबाद बिहार(आज के आरा)के भीरी धरहरा में चली अइनीं एहिजे गाँव मे रह के मैट्रिक पास कइनीं तब तक देश आजाद हो गइल रहे बाकी ई आजादी भी मधुकर बाबू के कहीं ना कहीं हिरदय के भेदत गड़त रहल हा।

मैट्रिक कइला के बाद जैन स्कूल आरा में उहां के शिक्षक के नौकरी लागल उहवें उनकर सहशिक्षक आ संघतिया के रूप में जगदीश मास्टर गहिर संघाती भइलें जगदीश मास्टर साम्यवाद से पूरा तरिह परभावित रहलें तs जाहिर रहे कि मधुकर सिंह प भी एकर परभाव गहिरार परल जेह तरीक मधुकर बाबू सामंतीपना से आ जात पात के आधार प लोग से लोग के घृणा के लयवद्ध जिकिर जगदीश मास्टसर से कsरस ,उनही के परेरना से आपन भाव संजोए लगलन उनकर पहिला रचना १९६३ में गीत संगरह”रुक जा बदरा”शीर्षक से प्रकाशित भइल बाकी तब तक मधुकर जी के लेखनी कथा लेखन के ओर मुड़ गइल रहे।

तब के समय घोर राजनीतिक विछोभता के दौर में रहे, सामंती अन्याय जात पात के भीषण घृणा चरम पे रहे तबे १९६६ में बंगाल से नक्सल आंदोलन शुरू हो गइल जेकर परभाव शाहाबाद (आज के आरा,डिहरी,ससाराम,भभुआ,बक्सर) प गहिरार रूप से पड़ल जगदीश मास्टर के अगुआई में शिक्षित नवयुवा सरकार के दमनकारी नीति अउरी सामंती अन्याय के खिलाफ समाजवाद के आवाज आ संघर्ष बने लागल चूकि जगदीश मास्टर मधुकर सिंह जी के खास स्नेही रहला के कारन उनकर समाजवादी बिचारधारा मधुकर बाबू प खासा देखल जा सकेला ग्रामजीवन प कथाकारन में प्रेमचंद आ रेणु फणीश्वर के बाद तीसरा नsमर प मधुकर सिंह जी के राखल जाउ त कवनों अतिसयुक्ति ना कहाइ हिंदी में अइसन गँवई भासा शैली शायदे कवनो दोसर कथाकार के रचना में मिली जइसे कि पूरा घटना कर्म राउर आँखि के सोझाँ रउआ आस पास घट रहल होखे उनकर पहिला कहानी संगरह “पूरा सन्नाटा” प्रकाशित भइल जवना में जनता में व्यापत घोर गरीबी बेरोगारी आ आर्थिक असमानता जात पात के घृणा, समाज मे उपजत बिछोभ के वरनन सहजे देखल जा सकेला।
तबे एगो घटना मधुकर बाबू के भीतर तक हिला गइल उ रहे उनकर प्रिय संघतिया सहकर्मी जगदीश बाबू के हत्या माने एगो समाजवाद के हत्या रहे उनका नजर में।
अब एकांतपन अधिका गइल रहे लेखनी मात्र संघाती बन के साथे चल चलल जवन लगातार लगभग २०१२-१३ तक चलल।

मधुकर जी आपन राजसत्ता आ सामाजिक प्रथा के कुत्सित चेहरा के बदले खातिर आपन कहानी के पात्रन जरे आजीवन लड़त रह गइलें उनकर कहानी में कहीं ना कहीं जगदीश मास्टर जी जीवित हो जात रहलें उपन्यास सोनभद्र की राधा, सबसे बड़ा छल, सीताराम नमस्कार, जंगली सुअर, मेरे गांव के लोग, समकाल, कथा कहो कुंती माई, अगिन देवी, अर्जुन जिंदा है समेत मधुकर सिंह १९गो उपन्यास लिखले बानी।

एकरा अलावा सन्नाटा, भाई का जख्म, अगनु कापड़, पहला पाठ, हरिजन सेवक, आषाढ़ का पहला दिन, पहली मुक्ति, माइकल जैक्सन की टोपी, पाठशाला आदि दस गो कहानी संग्रह भी प्रकाशित भइल बा इनकर कहानी अउरी उपन्यासन में दलित के सामाजिक मुक्ति के सवाल जमीन के आंदोलन से अभिन्न रूप से जुड़ल नजर आवेला ‘मेरे गांव के लोग’ कहानी में त उ कहत भी बाड़न कि, ‘जाति, धर्म-संप्रदाय सबके बुनियाद में जमीन बा, मधुकर सिंह के कहानी आ उपन्यास में मुक्ति के जवन संघर्ष खाका मिली ओहमे स्त्री, दलित भा अल्पसंख्यक के सवाल अलग से ना मिली सबकुछ आपस में सनाइल अलगे अलगे स्वाद में भींजल भेटाई।

आज जब कथा साहित्य में गँवई संस्कृति किसान के समस्या गाँव के जीवन संघर्ष जहाँ एकदमे गौन हो गइल बा उहवाँ मधुकर बाबू के साहित्य के उपयोगिता समाज मे स्वतः ही बढ़ जाला मधुकर बाबू हरमेसा गरामिन जनवाद के समर्थक रहलें जन जन में जीवनपर्यंत अपना साहित्य नाटक द्वारा अलख जगावत रह गइलें जीवन के अंतिम पांच छः बरिस उनकर बहुत कष्टदायक बितल लकवा ग्रस्त शरीर के बाबजूद लेखनी उनकर ना छूटल रहे पटना में इलाज के दौरान उनकर आर्थिक स्थिति भुइयां लोट गइल सरकार से मदद के निहोरा के बाद भी केहू सुनवइयां ना रहे शायद मधुकर बाबू के समाजवादी विचार धारा सरकार के ना भावत रहे।

मधुकर सिंह जी लइकन खातिर भी कुछ साहित्य लिखनीं बाबू जी का पासबुक, लाखो, कुतुब बाजार जइसन नाटक आ अपना चेलन के ले के एगो नाट्य समूह के गठन कर बहुत दिन ले नाट्य प्रस्तुति अपना निगरानी में करावत रहलें।

सामंती-पूंजीवादी व्यवस्था के पांव तले के धूर मेहनतकश मजदूर किसान के सामाजिक-आर्थिक मुक्ति वर्ग समन्वय के कवनो राह से संभव नइखे, मधुकर सिंह के कहानी बार-बार एही समझ के सामने लेके आवेले। उनकर चर्चित कहानी ‘दुश्मन’ एगो अइसने कहानी ह, मधुकर सिंह अपना के वामपंथी मानत रहलें बाकी उ सत्तालोलुप वामपंथ के जगही जनवादी वामपंथ के समर्थक रहलें उ वामपंथ से सामंतवाद अउरी वर्ण-व्यवस्था के समूल नाश के परयास आउ अपेक्षा अंतिम सांस तक रखले रहलें।

१५ जुलाई २०१४ के दिन जनवादी लेखक बिचारक आ समता के मजबूत आधार के पकच्छपाती, समाज से आपन शारीरिक रूप से बिलग हो गइलें बाकी आज भी शब्द रूप में सगरो गुंजायमान मधुकर सिंह के मधुवानी जिंदा बाटे जेकर चर्चा करत केहू कबहूँ ना थाक सके। आज भी उनकर गढ़ल कई गई गो चेला लोग नाट्य कला जगत में खूबे योगदान दे रहल बाड़े अउर उनुका के अपना जरे जिंदा रखले बाड़न लोग।

तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन अउरी साहित्यिक आंदोलन के परिपेछ में उनकर कथा साहित्य के जवन भूमिका बा ओह पर अबहूं परयापत शोधकारज आ मूल्यांकन के जरूरत बा उनकर साहित्य पर अब तक तीन गो पीएचडी भइल बा उनकर व्यक्तित्व-कृतित्व पर डाॅ राजेंद्र प्रसाद सिंह अउरी संजय नवले द्वारा संपादित ‘साहित्य में लोकतंत्र की आवाज’ और अशोक कुमार सिन्हा के किताब ‘मधुकर सिंह : पहचान और परख’ मात्र इहे दूगो अबहीं ले प्रकाशित रचना मिलेला।

उनकर कई वो कहानी के नाट्य मंचन भी भइल बा आ उ जन नाट्य संस्था युवानीति के संस्थापक भी रहलें मधुकर सिंह जी कुछ कहानी संकलन के संपादन भी कइले रहीं, उनकर रचना के तमिल, मलयालम, कन्नड़, तेलुगु, मराठी, पंजाबी, उड़िया, बांग्ला, चीनी, जापानी, रूसी और अंग्रेजी में भी अनुवाद हो चुकल बा। उ ‘इस बार’ पत्रिका के साथे साथे कुछ अउर पत्र-पत्रिकन के संपादन भी कइले बाड़न।

हमेशा प्रगतिशील-जनवादी साहित्यिक-सांस्कृतिक आंदोलन से जुड़ल रहलें कथाकार मधुकर सिंह जन संस्कृति मंच के स्थापना के समय से ही साथ रहलें।
जसम के राष्ट्रीय परिषद और कार्यकारिणी के सदस के लिहाज से आपन कर्तव्य के निभावत लमहर समय तक राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनल रहलें।
सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार, कर्पूरी ठाकुर पुरस्कार समेत उनकरा के कई गो अउरी सम्मान और पुरस्कार भेटाइल रहल हा।

बिहार सरकार के आपन साहित्यकारन के प्रति घोर उपेकच्छा के शिकार मधुकर बाबू भी बाड़न आरा के जनता इनकर नाम से एगो पुस्कालय गठित करेके आ उनकर मूरति स्थापित करेके मांग कहिएले करतिया बाकी सरकार के कान प ढ़ील तक नइखे सुरसुरात।

आज के साहित्य प्रेमी लेखक आ पाठकगन से निहोरा बा कि,यदि रउआ अइसन संघर्षशील साहित्यकार के सच्चा श्रधांजलि देवल चाहतानी त गरामिन परिवेश के फेर से समाज में उभारीं लिखीं पढ़ीं जवन गरामिन जन आजू ले मुक्त सांस नइखे ले पावत ओकरा हक में आवाज बनी एहि निहोरा के साथ एह महान कृतिकार के सम्मान में हाथ जोर माथ नवाई के विदा लेत बानी, परनाम सबके।

विशेष कथ्य
हो सकेला की उनकर जीवनी लिखत खानी हमरा से कुछ महती तथ्य छूट गइल होखे भा हमरा जानकारी में नइखे एह ला हम सबके से क्षमाप्रार्थी बानी।
लेखक-सुनील प्रसाद शाहाबादी
गणेश नगर, मुंडीया खुर्द जिला-लुधिआना(पंजाब)
जानकारी सोत पत्र पत्रिका
विशेष शोध सहयोग-विशाल सिंह शाहाबादी(भोजपुरी भाषा हमनी के पहचान)।

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