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भोजपुरी भाषा का ऐतिहासिक सांस्कृतिक और राजनितिक महत्व

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भोजपुरी भाषा का ऐतिहासिक सांस्कृतिक और राजनितिक महत्व
भोजपुरी भाषा का ऐतिहासिक सांस्कृतिक और राजनितिक महत्व

भोजपुरी भाषा का ऐतिहासिक महत्व :

भोजपुरी क्षेन्न अपने अंक में महान इतिहास छिपाये हुए है। भोजपुरी भाषा में लिखित काव्य के परिवेश में इसका इतिहास सुरक्षित है। मनुस्मृति की रचना काशी में ही गंगा के किनारे की गयीराजा बलि को छलने के लिए भगवान विष्णु को वामन रूप धर कर आना पड़ा, इसी बलि के नाम पर इसका नाम बलिया पड़ाभगवान विष्णु को पैर से आघात करने वाले महर्षि भृगु इसी भोजपुरी क्षेत्र बलिया में ही निवास करते थे।

पौराणिक कथा श्रुतियों के अनुसार भोजपुरी क्षेत्र बलिया ऋषि-मुनियों की साधनास्थली रही है। बलिया जनपद के कारों “प्राचीन नाग कामाश्रय” धाम में शिव ने कामदेव को भरम किया। बलिया के समीप स्थित सुरहा झील का नामकरण राजा सुरथ के नाम पर हुआ जिन्होंने इस झील का विस्तार करवाया और इसे गंगा नदी से जोड़ने के लिए कष्टहर नाला का निर्माण करवाया जो आज भी “कटहर नाला” के रूप में विद्यमान है। भोजपुरी क्षेन्न में संस्कृति, सभ्यता, शिक्षा की नगरी वह काशी है। जिसकी महिमा पुराणों के पन्नों पर गायी गयी है तथा दूर-दूर के लोग विद्याध्ययन के लिए आया करते है। काशी के ही राजा ब्रम्हदत्त की कथा बुद्ध के जातको में भरी पड़ी है। भोजपुरी क्षेत्र में ही बोध गया जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ, सारनाथ जहाँ उन्होने अपना पहला उपदेश दिया तथा उनके महानिर्वाण की भूमि कुशीनगर “कसया” जनपद स्थित है। वर्द्धमान महावीर का जन्म भले ही मैथिल जनपद वैशाली में हुआ था, किन्तु उनके उपदेश भी भोजपुरी क्षेन्न में आते रहेभोजपुरी क्षेन्न में जन्मा अशोक बौद्ध धर्म के महान नक्षत्र को किसने नही पढ़ा-सुना है, जिसका चक्र और वार सिंह आज राष्ट्रीय चिन्ह के रुप में विद्यमान है। भारतीय कला का उत्कृष्टतम नमूना मौर्य शिल्प की देन चुनार भोजपुरी जनपद में ही है। बनारस रेशमी वस्त्र पीतल के वर्तनों आदि बहुमूल्य वस्तुओं से उज्जैन, सौराष्ट्र और यूरोप के बाजारों को भर देता था। बुद्ध के पूर्व जिन सोलह जनपदों का वर्णन हुआ है वे अधिकतर भोजपुरी अंजल के ही थे।

इसी भोजपुरी क्षेत्र में जगद्गुरू शंकराचार्य उपदेश हेतु आया करते थेभोजपुर जनपद के ही गंगा की घाटी में पुष्यमित्र शुंग ने ग्रीक विजेता मिनोदर को आज से दो हजार वर्ष पूर्व धूल चटा दिया था। विदेशियों को बार-बार परास्त कर अश्वमेघ करने वाले भारशिव नाग भोजपुरी अंचल के ही रहने वाले थे। जिनके दस बार अश्वमेघ करने पर दशाश्वमेघ घाट “काशी का प्रसिद्ध घाट” नाम पड़ा। प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम शकारि-विक्रमादित्य चन्द्रगुप्त ने शको को देस से निकाल कर किया था।

कन्नौज के गड़हवाल राजाओं ने भोजपुरी जनपद के महत्व को समझकर केन्द्र काशी में अपने लेख खुदवाकर, उसे अपनी दूसरी राजधानी बनायीइसी भोजपुरी इलाके को उन भरो के कुलों को समुन्नत करने का श्रेय है, जिन्होंने अपना ब्राह्मण, क्षत्रियेत्तर साम्राज्य कायम किया।

भोजपुर के शासक अफगानों के सरदार शेरशाह ने भोजपुरिया जवानों की ही सेना लेकर दिल्ली का शासक बन बैठा, पंजाब को कुचलता हुआ मालवा, गुजरात तक की भूमि पर अधिकार कर लियाइसी भोजपुरिया सरदार शेरशाह ने “ग्रान्ट ट्रन्क रोड” का निर्माण करवाया, खेतों की पैमाइश, डाक तथा चांदी के सिक्कों को प्रारम्भ कियाअकबर के राज्य की व्यवस्था करने वाला टोडरमल भोजपुरी अंजल का ही निवासी था। भोजपुरी क्षेत्र का ही निवासी मंगल पाण्डेय ने सन् 1857 की क्रांति का प्रारम्भ किया, कुंवर सिंह ने अंग्रेजो को लोहे के चने चबवा दियेऔर 1942 को 9 दिन के लिए बलिया को आजाद कराकर इसकी बागडोर चित्तू पाण्डेय ने थामी थी।

साहित्येतिहास में भी भोजपुरी अंचल ने कबीर, तुलसी उसमान, भारतेन्दु प्रसाद, प्रेमचंद, हरिऔध, रामचन्द्र शुक्ल, भिखारी ठाकुर, राहुल सांकृत्यायन काशी प्रसाद जायसवाल तथा ज्ञान शिरोमणि मण्डन दम्पति और शिवकुमार शास्त्री आदि को पैदा किया है।

राजनीतिक इतिहास में भी बी0 एच0 यू० के संस्थापक पं0 मदन मोहन मालवीय, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद तथा काशी नरेश चेत सिंह और चन्द्रशेखर इसी मौर्य की देन हैअतः भोजपुरी का इतिहास अपने आप में महत्वपूर्ण रहा है, आज भी है और आगे भी रहेगा।

भोजपुरी भाषा का सांस्कृतिक महत्व

जो राष्ट्र अपनी प्राचीन परम्परा को भूल जाते है, वह धीरे-धीरे पतनोन्मुख हो जाता है। संस्कृति शब्द सम्पूर्दक “कृ” धातु से भाव अर्थ में ‘क्तिन” प्रत्यय करने पर बनता है। जिसका अर्थ होता है परम्परागत अनुस्पूत संस्कार डॉ0 वी0 एस0 सान्याल संस्कृति को परिभाषित करते हुए जीवन में मूल्यों का सिद्धान्त और प्रयोग रुप में प्रत्यक्षीकरण को ही संस्कृति बताया है। डॉ० विश्वनाथ प्रसाद वर्मा संस्कृति का सम्बन्ध मनुष्य के संस्कारों के संशोधन से बताते है। संस्कृति का सम्बन्ध हमारे मन और चित्त के गहरे संस्कारों से हैं। समाज जीवन के शरीर को लेकर जिन वाह्य लक्षणों की सृष्टि हुयी है, और मानव मन की वाह्य पद्धत्तियों तथा प्रेरणाओं से परिभाषित एवं नित्य परिवर्तित क्रियाओं आदि से जो कुछ विकास हुआ है, उसे सभ्यता कहेंगे और उसकी अन्तर्मुखी पद्धतियों से जो कुछ शाश्वत एवं परम्परागत क्रियाएं निर्मित हुई है, उसकी सम्पूर्ण समग्रता का बोध संस्कृति है। संस्कृति किसी क्षेत्र के निवासियों का जीवन यापन करने का ढंग है। गंगा, सरयू, गंडक, नारायणी आदि नदियों की उज्जवल पवित्र जल धारा से पावन भोजपुरी क्षेत्र अपने अंक में एक विशिष्ट सांस्कृतिक इतिहास को छिपाये हुए है यहाँ की प्रत्येक वस्तु सांस्कृतिक मूल्यों की बोध करती दिखाई देती हैप्राचीन समय से ही भोजपुरी क्षेत्र की संस्कृति अपने आप में एक अनूठी संस्कृति रही है। और काशी इस संस्कृति का केन्द्र बिन्दु रहा है। क्योंकि काशी प्रारम्भ से ही धार्मिक बिन्दु रहा है। और “भोजपुरी की संस्कृति धर्म प्रधान संस्कृति रही है। 2- बुद्ध की संस्कृति पर भी भोजपुरी संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है। नाथ पन्थ के विकास में गोरखपुर का महत्वपूर्ण योगदान है, गोरखनाथ के नाथ पन्थ के विकास में गोरखपुर का महत्वपूर्ण योगदान है, गोरखनाथ के नाथ पन्थ के हठयोग ने संस्कृति के क्षेत्र विशेष का विस्तार किया।

कबीरदास तथा अन्य निर्गुण सन्त कवियों का भोजपुरी के संस्कृति के विकास में विशेष योगदान रहा हैसाधु-सन्त की संस्कृति को भोजपुरी जनपद का एक विशिष्ट योगदान माना जा सकता है। जिस समय देश गुलाम था उस समय भोजपुरी संस्कृति का राजनीतिक रुप भी प्रकट हुआ था। देश धर्म के नाम पर अपना सब कुछ लुटा देने का आदर्श भोजपुरी संस्कृति की महान विशेषता रही हैभोजपुरी जनपद की संस्कृति का स्वतन्त्रता के भन्वेषण में महत्वपूर्ण स्थान है।

भोजपुरी संस्कृति की एक वही विशेषता मानवतावाद की रही है, भोजपुरी वासी बड़ी मेहनत से खेती करके कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत करते हुए भी मानवतावाद का नारा बुलन्द किए हुए है। भोजपुरी क्षेत्र में निवास करने वाला हर एक प्राणी एक सांस्कृतिक सूत्र में बैठा एक विराट तत्व का ही रूप है, यह देश विदेश कही भी जाता है, अपनी सांस्कृति धरोहर को साथ ले जाता है ।27 भोजपुरी क्षेत्र की संस्कृति में शौर्य, साहस निर्दन्दता आदि का महत्व है, कारण यह है कि भोजपुरी संस्कृति एंव सभ्यता के मूल में प्रधान रूप से निहित है। भोजपुरी संस्कृति में यथार्थवाद का भी दर्शन होता है, जो इस संस्कृति की विशेषता रही है।

भोजपुरी क्षेत्र की संस्कृति अपने आप में पूर्ण, स्वरूप और गहरी है। इस क्षेत्र के निवासियों की कलात्मक एंव सास्कृतिक अभिरूचि की ओर जब हमारा ध्यान जाता है, तो हम पाते हैं कि यहाँ के लोग चिरकाल से लोक, गीत, लोकगाथा, लोकनाटय लोकोक्ति आदि के द्वारा अपनी कलात्मक अभिव्यक्ति करते चले आ रहें है। भोजपुरिया लोगो की प्रवृत्ति उत्सवप्रिय रही हैं। यहाँ के लोग अपनी जीवन्त तथा स्वछन्द स्वाभावानुसार प्रत्येक धार्मिक सामाजिक व्यक्तिगत उत्सवों पर नाच-गाना बजाना आदि नाना लोक कलाओं द्वारा अपना मनोरजन करते चले आ रहे हैं। भोजपुरी क्षेत्र के लोगो का परिवारिक तथा सामाजिक जीवन लोक कलात्मक आमोद-प्रमोद से परिपूर्ण हैं। भोजपुरी क्षेत्र के लोगो की कलात्मक अभिव्यक्ति इस क्षेत्र की संस्कृति का ही अंग है, जो इस भोजपुरी संस्कृति को अन्य संस्कृतियो से अलग एक विशिष्ट स्थान प्राप्त करती है।

भोजपुरी भाषी लोगो की जीवन्त भावना उन्हे सांस्कृतिक मूल्यों के पालन के प्रति सदैव जागरूक रखती है। इस क्षेत्र के कवि विशुद्ध संस्कृति के पोषक के रूप में रहे है। समाज में जहाँ कहीं भी संस्कृति विरोधी तत्व दिखाई दिया कि वे उसके अस्तित्व पर ही चोट करने लगते हैं। इस क्षेत्र के संस्कृति की व्यवस्था तथा संस्कारों की अपनी एक स्वच्छ, सुन्दर सुदीर्घ पराम्परा रही है। भोजपुरी क्षेत्र में वर्णाश्रम व्यवस्था तथा संस्कारो के साथ सम्पृक्त आचार-विचार को विशेष महत्व दिया गया है, इन्ही सांस्कृतिक परिस्थितयों में भोजपुरी भाषा तथा साहित्य का विकास हुआ है। इन दोनो पर ही उत्तर भारत की परम्परागत पौराणिक तथा लोक संस्कृति का विशेष वर्चस्व रहा है।

भोजपुरी भाषा का राजनीतिक महत्व

भोजपुरी क्षेत्र का राजनितिक क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान रहा है। प्राचीन काल से लेकर आज तक राज नीतिक परम्परा अपने आदर्श रूप में यहाँ विघमान है। स्वतन्त्रता संग्राम की कुछ प्रमुख लहर तो यही से उठी तथा कुछ इसको स्पर्श करके ही आगे बढी। भोजपुरी क्षेत्र के राजा भी अपनी सम्पूर्ण वैभव माँ भारती के चरणो में समर्पित कर राजनीति के कंटकाकीर्ण पथ पर चल पड़ेभोजपुरी क्षेत्र के राजनीतिक जीवन का यथार्थ चित्रण भोजपुरी लोक कथाओ में भरा पड़ा हैभोजपुरी लोक यथार्थ मध्ययुगीन राजनीतिक जीवन के चित्र को प्रस्तुत करती हैभोजपुरी लोक साहित्य में राजनीतिक जीवन का जो चित्रण हुआ है। उसमें मुसलमान शासकों के अत्याचारो का उल्लेख हुआ है। इसके साथ ही 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम से लेकर अब तक की राष्ट्रीय धारा का चित्रण मिलता है।30 भोजपुरी लोकसाहित्य में वर्णित तथा यहाँ के कवियो की रचनाओं में जो राष्टीय धारा, देशभक्ति और स्वतन्त्रता सग्राम का वर्णन मिलता है, उसका सीधा सम्बन्ध भोजपुरी क्षेत्र ही रहा है, जहाँ से देश की सब राजनीतिक प्रकियाएं प्रारम्भ तथा संचालित होती थी आधुनिक काल के स्वतन्त्रता की लड़ाई से लेकर आज तक की राजनीति में भोजपुरी प्रान्त का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

सन् 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का प्रारम्भ भोजपुरी अंचलान्तर्गत बलिया जिला के निवासी शहीद मंगल पाण्डेय ने की थी। भोजपुरी निवासी वीर कुँवर सिह ने स्वतन्त्रता संग्राम का नेतृत्व किया और यहां की मिट्टी में बसी स्वतन्त्रता की संस्कृति से सबको परिचित करा दिया। बलिया के चित्तू पाण्डेय ने 19 अगस्त 1942 को ही बलिया को आजाद कराकर इसकी बागडोर सम्हाली थीमहात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन का प्रभाव भोजपुरी क्षेत्र की राजनीतिक पर सर्वाधिक रहोदक्षिण अफ्रीका से वापस स्वदेश आने पर गाँधी जी के स्वतन्त्रता संग्राम की पहली आवाज बिहार के चम्पारन से ही उठी, जिससे स्वतन्त्रता की राजनीति को एक नयी दिशा प्राप्त हुई। इस आन्दोलन से देश धर्म के नाम पर अपना सब कुछ अर्पित कर देने की जो भोजपुरी संस्कृति है, उसका राजनीतिक रुप प्रकट हुआ। जय प्रकाश नारायण जी तथा भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भी भोजपुरी क्षेत्र के ही थे।

भोजपुरी क्षेत्र का राजनीतिक यथार्थ और सही चित्रण यहाँ के कवियों, रचनाकारों द्वारा उनके साहित्य में उनकी ही वाणी में व्यक्त हुआ है। भोजपुरी रचनाकारों ने देश की एकता अखंडता तथा राजनीतिक चेतना जागृत करने में महत्वपूर्ण, सराहनीय कार्य किया है, और आज भी कर रहे है। भोजपुरी क्षेत्र अपनी राजनीतिक चेतना के लिए प्रसिद्ध है।”” स्वतन्त्रता के समय भोजपुरी कवियों की वाणी मुखरित हो उठी, वे राष्ट्रीय, देश भक्ति और अंग्रेजी अत्याचार के गीत गाने लगे, इस समय की तथा चीन और पाकिस्तान के आक्रमणों के समय की रचनाओं पर राष्ट्रीयता तथा देश भक्ति की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है। भोजपुरी साहित्य के विकाकाल की रचनाएं राष्ट्रीयता और देश भक्ति से ओत-प्रोत पायी जाती हैभोजपुरी क्षेत्र का राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, तथा आज भी इसका योगदान प्रशंसनीय हैबीसवीं शताब्दी में भारत के राजनीतिक जागरण में भोजपुरी जनपद का विशेष स्थान है।

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