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दीपक सिंह जी के लिखल कुछ भोजपुरी रचना

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दीपक सिंह जी
दीपक सिंह जी

आई पढ़ल जाव दीपक सिंह जी के कुछ रचना , पढ़ीं आ आपन राय बताइ कि रउवा कइसन लागल, रउवा सब से निहोरा बा पढ़ला के बाद शेयर जरूर करीं आ रचनाकार के हिम्मत बढ़ाई

दीपक सिंह जी

जेकरा कवनो लूर ना रहल,
उहो कह के चल गइल
साफ करत रह गइनी
हमके सजी कचर के चल गइल

ई ठीक बा,अइसे होला हम
समझावत रह गइनीं
रे बकलोल, ते चुप्पे रहु
अइसन कह के चल गइल

राहता में हाथ बढ़वले रहनीं एके
साथे चले ला
लँगड़ी मार के, उहे हमके
देखीं गड़हा में भर गइल

सोचनीं कि अबसे कुछ
ना करेंम कुछ ना बोलेम
तबे एक जाना पर देखनीं
बड़का बिपत पड़ भइल

बहुत रोवला के बाद
हँसल देखते लोगवा के
जाने काहें ई चेहरा
आँखिन में गड़ गइल

साँच

साँच कहेनी,निठाह रहs
जहा बुझाये दोष, वहा जांच करs

करेजा गर बा लमहर तs
आव,दु दु हाथ करs

साफ रहेंनी, साँच कहेनी
बाकी गलती होखे त माफ करs

चले के बा जदि साथे तs
मन के मईल सब साफ करs

बात

राउर बात बा
हमार बात बा
एके बिषय पर
जब रउआ कुछ कढावेनीं
त हमहूँ वोहपे आपन बात
बढ़ावेनीं ,बिना कवनो
लाग-लपेट के
मिटावल,बढ़ावल,जोड़ल,घटावल
अपना अपना बिचार के मुताबिक
लागले रहेला,ताना-तानी अलगे
जोर शोर से
अउरी फ़िज़ूल के,
अहज़ह लागले रहेला
बात के
गरमा-गरमी भइल
के बाद असली बात भुला जाला
आ ई सवाल रह जाला
कि जवन बात होता
साँच बा का ?

हम आ हमार घर

हँसी,ख़ुशी, उल्लास,
समरपन आ बिसवास
हमरा घरे रहेला।
सभे हँसेला, बोलेला,
बतिआवेला आ मुसुकाला।
हम दुनू का बीच में रहिले,
तीत- मीठ सहिले।
सबकी बात के नीमन से
सुनिले ,समुझिले,
चिन्हिले आ गुनिले।
सबसे आ सबकी बातिन से
अलग आ अकेले बइठल रहिले।
हमार घर के खुशी
हमरा कमरा के केंवाड़ी से
लवट जाला,
जइसे हमरा से
वोकर पुरान अनबन होखे।

फ़ोटो खिंचाएम

सपरत सपरत
सोचले रही कि
एगो हराह फ़ोटो खिंचाएम
करिया जीन्स आ आसमानी
रंग के टीशर्ट पहन के
घर के दूर जाके
बगल में बुलेट एक स्टैंड पर लगा के
पीछे में पहाड़ से ढुलकत साफा सड़क
होखे दिन साफ आ घाम जबर
फ़ोटो दर्जन भर खिचअवति
तनि ऊपर नीचे मिला के
हाथ-गोड़ सीधा बना के
चेहरा पर तनि मुस्कान रही
आ तनि फ़िल्टर के भी कमाल रही
आउर सब देखल जाई
एहि अहजह में सपरत सपरत
सोचतानी की एगो फ़ोटो खिचाएम

 

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