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भोजपुरी गजल

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संजय सिंह
संजय सिंह

काठ के करेजा बरबस छलक पड़ल,
टूटल रहे सिन्होरा ,मिटल रहे भरम

पपनी के लोर में रहे ,उलझल जे मन के नाव,
पतवार के उमंग भी हो गईल बेशरम ।

उ छनछनात पायल आ छटपटात घायल,
बीचे नदी के धार में बेसुध रहे पड़ल ।

निज सादगी के सोना ,बचावल अन्हार में,
मुश्किल बहुत बा ,बा आसान पी गईल गरल ।

हम जात बानी कहवाँ अबहूँ विचार लीं
काहें घिसल लकीर पर बानी अभी अड़ल ।

हम हार के कपार पर ठोकब फतह के कील,
चारु तरफ निज मान के मस्ती बाटे भरल ।

– संजय सिंह (आखर के फेसबुक पेज से)

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