आभूषण स्त्रियों—विशेषकर भोजपुरी स्त्रियो—का परम प्रिय वस्तु है। विवाह के अवसर पर वर पक्ष की समद्धि का अनुमान उमके द्वारा कन्या के लिए लाये गये गहनो से ही किया जाता है। कितनी ही बारातो मे प्रचुर परिमाण में गहना न ले आने के कारण झगडा हो जाता है। स्त्रिया अपने पहनने के वस्त्रों से भी अधिक गहनो से प्रेम करती है। वे अपने घरेलू पति से गहना गढा देने के लिए सतत आग्रह करती है और परदेश जानेवाले पति से अपने लिए सुन्दर गहना खरीदकर लाने की प्रार्थना करती है।
भोजपुरी स्त्रियों को जीवन–जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक आभूषण प्रियता की एक करुण कहानी है। इस सम्बन्ध मे यह कथा प्रचलित है कि किसी भोजपुरी स्त्री ने अपने पति से कहा कि “मुझे आभूषण को छोड़कर अन्न तथा वस्त्र किसी भी वस्तु की आवश्यकता नही हैअत मेरे लिये गहना गढ़ा दो।” पति ने स्त्री के आग्रह को स्वीकार कर उसे सिर से पैर तक गहना पहिनाकर नगे एक घर में रख दिया। दो-तीन दिन बीत जाने पर भूख की प्रचण्ड ज्वाला उसे जलाने लगी। तब उस स्त्री ने पति से प्रार्थना की “मुझे भोजन चाहिए, गहना नही।” इस कथा से स्त्रियो की आभूषण-प्रियता का पता चलता है।
भोजपुरी स्त्रियाँ सिर से लेकर पैरो तक अपने शरीर के प्रत्येक अग मे आभूषण पहनती है जिनकी गूंज लोक-गीतो मे भी सुनायी पड़ती है। स्त्रियों द्वारा अपने विभिन्न अगो मे पहिने जानेवाले गहनो की तालिका नीचे दी जाती है, जिससे इनके आभूषणो की प्रचुरता का कुछ अनुमान किया जा सकता है
शरीर के अंग-आभूषण को नाम
- सिर के बाल – सैफ्टीपिन
- माँग – सँगटीका
- नाक – नथियो, झुलनी आदि
- कान – कनफूल, झूमक, टाप
- गला – कण्ठा, कण्ठेसरि
- कमर – करधनी
- बाहु का मध्य भाग – बाँक, जोसन आदि
- हाथ – पहुँची आदि
- हाथ की अंगुलियाँ – हथसंकर
- पैर – गोडाँव, पायल आदि
- पैर की अँगुलियाँ – बिछिया
स्त्रियों के विभिन्न अंगों के आभूषण
पैर के आभूषण
१) नूपुर, (२) गोड़ाव, (३) झाँझ, (४) छडा, (५) पावजेब, (६) पइरी, (७) चुरा।
पैर की अंगुलियों के आभूषण
(१) बिछिया, (२) बिच्छुआ ।
कटि के आभूषण
(१) करधनी, (२) डण्डा या डॅडकसी।
हाथ की अँगुली के आभूषण
(१) अँगूठी, (२) हथसकर।
पहुँचा के आभूषण
(१) कॅगना, (२) पहुँची, (३) चूडा, (४) बँहलोई और (५) हथउरा।
बाँह के आभूषण
(१) बाजूबन्द, (२) बाक, (३) बिजायठ, (४) जोसन और (५) बहरबूटा।
वक्षस्थल के आभूषण
(१) हार, (२) चन्द्रहार, (३) तिलरी, (४) मोहर माला, (५) सिकडी और (६) हलका।
कण्ठ के आभूषण
(१) कण्ठा, (२) कण्ठेसरि और (३) हँसुली।
कान के आभूषण
(१) तरिवन, (२) कनफूल-झूमक-गिकडी, (३) कुण्डल, (४) बाली और (५) उतरना
नाक के आभूषण
(१) झुलनी, (२) नकबूली, (३) बेसर, (४) नथिया, (५) नथुनी, (६) छंछी, (७) पान और (८) बुलाक ।
सिर के आभूषण
(१) सँगटीका, (२) सैफ्टीपिन, (३) मोती, (४) लटकन और (५) झबिया।
वस्त्रो में टाँके जानेवाले आभूषण
(१) मनोरी और (२) पत्ती।
बालको के आभूषण
(१) बाला, (२) बिजायठ, (३) बेरा, (४) डण्डा और (५) गोडब।
भोजपुरी मे आभूषण के लिा प्राय ‘गहना’ शब्द का प्रयोग किया जाता है, जिसका अर्थ ग्रहण या धारण करना है। कहीं-कही अभरन का भी प्रयोग पाया जाता है।
एक गीत मे ‘बारहो अभिरन’ की चर्चा पायी जाती है, जिनके नाम निम्नाकित है–नूपुर, किंकिणी, वलय, वकण, अंगूठी, अगद, हार, कण्ठश्री, बेसर, बिरिया, टीका और सीसफल। जायसी ने भी पद्मावती के ऋगर-वणन में बारह आभूषणो का उल्लेख किया है। यद्यपि इन आभूषणो की परम्परागत सख्या बारह प्राय रूढि हो गयी है, परन्तु वास्तव में इन गानो की संख्या अनन्त है।
स्त्रियाँ एकएक अंग मे अनेक गहनो को पहिनती है, जैसे पैर मे वे नूपुर, गोडाँव, पविजेब, कडा और छडा धारण करती हैं। इसी प्रकार से बाँह के मध्य भाग में वे बाँक, जोसन, बहरबंटी आदि गहनो को पहनती हैं।
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