मंडली के सदस्यन के मुंह से निकले वाली विशेष शब्दन मुहावरन आ उक्तियन में लोकनाटयन के विशेष पारिभाषिक शब्दावली आ ओकर रचना तंत्र के प्रमाणिक व्याख्या मिलेला
भोजपुरी लोकनाट्य मंडलीयन के विशिष्ट शब्दावलियन के वर्णन:-
- आँखि सेकल:- मंडलीय न के नाच पाठ देखे में दर्शक ए तरे खो जालन की उनकर पलक भी ना झपके।मंत्र मुग्ध होके उनकर प्रदर्शन देखले पर व्यंग कइल जात रहे:- “आँखि सेक, आँखि सेक ।
- कैरी:- आपस के बातचीत में मंडली के सदस्य लोग बीड़ी के “कैरी” कहत रहे लोग।
- खूनS:- ए पदावली के व्यवहार नाचल खातिर होत रहे।जब दर्शक मंडली में एकरसता आ उबाई आवे लागे,त मंडली के मालिक कवनो आच्छा गावे-नाचेवाला लवांडा के खड़ा क के कहत रहे:- “खूनS चुन। अर्थात नाच,नाच ।
- खेटाव :- मंडली के नचनियां बड़ा सुघर होलन स।मेहरारू के वेश में बनि ठनी के उतरला पर उ साँचहू के मेहरारुये लागेले सन।ओहनी के चोन्हा पर कई बेर अइसनो भइल बा कि कवनो लइकी आ मेहरारु ओहनी का साथे भागे के तैयार हो जात रहे।ओ समय मंडली के दूसर सदस्य कुछ पद बोल उठत रहे:- “खेटाव, खेटाव। अर्थात भगाव, भगाव ।
- खेवराव :- ई ले अईला खातिर प्रयुक्त होला। प्रदर्शन पर खुश होके जब नचनियां के कवनो रसिक दर्शक से एकाध गो रोपया मिली जात रहे त मालिक गते कहत रहे:- “खेवराव, खेवराव । अर्थात ले आव, ले आव ।
- खेलहा :- मंडली के बोली में शराब के खेलहा कहल जात रहे।
- खोइठ :- नाट्य मण्डलियन के सदस्य अहीर जाति के विशिष्ट पदावली में ‘खोइठ’ कहत रहे लोग।जब कवनो प्रदर्शन के बीच मे मना कई ला पर भी हाल्ला करत रही,त मंडली में से केहू व्यंग करी:- ‘खोइठ हई का जी?
- गान्ही :- अपना पदावली में मंडली के लोग शराब के गान्ही कहत रहे। नाच के जब कवनो सदस्य बड़ा सबेरहि आँखि झपकावे लागि,त मंडली के मालिक कहि उठत रहे:- ‘गान्ही चढवले बाड़े का रे? अर्थात शराब पीअले बाड़े का रे?
- गोड़उ राम राम :- नाट्य मंडली के सदस्य लोग ऊपर झापार के परनाम पाती के ‘गोड़उ राम राम’ से संबोधित करत रहे।
- घोमा :- विशिष्ट शब्दावली में रुपया पइसा के घोमा कहल जात रहे।
- चिहनी :- जब कवनो लवांडा नाचे में आँखि आँखि से काम ना लेत रहे त हरमुनियाह बोल उठत रहे:- ” ए जहूर न चिहनी नचावल कर। अर्थात ए जहूर न आंखि के नचावल कर ।
- जिला हिलाव:- नर्तकन के बंकिम मुद्रा में नाचला के जिला हिलावल कहल जात रहे।उनकर कमर जब ऊपर नीचे बल खाए लागत रहे त शामियाना में कवनो ओर से बोली आवत रहे:- जिला हिलाव, जिला हिलाव।
- जिरहलवा :- बदमाश आ असामाजिक तत्त्वं में मंडली के लोग ‘जिरहलवा’ कहत रहे।अनाप शनाप गीत के फरमाइश करे वालन खातिर मंडली के लोग कहत रहे:- जिरहलवा,जिरहलवा बा। अर्थात बदमाश ह बदमाश ।
- जिरहाल :- ए पदावली के व्यवहार ठीक नईखे के अभिप्राय में कइल जात रहे । खात बेरा भोजन ठीक ना रहला पर मंडली द्वारा आपस मे बतकुच्चन होत रहे:- ‘जिरहाल, जिरहाल। अर्थात ठीक नइखे, ठीक नइखे।
- झोलखर :- मंडली के लोग गोड़ के झोलखर कहत रहे।
- टेंगहि:- एकर व्यवहार लइकी खातिर कइल जात रहे।नाट्य प्रदर्शन में चितकाबर कवनो कमसिन नचनियां पर टीबोली कसत रहे:- आरे हमार टेंगहि, मत रो,मत रोव।
- टेढिया :- हारमोनियम के दोसर नाम मंडली लोग टेढिया रखले रहे।
- निरहा:- नाकवाला लोग पानी के निरहा कहत रहे ।
- फुलका :- भात के मंडली के लोग फुलका कहत रहे।ए लोग के कहनाम रहत रहे कि फुलका फुलावेला, रोटी पचकावेला,बाकी बरियार बनावेला।
- बिहुरल :- मरी गइला के अभिप्राय में ए पदावली के व्यवहार कइल जाला।
आउर भी शब्द बाड़ी सन, जइसे……:-
बैलहा, बैकुंठी, मलपहा, माधो,बिरना, रंगबदल, राति भर बिटोरल, रापड़, रीता, रेवार, रेखा,रैन,बाकन,थापिल,थोब,
सियाह, सिस्कार सिमलहवा, सुमिल बैल,घुबेरल इत्यादि ।
(साभार – भोजपुरी अकादमी पत्रिका,जनवरी-दिसंबर, 1984)
– राजेश भोजपुरिया
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