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भोजपुरी लोकगीतों में बेटी : रामचन्द्र कृश्नन जी

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रामचन्द्र कृश्नन जी

बेटी भगवान के दिहल वरदान हई।जवन सब केहूं के ना मिलला,जइसे बेटा कुल के दीपक होलें,ओइसे बेटी घर के लक्ष्मी होली। जवनें घर में बेटी होली ओह घर में हमेशा सुख शान्ति बरसला, बेटी घर के बगिया क गुलाब हई जवना से घर क सगरो वातावरन मुस्करात आ खिलखिलात रहला।बेटी माता पिता के बगिया क परी होली जे हमेशा अपने पिता के बगिया मे उडल करेली। बेटा तबतक साथ देला जब तक ओकर शादी नाई हो जाला,लेकिन बेटी मरते दम तक मां बाप क साथ देली।बेटा एक घर चलावला बेटी दु -दु घर के सम्हारेली,बेटिये में अइसन गुन होला की एक कुल क बोकला दुसरे कुल में जा के अइसन सटि जाला कि तनिको फरक ना बुझाला।

रामचन्द्र कृश्नन जी
रामचन्द्र कृश्नन जी

जेतना मां बाप खातिर बेटा जरूरी होला ओतने बेटी भी,।आज के समय में बटी भी बेटा के तरह मां बाप क नाव रोशन क रहली बाटी,जवन बेटी मां बाप के बिमार सुनि के आंसू से लथफथ सबसे पहिले पहुंचेलि ,घर में पिता के अवतें पानी लेके सबसे पहिले हाजिर होली ओहि बेटी के साथे प्राचीन काल से समाज एतना निष्ठुर होके आज तक जघन्य अपराध करते आ रहल बा, जवने के प्रत्यक्ष प्रमाण भोजपुरी लोकसाहित्य के एह लोक गीतन में मिलला।

जवनें दिन से बेटी मां के कोख में आइल मां के कवन हालत बा, एह लोक गीत में देखि।
जहिया से रहली बेटी तुहरी रहनिया, दिन दिन कइली उपवास।

मांस मछरिया बेटी मनहू न भावे,दुधवन कइली फरहार।
एतना तकलीफ के बाद जवने दिन बेटी क जनम भइल घर में मातम पसरि गइल देखि।

जेह दिन बेटी हो तुम्हारा जन्म भइले, भइली भदउआ क राति
सासू ननद घर दियना न बारे,आप प्रभु बइठें मन मारि।

फिर भी मां ,तो ममता क मूरत होली बेटी को बड़े लाड प्यार से पाला पोसा गीत में देखि।
खोरवन-खोरवन बेटी दुधवां पिअवलि, दहिया खिअवलि सरिवाल।

घमवां बतसवां में जाए नाई दिहलि, धिया मोरि जइहें कुम्हिलाई।

लेकिन वही बेटी जब सयानी हो गई,बिआह क समय आ गइल त समाज क क्रूर हृदय देखि के माई क करेजा फटि रहल बा,दहेज क भारी बोझ समाज क बेरहमी देखि के मां बाप के लगि रहल बा कि हमसे कवनो भारी गलती हो गइल की बेटी क जनम दे दिहली।जवने बेटी के मां एतना प्यार से पललसि ओहि बेटी के प्रति अब का सोचि रहलि बा एह गीत में देखि।

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जनलें जो होति बेटी दान आ दहेज के बिपतिया ,करति ना एतना दुलार।
नूनवां चटाई बेटी नंन्हवे मुअवति,सहती ना बजर ई मारि।

समाज बेटी के प्रति भले निष्ठुर बा, लेकिन मां बाप खातिर बेटी उनके आंगन की चिड़िया हई जवन हमेशा चहचहात रहेलि।ओकरे शादी क चिन्ता दिन राति सता रहल बा कि आखिर ओकर शादी कहा कइल जा।

माई कहेलि बेटी नगिचें में ब्याहब,भउजी कहेलि दूर देश।
भइया कहेंले बहिना काशी में ब्याहब नित उठि करिहें असनान।

आखिर बेटी क शादी होरहल बा,अब बेटी अपने मां बाप के लिए पराई हो जाएगी,इ नगर अब ओकरे लिए आपन नाई पराया हो जाई सिन्दर दान हो रहल बा बेटी करूण स्वर में पुकार रही है।

बेटी बाबा ही बाबा पुकारें,बाबा नाई बोले लें।
बाबा के बरजोरी सेनुर वर डारें न हो। चाचा ही चाचा पुकारें ,तो चाचा नाई बोलें,
चाचा के बरजोरी सेनुर वर डारें न हो।

शादी हो रहल बा सूरज की भयंकर गर्मी से बेटी तड़प रहल बा, फूल जैसी बेटी एतना घाम सह नाई पा रहल बा, त पिता का कहि रहल बांटें।
कहतू त ए बेटी छत्र छववति,कहतू त सूरूज अलोप।

काहें के बाबा हो छत्र छवइब,काहें के सूरूज अलोप,आजू के राति बाबा तुहरे नगरिया काल्हि सुनर वर के साथ।
ह़ोम क धुआं आ गरमी से परेशान बेटी के देखि के मां बाप क आत्मियता असहनीय बेदना होके फूट रहल बा ,तभी त लोकगीतकार क इ शब्द निकरल।

बाबा हालि हालि बेदवा उचार,त धिया मोरि बारि अलस सुकुआरि त धुअवां बयाकुल हो।

शादी हो गई वर के साथ अब बेटी पराई हो गई इस लिए मां से क्या कह रही है।
माई नाई हम चोरनी चटोरनी,नाई कुल दाग लगवनि न हो।
कवने कसूर विसरवलू ससूरा पठावेलू हो,।

अचरा के छहिया सूतवलू ,त कइसे हम रहब हो
मां बेटी के का सीख दे रहलि बा।

सासू जी के कहिह तू माई, ससूर जी के बाबा न हो,
दुनो कुल क मान बढइह,अलख सुख पइबू न हो।

इस तरह पुरान काल से चलल आ रहल बेटी के प्रति भेद भाव आजूओ बरकरार बा जरूरत बा एके निर्मूल विनाश कइलें क।

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