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भोजपुरी लोकगीतों में व्यक्त राष्ट्रीय चेतना

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भोजपुरी लोकगीतों में व्यक्त राष्ट्रीय चेतना

भोजपुरी लोकगीत राष्ट्रीय चेतना से पृथक नहीं है। लोकगीत का मूल उद्देश्य मानव-हृदय को आह्लादित करना होता है, परन्तु वह अपने देश, समाज और लोक के प्रति सदा जागरूक रहता है। उसकी यह जागरूकता ही उसे कालजयी रचना का रूप देती है। भोजपुरी लोकगीतों तथा गाथाओं में स्थानीय इतिहास का पुट बड़ा गहरा है, उसमें पग-पग पर राष्ट्रीय चेतना के स्वर सुनाई पड़ते हैं। आल्हा, लोरिकायन, चनैनी, बिटुला, विजयमल आदि में कुछ न कुछ राष्ट्रीय चेतना अवश्य हैं।

बारह बरिस लै कुकर जीवें औ तेरह ले जीयें सियार।
बीस बरस छत्री जियें, आगे जीवन को धिक्कार।।

राजा भइले रजुली, बहोरन मइले धुनिया।
मारेले दलगंजनदेव, दलकेले दुनिया।।

भोजपुरी लोकगीतों में व्यक्त राष्ट्रीय चेतना
भोजपुरी लोकगीतों में व्यक्त राष्ट्रीय चेतना

मुगलों के शासनकाल की अशान्ति एवं दुर्व्यवस्था का चित्रण अनेक भोजपुरी लोकगीतों में पाया जाता है। तुर्कों की विषय लोलुपता तथा स्वेच्छाचारित की गूंज इन गीतों में खूब सुनाई पड़ती है, किस प्रकार कुसुमा देवी ने मिर्जा साहब के अत्याचारों को सहकर भी अपने सतीत्व की रक्षा की थी और अपने चरित्र की ओजस्विता को प्रकट किया था, यह गाँवों में आज भी बड़े उत्साह के साथ गाया जाता हैसती कुसुमा देवी का नाम इन गीतों में अमर है। कुसुमा देवी का यह दिव्य चरित्र हमारे लिए आज भी नारी के उत्कृष्ट महत्व को प्रदर्शित करता है।

तनियक डोलिया थमाओ मिरजवा,
बाबा के सगरवा मुँहवा धोइत हो ना।।
बाबा के सगरवा समुन्दर बढ़इल पनियाँ,
हमरे सगरवा पनियाँ पीयो हो ना।।
तोहरा सगरवा मिरजा नित उठि होई है,
बाबा कै सगरवा दुरलभ होइहैं हो ना।।
एक चूंट पियली दूसरा घुट पियली,
तिसरी में गई है तराई हो ना।।
रोइ रोइ जलवा डलावै राजा मिरजा,
फॅसि आवै घोंघिया सेवरिया हो ना।।
मुँहवा पटुका देके रोवे राजा मिरजा,
मोरे मुँह करिखा लंगवलू हो ना।।
सिर पै पगड़िया बाँधि हँसे मैया,
बाबा, दूनों कुल राखेउ बहिनी कुसुमा हो ना।।

भोजपुरी में शत्रुओं का मानमर्दन करने वाले वीरों की अनेक कहानियाँ गीतों में गायी जाती हैंसन् 1957 की क्रांति की चर्चा इन गीतों में बिखरी पाई जाती हैभारतवासियों पर अत्याचार और दमन-चक्र का जुल्म चरम सीमा पर था। इस दमन नीति की प्रतिक्रिया में ही भारतीय जनो में भीषण विद्रोह हुआ जिसमें बाबू कुँवर सिंह की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।

रामा पहुँची गइले आई चौथे पनवा रे ना,
रामा भइले अस्सी बरस के उमरदा रे ना,
रामा एही समय आई के तुफनवाँ रे ना,
रामा देसवा में उठल गदरवा रे ना।

रामा आगे कर कहीले हवलवा रे, ना,
रामा पटना के टेलर कमिश्नरवा रे ना,
रामा कुँवर सिंह के भेजलै परनवा रे ना,
रामा भइल उनका मुंशी के तलशवा रे ना।
रामा करत रहले कुँवर सिंह बिचरवा रे ना,
रामा ताहि समय आई कर लोगवा रे ना,
रामा दानापुर से पहुंचे उनके पसवा रे ना,
रामा कहेले जे सुनी सरकरवा रे ना,
रामा आप ही के बाड़े अब आसवा रे ना,
रामा भइले फिरंगी दुसमनवाँ रे ना,
रामा नाहक फाँसी वो जेहलवा रे ना,
रामा सुनिकर इतना बचनवाँ रे ना,
रामा जाय के लड़ाई मयदनवा रे ना,

इसके साथ की सिपाही विद्रोह सम्बन्धी अनेक घटनाओं पर भी इससे प्रकाश पड़ता है-

लिखि-लिखि पतिया के भेजलन कुँवर सिंह
ए सुन अमर सिंह भाय हो राम।।
चमड़ा के टोड़वा दाँत से ही काटे कि
छतरी के धरम नसाय हो राम।।
बाबू कुंवर सिंह भाई अमर सिंह
दोनों अपने हैं भाय हो राम।।
बतिया के कारण से बाबू कुँवर सिंह
फिरंगी से रेढ़, बढाय हो राम।।
दानापुर से जब सजलक हो कम्पू.
कोइलवर में रहे छाय हो राम।।
लाख गोला तुहुँ कै गनि के हो मरिहौं
छोड़ बरहरवा के राज हो राम।।

इस प्रकार कुँवर सिंह ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्र भक्ति का जो परिचय दिया था, वह इस अंचल के लोकजीवन में समा गया है। इसलिए उनकी राष्ट्रभक्ति और देशप्रेम को ‘वीर कुंवर सिंह’ नाम में अंकित किया है।

भोजपुरी लोकगीतों में कहीं तो लूट-पाट का वर्णन है तो कहीं बेगमों पर अंग्रेजों द्वारा किये गये अत्याचारों का उल्लेख हुआ है जो अत्यन्त हृदय द्रावक हैं-

गलियन गलियन रैयत रोवे
हटियन बनिया बजाज रे।।
महल में बैठी बेगम रोवैं,
डेहरी पर रोवै खवास रे।
मोती महल की बैठक छूटी,
छूटी है मीना बाजार रे।।
बाग जमनिया की सैरें छूटी,
छूटे मुलुक हमार रे।।
जो मैं ऐसी जानती,
मिलती लाट से जाय रे।।
हा हा करती, पैयां परती
लेती सँइयाँ छोड़ाय रे।।

महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जो राष्ट्रीय आन्दोलन हुए हैं उनका वर्णन भी भोजपुरी लोकगीतों में प्रचुर मात्रा में हुआ है। आजादी प्राप्त होने बाद स्त्रियों के गीतों में राष्ट्रीय चेतना के स्वर सुनाई पड़ते हैं-

आयेल बाटे गाँधी के सुराज हो
हम खद्दर पहिनब वा,
हम खद्दर पहिनब ना,
ललना छोड़ि देहु कपड़ा विदेशी, सुशिया के पहिरहु हो,
अवरू चलावहु चरखा, सबहिं मिलि गावहु हो,
ललना भारत नइया मँझधरवा त पार लगावहु हो

राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाकर गाँधी जी ने देश को आजाद करायाहमारे देश और देशवासियों का सौभाग्य है कि हमें महात्मा गाँधी जैसे राष्ट्र भक्त का नेतृत्व मिला-

अवतार महात्मा गाँधी के भारत के भार उतारे का
सिरी राम कै सेना बानर रही सिरीकिसन के सेना ग्वालबाल
गाँधी के सामने पब्लिक रहे भारत के भार उतारै का।
सिरीराम के साथे लछिमन रहे सिरी किसन साथे ग्वालबाल
गाँधी जी के साथ जवाहर भारत के भार उतारै का।
गांधी जी के हाथ चरखा रहा भारत के भार उतारै का
गांधी जी जगमा प्रकट भये अन्यायी राज हटाने का।

गाँधी जी के चरखे में इतना जादू था कि भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक नर-नारी स्वदेशी आंदोलन मे जुट गये। विदेशी कपड़ों की होली जलाई गयी-

खादी का डंका घर-घर बजवा देहलें गांधी बाबा,
मिट्टी माँ लंका शायर के मिलवा देहलें गांधी बाबा,
देसी चद्दर देसी धोती, खादी का हव कुर्ता-टोपी,
ओढ़ना-बिछौना खादी कै सिलवा दिहलें गांधी बाबा
मनहूस विदेशी कपड़न के जलैली भारत माँ होली,
खादी की आँधी से रिपु के दहला दिहिन गांधी बाबा,
जो पहन साड़ियाँ परदेश चलति रहे भारत के बहिना,
खादी से उनकर सुन्दर तन सजवा दिहिन गांधी बाबा।

इस प्रकार गाँधी जी ने आजीवन संघर्ष कर भारत को आजादी दिया तथा अपने आप को देश पर न्यौछावर कर दिया-

गाँधी बाबा किहै स्वर्ग की सकरिया नजरिया लागी भारत से रही
बलि बेदी पर न्यौछावर किहै जीवन सारा हो,
हिन्दी खातिर किहै बिरटिस से झगरिया नजरिया
कसे लंगोटी लिहे तिरंगा घर-घर अलख जगाये
धरती ऊपर सोई-सोई के भूखे रैनि बिताये,
नाहीं राखै तनिकों जीत जी कसरिया,
घर समझे रहें जेल का आपन रोज का आना-जाना
सुबह छुटे तो शाम को निकसे, बिरटिस का परवाना
सारी जेल में वो काटे है उमरिया,
भारत छोड़ो हे अंग्रेजों चली जोर की आंधी
लन्दन भागै बिजई भये गांधी नजरिया

स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए भोजपुरी क्षेत्र के लोगों पर जो रंग चढ़ा उससे कोई भी बाल-वृद्ध, नर-नारी, युवक-युवती नहीं बच पाया। भोजपुरी क्षेत्र का प्रत्येक गाँव, नगर, गली, खेत-खलिहान, स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तैयार था-

माई क मुकुटवा बिराजे हिमनवाँ ।
लोभी विदेशिया चाहे हमरे देश का खजनवाँ,
गरजड़ सिवनवाँ जाके चमकई दुधरियाँ।
सीवा वीर राना क न भूलिह करनियाँ।
मरिह समरिया दूनी फूली सूनि छतिया।
आँचि न लियाई कोई जननी क छतिया।
सुमन बहुरि के फेरी अइहं न नगरिया।।

जो पिया बनिहें रामा देशवा लागि जोगिया
हमहूँ बनि जइबो तब जोगिनियाँ ए हरी
देशवा के निनिया सोइबो अउर जगइबो रामा।
देहियाँ में रमइबो मल भभूतियाँ एक हरी।
जहवाँ जहवाँ जइहें रामा हमरो रावल जोगिया
सथवाँ सथवाँ डोलबि भरले झोरिया ए हरी
भूखिया पियसिया मोरा तनिको ना लगिहें रामा
बज्जर बनाइबि आपन देहिया ए हरी।
घरवा घरवा जाइ हम करब उपदेसवा रामा
सुफल बनाइबि आपन जिनगिया ए हरी।।

भोजपुरी लोक साहित्य अपने अंचल के इतिहास को प्रस्तुत करने में समर्थ है। अंग्रजी शासन के विरूद्ध जिन वीरों ने भारतीय जनता के हितार्थ अपने प्राणों की बाजी लगा दी है, उनका ऐतिहासिक विवरण भोजपुरी लोक-साहित्य में सरलतापूर्वक खोजा जा सकता है। काल चक्र के अनुसार पुरानी और नयी घटनाओं का वर्णन भोजपुरी लोकगीतों में स्थान प्राप्त करता चला आ रहा है, जो इतिहास के अध्ययन के लिए अत्यन्त महत्पूर्ण है। आजादी की लड़ाई में अमर शहीदों की गाथा एक बिरहा लोकगीत में मिलती है-

वतन पुजारी खुदीराम, मइलै सुबास भारतबासी,
राजपुरूष सुखदेव, भगतसिंह, झूलै प्रेम से फाँसी।
शेखर गोलिया चलावै, माँ क बेड़िया छोड़ावै,
पावन देशवा हमार, पावन देशवा हमार।
बा धन्य धरम क लाज बचा राजपूती छत्राणी,
लेके तेगा कूदै समर में झाँसी वाली रानी।
इन्द्र देशवा जोगावें, अपने वीरन के जगावे,
पावन देशवा हमार, पावन देशवा हमार।

भोजपुरी लोकगीतो में भोजपुरी क्षेत्र के अतिरिक्त देश-विदेश के प्रमुख स्थानों, घटनाओं या व्यक्तियों का वर्णन भी मिलता है। भारत के नगरों का वर्णन करते समय विदेशों के नगरों का वर्णन भी मिलता है।

एक बिरहा जिसमें दिल्ली का वर्णन मिलता है-

राजा उदय सिंह का बेटा, बान्है कमर में कस के फेटा
ढाँकै लाल बहादुर मुगल कई हजार।
राजा नाँही कइलै भोजन मानसिंह के संग,
क्रोधित हो दिल्ली चलल, काला नाग भुजंग।
हमके समझ नीच भोजन ना कइलै,
राणा क महिमा त छाइल बाय,
पहुँच के दिल्ली में अकबर से बयान कइलै,
दुष्ट राजा हमार घोर अपमान कइलै।

भोजपुरी लोकगीतों में वीर शहीदों की गाथाएँ बिरहा में मिलती हैं। एक बिरहा जिसमें अब्दुल हमीद के सेना में भर्ती होने से लेकर वीरगति प्राप्त करने तक का वर्णन मिलता है-

दूसरी बार अब्दुल हमीद के कइलै जवान पास
गुरू बिहारी गणे जीता लिखै सही-सही इतिहास
अब्दुल हमीद नाहर कइलै बीर कइ का
जहाँ में पाठा नाम कइ गइलै।
दिहलै आफिसर अब्दुल हमीद के घर टेलीग्राम
चलि आवा कश्मीर के जवान,
पवलै खबरिया जब कहलै तयरिया चलन के बेरिया,
भारी कलई असगुनवा चलत के बेरिया।
रतिया केकरै सियरिनियाँ कलपै विरना कै हो रनिया,
छतिया धड़कै मोर सजनवाँ चल के बेरिया,
प्यारी माना मोर कहनवाँ धीरज धरा अपने मनवाँ,
गिरावा असुँआ जिन नयनवाँ चलन के बेरिया।

अब्दुल बीर हमीद ललकारत चलत बाटै,
भारत वर्ष हमार बा लाहौर से ललकारै बीर,
नाहर भारत माता के दुलार सिर पर बाँधै कफनवाँ
एक जीप पर सवार हो के अब्दुल हमीद ललकार चलै,
दुश्मन के गोल में टैंक पर पहिले मारे,
पहिला के तोड़े फिर दुसरा के तोड़ौ,
तीसरा नासय फिर चौथा के चूर कइलै,
तब गोली के बौछार चलै अब्दुल हमीद ललकार चले।
मार्च भयल चारों तरफ संग्राम,
अमर हो गयल अब्दुल हमीद कय नाम।

भारत का पाकिस्तान और चीन से युद्ध हो चुका हैइन युद्धों के दौरान भारत की एकता एवं राष्ट्रीय सुरक्षा की भावना देखने योग्य थी। भारत का हर नागरिक अपने-अपने स्थान पर देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर करने के लिए तैयार था-

मोरा बाँका सिपहिया बना रणधीर,
बना रणधीर, बना रणधीर,
ओरे सिपहिया तू नेफा माँ जावौ,
चीनी बतइयन के मारि भगावौ
हारयौ न चाहे तुम तज्यौ शरीर।

नासि देव अभिमान चीन की जीति लेब मैदनवाँ,
नैना काजर दइके हमरी ओढ़ि चदरिया,
लाज देस कै जाइ न पाये साजन सुना हमार
मातु हेतु अब लोहा गहिला नाहीं तब धिक्का
हमहीं उतरि जाब रण आपन कसि के कमरिया।

आजकल सम्पूर्ण राष्ट्र में घूसखोरी, भ्रष्टाचार, घोटाला सर्वत्र व्याप्त है। भोजपुरी लोकगायकों ने इन परिस्थिति पर व्यंग्य किया है-

जब से गुलामी से भइले आजाद हो,
कि देशवा में बेइमानी ई शासन बेकार हो कि
आजकल के नेता सब बड़ा उत्पाती।
कुर्सी पर बइठ के जुड़ावे आपन छाती।
केहू ना गरीबवन के सुनेला गुहार हो,
कि देसवा में बेहमानी, ई शासन बेकार हो।
सुबास जइसन नेता ईहां केहू न दिखाला,
गांधी जी क सपना सब चूर होई जाला।।

भोजपुरी लोकगीतों में समकालीन राजनीतिक घटनाओं का भी वर्णन मिलता हैउसमें समाज के राजनीतिक एवं आर्थिक पहलू पर करारा प्रहार किया गया हैभोजपुरी लोकगीतकारों ने अपने गीतों के माध्यम से सम्पूर्ण राष्ट्र में एक राष्ट्रीय लोक-चेतना स्थापित करने का प्रयास किया है। तथा इसका बड़ी खूबी के साथ वर्णन किया है।

अब का सलाद खइबा। अरे पियजिया अनार हो गईल,
बाह रे अटल चाचा, नमकवा पै मार होई गइल,
अब का सलाद खइबा? पियजिया अनार होई गइल,
कइसन आफत बा जन-जन के मन हिल गइल,
सब कर बार-बार देखली रउवा एक बार मा देखा देहलीं।
अ लोकतंत्र माने जयललिता होला, ममता होला, समता होला,
इ रउवा गद्दी पै बइठले देखा देहलीं।
कहउँ न शांति वाला मंजर पइहो, मई जून पइहो नवम्बर न पइहो।
अ जवन भाव बेचे रहैं घी हमरे पुरखा,
उ भाव में गोबर ना पइबो।
कइसन आफत बा जन-जन के मन हिल गइल,
कंट्रोल से बाहर अरे रउवा तोहार बाजार हो गइल।
बात अब मिलावट के कइले बेकार बांटे
तेल पी के सरसों के अरे देसवा बेमार हो गइल।
राम राज्य के सुन्दर इ ढाँचा तैयार हो गइल,
बाह रे अटल चाचा नीमक पे मार हो गइल।

भोजपुरी लोकगीतकार आर्थिक एवं राजनैतिक हलचलों पर पैनी निगाह रखता हैवह समाज का सजग प्रहरी होता है, इसलिए वह अपने गीतों के माध्यम से सम्पूर्ण राष्ट्र में एक राष्ट्रीय लोक चेतना स्थापित करने का प्रयास करता है।

आजादी के समय भारत की वाह्य और आन्तरिक परिस्थितियाँ बहुत ही विषम थीं। आजादी के बाद जहाँ लोगों में उत्साह था, वही दूसरी और देश विभाजन का दुःख भी सभी के मन को त्रस्त कर रहा था। देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रति सहानुभूति व्यक्त करते हुए भोजपुरी लोकगीतकार कहता है-

कवना सइतिया प लिहला सासन भार जवाहर हो,
एक दुश्मन ललका बानर, दूजे मिस्टर जिन्ना हो,
लीगिन के सरदार भइया जवाहर हो।
कइसे होई भारत के भलाई भइया जवाहर हो।
भाई-माई हित नात के घर-घर होत लड़ाई हो,
कइसे होई भारत के भलाई भइया जवाहर हो।

भोजपुरी लोकगीतकार ने विभाजन के समय की स्थिति का बड़ा ही सुन्दर मार्मिक वर्णन किया है-

सिर पर लिहले आजादी की गगरिया,
गगरिया सम्हारि के चलिहा ना।
एक कुँअवाँ पर दुई पनिहारिन,
एगो लागल रसरिया।
एक ओर खींचे हिन्दुस्तानी
एक ओर पाकिस्तानी,
डगरिया सम्हारि के चलिहो ना।

भोजपुरी लोकगीतकारों ने भारतीय आजादी की लड़ाई से लेकर आधुनिक काल तक की घटनाओं को पिरोकर गीतों को प्रस्तुत किया है। भोजपुरी लोकगीतों में आजादी के दिवानों सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गाँधी, नेहरू, पटेल आदि के साथ-साथ शहीद सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, कुँवर सिंह, खुदीराम आदि के नाम अमर हो गए हैं-

वतन पुजारी खुदीराम, भइले सुभास भारतवासी,
राजपुरूष सुखदेव, भगत सिंह, झूले प्रेम से फाँसी,
शेखर गोलियां चलावै, माँ कै बेड़ियां छोड़िवै,
पावन देशवा हमार, पावन देशवा हमार,
बा धन्य धरा क लाज, बचावै राजपूती क्षत्राणी,
लेके तेगा कूदै समर में, झाँसी वाली रानी,
इन्द्रा देशवा जगावै, अपने बीरन के जगावै,
पावन देशवा हमार, पावन देशवा हमार॥

भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के राजनीतिक विचार ँचे थे। उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था जिसे भोजपुरी लोकगीतकारों ने निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया है-

अरे, जय हो किसान, जय हो देश के जवनवाँ,
लेई लिहले कंधवा पर देशवा के भार,
भेदवा न पावे तोहार दुश्मन हजार
अरे गीता व गाँधी से पवतीं सच्ची नीतियां,
नेहरू से पवला अपने देशवा क प्यार।
अरे शास्त्री और बिनोवा जी से पउँला सदा देशवा
जय किसान जय जवान गूंजल संसार

इस भोजपुरी लोकगीतों में राजनीतिक घटनाओं का बड़ी खूबी के साथ वर्णन हुआ है। इसके संस्कृति में राष्ट्रीय एवं राजनीतिक हलचलों का आवाज भी समायी हुयी है। भोजपुरी लोकगीतों में राजनीतक एवं राष्ट्रीय चेतना सर्वत्र दिखाई देती है-

कहैं राजनारायण नेहरू की बिटिया, कइसे चलइबू राजनीति या
कइसे आजाद हिन्दी गांधी चलि गइलैं कहिया,
दिल्ली क तख्त हिलाय दिहली रे नेहरू की कुमरिया
राष्ट्रीयकरण बैंक के दिहली कराइ
धक्का में पड़ि गइलै मोरारजी देसाई।
कुर्सी से उनके हटाय दिहली रे नेहरू क बिटिया ।।

इस प्रकार भोजपुरी लोकगीतों में ऐतिहासिक एवं स्वतंत्रता सम्बन्धी अनेक घटनाओं का उल्लेख मिलता है। इसमें इतिहास की अनेक कड़ियाँ छिपी हुईं है, जिनके आधार पर इतिहास रचना में महत्वपूर्ण सामग्री एकत्र की जा सकती हैइसमें राष्ट्रीय चेतना के स्वर सर्वत्र दिखायी देता है जो राष्ट्रीय एकता और देश प्रेम की भावना उत्पन्न करते हैं।

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