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कुणाल भरद्वाज जी के लिखल भोजपुरी लघु कथा आत्महत्या

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कुणाल भरद्वाज जी
कुणाल भरद्वाज जी

भोर होखे में अबही देर रहे। हमरा आँखि में नींद ना रहे। मन अकुताईल रहे। जिनगी बहुते नीरस हो गइल रहे। बेटा पतोह दुनु अपना अपना काम मे अझुराईल रहले सन। हमार मेहरारू दिन रात सत्संग में आ पूजा पाठ में व्यस्त रहस। सब संघतिया लोग आपन आपन जिनगी में व्यस्त रहे। अइसन बुझात रहे कि हमरा रहला भाए ना रहला से केहू के कौनो अंतर ना पड़ी। हम बस एगो ठूंठ लेखां आपन जिंदगी काट तानी केहू तर।

मनेमन हम सोच लेहनी की का फायदा अइसन जिनगी के। अब जियला के कौनो फायदा का बा, जब केहू के हमरा रहला ना रहला से कौनो मतलबे नइखे। मन में पचीसन गो ख्याल आईल। फेर आखिर में सोचिए लेहनी। अब आत्महत्या क लिहल ही ठीक बा। अइसहीयो अब कुछहु मोह माया ना बाचल रहे जियरा में।

एक हाली ई मन मे ठाने के बाद अचानक सउँसे लिलाट पसीना से भीग गउवे। पसीना के दु गो बून्द छलक के लिलाट के कोर से चूए खातिर लटकल रहे।

हम गत्ते से कंबल हटवनी, पैर नीचे धयिनी। जमीन पल्ला रहे। अंधारे में बिना बत्ती जलवले आपन चप्पल केहू तरिया टटोल के पहिन लेनी। आस्ते से आगे बढ़ के अपना रूम के केवांरी खोल के बरामदा में अयिनी। सभे सुतल रहे मगन अपना अपना सपना देखे में। मोटरसाइकिल के चाभी ओसारे में टाँगल रहे। बिना आवाज़ कईले चाभी उठवनी, आ गत्ते से घर के दरवाज़ा खोल के बाहरी आ गईनी।

दरवाजा सटावत बेरा एक हाली फेर घूम के घर के देखनी। मेहरारू, लइका, पतोह सब केहू बेसुध सुतल रहे। उ लोग के अब फेर कब्बो देखियो ना पाएम। मन ना मानल, त एक हाली फेर अंदर जा के सब के मन भर देख लेहनी।

फेर बाहर आके मोटरसाइकिल के डगरा के घर से तनी दूर ले अयिनी। ओकरा बाद ओमें चाभी घुसा के धीरे से किक मारनी। अभी मुह अन्हारे रहे। हेड लाइट डिम पर जलावे के पड़ गईल।

रास्ता में मोटरसाइकिल के गड गड के अलावा आउरी कुछु ना सुनाई देत रहेम एकदम सुनसान रहे। तनी डरो लागत रहे। लेकिन अब डर भय ई सब से परे रहनी हम। रास्ता में उ स्कूल लौकुवे जहां हम संघतिया लोग के संगे पढ़ले रहनी, उ मंदिर लौकुवे जहां पहिला हाली हम अपना मलकिनी के देखे गईल रहनी, उ होटल लौकुवे जहां हम आपन लइका के पहिलका जन्मदिन मनइले रहनी। ई सब याद अब हमरा संगे चल जाई।

एक जगह पर एगो ंच टीला लौकुवे। हम मोटरसाइकिल के नीचा खड़ा कर देहनी आ आस्ते आस्ते टीला के ऊपर चढ़े लगनी। आधा घंटा में हम टीला के ऊपर पहुंच गईनी। चढ़त चढ़त पूरा केहुनी आ ठेहुना छीला गईल रहे। टीला के कगरी पहुंच के हम नीचे तकनी। काफी गहिर रहे। नीचे खाली पेड़ पौधा लउकत रहे। का पता जंगली जानवरो होख सन। हम आपन दुनो हाथ हवा में फैलयनी आ नीचा कूदे के भइनी। जइसहीं हम गोड़ आगे पुकी बढ़वनी, हमार सउँसे देह कांपे लगुवे। कूदे के हिम्मत ना भईल।

अपना आप पर खिसो बरल की हम आत्महत्या भी ना कर सकेनी, केतना बुजदिल बानी। हम नीचे आ के मोटरसाइकिल के जोर से एक लात मरनी खीसे। गोड़ में चोटो लागल, आ छिला के तनकी सा खुनो बह गईल। लेकिन अब कौनो दर्द के अहसास बाकी ना रहे अंदर।

अभी हम सोचते रहनी की का करीं, इतने में सामने से एगो बुढ़ आदमी एनही आवत लौकलन। पूरा शरीर जर्जर, जगह जगह से झुर्री लटकल। पैर में बुलुक्का हवाई चप्पल पहिनले, उनका हाथ मे एगो डंडा रहे जेकरा के टेकते उ लगे आवत रहले हमरा ओर। डंडा ठक ठक आवाज़ो करत रहुवे। धीरे धीरे ठक ठक के आवाज़ काफी नजदीक आ गउवे।

का हो बबुआ – मोटरसाइकिल खराब हो गइल बा का? उ गम्भीराहे मुस्कुरात हमरा से पूछले। मन मे त बड़ी खीस लागल की एगो तो कूद ना पईनी, ठेहुनो छिलाईल, गोड़ में चोटो लागल – आ इँहा ई आपन उपदेश झाड़े आ गइले।

हम खिसीयाईले दांत पीस के बोलनी की रौवा जाईं ना, आपन काम करीं। का भईल बा का ना, ऐसे रौवा का लेवे देवे के बा। अइसन लागत रहे कि उ बुढऊ तनी देर और सामने रहीहें त हम उनकर मुँह नोच लेम।

उ उदास हो गइले हमार बात सुन के। आ माफी मांगत ओजा से जाए खातिर मुड़ गइले। धीरे धीरे लाठी के ठक ठक के आवाज़ दूर होखे लागल। तब्बे हमरा दिमाग मे एगो बात आयिल, की जब हम अपने से आपन जान नइखी ले पावत, त काहे ना इहे बुढऊ से कहल जाव की हमरा के मुआ देस। सुनसान जगह बा, केहू के पतो ना चली।

हम जोर से दौड़त उनका पीछे भगनी। ए बाबा, ए बाबा – दु मिनट सुनीं त। उ ठठक के रुक गइलन। दउड़त दउड़त हम हांफत रहनी। तनी दम आयिल त हम उनका के कहनी की हम ऐजा काहे आयिल रहनी, आ उनका से का सहायता चाह तानी।

सब सुन के एक हाली त उनकर मुँह आश्चर्ज से खुलल रह गउवे। उनका के ना नुकुर करते देख हम ओकरा बाद उनका के आपन पर्स दे देहनी की हई राखीं। उ पर्स खोल के देखले की ओकरा में 2000 के 10 गो नोट धइल बा।

बाद में अस्थिर हो के लाठी के हमरा के थमा देहलन आ बोलले की बात त ठीक बा, लेकिन एक हाली हम अपना बबुओ से पूछ ले तानी। कौनो गड़बड़ी त ना होई बाद में। आ हमार बटुवा भी लौटा देहले की हई राख ल, हम लइका के लगे से लौटला पर ले लेम।

हमहू एक हाली मन में सोचनी की अगर बुढऊ ना मनले त उनका लइकवा के त मनाईये लियायी। नया खून होई, पैसा देख के सटाक से मां जाई। हम उनकरा पीछा पीछा उनका घरे चल देहनी।

रास्ता में उ खूब चहकते जात रहले। का हो बबुआ देख तार – दुनिया केतना सुनर बा। हई देख तितलि कैसे उड़ तिया, हई देख गिलहरी कैसे भाग तिया, हई देख सूरज के किरण अब आवे वाला बा लाली केतना नीमन लाग ता, हई देख पत्ता पर ओस के बूंद केतना नीमन लाग ता। दुनिया बहुत सुनर बनवले बारन भगवान – ना हो?

हमार पारा चढ़ गउवे। एक्के हाली खिसिया के बोलनी की रौवा अब चुप रहेम की ना। दुनिया मे कुछो खूबसूरत नइखे। सब बकवास बा, बेरंग बा। आ इहे बेरंग दुनिया से जाए के बा हमरा। आ हमरा कइसनो पछतावा नइखे अपना आप पर। अब चुपचाप चलीं घरे, आ लइका से बात करीं। ना त हमरा के बोल दीं, हम कौनो औऱ तरीका खोज लेम।

एतना कहते बुझाईल की बुढ़वा बाबा के केहू नरपिशाच सारा खून देहि में से चूस लेले बा। उनकर सारा खुशी बिला गईल, आ चेहरा पीला पड़ गईल। ओहि तर उदास आंख ले के उ बोलले की – “पछतावा का होला, ई तहरा समझ मे ना आई”

तालेक ले उनकर झोपड़ी आ गईल। लाठी टेकते उ अंदर चल गइले। हम काफी देर ले इंतज़ार कईनी, उ बाहर ना निकलले। तालेक ले हम 4 गो सिगरेट पी घालनी। हार पाछ के हम अंदर घुसनी।

अंदर घुसते देख तानी की एगो 40 साल के कौनो मर्दाना सुतल बा। बुढऊ शायद अंदर कहीं रहले। हम दरवाजा के एक लात मारत कहनी की कहां बारे उ बुढऊ? बोल दिह की घरही रहस। ना चाहीं उनकर मदद हमरा। दिमाग खराब क के ध देले बारन।

उ जवान हमार चेहरा देखत रहे आश्चर्य से। फेर पूछलस की केकरा बारे में कह तानी। हम ओहिजा बुढऊ के एगो फ़ोटो लागल रहे ओकरा कौर अंगूरी कर के बोलनी – इनकर बारे में आउर केकर। उ हमार चेहरा ऐसे देखुवे जैसे हम कौनो पागल हईं। आ फेर बोलूए की इहाँ के त हमार पिता जी हईं, जे आज से 7 साल पहिले आत्महत्या कर लेहनी।

अचानक से हमरा सामने बुढऊ के बात घूम गईल – “पछतावा का होला, ई तहरा समझ मे ना आई”

हम झोपड़ी से बाहर निकलनी, आ बुशर्ट के बाँहि से आँखि से लोर पोछत पोछत मोटरसाइकिल चालू कर के घरे वापिस चल देहनी।

भोर होत रहे। हम आकाश में तकनी। अचानके से सारा संसार हमरा सुनर लागे लगुवे।

पुरुआ के फेसबुक पेज पर से ले लिहल गइल बा

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