भोजपुरी के विकास में बाधक तत्व : विकास आ बाधा दूनो एक सिक्का के दूगो पहलू का रूप में मानल जाला। काहे की गंगा के पवित्रता में बाधक तत्त्वन के भूमिका कवनो कम सराहनीय नइखे। भोजपुरी एगो महान गरिमामयी, गौरव-गुमान के भाषा ह। जवन अविरल-अविराम गति से सर्वजन हिताय-सर्वजन सखाय के भाव के साथे निश्छल-निर्विकार भाषिक औचित्यन के साथ जन-जन के कंठहार बनल। अपना बाधाक तत्वन से लड़त-टकरात भोजपुरी माई के रूप में आज भोजपुरी प्रतिष्ठित बिया। एही मुखर अभाज्य-अकाट्य सच्चाईयन के ध्यान में राखत डॉ० जौहर शफियाबादी के प्रासंगिक कहनाम बा कि भोजपुरी मात्र एगो भाषे ना, बलुक एगो सर्वगुण-संपन्न, सर्वधर्म सम्भाव के संस्कृति के नाम ह। इहे कारण बा कि बहुरंगी संस्कृति का बाजार में भोजपुरी के आपन एगो अलग पहचान बा। कवनो भीड़ में एगो आपन अलग पहचान बनानेवाला के आपना अलग पहचान के सुरक्षित राखे खातिर, टक्कर दीहल, टकराईल आ बाधक तत्वन के रौंदत आपन यश पताका फहरावल अनिवार्य होला। जवना सच्चाई के केहू ईकार नइखे कर सकत।
भोजपुरी के विकास में बाधक तत्व:
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- भोजपुरी भाषी जनता में राजनीतिक इच्छा शक्ति के कमी
- सरकारी उपेक्षा।
- भाषिक मानकीकरण के कमी।
- विकास के प्रति उदासीनता।
भोजपुरी भाषी जनता में राजनीतिक इच्छा शक्ति के कमी
भोजपुरी क्षेत्र के राष्ट्र प्रेमी आ शांति प्रिय मानसिकता के कारण एक ओर जहाँ आजादी के पूर्व से एह भाषा के साहित्यकार लोग रचनात्मक अ न में जटल रहल. त ओह में साहित्यिक मनोवैज्ञानिक रूप से देश के आजाद करावे के धुन भरल रहे, आ सन् 1947 ई० का बाद देश के एकता-अखंडता के ध्यान में राखत गाँधीवादी सिद्धांत के आधार पर भोजपुरी भाषा आ साहित्य के विकास के मुख्य आंदोलन चलत रहल। जवना राजनीतिक इच्छा शक्ति के जरूरत बा ओकरा के आज ले भोजपुरिया समाज के लोग एकजुट हो के मुखर आह्वान के साथ नइखे जुड़ सकल। ई चाहे भोजपुरिया क्षेत्र के राजनीत करे वाला नेता लोग होखे चाहे जनता, आज ले ई बड़ियार राजनीतिक इच्छा-शक्ति, एह दूनो वर्ग में पैदा नइखे हो सकल।
जब की जवन भोजपुरी भाषी धरती प्राचीन काल से ही आंदोलन के परंपरा के धरती रहल बिया भोजपुरी भाषा-सात्यि आ संस्कृति के रक्षा खातिर एगो जागल आंदोलन के सुगबुगाहट आजादी के लड़ाई आ संगे-संगे मनोवैज्ञानिक रूप से ही ना मुखर आंदोलन का रूप में महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन आ उनका मंडली के प्रमुख विद्वान बनारसी दास चतुर्वेदी, डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल, परमेश्वरी लाल गुप्त आदि साहित्यिक आंदोलन के साथ एकरा हक खातिर राजनीतिक आंदोलन के श्री गणेश कर चुकल रहे लोगसन् 1943 ई० में कथा सम्राट प्रेमचंद का मशहूर पत्रिका ‘हंस’ में राहुल जी के आलेख छपल जवना से एगो मुखर राजनीतिक जागृति भोजपुरिया समाज में जरूर पैदा भइल। बाकिर कवनो ठोस परिणमा सामने ना आ सकल। फेर महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी बनारस में सन् 1946 ई० में बनारस हिंदी मंडल का विमर्श पर एगो संगठन ‘बनारस हिंदी-भोजपुरी साहित्य सम्मेलन’ के नाम से बनवलन, जवना का माध्यम से भोजपुरी जनता में भोजपुरी का हक में राजनीतिक इच्छा-शक्ति जगावल मुख्य उद्देश्य रहे। बाकिर ई संस्था कुछ बहुत सक्रिय भमिका ना निभा सकल। राहल जी हर तरह से भोजपुरी भाषा साहित्य के विकास का दिसाई व्याकुल रहसउनकर सोंच रहे कि हर क्षेत्र का लोग के ओकरा मातृभाषा में शिक्षा देवे के व्यवस्था होखे, आ राज्य के गठनो भाषा के आधार पर होखे। एही क्रम में भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के दुनिया के पहिला भोजपुरी साहित्य सम्मेलन आजादी के कुछ दिन पहिले 2 मार्च, 1947 ई० सीवान में भइल जवना के अगुआ देश का जानल-मानल विद्वान महेन्द्र शास्त्री जी रहनी। ओह ऐतिहासिक जनसभा में देश के मान-सम्मान, आजादी का साथ क्षेत्रीय भाषा आ भोजपुरी के मान-सम्मान के सवाल जनता के सोझा परोसले रहे लोग। दूसरका अधिवेशन जवन आजादी मिलला पर गोपालगंज (बिहार) में सन् दिसंबर 1947 ई० में भइल रहे, ओकरा अध्यक्षता करत खा, एगो मुखर भोजपुरी के विकास खतिर आंदोलन के आह्वान करत हिंदी के साथ के विवाद समाप्त कर देलन। मुख्य रूप से भोजपुरी आंदोलन दू भाग में भोजपुरी साहित्य सम्मेलन गोपालगंज से बंट गइल। (क) साहित्य वृद्धि के रचनात्मक आंदोलन (ख) भोजपुरिया मान-सम्मान के रक्षा खातिर राजनीतिक आंदोलनओकरा बाद भोजपुरी के रचनात्मक आंदोलन ठीक-ठाक चलत रहल। बाकी राजनीतिक आंदोलन के आकार-प्रकार लड़खड़ात रहल। महेन्द्र शास्त्री एह ज्योति के आगे बढ़ावे में जुटल रहीं।
सन् 1970 के दशक में ‘अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन’ के गठन भइल आ देश भर के सब लमहर-लमहर विद्वान लोग एकजुट होके ई लड़ाई के आगे बढ़ावे में जुम-जुट गइल लोग। जवना से भोजपुरी भाषा आ साहित्य के बहुत बढ़ती भइल, आ आजो देश के एकमात्र जागल भोजपुरी संस्था के रूप में एकर पहचान बा। बाकी आज अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के सपना पूरा ना हो सकल। ई संस्था अपना पहिला अधिवेशन, जवन उत्तर प्रदेश के प्रयाग में भइल रहे। 8-90 मार्च सन् 1975 ई० में ओहिजा से रचनात्मक आंदोलन खातिर पत्रिका आ राजनीतिक आंदोलन खातिर संकल्प लेलस, जवन आज तक निभा रहल बिया, आ अपना एकइसवाँ अधिवेशन सासाराम (बिहार), 4-5 नवम्बर, 2007 ई० में जवना के अध्यक्ष रहनी डॉ० केदारनाथ सिंह। ओह में मीरा कुमार, मंत्री, सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार, डॉ० रघुवंश नारायण सिंह, ग्रामीण मंत्री भारत सरकार का अलावा दर्जनों राजनेता लोग जुमल रहे। उहाँ का भोजपुरी के देश के अष्टम सूची में शामिल करे के आवाज बुलंद कर देनी। डॉ० प्रभुनाथ सिंह जी अपने आप में एगो सजग राजनीतिक आंदोलन रहस, जे हर हमेशा भोजपुरी के आवाज बुलंद करस। उनकर सपना त उनका जिनगी में ना पुरा भइल बाकिर डॉ० वीरेन्द्र नारायण यादव जी का प्रयास से ई लड़ाई में 25 जनवरी, 2012 ई० के सफलता मिलल।
सांसद प्रभुनाथ सिंह, संजय निरूपम आदि भोजपुरिया कइगो नेता लोग मन से अब जाग गइल बा। आज एकरा अलावा कइगो संस्था एह लड़ाई के आगे बढ़ावे में सराहनीय भूमिका अदा कर रहल बा। ओह में विशेष रूप से विश्व भोजपुरी सम्मेलन, नई दिल्ली आ पूर्वांचल एकता मंच के भूमिका सराहे योग बा। पूर्वांचल एकता मंच’ के साथ दिल्ली में मिल-जुल के कइगो संस्था धरना प्रदर्शन के जबरदस्त आयोजन जंतर-मंतर पर सन् 2012 ई० में कइलस। जवना के चर्चा पूरा संसद के सड़क तक भइल। तबो खाली झूठे आश्वासन के सरकारी फूल खिल रहल बा अनशन, आमरण-अनशन के आज जरूरत बा। ई राजनीतिक इच्छा-शक्ति के कमी के चलते भोजपुरिया लोग नइखे कर पावत। बाकी अब सब छोट-बड़ संस्थ जवन भोजपुरी के देश भर में बा, ऊ कुछ सोंचे खातिर मजबूर होई, आगे ई उम्मीद बा। एह लड़ाई में सब भोजपुरी के पत्र-पत्रिका के भूमिका सराहनीय बा
सरकारी उपेक्षा
भोजपुरी भाषा आ साहित्य के विकास में मूल रूप से जवन सबसे बड़ा बाधक तत्व बा ऊ एह भाषा साहित्य के सरकार द्वारा अनदेखी उपेक्ष बा। अकादमी में कबो कवनो भोजपुरी के सघल विद्वान चाहे हिमायती के पईठ ना हो पावे। भोजपुरी के नाम पर ई कुल अकादमी से कबो-कबो एकाध गो कवनो-कवनो किताब छप जाली सन, जवन भोजपुरी के देखावे खातिर सेवा मात्र बा। तब ई महापुरुष लोग भोजपुरी के विकास में बाधक ना बनी त का बनी ?
देश के अष्टम् सूची में भोजपुरी भाषा के सम्मिलित होखे के सारा गुणवत्ता के बादो आज ले भोजपुरी भाषा देश के अष्टम् सूची में सम्मिलित ना हो सकल। आखिर ई भोजपुरी का साथ नाइंसाफी, घात, अनदेखी आ उपेक्षा नइखे त का बा ? जबकी अष्टम् सूची में कवनो भाषा के सम्मिलित करावे खातिर चाहे सम्मिलित करे खातिर कवनो मापदण्ड नइखे ?
भाषिक मानकीकरण के कमी
भोजपुरी भाषा आ साहित्य, बहुरंगी आयाम से जुड़ल एगो भाषा-साहित्य हिय। जहाँ तक एकरा उच्चारण आ भाषिक एकरूपता के प्रश्न बा त एह क्षेत्र में अब अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन पत्रिका आ भोजपुरी माटी पत्रिका आउर पत्र-पत्रिकन से मिल के मुख्य रूप से एकरा मानकीकरण के एगो मौन आंदोलन चला रहल बा, जवना के एगो निमन परिणाम धीरे-धीरे उभर के सामने आई। भोजपुरिया क्षेत्र के लोगन में हिंदू-मुसलमान सब के मातृभाषा भोजपुरिये बा। दनो अलग-अलग संस्कृति के एगो मातभाषा भइला के कारण मस्लिम समाज में बोले जाए वाली भोजपुरी में उर्दू, फारसी के अधिक शब्द बा, त हिंदू समाजो में विभिन्न जातियन में बोले वाली भोजपुरी में शब्द आ टोन-उच्चारण में अंतर बा। फेर विभिन्न प्रदेशन के स्थानीय बोलियन के प्रभाव एकरा उच्चारण-टोन आ भाषिक विभिननता के परिचायक बा। एह से एकर मानकीकरण में कुछ मौलिक बाधा बा, तबो एकरा कायिक स्वरूप में सब जगहा एकरूपता बा। आज ले हिंदीयो, उर्दू अंग्रेजी जइसन भषन में पूरा-पूरी एकरूपता ना आ सकल।
विकास के प्रति उदासीनता
भोजपुरी भाषा आ साहित्य के आज विभिन्न क्षेत्रन में गहिरा पैठ हो चुकल बा। आ एकरा प्रौढ़ता आ अस्मिता के लोहा आज सभ भाषा के लोग माने खीतर मजबूर हो चुकल बाचाहे गद्य-पद्य के कवनो विधागत स्वरूप होखे, चाहे साहित्य के कवनो प्रकार के रेखा-चित्र होखे, कार्टून, फिल्म जगत होखे, चाहे मिडिया, इंटरनेट होखे, चाहे प्रिंट मीडिया या पत्रकारिता होखे, चाहे वैज्ञानिक लेख-आलेख। भोजपुरी सब जगहा अपना पूर्ण भाषिक लालित्य के साथ उपस्थित बिया। जवन एगो शुभ संकेत बा। तबो एह क्षेत्र में प्रबुद्ध मानसिकता केम कमी का चलते यदि फुहरपन पैदा हो रहल बा, त उहो आगे खतिर एगो बाधक तत्त्व सिद्ध हो सकत बा। मूल रूप से जब ले भोजपुरी के लड़ाई राजनीतिक से ना जुड़ी आ भोजपुरिया लोग जब ले ढेर ईंटा के अलग-अलग बनावल ना छोड़ी आ एकजुट होके एगो अगुआ मान के ना चली तब तक ई बाधा समाप्त ना हो पाई।
ध्यान दीं : भोजपुरी के विकास में बाधक तत्व : पवन कुमार ‘जय’ जी के लिखल ई आलेख भोजपुरी किताब अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन मे छप चुकल बा
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