परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा रामदेव द्विवेदी ‘अलमस्त’ जी के लिखल भोजपुरी कविता बिलाइ भगतिन, पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा रामदेव द्विवेदी ‘अलमस्त’ जी के लिखल भोजपुरी कविता कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह कविता के शेयर जरूर करी।
बिलाई भइली भगतिन आसन जमा के ।।
उज्जर चदरिया के ओढि रामनामी
माथा पर मछरी के भसम रमा के ।
घोंघन के चुनि-चुनि माला बनवली
गवे-गवे फेरे लगली दुम सुटुका के ।। बिलाई…
एक दिन मूसन के मीटिंग बोलवली
गाँव का बगइचा में मंडप रचा के।
एने-ओने ताकि-तुकि आँख मटकवली
भाखन के तोब दिहली छोड़ सरिया के ।। बिलाई…
‘हम हईं रे बबुअन ! तोहनी के नानी
ना भावे बात पूछ पुरखन से जाके ।
तोहन कारन हम भइनी जोगिनिया
रोज फलहार करी गंगा नहा के ।। बिलाई…
तबहूँ ना बात मान तोहन ए मुअनँ
हमरे के वोट दे द एक-एक गिना के ।
चूहन का वोट से बिलाई भइली रानी
लगली शिकार खेले घर में समा के ।। बिलाई…
गवे-गवें चूहन के चट करे लगली
लिहली फुलाय पेट सय चूहा खा के ।
आखिर में एक दिन फूटल भंडा
बँड़वा नचोर लिहलसि मुँह खिसिया के ।। बिलाई…
केहू धइलसि अहुँचा, केहू धइलसि पहुँचा
होखे लागल भगतिन के सेवा बना के।
जनता ना मानेला कहला से भइया
आखिर में दम लेला सरगे ठेका के ।। बिलाई…
रामदेव द्विवेदी ‘अलमस्त’ भोजपुरी के कवि रहीं। इहाँ के जनम 9 अगस्त 1919 के वर्तमान पूर्वी चंपारण जिला के गोविंदगंज के दुबे टोला में भइल रहे । एह कविता में धोखा देवे वाला से हँसी-हँसी में सावधान रहे के कहल गइल बा ।
– भोजपुरी किताब अँजोर से
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