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रवि सिंह जी के लिखल भोजपुरी कथा बेटी के भाग

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रवि सिंह जी
रवि सिंह जी

गोधन कुटा गईल रहे, लोग बियाह-शादी के रिश्ता खातिर आवे-जाय लागल रहे।रघुनाथ के भी आपन बेटी के हाथ पियर करे के रहे। एगो सेयान बेटी के बप के आँख में नींद कहाँ लागे। रगुनाथ के दिन-रात इहे चिंता सतावे,

“आखिर उ रेशमा के बियाह कईसे करीहें? ”

“कहाँ से ले अईहें दहेज के पईसा?”

“बिना दहेज,के करी रेशमा से बियाह?”

एगो जे बेटा रहले चार साल पहिले कालकात्ता सड़क दुर्घटना में चल बसले आ मेहरारू त पहिलहीं दुनिया त्याग दिहले रहली। बाकी जात-जात कह गईल रहली,
“रेशमा के बियाह निमना घर मे करेम”

बेटी के जन्मे से उ रेशमा खातिर साड़ी जोगा के राखस। का-का सोंचले रहली बेटी के बियाह खातिर बाकि बिधाता के मंजूर ना रहे। इहे सब सोंच के रघुनाथ के स्वास्थ भी अब खराब होत रहे।

रवि सिंह जी

दिन बीतत गईल आ देखते-देखते रेशमा अब सेयान हो गईल रहली। बी.ए.क के गाँवही के एगो स्कूल में पढ़ावत रहली।पढ़े लिखे में भी प्रतिभावान रहली आ नर-नक्शा त मानी भगवान फुरसत में गढ़ले रहनी। बाकी जहाँ कहीं भी बेटी के बियाह के बात चलावस दहेज सुनिए के रगुनाथ कपार पिट लेस।दिन बीतत रहे आ उनका कवनो उपाय ना बुझाव आखिर करस का ?रेशमा बुझस की बाबूजी के चिंता का बा आ उ बात भूतलावे खातिर कहस

“का बाबूजी बियाह-बियाह कईले बानी?”

“रउरा चिंता मत करि, देखेम हमरा लेवेला कवनो अइसन- वइसन दूल्हा ना अइहे राजकुमार अइहें राजकुमार…..”रघुनाथ के संघतिया रहले खेलावन काका।उ रघुनाथ के कहस “चिंता जन कर, बेटी आपन भाग आपना संगहि लेके आवेले, दहेज त ई लोभी संसार नु बना दिहलस सब ठीक हो जाई”।

एक दिन रेशमा आपन स्कूल से पढ़ाके के घरे आवत रहली रास्ता में बहुते भीड़ देख के उ आगा जाके देखली त एगो बुढ़ जेकर उमिर 65-70 साल होई उ गिरल रहनी आ उनका माथा से खून बहत रहे कौनो मोटरसायकिल वाला धाक्का मार के चल गईल रहे आ सब लोग तमाशा देखत रहे आगा केहू ना बढ़े । बाकी रेशमा एगो पढ़ल-लिखल जिम्मेदार आ साहसी लईकी रहली उ तुरंते आगा बढ़ आपन ओढ़नी के कोर फाड़ के जख्म पर बांध दिहली आ उठावे के कोशिश करे लगली।

ई देख के एक-दु आदमी आउर आगा बढ़ल आ उनका मदत से रेशमा वो बुढ़ के लगहिके सरकारी अस्पताल लेके पहुँचली। डॉ साहेब जल्दी से देखनी आ कहनि बेटा मरीज के बहुत खून बह चुकल बा इनका खून के शीघ्र जरूरत बाटे।

रेशमा एक हालि झिझकबो ना कइली तुरंत कहली डॉ साहेब रउरा हमार खून ले ली हम देहेम खून आ सयोंग से ब्लड ग्रुप भी मैच हो गइल। फेर का रहे रेशमा कुल दु बोतल खून देहली आ देखते-देखते मरीज अब खतरा से बाहर आ गईल रहले आँख से देखस पर बुढ़ के पहचान ना हो पावल रहे। रेशमा के एगो छोट डायरी भी गिरल मिलल रहे रेशमा जब पन्ना पलटली त पता चलल की ई बुढ़ एगो रिटायर्ड मास्टर हई खैर रेशमा नंबर निकाल के बुढ़ के घरे बता दिहली सब बात।रेशमा के काफी देर हो गइल रहे उ जल्दी-जल्दी आपन घर के ओर निकल गइली।

घरे रघुनाथ परेशान होत रहले “आखिर कहा रह गईली आज रेशमा?” आके रेशमा सब बात बाबा से बता दिहली बाबा पीठ थोक के कहनि “बहुत निमन कइलू ह बेटी, जे दोसरा के मदत करेला ओकर मदत भगवान करीलें “बात पुरान हो गइल रहे आ रेशमा फेर आपन काम-काज में लाग गईली रोज स्कूल जा आ लइकन के पढ़ा के आव त घरे बाबूजी के सेवा।

एक दिन जब उ स्कूल से अइली त देखली उनका दुवार पर एगो कार लागल रहे आ टोला के लोग भी बइठल रहे पहिले त रेशमा डेरा गइली बाकी खेलावन काकी रेशमा के भीतर ले जाके सब बात बतवली ” ई लोग ताहरां के देखे आईल बा लोग रिश्ता खातिर”। जब पहिर-ओढ़ के रेशमा के काकी लिया गइली त रेशमा के नजर ओ बुढ़ पर गईल ई त उहे मास्टरसाहेब रहनी जेकरा के हम आपन खून देके बचवले रहली।

रेशमा के त मास्टरसाहेब ओही दिने पसंद क लिहले रहनी आपन एकलौता बेटा ला जे आर्मी में रहलें आ आज खोजत- खोजत रेशमा के दुवार पर पहुँचल रहनी। चाय के कप राखत मास्टरसाहेब खडा हो गइनी आ रघुनाथ से कहनि “हमरा राउर बेटी बहुत पसंद बाड़ी हमार बेटा आर्मी में बाड़न”। ई शब्द त सुनिये के रघुनाथ के खुशी के ठिकाना ना रहे। रघुनाथ हाथ जोड़ के कहले “बाबुसाहेब उ सब त ठीक बा बाकिर हम गरीब बानी हम कहाँ से दे पाएब दहेज?”

मास्टरसाहेब रघुनाथ के जोड़ल हाथ ध लिहनी आ कहनि

“बिना दहेज के बियाह कैसे होई?”

दहेज त रउरा देवहीं के पड़ी ???

रघुनाथ के त माथ पर पसीना छूटे लागल बाकिर मास्टरसाहेब कहनि “हमरा दहेज में सवा गो रुपैया आ पान सुपारी बस इहे चाही “सब लोग मास्टरसाहेब के ई बात से खुश हो गइल आ रेशमा के बियाह के दिन धरा गईल आ ई अनोखा दहेज के बात समूचा गावँ-जवार भर पसर गईल।सब केहू इहे कहे “बाह रे भाग, बेटी के भाग होखे त अईसन” आज त रघुनाथ भी मान लिहलें “बेटी आपन भाग आपना संगहि लेके आवेले दहेज के रिवाज त ई लोभी जमाना

रवि सिंह
सिवान-बिहार

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