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पीο चन्द्रविनोद के लिखल भोजपुरी कहानी संग्रह केरा के टुकी टुकी पतई

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भोजपुरी किताब केरा के टुकी टुकी पतई
भोजपुरी किताब केरा के टुकी टुकी पतई

पीο चन्द्रविनोद के लिखल भोजपुरी किताब केरा के टुकी टुकी पतई जवन की एगो भोजपुरी कहानी संग्रह ह। भोजपुरी कहानी संग्रह केरा के टुकी टुकी पतई

भोजपुरी कहानी का गांव में पीο चन्द्रविनोद एगो अइसन नांव बा जेकर अब ठाँव पूछे के दरकार नइखे। सन सतहत्तर में जब इनकर कहानी संग्रह ‘हम ना कुंती ना हंइ ‘ छपके आइल त भोजपुरी कहानी में एगो टटका बहार आ गइल।

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एक जनवरी उनइस सौ पैतालीस के शीतलपुर बाजार, जिला सारण, बिहार में जन्मल चन्द्रविनोद पटना विश्वविद्यालय आ विश्वभारती,शांतिनिकेतन में पढ़ला आ तीन बारिस ले भारत सरकार के सांस्कृतिक अध्येता रहला के बाद अगस्त उनइस सौ पचहत्तर से काशी हिन्दू विश्विद्यालय के ललितकला संकाय में मूर्तिकला के प्रवक्ता बाड़े।

मूर्तिकला के छेत्र में कई गो अखिल भारतीय पुरस्कार पावल का अलावे, अंतरराष्ट्रीय कला प्रदर्शनीयन में अपना देश के प्रतिनिधित्व करेके सम्मानों पा चुकल बाड़े। ओह छेत्र में उतना उपलब्धि के बादो, उनकर परान बसेला ओहि माटी में जहाँ काकी दलिदर खेदेली, ओहि बगइचा में जहाँ बसदेव मिसिर के कपार फाटल रहे , ओहि छठ किनारा जहाँ धनेसर काका मुइपरी चलले रहले, ओहि कौव कीच में जे ब्रह्मदेव मिसिर के एके डपटनी में बन हो गईल रहे, ओहि गंग-नहानी गोल में जहाँ चिलर बो झूमर कढवले रही, ओहि समाज में जहाँ कुकुरा के रंग दिआइल आ ओहि समैना में जहाँ लईकावा हवा गाड़ी घेर के खड़ा हो गइल रहले स। बाकिर, चन्द्रविनोद जब अपना भीतरी तिकवेले त उनका अौखिन पे केरा के टुकी टुकी पतई पसर पसर जाला। उनका बसंतिया के बाबू के बतियो साले लागेला की ऊहो एगो ‘लोगे’ नू हउवें।

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