परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब खातिर हमनी ले के आईल सन 67 गो भोजपुरी उपन्यास के बारे में, जवना के लेखक बानी सूर्यदेव पाठक ‘पराग’ जी। पढ़ीं आ जानी भोजपुरी उपन्यास के बारे में। रउवा सब से निहोरा बा कि अगर रउवा सब इ जानकारी अच्छा लागल त शेयर क के आगे बढ़ाईं।
कवनो भाषा में लिखल गद्य विघन में कथा साहित्य सभसे लोकप्रिय आ ज्यादा पढ़ल जाये वाला विद्या मानल जाला। कथा साहित्य में मुख्यरूप से कहानी, उपन्यास आ लघुकथा के गिनती कइल जाला, बाकिर तीनो में अंतर ई बा कि कहानी में मात्र एके कथानक रहेला, जबकि उपन्यास का कथा वस्तु में एगो से अधिको कथानकन के गूंथल जा सकेला। लघुकथा त छोटो से छोट मार्मिक घटना के लेके लिखल जाले जवन अंत होते-होते आपन पूरा प्रभाव पाठकन पर छोड़ के तिलमिला देले।
अब ‘उपन्यास’ शब्द का बनावट पर विचार कइल जायत ई उप-नि+अस्+धत्र प्रत्यय के योग से ‘उपन्यास’ शब्द बनेला, जवेला के शाब्दिक अर्थ होला – नजदीक रखल वस्तु। कथा साहित्यक प्रसंग में एकर तात्पर्य जिनगी से जुड़ल कथावस्तु आ पात्रन के चित्रण से माल जा सकेला, बाकिर एह अर्थ के व्याप्ति, जिनगी का साथे नजदीकी से जुड़ल कवनो कथा साहित्य से हो सकेला, एह से अब उपन्यास शब्द दीर्घ कथात्मक गद्य रचना खातिर रूढ़ हो गइल बा। हिंदी के उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द कहले बाड़े – ‘मैं उपन्यास को मानव-चरित्र का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना उपन्यास का मूल तत्त्व है।” भोजपुरी के पहिलका उपन्यासकार रामनाथ पांडेय के कहनाम बा – “हमरा समझ से उपन्यास अदमी के वास्तविक जिनगी के एगो काल्पनिक चित्र होला। यथार्थ चित्र भइलो पर जबले कल्पना के एगो कोट ना चढ़े, चित्र चटकदार आ मनोरंजक ना बने। ऐतिहासिक कथा के साँच रहलो पर जबले कल्पनाके संजोग ओकरा ना होखे, ऊ उपन्यास ना बन सकेदोसरा शब्द में इहो कहल जा सकत बा जे उपन्यासकार कवनो काल्पनिक कथा के सृजन कके ओकरा में वास्तविक जिनगी भरेला।”
भोजपुरी में उपन्यास के प्रकाशन 1956 में आरंभ भइल आ भोजपुरी में पहिलका उपन्यासकार भइला के गौरव मिलल रामनाथ पाण्डेय के आ उनका पहिलाक उपन्यास ‘बिंदिया’ के। उपन्यास के कहानी गँवई वातावरण में पलल-बढ़ल एगो किसान को दई के बेटी बिंदिया आ ओकरा जान-पहचान के युवक मंगरा के प्रेम-प्रसंग पर आधारित बा। बीच में गरीबी आ अकसंरूआ होखे के समस्या, फेर खलनायक भुमना के उत्पातो शामिल बा। एह में ग्रामीण जिनगी के चरित्र आ सोभाविक समस्या साफ-साफ उजागर भइल बा। एह उपन्यास के वस्तु आ शिल्प पर विचार करत हिंदी-भोजपुरी के वरिष्ठ कथाकार डॉ विवेकी राय लिखले बानी – “ई केतना उत्साहवर्धक बाति बा कि भोजपुरी उपन्यास का परंपरा में उठल पहिली रचना वस्तु आ शिल्प का दृष्टि से कमजोर नइखे। ई भविष्य के परम उज्ज्वल भइला के संकेत बा।” ‘बिंदिया’ उपन्यास पर आपन अभिमत देत भोजपुरी के प्रबल पक्षधर महापंडित राहुल सांकृत्यायन लिखलीं
“भोजपुरी में उपन्यास लिखकर आपने बहुत उपयोगी काम किया है। भाषा की शुद्धता का आपने जितना ख्याल रक्खा है, वह भी स्तुत्य है। लघु उपन्यास होने से यद्यपि पाठक पुस्तक समाप्त करते समयअप्त ही रह जायेगा, पर उसके स्वाद की दाद तो हर एक पाठक देगा।” एह उपन्यास पर आचार्य शिवपूजन सहाय के विचार देखे जोग बा – “छपरा के श्री रामनाथ पाण्डेय जी के लिखल उपन्यास ‘बिंदिया’ भोजपुरी बोली में बड़ा सुंदर उतरल बाटे। एह में देहात के किसान लोगन के चरित्र बहुत बढ़िया लिखाइल बा। मरद-मेहरारू के बोलचाल में ठीक भोजपुरिया ढंग झलकत बा। गाँव के लोगन खातिर ई किताब बड़ा रोचक होई।” एह उपन्यास के भूमिका लिखेवाला प्रिंसिपल मनोरंजन प्रसाद सिन्हा एकरा कथ्य आ शिल्प पर मुग्ध होके लिखले बानी – “पांडेजी के भासा बड़ा सुंदर बा, जीअत-जागत, चमकत-झमकत, फदकत-नाचतगाँव के खेतन के अउरी पवधन के बडा संदर सजीव बरनन बा। कथानक अउरी चरित्र चित्रणो सुंदर महत्त्व ह। उनका कलम के तेज से पात्र सजीव हो उठल ह। कोदई, बुधराम, भुमना, मंगरा, भगत, पुरोहित, पुजेरी, अउरी बिंदिया सभे जीअत-जागत बा।”
‘बिंदिया’ के भोजपुरी के पहिलका उपन्यास भइला से एपर कुछ ज्यादा चर्चा जरूरी रहल ह। सन् 1956 से भोजपुरी में उपन्यास लिखे के जवन पर परंपरा आरंभ भइल ऊ लगातार आगे बढ़त रहल बा। 2009 में प्रकाशित भोजपुरी उपन्यासन के संख्या 60 के लगभग रहे। ओकर बाद के चार साल में छपल उपन्यासन के जोड़ दिहला पर अबतक प्रकाशित उपन्यासन के संख्या 75 से 80 तक हो सकेला
भोजपुरी उपन्यास पर पहिलका शोध प्रबंध, लिखेवाला डॉ० अरूण मोहन ‘भारवि’ अपना शोध प्रबंध ‘भोजपुरी उपन्यास : उद्भव और विश्वास’ में लगभग तीन दशक पहिले तक प्रकाशित उपन्यासन के दस वर्ग में बँटले बानी। जइसे –
1. सामाजिक उपन्यास : बिंदिया, सनेहिया भइल झाँवर, भगजोगनी, एगो सुबह एगो साँझि, सेमर के फूल।
2. मनोवैज्ञानिक उपन्यास : मुट्ठी भर सुरक, कवाछ
3. ऐतिहासिक पौराणिक उपन्यास : परशुराम, धूमिल चुनरी, रावन उवाच।
4. आदर्शवादी उपन्यास : सुन्नर काका, गाँव के माटी, ऊसर के फूल।
5. आदर्शोन्मुख यथार्थवादी उपन्यास : रहनिहार बेटी, भोर मुसुकाइल
6. यथार्थवादी उपन्यास : उहकत पुरवइया।
7. आँचलिक उपन्यास : फुलसुंधी, थरूहट के बउआ आ बहुरिया।
8. प्रगतिवादी जनवादी उपन्यास : जिनगी के राह, करेजा के काँट, आग-भउर-राख।
9. संस्मरणात्मक उपन्यास : घर टोला गाँव
10. दार्शनिक उपन्यास : जीअन साह। रामनाथ पाण्डेय डॉ० ‘भारवि’ के वर्गीकरण पर आपत्ति उठावत कहले बानी – “डॉ० भारवि ‘ऊसर
के फूल’ के आदर्शवादी मानत बाड़न त डॉ. विवेकी राय एकरा के यथार्थवादी। एही तरे डॉ० भारवि ‘घर टोला गाँव’ के यथार्थवादी। एहीं तरे डॉ० भारवि ‘घर टोला गाँव’ के संस्मरणात्मक आ ‘रावण उवाच’ के ऐतिहासिक-पौराणिक वर्ग में रखले बाड़न। जबकि दूनों में काफी समता बा।”
डॉ. विवेकी राय भोजपुरी उपन्यास के शिल्प-विकास में नीचे लिखल नौ प्रवृत्तियन के प्रधानता देले बानी – 1. आदर्शवाद 2. आदर्शोन्मुख यथार्थवाद 3. यथार्थवाद 4. आँचलिकता 5. फन्तासी 6. पौराणिकता 7. रेखाचियात्मकता 8. समस्यात्मक 9. स्वच्छंद विद्रोह।
भोजपुरी में अबतक प्रकाशित उपन्यासन के उपलब्धता आसानी से संभव नइखे। इहाँ तक कि प्रकाशित पुस्कन के अद्यतन विवरण उपलब्ध करावेवाला कवनो ग्रंथ अभी ले प्रकाशित नइखे हो सकलडॉ० कृष्णदेव उपाध्याय के सन् 1972 में प्रकाशित ‘भोजपुरी साहित्य का इतिहास’ में मात्र छहगो उपन्यासन के विवरण दिहल बा। गणेश चौबे कि भेजपुरी अकादमी, पटना से सन् 1983 में प्रकाशित ग्रंथ ‘भोजपुरी प्रकाशन के सइ बरिस’ में कुल्ह तेईस उपन्यासन के विवरण दिहल बा जेवन 1982 तक प्रकाशित बाडे स। चौबेजी एक काम के आगे बढावत 1983 से 1991 तक प्रकाशित आउर आठगो उपन्यासन के विवरण ‘भोजपुरी माटी’ (कोलकाता) मासिक पत्रिका में प्रकाशित करवलीं। एकरा बाद प्रकाशित भोजपुरी उपन्यासन के विवरण, पत्र-पत्रिका में छपल पुस्तक-समीक्षा आदि का माध्यम से मिलल। एह जानकारियन आ कुछ एने ओने से मिलल उपन्यासन के मिला के अब तक प्रकाशित भोजपुरी उपन्यासन के विवरण एह तरह बा-
बिंदिया (1956)
लेखक : रामनाथ पाण्डेय
प्रकाशक, भोजपुरी संसद, जगतगंज, वाराणसी
भूमिका : प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद सिन्हा
सम्मति : महापंडित राहुल सांकृत्यायन आ आचार्य शिवपूजन सहाय।
सामाजिक उपन्यास
थरूहट के बउआ आ बहुरिया (1962)
लेखक : रामप्रसाद राय
प्रकाशक : थारू छात्रावास, वीरगंज, नेपाल
कथावस्तु : नेपाल का तराई में बसेवाली थारू जाति के सामाजिक जीवन पर लिखल आंचलिक उपन्यास।
जीअन साह (1964)
लेखक : रामनगीना सिंह ‘विकल’
प्रकाशक : विकल प्रकाशन, गोपालगंज (बिहार)
कथावस्तु : एह में मरणोपरांत जीवन के आध्यात्मिक आ परंपरागत विवरण लिखल गइल बा।
सेमर के फूल (1965)
लेखक : डॉ० बच्चन पाठक ‘सलिल’
जमशेदपुर भोजपुरी साहित्य परिषद्
कथावस्तु : भोजपुरी क्षेत्र के गवई मेला आ जमशेदपुर के शहरी जिनगी के चित्रण करेवाला सामाजिक उपन्यास : शैली चुस्ता आ भाषा मुहावरेदार (डॉ० कृष्णदेव उपाध्याय)
रहनिहार बेटी (1966)
लेखक : जगदीश ओझा ‘सुंदर’
प्रकाशक : भोजपुरी संसद, जगतगंज, वाराणसी
कथावस्तु : देहात से छल से भगावल एगो लड़की के तस्वीर जे शहर के गुंडन से अपना के बचाव में सपुल भइल बा।
बहिना (1968)
लेखक : अंगद मिश्र ‘राकेश’
प्रकाशक/मुद्रक : भारत प्रेस, सीवान (बिहार)
हिंदी में लिखल एह उपन्यास के सभ पात्रन के कथोपकथन भोजपुरी में बाटे। एही से गणेश चौबे एकर विवरण ‘भोजपुरी प्रकाशन के सइ बरिस’ में देले बानी।
एगो सुबह : एगो साँझि (1967)
लेखक : विजेन्द्र अनिल
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य कार्यालय, आरा
कथावस्तु : ई एगो सामाजिक उपन्यास ह, जे में एगो कॉलेज के लड़की के प्रेम-प्रपंच के तस्वीर बाटे।
सूरमा सगुन विचारे ना (1972)
लेखक : रमेशचंद्र झा
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य मंदिर जगतगंज, वाराणसी
कथावस्तु : ई उपन्यास एगो आंचलिक कथा में प्रचलित बाबू चैना सिंह के वीरतापूर्ण जीवन-चरित्र के लेके लिखल बा।
सेनुर के लाज
(डॉ० कृष्णदेव उपाध्याय के भोजपुरी साहित्य का इतिहास’ में प्रकाशन तिथि अंकित नइखे),
लेखक : राधामोहन ‘राधेश’
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य मंदिर, जगतगंज, वाराणसी
कथावस्तु : ई एगो सामाजिक उपन्यास ह, जवना में भोजपुरी समाज के सजीव चित्रण भइल बा।
डॉ० उपाध्याय के शब्दन में – “यह उपन्यास प्रेम की वह भोजपुरी गाथा है जो अटूट है। राधेश जी ने इस उपन्यास को लिखकर भोजपुरी साहित्य की बड़ी सेवा की है।” पृष्ठ संख्या के जानकारी उपलब्ध नइखे।
डॅहकत पुरवइया (1973)
लेखक : डॉ० अरूण मोहन ‘भारवि
प्रकाशक : राष्ट्रीय पुस्तक सदन, बक्सर
विषय वस्तु : चोर बाजारी से पइसा कमाये वालन खून-खरबी आ होटलका रंगीनी के तसवीर दिहल बाटे।
गाँव के माटी (173)
लेखक : बालेश्वर राम यादव
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य परिषद्, जमशेदपुर
विषय वस्तु : गँवई जमींदार, महंथ आ राजा के जीवन संबंधी उपन्यास, जे अंत में देश के सेवा में लागी गइले।
भगजोगनी (1975)
लेखक : अंगद मिश्र ‘राकेश’
प्रकशक/मुद्रक : सागर प्रेस, लीचीबाग, वाणरासी
एह उपन्यास के अधिकतर पात्रन के बतकही भोजपुरी में बाटे।.
ऊसर के फूल (1975)
लेखक : नरेन्द्र शास्त्री
प्रकाशक : भोजपुरी कहानियाँ (भोजपुरी संसद, जगतगंज, वाराणसी) के विशेषांक का रूप में प्रकाशित।
एह उपन्यास का बारे में डॉ० विवेकी राय लिखले बानी – ” भोजपुरी कथा-साहित्य का विकास में बलिया का नरेन्द्र शास्त्री के उपन्यास ‘ऊसर के फूल’ महत्त्वपूर्ण स्थन बनवले बा। काहे कि तमाम आदर्शवादी आ आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कृतियन का बीच इहे एगो ठोस यथार्थवादी कृति लउकत बा। उपन्यास लेखक कतहीं भाषण नइखे करत, क्रोध-छोभ नइखे उगिलत। चुपचाप ऊ आजु का जीवन के असलियत खोलि देत बा कि पूँजीवादी अर्थ-व्यवस्था में गाँव के सीधा-सरल मनई के मौत ले से काना बा।
फुलसुंधी (1977)
लेखक : पांडेय कपिल
प्रकाशक : भोजपुरी संस्थान, पटना
कथावस्तु : ई एगो अर्द्ध ऐतिहासिक उपन्यास ह, जवना में ओह जुग के तसवीर बाटे जब निलहई खतम हो चुकल रहे आ जमींदारी अपना गिरंती के हालत में रहे। एकर एगो पात्र भोजपुरी क्षेत्र के नामी पुरबी गायक महेन्दर मिसिर बाड़े। एह उपन्यास पर भोजपुरी आकादमी, पटना सहित कई साहित्यिक संस्थान से पुरस्कार मिल चुकल बाटे। डॉ. विवेकी राय के अनुसार “भोजपुरी कथा साहित्य का विकास में इतिहास, कल्पना आ लोकगाथा का मिलावट से बनल ‘फुलसुंधी’ एगो मानक उपलब्धि का मील-पत्थर नियर सामने आवति बा। बड़हर असर वाला ई लघु उपन्यास आँचलितकता का संगे-संगे मध्यकालीन आदर्शवादी जीवन मूल्यन के जबर्दस्त वकालत करत बा। एकर कसल रोमैंटिक रूप पढ़वैयन के मोहि लेत बा। महेन्दर मिसिर के अंतर्द्वन्द्व, शास्त्रीय गीत आ लोक संगीत के टक्कर आ क्लैसिकल व्यक्तित्व वाला लोगन के जमाव, कुल्हि मिला के उपन्यास के सचहूँ एगो क्लैसिकल उपन्यास बना देत बा। ”
परशुराम (1977)
लेखक : डॉ० अरूण मोहन ‘भारवि’
प्रकाशक : भोजपुरी संस्थान, पटना
कथावस्तु : भोजपुरी के पहिलका पौराणिक उपन्यास जे परशुराम के जीवन पर केन्द्रित बाटे।
सुन्नर काक (1978)
लेखक : प्राध्यापक ‘अचल’ (विंध्याचल राय -अचल’)
प्रकाशक : अखिल भारतीय अंतर जनपक्षीय परिषद्, उजियार (बलिया)
कथावस्तु : एह साजिक उपन्यास में एगो अइसन आदमी केंद्र में बाटे जो अपना पट्टीदारन का कुचक्र के आसानी से सामना करत गाँव के मुखिया बन जात बाड़े।
एह पुस्तक के भूमिका में डॉ० विवेकी राय लिखले बानी – “अंचल जी की भाषा की बनावट भोजपुरी की मौलिक बनावट है। वाक्यों में भोजपुरी रस निचुड़ता नहीं छलकता दृष्टिागोचर होता है। शीर्षकों में मुहावरे, कहावतें, प्रतीक, मिथक और व्यंग्य जो टँके हैं, कृति के सौन्दर्य को और बढ़ा देते हैं।
भोर मुसुकाइल (1978)
लेखक : विक्रमा प्रसाद
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य संस्थान, पटना
कथावस्तु : आधुनिक समस्यन में अझराइल अइसन आदमी के, केंद्र में राख के रचल उपन्यास ह, जे धन कमाये खातिर कवनो करम कर सकत बा। विद्वान लोग एह उपन्यास के श्रेष्ठ भोजपुरी उपन्यासन का कतार में स्थान देले बाड़े। उपन्यासकार के आज का समाज में फइलल छल प्रपंच भ्रष्टाचार, चोरी, डकैती, बलात्कार, घूसखोरी आ गरीबन पर हो रहल अत्याचारन के सही तसवीर उभारे में पूरा सफलता मिलल बा आ एमें दलित समस्या के खास रूप में उठवले बाड़े।। एह उपन्यास के भाषा आ शिल्प का बारे में डॉ० विवेकी राय लिखले बानी – ‘उपन्यास की भाषा काफी सजी, सधी और मँजी हुई है। कहीं लड़खड़ाहट नहीं है। उपमाएँ बिंब खड़ाकर देती हैं। मन के द्वन्द्व, बाहरी संघर्ष, मनोवैज्ञानिक, उहापोह और मानसिक चिन्ताओं के साथ मानो प्रकृति की हलचल भी मिली हुई है। बातचीत की शैली में पात्रों का अंतर्द्वन्द्व उभारा गया है और वातावरण के साथ घुल मिलकर इनके चरित्र जी वन्तता ग्रहण करते हैं। ”
घर टोला गाँव (1979)
लेखक : पांडेय जगन्नाथ प्रसाद सिंह
प्रकाशक : भोजपुरी संस्थान, पटना
कथावस्तु : एह में सारन जिला के एगो गाँव शीतलपुर के पृष्ठभूमि बना के उहाँ के तमाम पुरजन-परिजन लोगन के चित्रण कइल गइल बा। संयुक्त परिवार का अनुशासन वाला ऊ सनातन सांस्कतिक गाँव उपन्यास में पूरा मिठास आ प्यार का संगे स्मरण कइल गइल बा। (डॉ० विवेकी राय : भोजपुरी कथा साहित्य के विकास)
फुलमतिया (1979)
लेखक : योगेन्द्र प्रसाद सिंह
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य संस्थान, पटना
एह लघु उपन्यास में मजदूरी के सवाल पर दलित वर्ग पर अत्याचार, आ एगो दलित लइकी का साहस के चित्रण बाटे।
मुट्ठी भर सुख (1980)
लेखक : विक्रमा प्रसाद
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य संस्थान, पटना
कथावस्तु : मात्र बीस पन्ना में समेटाइल एह रचना के उपन्यासिका का रूप में प्रकाशित कइल गइल बा। आदमी के एक मुट्ठी सुख खातिर का का करके के पड़ेला एकर मजिगर चित्रण एह उपन्यासिका में देखल जा सकेला। एह उपन्यासिका के भूमिका में प्रो० ब्रजकिशोर के कहनाम बा – “आज हर स्तर पर जे घुटन आ संत्रास बा ऊ आदमी के सहज-सुबोध रूप के बिगाड़ के रख देले बा बाकी जिनगी के रस त एही में जोगावे के बा, बटोरे के बा। मुट्ठी भर सुख एह जटिल स्थिति के जवनाखूबी से उजागर करे में सफल भइल बा ई भोजपुरी में एगो मील का पतथर लेखा आपन चिन्हासी जस बनाई।
धूमिल चुनरी (1980)
लेखक : गणेशदत्त ‘किरण’
प्रकाशक : रोहतास जिला साहित्य सम्मेलन, सासाराम
कथावस्तु : एकरा के उपन्यासकार ऐतिहासिक उपन्यास मनले बाड़े, बाकिर गणेश चौबे के मोताबिक हुमायूँ के पतन आ शेरशाह के बादशाही का युग में मुसलमान सरदारन का जिनगी पर रचल एह उपन्यास में ऐतिहासिकता कम, सामाजिकता बेसबी बा।
रेवती (1980)
लेखक : मधुकर सिंह
प्रकाशक : भोजपुरी अकादमी पत्रिका, पटना
विवरण : ई उपन्यास ‘साहित्य अकादमी पत्रिका’ में छपल रहे
कमली (1981)
लेखक : नरेन्द्र रस्तोगी ‘मशरक’
प्रकाशक : भोजपुरी माटी (मासिक), कोलकाता।
विवरण : भोजपुरी माटी में धारावाहिक रूप में प्रकाशित ई एगो सामाजिक उपन्यास ह।
बदमियाँ (1982)
लेखक : वैदेहीशरण
प्रकाकश : भोजपुरी माटी (मासिक) कोलकाता
इहो एगो सामाजिक उपन्यास ह जवना के प्रकाशन धारावाहिक रूप में भोजपुरी माटी’ में भइल।
जिनगी के राह (1982)
लेखक : रामनाथ पांडेय
प्रकाशक : भोजपुरी अकादमी, पटना
कथावस्तु : एमें मिल मालिक आ मजदूर के झगड़ा के चित्रण भइल बा। ‘बिंदिया’ के बाद आइल पांडेय के इहो उपन्यास आदर्शवाद से अछूता नइखे बाकिर ए पर मार्क्सवादी प्रभावो साफ झलकत बा। एह उपन्यास में आइल नया विचारन के सराहना करत, हवलदार त्रिपाठी ‘सहृदय’ पुस्तक के भूमिका ‘दू बात’ में लिखले बानी – “भोजपुरी चूँकि जनजीवन से जुड़ल लोकभासा हऽ, एह से एकरा में नया विचारन आ नया कारीगरी के रूप परगट भइल अपना आप में सराहे वाला हुनर बा। एह नजर से ई बात विसेस धेयान देवेवाला बा कि लेखक एह चुनवती में सफलता पवले बाड़े।”
रावन उवाच (1982)
लेखक : गणेशदत्त किरण
प्रकाशक : भोजपुरी अकादमी, पटना
कथावस्तु : ई अनेक प्राचीन ग्रंथन आ पुराणन के आधार पर आत्मकथा का रूप में रचल रावन पर उपन्यास ह। रावण के अनैतिक आ समाज विरोधी गुणन पर विचार करत डॉ० बलिराम प्रसाद के कहनाम बा – “उपन्यास रावन उवाच में रावण के अनैतिक एवं समाज बिरोधी गुणों का उल्लेख जहाँ-तहाँ परिलक्षित होता है। प्रेम के महत्व को तो वह अंगीकार करता है, किंतु सामंती विचार एवं उसका अहम् उसे अनैतिकता से रोकने में सक्षम है। उसके इन्हीं दुर्गुणे के कारण समाज तथा देश में अपकीर्ति फैलती है।
खैरात (1982)
लेखक : कन्हैया प्रसाद सिंह
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य संस्थान, पटना
कथावस्तु : ई आज का समाज में फइलल कुरीतियन के वर्णन करेवाला भोजपुरी के पहिलका बाल उपन्यास ह।
दरद के डहर (1982)
लेखक : भगवती प्रसाद द्विवेदी
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य संस्थान, पटना
कथावस्तु : सामाजिक घटना पर आधारित ई एगो लघ उपन्यास , जवना में मीरा गाँव के लइकी के दिलेसर गाँव के एगो लइका का साथे प्रेम-प्रंच आ बाद में लइकी के दोसरा लइका के साथ विवाह आ आहे अनमेल बियाह का चलते एगो आदमी के कहलइला फुसिलवला में पड़के मीरा के कोलकाता में वेश्या भइला के वर्णन बा।
कवाछ (1983)
लेखक : नर्मदेश्वर राय
प्रकाशक : भोजपुरी अकादमी, पटना
लघु उपन्यासिका।
राख भउर आग (1985)
लेखक : डॉ० अरूण मोहन ‘भारवि’
प्रकाशक : अरूणोदय प्रकाशन, बक्सर
कथावस्तु : ई एगो जनवादी उपन्यास ह
जवना में सर्वहारा वर्ग के नवजागरण दबावे खतिर सामंती व्यवस्था का ओर से अत्याचार आ ओकरा प्रतिकार में संघर्ष के चित्रण कइल गइल बा।
करेजा के काँट (1985)
लेखक : डॉ० अरूण मोहन ‘भारवि’
प्रकाशक : पश्चिम बंग भोजपुरी परिषद्, कोलकाता
कथावस्तु : इहो एगो जनवादी उपन्यास ह।
ए में गरीबी में पोसाइल एगो नवयुवक का ओर से गरीबन का मदद खातिर डकइती के काम आ अंत में ओकरा जेल के सजाय भइला के चित्रण भइल बाटे।
अछूत (1986)
लेखक : सूर्यदेव पाठक ‘पराग’
प्रकाशक : भोजपुरी संस्थान, पटना
कथावस्तु : गणेश चौबे के अनुसार ‘अछूत’ उपन्यास में अछूतन के गरीबी आ एगो सुधारवादी ब्राह्मण कुमार द्वारा अछूत कन्या से विवाह के चित्रण भइल बा। डॉ० महामया प्रसाद ‘विनोद’ के कहनाम बा ‘अछूत’ उपन्यास में गाँव के अछूत कहल जायेवाला लोगन के दुखद स्थिति का सवर्णवर्ग के स्वार्थी मानसिकता के यथार्थ के चित्रण बा। एह में दलित उत्पीड़न के मार्मिक वर्णन जरूर बा, बाकिर ओह लोगन में प्रतिकार के दम नइखे। (भोजपुरी विश्व : मार्च-जून, 2013, पृ० 15)। डॉ० बलिराम प्रसाद के ‘अछूत’ के उपन्यासकार ने स्पष्ट किया है कि समाज से जातिवादी विकृतियाँ तबतक नहीं जा सकती हैं, जबतक व्यक्ति-व्यक्ति से निष्कलुष भाव से आपसीपन नहीं रखता। निश्छल संबंध कायम होने से ही समाज में समरसता एवं मानववाद स्थापित करने में सफलता मिल सकती है। कथाकार की धारणा है कि रतन जातिवादी एवं सदियों पुरानी परंपरावादी विचारधारा का विरोधी है। भगिया से विवाह करके उसने समाज के सम्मुख एक नए मूल्य को सृजित किया है। कथाकार : सूर्यदेव पाठक का यह प्रयास सद्भावपूर्ण प्रसांगिक एवं सामिप्राय है।
परिणाम (1986)
लेखक : जगन्नारायण पांडेय ‘विधुर’
प्रकाशक : अजित प्रकाशन : लोहिया नगर, पटना
कथावस्तु : ई एगो सामाजिक उपन्यास ह। एमें पारिवारिक आ सामाजिक जिनगी के बहुत सुन्दर चित्र उरेहल गइल बा। उपन्यास के भाषा साफ सुथरा आ प्रवाहपूर्ण बा। बीच-बीच में संस्कृत के सूक्तियन का साथे भोजपुरी के कहाउतन के प्रयोग से रोचकता बढ़ि गइल बा।
सती के सराप (1988)
लेखक : गणेशदत्त किरण
प्रकाशक : भोजपुरी अकादमी, पटना
कथावस्तु : ई. मुगल बादशाह शाहजहाँ का समय के एगो ऐतिहासिक उपन्यास ह।
तोहरे खातिर (1989)
लेखक : गणेशदत्त किरण
प्रकाशक : पश्चिम बंग भोजपुरी परिषद्, कोलकाता
विषय वस्तु : ई ऐतिहासिक उपन्यास ह। एकरा बारे में ज्यादा जानकारी नइखे मिल सकल
मुण्डदान (1989)
लेखक : डॉ० कमला प्रसाद मिश्र ‘विप्र’
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य मंडल, बक्सर
कथावस्तु : ई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सम्बंधी ऐतिहासिक उपन्यास ह।
जगरम (1990)
लेखक : राजगुप्त
प्रकाशन स्थान : बलिया
कथावस्तु : एह उपन्यास में समसामयिक, राजनीतिक व्यवस्था आ नौकरशाही का अकरण्यिता के विवेचन बा। ए में हिंदू-मुस्लिम एकता, देश के न्याय व्यवस्था रक्षा व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह लगावल बासाथ ही गाँव के गरीबी. बेरोजगारी, कृषि संस्कृति आदि के चित्रण बा।
जहाजी भाई (1991)
लेखक : रास बिहारी पाण्डेय
प्रकाशक : लोक साहित्य संस्थान, बिहिया, भोजपुर
कथा वस्तु : एह उपन्यास में प्रवासी भोजपुरियन का जीवन के मार्मिक चित्र उरेहल बा
कचोट (1992)
लेखक : धर्मनाथ तिवारी
प्रकाशक/लेखक : ग्राम – कुआरी, पत्रालय : परौना, वाया : वरैया, सरन
कथा वस्तु : ई एगो सामाजिक उपन्यास हऽ, जवना में दहेज का कर्ज के चलते मुन्नी गाँव के नवविवाहिता का बाप के हार्ट फेल हो गइला से मौत भइला के दर्दनाक घटना का साथे आउर सामाजिक जीवन के घटनन के चित्रण भइल बा।
महेन्दर मिसिर (1994)
लेखक : रामनाथ पाण्डेय
प्रकाशक : भोजपुरी विकास भवन, छपरा
कथावस्तु : कविवर मोती, बी०ए० के प्रेरण से लिखल आ उनके के समर्पित एह उपन्यास में तथ्यन के पोढ़ खेजबीन के आधार पर पूरबी के अमर रचयिता महेन्दर मिसिर के प्रखर देश भक्तिआ संगीत साधक गीतकार के रूप निखर के आइल बा। एह उपन्यास के कथ्य आ शिल्प पर विचार करत हिन्दी के यशस्वी पौराणिक उपन्यासकार डॉ० भगवतीशरण मिश्र पुस्तक के भूमिका में लिखले बानी – “पांडेय के एह पोथी के महत्व एहू से बढ़ जाता कि इहाँ के ई उपन्यास लिखे में यथार्थ के साथ पूरा न्याय कइले बानी। एह खातिर इहाँ के काफी अनुसंधान-अन्वेषण करे के पड़ल बा। पाण्डेय जी के भोजपुरी भाषा भरपूर अधिकार बा। ठेठ भोजपुरी के ठाठ कहीं – कहीं खूब देखे में आवता।”
अंजोर साँच के (1995)
लेखक : राजगुप्त
प्रकाशक : प्रेम प्रकाशन, बलिया
कथावस्तु : एह में देश के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आ धार्मिक प्रवृत्तियन का बदलत स्वरूप के चित्रण बाटे। एह में सरकारी तंत्र के सार्वजनिक आ व्यक्तिगत जीवन का प्रति उदासीनता के उल्लेख भइल बा
इमरीतिया काकी (1997)
लेखक : रामनाथ पांडेय
प्रकाशक : भोजपुरी विकास भवन, उमा निवेश, रतनपुरा, छपरा
कथावस्तु : एह में जाति-पाँति से ऊपर उठके दीन-दुखिया आ दलित-वर्ग के सेबा के जियतार चित्र उरेहल गइल बा। स्वयं उपन्यासकार के अनुसार – “अपना स्वार्थ खातिर आज पूरा समाज के केह तरे गोलबंद कके लड़ावल जा रहल बा, कवना तरे नेह के बन्हन तूड़ के पूरा समाज के आग में झोंकल जा रहल बा, एह उपनयास में जहवाँ एह स्थितियन के उरेहे के प्रयास भइल बा, ओही जा इमरीतिया कवना तरे नेह के बन्हन में पूरा गाँव के बान्ह के अपनेना, आग लगावे वाला लोग के समाजो के बचावतिया एकरो चित्र एह उपन्यास में चित्रित करे के प्रयास कइल गइल बा। ई उपन्यास विश्लेषणात्मक शैली में लिखल गइल बा। एकरा भावपक्ष आ कलापक्ष दुनू सशक्त बा।
मेनका के आँस (1998)
लेखक : डॉ०बच्चन पाठक ‘सलिल’
प्रकाशक : ओझा प्रकाशन, जमशेदपुर
कथावस्तु : उपन्यासकार के मान्यता बाकि समाज केतने उमेश भरल पड़ल बाड़े, जिनकर मानसिकता बहुत संकुचित बा। अइसन लोग समाज में दहेज आ तिलक के माँग के समाज, देश आ अपनो के कलंकित करे लें। केतने लोग गरीब होले जे दहेज ना दे पावेले, जवनाके चलते बहुत महिला आत्महत्या क लेली। ओकरा से समाज पर खराब असर पड़ेला।
अमंगलहारी (1998)
लेखक : डॉ० विवेकी राय
प्रकाशक : भोजपुरी संस्थान, पटना
कथावस्तु : ई उपन्यास देश-प्रेम से सम्बंधित बा। एह उपन्यास में भारत-पाक युद्ध (1965) के चित्र खींचल गइल बा। युद्ध में शहीद भइल कीरन के स्मृति में धर्मशाला शहर में एगो समारोह के आयोजन कइल जातासमारोह में वीरन के गाँव पर रिटायर मेजर जगदीश दीप प्रज्ज्वलित करत बाड़े। मेजर के दिमाग में युद्ध के दृश्य घूम जात बा आ ऊ बेचैन होके समारोह से भाग जात बाड़े। एह उपन्यास में मेजर जगदीश के चित्रण एगो देशप्रेमी का रूप में कइल गइल बा।
उपन्यासकार एह उपन्यास का माध्यम से नयकी पीढ़ी में देशभक्ति के भावना में आइल कमी के दूर करे के प्रयास कइले बाड़े संग ही भारतमाता के ग्रामवासिनी रूपो के चित्रित कइले बाड़े। उपन्यास के भाषा-शैली बोधगम्य आ प्रवाह पूर्ण बा।
आधे आध (1998)
लेखक : रामनाथ पांडेय
प्रकाशक : भोजपुरी विकास सदन, उमा निवेश, रतनपुरा, छपरा
कथावस्तु : एह उपन्यास में रंजना आ सूरजभान सिंह का माध्यम से वैयक्तिक मूल्य चेतनाआ व्यक्तिवादी अवमूल्यन के पूरक समझावल गइल बा। ए में मिल मालिक आ मजदूरन का आपसी हक के लड़ाई के चित्रांकन भइल बा।
ग्राम देवता (2000)
लेखक : प्रो० रामदेव शुक्ल
प्रकाशक : परिदृश्य प्रकाशन, मुंबई
कथावस्तु – शिल्प : हिंदी भोजपुरी के जानल मानल कथाकार प्रो० शुक्ल के एह उपन्यास में गाँव-गँवई के रीति-रेवाज, पंचाइत परंपरा आ नाना प्रकार के प्रपंचन के जियतार चित्र उरहल गइल बा।
देहाती ठाट-बाट, रहन सहन के जतना सटीक आ सुंदर चित्रण, एह उपन्यास में भइल बा, ओहसन बहुत कम देखे के मिलेला। उपन्यास खोलते औतार बाबा का, देह-धाराज के एगो चित्र पाठक के सामने झलके लागत बापात्रन के गाँव गिरगिटवा, सतुआ काका, ओहनी के गुने के मोताबिक रखल बा। कसल शिल्प आ पात्रानुकूल कथोपकथन का साथे खाँटी भोजपुरी शब्दन के प्रयोग पाठक वर्ग के बान्हे में पूरा सक्षम बा।
साँच के आँच (2000)
लेखक : भगवती प्रसाद द्विवेदी
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य प्रतिष्ठान, पटना
कथा वस्तु : एह उपन्यास में सामाजिक यथार्थ के सुन्दर चित्रण भइल बा। डॉ० बलिराम प्रसाद के अनुसार ‘छोटे कलेवर का यह उपन्यास विषय वस्तु की दृष्टि से सशक्त एवं समसामयिक यथार्थ को चित्रित करने में सफल है। शिवजी का चरित्र समाज के सम्मुख आदर्श प्रस्तुत करता है। रूपा का चित्रण भारतीय पतिब्रता नारी के मनोविज्ञान को प्रस्तुत करता है, जो अपने पति के लिए सर्वस्व निछावर करने के लिए तत्पर रहती है। उपन्यास भाषा-शैली एवं शिल्प की दृष्टि से सफल है।” (भोजपुरी उपन्यासों में जीवन मूल्य, पृ० 99)।
आवऽ लवटि चली जा (2000)
लेखक : डॉ० अशोक द्विवेदी
प्रकाशक : भोजपुरी संस्थान, पटना
कथा वस्तु : एह उपन्यास में बनवाँ आ वीरा प्रेम के गरिमा में अटूट आस्था रख के प्रेम उच्चादर्श प्रस्तुत करते बाड़े
बात इंसाफ के (2008)
लेखक : विक्रमा प्रसाद
प्रकाशक : भोजपुरी साहित्य संस्थान, पटना
कथा वस्तु : एह बृहत उपन्यास के कैनवास काफी लमहर चाकर होकै अपना में आज के लगभग समस्यन के समेटे में सफल भइल बा। प्रो० ब्रजकिशोर के अनसार – ई उपन्यास समाज, राजनीति, दलित-विमर्श, सामाजिक सद्भाव, नक्सलवाद, आतंकवाद आदि कुल्ह बिन्दुअन के छुवत आगे बढ़ रहल बा। कथानक काफी मनोरंजक आ मगलगाऊ बा।
दाल भात तरकारी (2009)
लेखक : डॉ० रमाशंकर श्रीवास्तव
प्रकाशक : नवशिला प्रकाशन, दिल्ली
कथा वस्तु : हिंदी-भोजपुरी के जानल-मानल व्यंग्यकार आ कथाकार डॉ० श्रीवास्तव के ई उपन्यास ‘दाल भात तरकारी’ अपना गाँव के सार्थक करत भोजन का समस्या से जुझत लोगन के गहिराई से पड़ताल करे के एगो नीक प्रयास कहल जाई। एकर कहानी सुख-सुविधा के सपना लेले मेहनत मजदूरी करके वाले आम आदमी के कहानी ह, जेकरा, दाल भात तरकारी के फिकिर हरमेसा पैमाल कइले रहेलाभोजपुरी के ठेठ शब्दन के प्रयोग आ चुस्त-दुरूस्त सघल शैले में लिखाइल ई उपन्यास भोजपुरी उपन्यास का विकास के एगो महत्त्वपूर्ण कड़ी बा।
बेचारा सम्राट
(प्र.संस्करण : 2009, द्वि. संस्करण : 2011),
लेखक : अनिल ओझा ‘नीरद’, प्रकाशक : जमशेदपुर भोजपुरी साहित्य परिषद्, जमशेदपुर (झारखंड)।
पूर्वी के धाह (2010)
लेखक : डॉ० जौहर शाफियावादी
प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इण्डिया, नई दिल्ली
कथा वस्तु : ई उपन्यास पूर्वी के अमर गायक महेन्दर मिसिर के केंद्र में रखके लिखाइल बा।
इया के खटोली (2010)
लेखक : डॉ० रमाशंकर श्रीवास्तव
प्रकाशक : एजुकेशनल बुक सर्विस, नई दिल्ली
कथावस्तु : ई उपन्यास भोजपुरी में लिखाइल एगो बाल उपन्यास ह, जवन गाँवन में लहकाई में दादी-नानी से सुनल कहानियन पर आधारित बा। एह खटोलीनुमा उपन्यास के कहानियन से ओरचल बा, जवन सोरहगो भाँवर (अध्याय) में पूरा कइल गइल बा। सरस-सरल भाषा शैली में बाल मनोविज्ञान के ध्यान में रखके लिखल ई उपन्यास बालसुलभ चंचलता से भरल भइला से लइका से सेयान ले सभके पढ़े लायक बा।
जुगेसर (2010 एवं 2011)
लेखक : हरेन्द्र प्रसाद
प्रकाशक-सन्मार्ग, कोलकाता,
कथा वस्तु : एह में बिहार के एगो खास कालखंड के चित्र उरेहाइल बा। बीतल शताब्दी के अंतिम दशक में बिहार में भारी उथल-पुथल मचल रहे। एह उथल-पुथल से पुरान व्यवस्था टूटल। एह व्यवस्था के प्रति मोह एह उपन्यास में झलकता।
जै कन्हैया लाल की (2012)
लेखिका : डॉ० आशारानी लाल
प्रकाशक : अतुल्य पब्लिकेशन्स, दरियागंज, नई दिल्ली
कथावस्तु : एह बाल उपन्यास में श्रीकृष्ण का लइकाई के ओह साहस भरल कारनामन के चित्र उरेहल गइल बा, जवन उनका लोकोत्तर रूपन के उजियागर करत बासरल भाषा में लिखाइल ई बाल उपन्यास लइकन का रूचि के अनुकूल बा।
बोतलदास के बयान (2013)
लेखक : डॉ० रमाशंकर श्रीवास्तव
प्रकाशक : एजुकेशनल बुक सर्विस, नई दिल्ली,
कथावस्तु : एह उपन्यास का माध्यम से लेखक शराब पियला से होखेवाला नुकसान के चित्र उरेहल एह खराब लत से बचे के नीक सीख देबे के प्रयास कइले बाड़ेऊपर चरचा में आइल छप्पनगो भोजपुरी उपन्यासन का अलावा कुछ आउर प्रकाशित उपन्यासन के विवरण एह तरह बा –
नइहर के पायल (1997)
लेखक : अनिरूद्ध नारायण शर्मा
खूबसूरत (2002)
लेखक : हीरा प्रसाद ठाकुर।
कादंबरी (2003)
प्रकाशक : भोजपुरी संस्थान, पटना, लेखिका : शैलजा श्रीवास्तव
चकाचक (2005)
लेखक : हीरा प्रसाद ठाकुर (बाल उपन्यास)।
झबुली (2006)
लेखक : डॉ० के० डी० सिंह।
अर्जुन
लेखक : डॉ० चन्द्रधर पांडेय ‘कमल’।
पपीहरा
लेखक : नरेन्द्र प्रसाद कानू।
सून माँग
लेखक : डॉ० वीरेन्द्र नारायण पांडेय, सून माँग के कुछ अंश वाराणसी से प्रकाशित ‘भोजपुरी कहानियाँ’ में प्रकाशित भइल। तकनीक, विषय आ शिल्प का दृष्टि से भोजपुरी में एगो नया प्रयोग रहे। ई अलग-अलग शीर्षकन में लिखल गइल बा। (सूनमाँग के विवरण भोजपुरी उपन्यासों में जीवन-मूल्य, पृष्ठ : 100 से लिहल बा)।
आचार्य जीवक
लेखक : अनिल ओझा, ‘नीरद’ ई उपन्यास 2012 से लगातार भोजपुरी माटी में धारावाहिक रूप में प्रकाशित हो रहल बा।
निर्भीक संदेश में नीतू सुदीप्ति के उपन्यास ‘सँवरी’ के 13 भाग धारावाहिक रूप में से प्रकाशित होता।
सुष्मिता सन्याल क डायरी
लेखक – हेन्द्रस प्रसाद (नवंबर 2007)
प्रकाशक : पी.एस. प्रकाशन, 123, बसाक बागान, कोलकाता-700 048,
कथावस्तु : ई उपन्यास विवाहेत्तर संबंध पर आधारित बा। ई उपन्यास भोजपुरी के कथानक में नया अध्याय जोड़ले बा। कथ्य आ शिल्प दूनों के दिसाईं ई उपन्यास भोजपुरी के मानबढ़वले बा। एकर हिंदी अनुवाद जीतेन्द्र वर्मा कइले बाड़े
एह सड़सठ उपन्यासन का अलावहूँ कुछ आउर उपनस लिखाइल होई जवनो का बारे में जानकारी जुटावे के चाहीं ताकि अबले प्रकाशित सभ उपन्यासन के अध्ययन, मूल्यांकन आ शोधकार्य में आसानी हो सके।
भोजपुरी उपन्यास पर शोध : मिलल जानकारी का मोताबिक अबले भोजपुरी उपन्यास पर तीनगो विद्वानन के शोध-प्रबंध पर ‘पी.एच.डी.’ के उपाधि मिल चुकल बा। ई बाड़े – डॉ० अरूण मोहन ‘भारवि’, डॉ० स्नेह प्रभा आ डॉ० बलिराम प्रसादखुशी के बात बा कि भोजपुरी में उपन्यास लेखन आ प्रकाशन के काम लगातार जारी बा आ ए पर शोध के काम हो रहल बा, जवन एह विद्या का उज्ज्वल भविष्य के संकेत करत बा।
ध्यान दीं : इ 67 गो भोजपुरी उपन्यास के बारे में भोजपुरी किताब अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन लिआइल बा जवना के लेखक बानी सूर्यदेव पाठक ‘पराग’ जी ।
भोजपुरी के कुछ उपयोगी वीडियो जरूर देखीं
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