रामचन्द्र कृश्नन जी के लिखल भोजपुरी कहानी रूमाली

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रूमाली क असली नाव रूमी रहल,माई के दुलारी आ बाप क पिआरी तिसरकी ओलांद रहली,पांच फुट क लमहर देहि आ छोट छोट केश मुरझाइल उदास चेहरा ,सुम्ही अस नाकि,भोथरा अइसन ओठ आ पिअर मटिआइल पाचर अस दांत आ मटमइल रंग इन्हें उनकर सरुप रहल।

उनके मुंहे के गढन कवनो निक नाई रहल लेकिन हसलें पर उनकेे गालें के गडाही कटारी अइसन चोट करें। उ माथे पर हमेशा किरकिरिया टिकुली लगावें,जब किरकिरिया टिकुली लगालें त दुइजी के चांन अइसन झलकें।

लेकिन एक बाति रहल पढाकू उ बड़े जोर क रहली शरीर त उनकर खड़खड़वा डांगर अस रहल लेकिन पढ़ाई में सबसे अउअल रहलि।

रामचन्द्र कृश्नन जी
रामचन्द्र कृश्नन जी

पता नाई उनके करम क दोष रहल की माई बाप क भूल विधाता उनके साथे न्याय नाई कइलें रहलें ,न त उनके रूप रंग दिहलें न सिगांर पटार लेकिन सुन्नर बनले क उछाह उनके भीतर तूफान अस हिलोर मारें,बाति क धनी त उ ना रहली लेकिन दिल क थोरे साफ जरूर रहली,भूखा दूखा देखि के उनकर करेजा कसकि उठेंं,गरीब गुरगा के देखि के उ मसकि उठें,खर
चवाह त उ नाई रहली लेकिन पाई पाई क हिसाब जोरलें में माहिर रहली पिआर क बोली आ शील के खजाना से उ सबके हिया हरन जरूर करें लेकिन भितरघावें चोटों कइलें में कम नाई रहली।
उनके आखिं में घायल कइलें क शक्ति त नाई रहें लेकिन बाति से उ घायल जरूर करें।

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समय क बयार उनके ऊपर बहुत लगल लेकिन हिम्मत नाई हरलि चलाकि उनके भीतर कूट कूट के भरल रहल लेकिन हिम्मत क बहुत कमजोर रहली आपन काम करवलें में अइसन माहिर रहलि की चलाकी क धुडसवारी आ अदाकारी के लगाम से उ बहुत जनि के लोभा लें,आ महिन बुदध्दि से रास्ता निकारि के चित्ते पटकि दें।

लेकिन सबके लगें उनकर ई मायावी रूप सफल नाई होखें केहूं केहूं अइसनों उन्हें मिलें जे उनके गजब क पटकइया देके उनकर दातें कोठ क दें।

बिआहे क चिन्ता रूमाली के बहुत रहें,उनकर इच्छा रहें कि पढल लिखल , हट्ठा कट्ठा गज भर क सीना देखलें में बालालखंनर अस बरे से बिआह करब अपने एहि कसौउटी पर कसि के पचहत्तर ठो दुलहा बरका भइल रहलि लेकिन सुपनखा के राम निअर एक जनि मनहर मिलि गइलें, लेकिन जइसे मदारू चिखना खा के पत्ता फेकि देलें ओइसे मनहर रूमाली के फेकि दिहलें,।

आज रुमाली के रूमाल में गांठ लगावें वाला केहूं नाई लउकत बा उनकर रूमाल हवा में लहराति बा,देखि एह सिग्नल के के समझला।

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