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रामचन्द्र कृश्नन जी के लिखल भोजपुरी कहानी भउजी

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रामचन्द्र कृश्नन जी
रामचन्द्र कृश्नन जी

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प , रउवा सब के सोझा बा रामचन्द्र कृश्नन जी के लिखल भोजपुरी कहानी भउजी ( Bhojpuri Kahani Bhauji) , पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा रामचन्द्र जी के लिखल भोजपुरी कहानी (Bhojpuri Kahani) कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह कहानी के शेयर जरूर करी।

भउजी के नाम दिहला से रउरे पाचन के जी गुदगुदा उठल होई। नरमे अवस्था पांच फीट के लमहर देहि आ बित्ता भर के घुघुट तुहरे आंखि पर जरूर नाचि गइल होई। कलपतरी साड़ी के भीतर गोल मटोल चेहरा रकत अइसन ओंठ आ सुगना के ठोड़ अइसन नाकि तुहरा भुलात नाई होई।

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छुई मुई अईसन लजहर लइकन के खेलौना आ माई के करेजा के टुकडा परदा के भीतर बइठल भउजिये ते घर के जान बाटी। हमरे पुरहर इयाद बा जब भइया के बियाह नाई भइल रहल ते माई न जाने केतना देउकुरि लिपलसि।

उ इहे कहें मालूम होता भगवान पतोहे के मुंह देखें के बदा हमके नाई कइलें बाटे।अइसे बिपती के बोझ ढोवत जिनगी ओरा जांई कब्बो दुकसरूआ नाई होब। लेकिन भगवान के अईसन लमहर बाहि की हमनो के भउजी के मुहं देखें के दिन बहुरल, माई पहिलही से पांच ठो दोपचहिया रूपया आ आपन गिलटहिया कड़ा भउजी के देवें खातिर धइलें रहलि।आ उ धटनओ ईयाद बाद जब हमकाका के लइकवा चिरकुटवा सहबलिया बने के झरिआइल रहली,ओहि टेम पर माई आ काकी मे कच्चाइन हो गइल माई कहें हमार लइका सहबलिया बनि के जाई काकी कहे हमार लइका सहबलिया बनि के जाई।

भोजपुरी कहानी भउजी

खैर ई कुल ते जाए देई जब से भउजी अइली माई के तरूआ तर आगिं कूचि गे । पूछि जनि टोला परोसाके के कहें , गोरू बछरू के देखल हराम हो गइल,माई भउजी के खाना पानी टिकुली सेनुरे में अइसन अझुरइली कि बहरा निकरे के के कहें अपनो खाइल पीअल भूला गइली। जब केहू पूछें ये दीदी कहां रहिला, लउकी ला नाहि ते उ इहें जबाब दें।

का लउकी ये बहिनी दुल्हनिया के टर टकसार में सगरो दिन ढरकि जाला कहेलि कवनों चीज के तकलीफ न होखे नाई ते मोछि चारि जाई।हमते अइसन पान अब फेरल चाहत बाटि की केहूंइन कहें
कि ससुई अइसन बा।

माई के दिन भर के ईहें कूलिं काम रहें,।केहू के दुलहिन देखावे ते केहू से पियार से हाल चाल पूछें, हम लइका लोगन के भउजी के देखले के बड़ी ललसा रहें लेकिन हमन के पूछें वाला के बा हम लइका लोग भउजी के कवाडी के फोफर से देखि।

लेकिन जहिया से घर में भउजी के मलिकई आइल घर के सब नक्शे बदलि गइल ,माई पुरनिया मनई ओकर झिलमिटिया खटिया एक किनारे डारि दिहल गइल,दादा गऊ मनई घर से नातें तूरि लिहलें ,छोटका भयवा लकड़ी लौना पानी कानो के भउजी के नोकर बनि गइल , हम हूं के कुछ अइसन काम मिलत रहल जवना के ना कइला से भउजी अइसन ताना मरलि कि हमहूं घरें छोडिं दिहलि।

रामचन्द्र जी

झगरा में एक नम्बर के माहिर मिल गइली न आला तिरून तूरें न उसुकि के पानी पियें जो उनके तनिको केहूं बोलि दे ते उ कटकटा के चढि बइठे आ उ पट्टे जबाब दे,हे हम के केहूं बोले जिनि हम केहूं के हूसा सहें नाई आइल बाटी ने कवनो उढारि छिनारि के आइल बाटी ,जेके जहां रहत बने तहां रहें।

उनकर बाति सुनि के दादा कपारे हाथ देलें आ उ सोचे लगें कि एहि बगलिए आलमो मियां के पतोह आइलबा पियार के बोली आ शील के खजाना से सब के हिया हरन क लिहलें बा आ ई एगो हमरो कूलदीपा आइल बाटीं।

एक दिन के बाति हे भउजी के पोखरा पर के जिन्न बाबा ध लिहलें भउजी आधीं रात के बेला में न जानें का का बकबकाये लगली,माई ओहि राति के टुहुली सोखा के धर के राहि धइलसि,राहें में धनपतवा के कटहवा कुक्कुर ओके चबा लिहलस जलने घावे में ओके कुकुरहवा अस्पतालें के चौदह हुई लगल।

दुसरहि दिन हमरे लगें तार मराइल भउजीके भाइयों लोग माई के देखें अइलें, भउजी अपनें भइया के साथें दुसरहि दिन अपने माई किहा के राहि धइली सबके घर के घरइतिन कहली ,का ये दुलहिन बुढिया के एह दशा पर छोडिं के रउरे माई किहा जात हई।रउरा के अइसन ना चाही, भउजी कहली कि इनकर टरटकसार हमसे पार नाई लगी आ माई किहां के राहि धइली।

दुसरे दिन हमहूं घरे पहुचलि देखलि माई परलोक के राहि धइले बा, छोटका भयवा जवान हो गइल बा भउजी कहि देखाई ना देति बाटीं, लेकिन रहि रहि के उनकर स्मृति ईयाद आ जाति बा।

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