परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प , रउवा सब के सोझा बा रामचन्द्र कृश्नन जी के लिखल भोजपुरी आलेख गीतन में गारी ( Bhojpuri Aalekh geetan me gari) , पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा रामचन्द्र कृश्नन जी के लिखल भोजपुरी आलेख (Bhojpuri Aalekh ) कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह आलेख के शेयर जरूर करी।
गीत ओके कहें लें भइया जवन गावल जा ,जकर जनम कब भइल एकरे बारे में कवनों निश्चित परमान नाई बा लेकिन हम ते इन्हें कहब कि एंकर जनम तब्बे हो गइल जब मनई पैदा भइला के बाद ऊ गू गा करें लगल आ ओहि गू गा से ऊ गुनगुनाए लगल आ ओकर उहें गुनगुनाइल गीत बनि गइल।
गीत मनोरंजन के साधन हें आनन्द विरह आ वेदना के प्रगट कइलें के माध्यम हें, हमरे विचार से अगर गीत के आविर्भाव नाई भइल रहत ते मनुष्य के अंदर कुंठा के जाल बिछ जात आ संम्भव से ऊ मनो विकार के शिकार हो जात ।
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भारत में प्राचीन काल से ही गीत आ संगीत के सम्बन्ध रहल हें वैदिक युग में ऋषि लोग संध्या गायत्री के समय गायन और वादन कइल करत रहें, वेद मंत्र के विधि पूर्वक पूजन कइले से देवता लोग प्रसंन्न होलें,एहि लिए हमरे यहां सभी धार्मिक कार्य में गीत के गावल एक आवश्यक कार्य आ शुभ मानल जाला । आचार्य शारंग देव के कथन हे कि गीत धरम ,अर्थ,काम आ मोक्ष के प्रदान करें वाली हें।
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गीत के गवलें के अनेकों प्रकार होला , माटी के बोली यानी भोजपुरी में एकरें गवलें के अनेकों परकार बा केहू सोहर गा के आनन्द के अनुभूति करेला,ते के हूं नकटा गा करें हृदय के तृप्ति,केहूं कजरी गा के अपने आत्मा में संन्तोष करेला ते कहूं होली गा के वासना के अभिव्यक्ति ।
केतना जोराई एह माटी के गीत के गुन गवले मान के नाई बा,अइसहि एह माटी के गीत गवलें के एक विधा गारी हें,गारी, अरे चउकी जिन हम ओह गारी के ना कहत बाटी जेकरा सुनलें से आप नाक ,भौह सिकोडे लगिला अरे हम ते ओह गारी के बयान करत बाडीं,जवनें के सुनलें खातिर आप तरसि के रहि जाली।
जब शादी बिआह में आप बरात जालि,आ गारी ना पावेलीं ते ईहे कहेंलि हो इहा गारी नाई भइल,हमरे भोजपुरी क्षेत्र में शादी बिआह में गारी के गावल एक आवश्यक अंग तथा शुभ काम मानल जाला एहि से अगर हम एके मंगल गान के एक शाखा के संज्ञा देई ते कवनों अतिशयोक्ति ना होई, आप के गारी में नारी लोग आप के चाहें केतनो गारी दे आप हंस लें के सिवा नाराज नाई होली,आ जे गारी ना पावेला ऊ मन-ही-मन ललचातें चलि आवला।
एह गारी के केतना बखान करी,तब्बे ते के हूं कवि कहलें बा।
निकी पै फिकी लगें, कहियत समय विचारि।
फिकी पै निकी लगें ज्यो बियाह में गारि।
गारी गवलें के चलन प्राचीन काल से हें, आशुतोष भगवान शिव के बिआहे में गारी भइल रहल, पुरूषोत्तम भगवान राम जब शादी करे जनकपुर गइल रहले ते गारी पवले रहले । बियाह संस्कार के बिभिन्न अवसर पर चाहें द्वार पूजा हो, चाहें, मड़वा में डाल देखाई हो चाहें भात खवाई औरत लोग गारी गावेली।
गारी दु चरण में गावल जालें, पहिला पूर्वार्ध जेके भोजपुरी बोली में नारी लोग बइठका कहेलिं आ दुसरा उत्रार्ध जेके नारी लोग भडउआ कहेंली , जवन भोजपुरी के भांड आ भडिआवल शब्द से बनल हें जवनें में नारी लोग फुहर पातर गारी देलि एहि से एकर नाव भड़उआ हें।
अब आई पूर्वार्द्ध यानी बइठका के एक नमूना देखि जवना में साफ सुथरा ललित और भाव पूर्ण गीत गावल जाला।
कि हाजि इन्द्र अखाडें के उचि अटारि, ललना भुलइले ससुरारि
चिठिया पे चिठिया लिखि भेजेलि मातु कोशिल्या,ललना भुलइल ससुरारि।
चिठिया ही बाचत ललन अकुतइले, देहूं बिदइया घर जाऊ
साठि मोहर एक लाल बछेडा इहवें ललन के बिदाई।
कि हाजि मइया उलारी पूछें बहिना दुलारी पूछे कहहूं ललन ससुरारि।
काऊ बखानी मइया सासु के बोलियां सरहजि हई रिखि रानी।
आठ ही मास पूता मोरे कोखि रहल कइल न एंतनी बड़ाई,
एक ही मास पूता गइल ससुरारि,सासू के एतनी बडाई।
अब भड़उआ के उदाहरण देखिए जवना में नारी लोग फूहर गारी देलि।
समधी के बहिना गइली बजार बिचे मिल गया यार उन कर काट खाया गाल हो हो मेरे लाल।
समाज में फइलल दहेज के बोझ आ बर पक्ष का कन्या पक्ष के उपर निर्मम आक्रोश के देखि के लोक कवि कन्या पक्ष के दीनता के गारी के माध्यम से उजागर कइलें बाटें।
रउरे मस्त अमीरा रउरे मस्त अमीरा, हमरे गरीबी के ख्याल करी ।
रउरे कोठा अटारी रउरे कोठा अटारी हमरे मडइया के ख्याल करी।
रउरे शाला दुशाला रउरे वाला दुशाला,हमरे चटइया के ख्याल करी।
माटी के ऐह गीति में जेतना सरसता मधुरता आ मीठापन भरल बा ओतना अन्यत्र नाई बा,
एह गारी में कुछ नई गारी चललि बा, लेकिन इसमें ई मीठापन नाई बा जीवन पुराना गारी में बा ।
जरूरत बा एह धरोहर के बचवलें के ।
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