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भिखारी ठाकुर जी के सामाजिक चेतना के चरचा

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भिखारी ठाकुर
भिखारी ठाकुर

अबहि नाम भईल बा थोरा, जब यह छुट जाई तन मोरा
तेकरा बाद पच्चीस बरिसा, तेकरा बाद बीस दस तीसा
तेकरा बाद नाम हो जइहन, पंडित-कवि- सज्जन जस गईहन” (१)

भिखारी ठाकुर रचनावली, संपादक : नगेन्द्र प्रसाद सिंह, पृष्ठ ३१९, प्र. बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना -०४, प्र. सन. २००९.)
” आजू हमनी इहवां दिल्ली ने पढ़ल लिखल लोगन के बीच भिखारी ठाकुर आ उनकर जस 2011 में गावत बानी त कवनो कलमकार काहे एतना नामी गिरामी हो जाला की ओकरा नहियो रहला पर लोग के हिरदय में ओकर छवि नचात रहेला जवन उ देखले रहेला। ओकर मूल में रहेला ओ आदमी के कइल काज आ ओकर व्यक्तित्व जवन आपन एगो इमेज हमनी के सोझा छोड़ जाला जवन हमनी के इयाद करे के मजबूर करेला। भिखारी ठाकुर आपन ईहे छाप हमनी पर छोड़ गइल बाड़े आज जब देश के कए गो हिस्सा में मजदूरन पर हमला हो रहल बा, कऐ गो प्रान्त में अभियो पलायन चल रहल बा रोजी रोटी रोजगार के चक्कर में जात- पात छुवाछुत के, भेदभाव नारी के दबा के रखे के कम अभियो चल रहल बा त ई एहिसन हालत में भिखारी ठाकुर बहुत प्रासंगिक हो गईल बाडन।

मुन्ना पाण्डेय, दिल्ली विश्वविद्यालय के आलेख “भोजपुरी लोकरंग के वैश्विक कलाकार: भिखारी ठाकुर, अंजोरिया से साभार
“हमनी ई मालूम बा की कवनो रचना भा रचनाकार प्रासंगिक तबे ले बा जब ले ओकर रचनन में उठावल समस्यन के निवारण नईखे हो जात. भिखारी ठाकुर आजो ओतने प्रासंगिक एही बाड़े चुकीं उ आपन नाटक के माध्यम से जवन सामाजिक चेतना के संचार करे के कोशिश कईलन ओकर संचार के जरुरत आजो ओतने बा।

भिखारी के लागल की हमनी आपन नाटक कला से माध्यम से समाज में सुधर के काम कर सकिले जइसे बंगाल में राजा राम मोहन राय, इश्वर चंद विद्यासागर, स्वामी विवेक नन्द जइसन समाज- सुधारक लोग नव जागरण काल में कईल”

(महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रिय हिंदी विश्वविद्यालय के शोधर्थी मन्नू राय के आलेख ” भिखारी के सामाजिक चेतना” भोजपुरी जिनिगी पृ ६ अंक अक्तूबर २००९-मार्च २०१० से साभार)

“ठाकुर जी आपन लोक नाटक के स्थानीय सामाजिक समस्यन से जोडत रहेले जैसे व्यक्तिगत मुक्ति आ समाज कलायन के काम चले लगत रहे.
लोकनाटक के माध्यम से भिखारी भोजपुरी के क्षेत्र में जमाखाल रुदिवादी व्यवस्था के सोर से उखार के फेके में आपन न भुलावे वाला भूमिका निभइलंन जेकरा हमेशा इयाद कइल जाई. औरतन के पर्दा से बहरी आवे खातिर प्रेरित कइलंन आ खुलल आँखिन से समाज के देखे के दृष्टि देलन. जानना पर होखे वाला अत्याचार, अंधेरगर्दी के खिलाफ भिखारी जेहाद छेड़ देलन. छोट उमिर में होखे वाला विआह बाल बिआह, बुड्ढ के साथै छोट उमिर के लड़की सन के विआह विधवा के साथै अमानवीय वेवहार जइसन समस्या आ मुद्दा के संगे संगे रुढ़िवादी, कुरुतियाँ आ अंध विश्वास के जम के उठवलन आ सार्थक ढंग से चोट कइलन उनकर ई सोच पर विचार देत रामनिहाल गुंजन के मानल बा की ” भिखारी ठाकुर जी भोजपुरी के शेक्सपियर कहल जानी बाकिर हमार विचार से बिखरी आपन रूढीमुक्त आ प्रगति शील सामाजिक दृष्टिकोण के चलते भारतेंदु के जादे करीब रहस,एही से उनका ‘भोजपुरी के भारतेंदु’कहल जादे उचित होई।”

भगवती प्रसाद द्विवेदी के हिंदी आलेख ” भोजपुरी के जनगायक : भिखारी ठाकुर” के हिंदी आलेख आजकल (हिंदी पत्रिका), नई दिल्ली के सितम्बर २०१० अंक के ‘दीर्घा’ स्तम्भ पृ.संख्या ४७ से उधृत )
डॉ. जयकांत सिंह जय जे एल. एस. कालेज मुजफ्फरपुर बिहार में भोजपुरी के प्रोफेस्सेर बानी के कहनाम बा की ” भिखारी ठाकुर जी आपन अनुभव आ काव्य प्रतिभा के बदउलत अपना समय आ समाज के तमाम समस्यन, बुराइन, आ कम्जोरियन के विषय बना के भोजपुरी के लोकधर्मी नाटक के कर के समाज के बीच लोक मंच के रचनो कइलन”

डॉ. जयकांत सिंह जय के आलेख : “भोजपुरी नाटक के विकाश में भिखारी ठाकुर के योगदान” भोजपुरी जिनिगी पृ २७ अंक अक्तूबर २००९-मार्च २०१० से साभार)
समाज के आपन नियत के बारे में साफ साफ कहल बिखरी के ईमानदारी आ पारदर्शी व्यतित्व के परिचय देला. भिखारी ठाकुर पर पीएच.डी करे वाला भोजपुरी के विद्वान तैयब हुसैन पीड़ित जी के मानल बा की ” साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, सामंतवाद और अध्यात्मिकता के संश्लिष्ट ताने बाने से परिचित हुए बिना भिखारी ठाकुर जी कुछ कर नहीं सकते थे, जो अपने समय में आजादी के लडाई का सूत्र नहीं पकड सका वह इन सबो के परिणाम की व्याख्या ऊपर ऊपर ही कर सकता था. उनकर ‘ सूत्रधार’ उपन्यास लिखने वाले उपन्यासकार संजीव ( जो स्याम ई संगोष्ठी में सामिल बानी) ने भी एक बार इन पंक्तियों के लेखक को भिखारी ठाकुर जी का यथार्थ बताते हुए कहा था ” भिखारी ठाकुर जी जब भी आगे बढ़ना चाहते हैं, तुलसी उनकी राह रोककर खडे हो जाते हैं”
भिखारी आपन नाटक कलयुग बहार (पियवा नसइल) के पियक्कड़ पति के दुरवेवहार पर लोग थू थू करे पर मजबूर करत बाड़े साथै साथै ‘नशा’ के आदत से होखे वाला समस्या से जागरूक करत बाड़े.
बेटी वियोग (बेटी बचवा) में बुढ वर से आपन विआह पर बेटी के वियोग बड़ा कारुणिक बा
” रूपया गिनाई लिहल पगहा धराई दिहल
चेरिया के छेरिया बनवल हो बाबूजी ”

‘गंगा असनान से धार्मिक रूढी वादी आ ढोग के विरोध बा त महतारी के प्रति बेटा -पतोह के कर्तव्यबोध के पाठ बा।’ भाई विरोध’ नाटक संजुक्ता परिवार टूटे के कहानी बा जहवा पूजीवादी समाज के परिणति बा. श्रम आ पूंजी के विषमता दु गो भाई में बंटवारा के नौबत ले आवत बा”

तैयब हुसैन पीड़ित के लिखित हिंदी पुस्तक : भारतीय साहित्य के निर्माता “भिखारी ठाकुर” के मोनोग्राफ, पर. साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली में
दिहल आलेख ” भिखारी ठाकुर : साहित्य और रंगकर्म की सामाजिक सार्थकता:के पृष्ट स. ९४-९५ से साभार)

भिखारी के सबसे विख्यात नाटक ‘विदेसिया’ (बहरा बहार) आजो सामाजिक चेतना के झकझोर देला। आखिर गाँव से सहर को ओर पलायन काहे बा ?
भिखारी के सबसे तगड़ा नाटक ‘गबरघिचोर’ मानल जले। घिचोर बहार के नैयिका के पति के लमहर वियोग से जवन विचलन बा आ ई विचलन से पैदा भईल जमाल के समाजिक मान्यता आ पुरुष प्रधान में माता के अधिकार के सुरक्षित रखे के बात भिखारी कहत बाड़े। भिखारी लमहर पति वियोग से भइल विचलन के भी जाइज मने के पक्ष में खड़ा लउकत बाड़े। पुत्रबध, विध्वविलाप भाई विरोध आदि में खून खराबा के दुसल गईल बा।
” भिखारी ठाकुर के नाटकन में स्त्री के सामाजिक स्तिथि, समस्या आ मनोविज्ञान के सामाजिक स्तिथि के गहराई से व्यक्त भईल बा। गबर गिचोर से लेके विधवा विलाप तक भारतीय ग्रामीण औरतन के दुरदासा भिखारी से छुपल नईखे। ईहो बात भिखारी से नईखे छुपल की भोजपुरी समाज में औरतन के दुरदासा के पाछे कवन कारन बा एतने बा कऐ बेर त ई पद के आचाम्भो होला की भिखारी के कविताई कबो एकदम से जिला ज्वर प्रान्त ज्वर देश के सिवान के लाँघ जला जैसे भिखारी कहत बाड़े
“जियाला पर कुत्ती कुत्ता कहेला पतोह पुता ”
ई बात एगो अमेरिकेन मुहावरा से ढे खानी मिळत बा जन्व्हा ई कहल जला
” son is son till he gets a wife but daughter is daughter all her life

मुन्ना पाण्डेय, दिल्ली विश्वविद्यालय के आलेख “भोजपुरी लोकरंग के वैश्विक कलाकार: भिखारी ठाकुर, अंजोरिया से साभार )
एही से हमनी कह सकिला की भिखारी ठाकुर के सगरो रचना आगू भी प्रासंगिक बा कहे की एह रचनन में जवान समस्या उठावल गइल बा उ आजू के समय में व्याप्त बा। जरुरत बा अईसन कज्करम के बौधिक कज्करम के जेकरा माध्यम से भिखारी ठाकुर के सगरो साहित्य पर संबाद हो सके जवना से आज के दिग्भ्रमित हॉट समाज के दिशा आ दशा मिल सके। अंत में डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना के शब्द में कहल चाहेब ” जेह्तारे कबीर जी के एक एक दोहा भारतीय जीवन के दर्पण बा ओसहिं भिखारी ठाकुर जी के नाटक के विषय में जेतना उनका समय में प्रासंगिक रहे ओतने आजुओ बा. काहे की जवान समस्या कालहु रहे ओह में तनको घटाव आजु नइखे. बाल बिआह होखे भा अनमेल विवाह दहेज़ परथा भा महाजनी दावं पेंच में, कुलही आजुवो सुरसा नियर मुह ववले खड़ा बा।”

डॉ. गोरख प्रसाद मस्तानाजी के आलेख : भिखारी ठाकुर एगो इयाद : भोजपुरी जिनिगी पृ 40 अंक अक्तूबर २००९-मार्च २०१० से साभार
एह प्रकार से भिकारी ठाकुर जी भोजपुरी भाषा के एगो अनमोल धरोहर बनी. भोजपुरी के जवन सेवा ठाकुर जी कइलन उ हमेशा सुनहला अछर खानी भोजपुरी साहित्य में चमकत रही। समाज के इ समन्वयक, मार्गदर्शक के हमार सन सत नमन।

आलेख : संतोष पटेल

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