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शहीदे आजम भगत सिंह

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शहीदे आजम भगत सिंह

शहीदे आजम सरदार भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एगो महान क्रांतिकारी रहलें। उनका रग-रग में देशभक्ति के भाव भरल रहे। इनकर जन्म 28 दिसम्बर, 1907 में लायलपुर जिला के बंगा गाँव (चक नं. 105) में भइल रहे। आज जगहा पाकिस्तान में बा। हालांकि इनकर पुश्तैनी घर आजुओ (पंजाब के नवाँ शहर जिला के खटकड़कला गाँव में बाटे। इनकर पिता सरदार किशन सिंह आ माता विद्यावती कौर रहलीं। इ सिक्ख परिवार के रहले बाकिर आर्य समाज अपना ले ले रहलें

शहीदे आजम भगत सिंह
शहीदे आजम भगत सिंह

भगत सिंह बचपने से जुझारू आ स्वाभिमानी प्रवृत्ति के रहलें। उनका आगा देश के आजादी के ललक ललकारत रहे। उहाँ का धकाधक जिनगी जीये वाला रहीं, धुक-धुक नादेश के मजदूर आ शोषित-पीड़ित सकेता पड़ल लोगन के उबारल उनकर आदर्श रहे। 13 अप्रील, 1919 के पंजाब के अमृतसर में जालियाँवाला बाग हत्याकांड भइल। उनका भीतर क्रांति उफान लेबे लागल। जालियाँवाला बाग में देश के आजादी खातिर सभा करत निहत्था लोगन पर जेनरल ओ. डायर अंधाधुंध गोली चलवइल रहे। सैकड़न लोग मारल गइल रहे। उनका जिन्दगी में एगो नया मोड़ आइल। बारह बरिस के उमिर में बारह मील पैदल चल के उहाँ गइनीं। देख के उनकर दिल दहल गइल। खून खौल उठल। लाहौर कॉलेज छोड़ के क्रांतिकारी संगठन सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोशियन से जुड़ गइलन।

जालियाँवाला बाग के नृशंस हत्या के नजारा देख के एकर खूनी बदला लेवे खातिर बेचैन हो गइनीं। एही बीच साइमन कमीशन के विरोध करत लाल लाजपत राय पर लाठी-चलल। ओही में उनकर मउअत भ गइल। उनकर मउअत आंदोलन का आग में घी के काम कइलस। भगत सिंह लाला लाजपत राय के मउअत के बदला लेवे के ठान लिहलेंलाला लाजपत राय पर लाठी चलावे वाला पुलिस सुपरिटेंडेंट सान्डर्स के गोलीमार के क्रोध शांत कइलनइ घटना सउँसे देश में लूत्ती लेखा फइल गइल

खून खराबा करे के उनकर मनसा ना रहे। बाकिर बहिरा अंग्रेजी साम्राज्य के कान खोलल जरूरी समझलन। उहाँ का एगो इन्कलाबी घोषणा कइनी कि बहिर सरकार के केन्द्रीय असेम्बली में बम के धमाका से चेतावल जरूरी बा। कार्यक्रम बनल। उनकर संघतिया बटुकेश्वर दत्त उनका साथ हो गइलन। 8 अप्रील, 1929 के केन्द्रीय असेम्बली बम के धमाका से दहल उठल। धमाका का सँग-सँगे इन्कलाब जिन्दाबाद के नारा लागल। चहिते त भगत सिंह भाग चलते। बाकिर उहाँ का भगली ना। अपना के गिरफ्तार करइलन। 31 मार्च, 1931 के दू बरिस के जेल यातना के बाद इनका फाँसी दिहल गइल। एह बीच जेल में लिखहूँ-पढ़हूँ के काम करत रहलन। फाँसी के तख्ता पर जाय के पहिले राह में एगो गीत गावत गइलन- ‘रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसंती चोला।’ भगत सिंह फांसी पर चढियो के अमर हो गइलन। आज उहाँ का नइखीं बाकिर देश के आजादी के जंग में उहाँ के योगदान कबो भुलाइल ना जाई

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