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गोधन : एगो लोक परब

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अमरेन्द्र जी
अमरेन्द्र जी

गोधन आने कि गउ माता के काया से जनमल संतति आ संपति। आजु भले हमनी के गाँव-नगर में रहत बानी जा, बाकी मानुख सभ्यता के सुरुआती दौर में हमनी के घुमंतु रहीं जा। आ ओह घरी हमनी के रोजी रोटी के मूल जरिया गोधन ही रहे।अभी हाल हाल तक माल मवेसी के तादाद प,तइ होत रहे के के कतना धनी चाहे समरथवान बा।

गोधन : एगो लोक परब

कातिक इंजोरिया दूज के मनावे जाए वाला एह पावन पबितर पवनी के बारे में पुरानिक चरचा बा कि किसुन भगवान गोखुला के गोवाल आ गोवालिन लो के बरखा, आन्ही, तुफान आ बरबादी से ओहन लो के धन-संपति के बचावे खातीर गोबरधन पहाड़ के कानी अंगुरी प टाँग ले ले रहीं। आ ओकरे छतरछाया में पूरा के पूरा गोखुला सुरछित रहल। एह लोक तेवहार के बरनन पछिम के इतिहास लिखवइया एबटसन, केनेडी आ रसेल भी कइले बाड़न।

हमनी के इलाका में दिवाली इ तेवहार गोपालक मनावेलन। गोपालक के संबंध कवनो खास जाति से नइखे) आजु के दिन बहिन लोग गऊ माता के गोबर जुटा के जम्ह(यम)आ जम्हिन (यमी) के रूप के मुरती गउ धन के गोबर से बनावेला।

आजु हम परेआस करत बानी कि एह तेवहार के लोक पक्ष के गवईं गीतन के लोक सोच -समझ आ परेम-भाव प बिचार कइल जाव।

अइसन लोक मानता बा कि भइया-बहिनी के बीच लइकाईं में परेम भाव के साथे साथे कबो कभार खिसी दी कि भी होखे के चाहिं। बहिन, भाई के निक जमुन बोलेली,चाहे सरापे ली त भाई के उमिर अरदोवाइ बढ़ेला।

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भोरहि में रेंगनी के काँट,आपना जीभ में गड़ाइ-गड़ाइ के आपना कपार प से ओईंछ के बहिन आपना भाई के सरापत बाड़ी। एकर भाव देखीं:

हथवा में लेई के रेंगनी के काँट
गोदीं हम आपन जीभिआ आ गात
मर ए अमुक भइया दिहींना सराप
भउजो के उजरो सेनुरिया अहवात

सब चीझु जुट गइल बा।गाइ के गोबर,बूँट,सरापल काँट कुस पेजा के सब समान।जम्ह,जम्हिन के साथे नाग नागिन बिछी कनगोजर आ अउरि बिखहर जीवन के मुरती बनल रहल बा।एगो भाव गीत में देखीं:

बहिनी जुटावस गऊ गोबरिया-
चलेली गोधन कुटे हो-
हथवा में लेई के मुसरिया-
चलेली गोधन कुटे हो-
खोजि लावस कंटवा रेंगनियाँ-
चलेली गोधन कुटे हो-
भईये खातीर करेली पूजनियाँ-
मनवा में लडू फुटे हो-

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गोबर के मुरुती के सजावट हो रहल बा।बहुत तरह के समान जुटावल बा।जव के दाँत, कउड़ी के आँखि,सन के केस आ इंगुर, सेनुर, काजर, आंकड़ पथर, झाँवा आ फुटल मेटा भा गगरी से बहिन लो सजावे धजावे में लागल बा।एह में गाँव के बड़ बुढ़ नाया पुरान ननद भउजाई सभे जुटल बा।गीति गवा रहल बा।एगो भाव देखल जाव:

आजु पूजीं हम मोहन पूजीं हम गोधन
पूजिना देव पीतर डीहवार-
कर जोरि करिं गोधन से अरजिआ
करीं मोरा भइया के सुतार-
भइया के दिहीं माया अउरि काया
खुश राखीं भइया के हमार-
दिहीं रउआ अन धन अउरि गोबरवा
अनजानो बहिनी करेली गोहार-

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सब चीझु तइआर बा।सब लो अपना-अपना हाथ में मुसर, डांटा ले लेले बा।अब गोधन के कुटाई होई। एकर भाव का बा, तनि देखल जाव:

आबरा इ कुटेली जबारा इ कुटेली
कुटेलि जम्हिनिआ जम्हामवार-
कुटेली अलईया कुटेली बलईया
कुटेलि मुदइया के कपार-
दुखवा ई कूटेलि दलीदर कूटेली
संघवा में भूत दूत बयार-
सुनिं ए गोबरधन हमरो अरजिआ
हाथ जोरि करिना गोहार-
अजेय विजेय के दिहीं असीसिआ
सुनीं ए गोबरधन पहार-
भईया के सतिआ करेनी बरतिआ
हाथवा में पूजवा के थार-
भइया के धन दीं अउरी इजतिआ
पूरा करीं सारधा हमार-

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गोधन कूटा गइल।सब दुख बलाय कुटा गइलन।गोधन के भीतर से बूँट,जौ निकाल के बहिन लो आपना आपना भाई के परसादी देत बा लो,जवना के *बजड़ी भा बजरी* कहल जाला।ऐगो बिजय के आसीरबाद बा,ओकर भाव देखल जाव:

कवन भईया खेलेलें अहेरिआ-
कवन बहिनी देली असीस-
राम भईया खेलेलें अहेरिआ-
अनजानो बहिनी देली असीस-

कवन बहिनी बाँटस बूँट बजरीआ-
कवन भईया देलन बकसीस-
अनजानो बहिनी बाँटस बूँट बजरिआ-
लछुमन भईया देलन बकसीस-

साथ ही एगो आउरि बानगी बा:

भईया हो भईया सुन मोरे भईया-
तोहरा के दिहीं हम अगध बधईया-
गोबरधन पूरइहें तोहरो सारधवा-
बहिनी के रखीह तु हियरे के पास-
गोहन से करीं निहोरवा ए भईया-
तोहरा के•••••

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आ अंत में एगो झूमर के भाव में झुमत गावत जात बा।सब लोग अपना अपना भाई खातीर पीड़िया लागावे ला ओहि गोबर में से आपन आपन हिसा ले ले बा। एगो भाव:

आहे बहिनीजी गंउवा नगरिया जी,
देखीं गोधन कुटाता-
लागी गइले मेला बजरिया जी,
सुनीं मंगल गवाता-
मंगल गवाता आ मन हरसाता-
होखत बा चारो ओरे खेलवा तमाशा-
अऊरी बँटाता मिठईया जी,
देखीं गोधन कुटाता-

कुटेली भउजइया कुटेली ननदिया-
टोलवा परसोवा आ गोतिआ देअदिआ-
बजरी बँटाता आ नेगवा दिआता-
दिहें गोबरधन असीसिया जी-
देंखी गोधनकुटाता-

अमरेन्द्र/आरा

छठ प लिखल अमरेन्द्र जी के एगो आलेख

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