परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा उदय शंकर जी के लिखल कुछ भोजपुरी कविता, पढ़ीं आ आपन राय दीं कि रउवा उदय शंकर जी के लिखल भोजपुरी कविता कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि शेयर जरूर करी।
मरन
हम अकेले बइठ के कुछ सोचत रहनी
गाल पे रख हाथ कुछ देखत रहनी
तलेक कान में कहीं से घंटी के आवाज गइल
निंद टुटल, होश उड़ल अउर दरद भइल
एगो सवारी लेट, पचाटी पे चलल
आगी, माला,फूल,पानी सब संघे बढल
कवन देश-दुनिया अउर राह में चलल
सब छोड-छाड राज सिंहासन बस चल पड़ल
कर आंख बंद चुपके से चुपचाप भइल
हाथ फइलल, गोंड पसरल अउर सब सन्न भइल
सोर-सराबा, हलला-गुलला के भी ना पता चलल
देख इ सब दिल में जोर से दरद उठल
ज्ञान-विज्ञान अउर संज्ञान सब फिका पडल
कवन देश हऽ आज तक ना केहु के पता चलल
हसत खेलत कूदत नीमन रहल
तनी देर में का भइल ना केहू के पता चलल
दिल दरद पिडा से भरल, आंख रो पड़ल
भगवान अउर इंसान में तब फरक मिलल
कुछ बा इंसान के सिवा जे इ दूनिया चलावेला
आज इ देख अउर सोच के मालूम चलल ।
मजबुर
खुन के छिट्टा पडल, अउर पागल हो गइल
ना कवनो जुर्म कइलक, कवन दुनिया में खो गइल
जब तक उ रहे दिवाना, शान अउर पहचान के
सब केहू घुमत रहे, लेके ओके हाथ पे
आज समय अ्इसन आइल बा, लोग फेंके ढेला तान के
कहां गइल मानवता, सभे हंसे जोर से ठान के
सब केहू कहेला ओके, पागल भइल बा जान से
रख जवाना देखें अपना के, ओके जगह पे ध्यान से
मिल जाई सबुत जे दरद के , ओके स्थिति जान के
छोड़ दी मारल ताना, ओके आपन मान के ।
बेलना-चौकी
तोहरा का बनेके बा
बेलना या चौकी
बेलना दबावेला, बजावेला, घुमावेला
चौकी देखेला, सहेला, निभावेला
चौकि जानेला, मानेला, पहचानेला
बेलना कुचलेला, उछलेला, ठुकरायेला
बेलना जब-जब फिसलेला
चौकि तब-तब रोकेला
बेलना बार-बार उमड़ के जायेला
चौकि रुक शांत हो मुसकरायेला
दुनु के कइसन मेल बा
बेलना अउर चौकि के कइसन खेल बा
एगो शान्ति के पहचान हऽ
दुसर हुरदुग के निशान हऽ
अगर एगो शान्त होके ना सहित
रोटी अच्छा कइसे होइत
कइसे पेट भराइत
रोटी कइसे भाइत
चौकि बेलना के अंतर जानऽ
का बनेंके बा तु पहचानऽ
रोपया
रोपया के ना कवनो जात
जे के ज्यादा उहे बाप
उहे दादा उहे भाई
चाहे हो कईसनो कमाई
रोपया से समान मिलेला
जित धरम अउर शान मिलेला
रोपया से सब कुछ खरीदाला
कोट कचहरी अउर न्याय बिकाला
रोपया में बा अ्इसन बात
रोपया के ना कवनो जात
रोपया से ही राज भइल बा
रोपया से ही काज भइल बा
रोपया पे ही टिकल बा सांस
रोपया नाही त छुटे साथ
रोपया हटे सबके नाथ
रोपया के ना कवनो जात
रोपया से जिंदगी रोपाला
कुर्सी,सता अउर साज भेटाला
रोपया से बा सुख,चैन,आराम
आदमी नाही रोपया के होला नाम ।
रोटी
बड़ी अजीब दुनिया बा
रोटी उजर तावा करिया बा
केहु पकावे केहु खाये
कुर्सी पे बइठ हाथ हिलाये
जे पकाय जरल खाये
सुन्दर रोटी कुर्सी के भाये
खुन जरे पसिना आये
तावा पे जाके सुन्दरता लाये
जे खुन जराये पसिना लाये
ओके खाली दुख भेटाये ।
जंगल
जंगल हऽ देश के थाथी
जे में रहे हाथी
गाछ, पेड़ बरसाती
चिता, शेर अउर कई गो जाती
जंगल हऽ देश के थाथी
जे में रहे सब जानवर के निवास
सब चिड़ियन के रहे वास
जड़ी बुटी के सब प्रजाती
जंगल हऽ देश के थाथी
सब फल के भंडार भेटाये
तरह-तरह के फुल खिलाये
हवा बहा बरसात कराये
लोगन के हऽ संघाती
जंगल हऽ देश के थाथी
अइसन कहवा इयार भेटाई
धुप सह, छांव भेटवाई
जिवन मे खुशहाली लाई
जियत जिवन मरत लकड़ी दे जाई
हटे जिवन के बाती
जंगल हऽ देश के थाथी
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
सब कुछ पावे के जे हमरा
लागल बा दिल पे चोट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
दे सकऽ तऽ तू दऽ
प्रेम अउर आराधना
कर सऽकी हम पूजा अउर प्रार्थना
ना रहे मन में दूख अउर खोट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
जग जानता हम जानतानी
सब बेकार बा तोहरा सिवा, ई मानतानी
फिर काहे मन घोटता
सब कूछ पावे ला खून के घोट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
दऽ तू हम पे एतना पहरा
छोड़ दी सब कूछ, पे तोहरा
अउर ले सकी तोहर गोंड में ओट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
मन के गति बा सबसे तेज
कइसे करी ऐसे परहेज
करें के चाहतानी तोहके भेंट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
तू बनऽ हमर संघाती
हम बनी दिया अउर तू बनऽ बाती
बस मन के तू ल पोट
हे प्रभु!
मिटा द मन के लोभ
मिठ्ठा
मिठ्ठा के गोली, भेल्ली कहाला
कई गो दवाई में, काम आ जाला
गनना के रस पाक के भेलली हो जाला
चना के साथ सबेरे खोजाला
गोर होय या करिया सस्ता बिकाला
चिउड़ा फूला के ओमे मिसाला
मरचा आ नुन संगे धराला
सट-सट सबके खुबे घोटाला
भुजा के संगे भी कट-कट कटाला
पानी में डाल के घट घट घोटाला
पेट के साफ करें, जब पेट में इ जाला
हरानी थकानी में चूसती बुझाला
किसान मजदुर के भात, मिठ्ठा से सनाला
देख के खाना मुस्कान आ जाला
गरीब दुखीया के साथी कहाला
खिचड़ी में मिठ्ठा भरपुर खरीदाला
लाई तिलुआ में खुबे डलाला
पुजा में ई भगवान ला धराला
एके बड़ाई सब जगह सबसे भेटाला
गांव, देहात, शहर हर जगह विकाला
हर घर में ई जरुर मिल जाला ।
स्कूल
ज्ञान के अंगना में आवऽ,
फिरु से हम पलि बढ़ी
कहीं हिम्मत, कहीं बेहिम्मत,
मिल के हम इतिहास गढ़ी
कबो सर जी के आहट से
चारों ओर सननाहट से
ज्ञान से अजोर करी
आवऽ फिर हम जोर करी
कबो कबड्डी, कबो क्लास
कबो झगड़े के प्रयास
हर बात में रूठा रुठी
नादानी में सब कुछ छुटी
एक साथ में खाना खाई
संघे-संघे मिल सब गाना गाई
मस्ती में सवाल बनाई
हल्ला हुरदूंग सबसे कराई
आवऽ फिरु स्कूल जाई
सुबह सुबह हम जल्दी जागी
माई के अचरा से हम भागी
बाबु जी से पइसा मांगी
खाना ले हम घर से भागी
रास्ता में हुरदुंग मचाई
आम चोरा, अमरूद पे जाई
बुढ़िया के हम खुब चिढ़ाई
सुन्दर सुन्दर गाली पाई
घर पे ओरहन रोज भेजवाई
आवऽ हम स्कूल जाई
ना कवनो डर, ना भय सताई
विज्ञान, गणित खुब रचाई
फिर भी हमेशा जिरो आई
बाबु जी से खुब थुराई
माई के अचरा में छुप जाई
आवऽ हम स्कूल जाई
अंग्ररेजी में ना रहे दिलचसपी
लागे जईसन भीगी बिल्ली
भुगोल लागे घर की चैहददी
अ्इसन आपन दिमाग के गद्दी
एक साथ हो हाथ मिलाई
आवऽ फिरु स्कूल जाई
कबो दुआ, कबो सलाम
कबो गोड छु, कबो हाथ जोड़ प्रणाम
ना कवनो जाति के अपमान
मस्त मौला मस्त विचार
सबके एक बराबर सम्मान
एक बोलाहट दउडल जाई
सर जी के काम में हाथ बटाई
अ्इसन आपन ऊचा विचार
हम उ स्कूल के करी बार बार प्रणाम
जवन जगह हऽ ज्ञान के जननी
प्यार अउर अजोर के जननी
अ्इसन जगह में घुल मिल जाई
आवऽ फिर हम स्कूल जाई
नाम- उदय शंकर प्रसाद
पिता – बासुदेव प्रसाद भगत
माता- सरोज दवी
शिक्षा- परा स्नातक (फ्रैच )
डिप्लोमा – इटालियन
सटिफिकेट कोरस – पोलिस
पि. जी. डिप्लोमा – थियेटर एंड आर्ट
पता- नवकि बजार, सरकारी अस्पताल के पिछे
थाना- बगहा -१
जिला- पंशिचम चम्पारण
राज्य -बिहार
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Uday shankar prasad ki likhi kuchh kavita yatharth jiwan ko darshata hai. Mujhe kafi achhi lagi
धन्यवाद !