परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आयीं पढ़ल जाव देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल ४ गो भोजपुरी कविता, रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल रचना अच्छा लागल त शेयर आ लाइक जरूर करी।
कइसे धरीं धीर
नीक होला जवन सभका खातीर
ओह के काहे घिनौना मान बइठेल,
जवन आसन बा त्याग तपस्या के
काहे मौत बिछौना के मान बइठेल।।
हम त जहरो पी के हरदम धीर धरीं
तनिए सा मिलल का तुं त अइंठेल,
विधना के रचल अनमोल भाव के
काहे खातीर बौना मानिके बइठेल।।
लीन बा जे करम कमाइ के तप में
ओकरा के सपनो में कबहीं तुर मति,
फुल फुलाइल मानवता के धाम के
जीनीगी भर कबहीं छोड़बि मति ।।
कल्पना से पावल बल घमण्ड होला
छन में लउकी आ छनही बिला जाई,
सदाचार के राहि चलिके जवन मिली
लोभ परदा डललो प उ भुला पाई।।
हर लोगवा हमरा से रहे डेराइल
देवेन्दर ना चलिह अइसन चाल,
खाली नीमन बेवहारन प भइया
फालतु के खाली मति बजइह गाल।।
छद्मी गली के बड़का घर में
कतनो सइंचब लमहर माल,
अइसन राहि प चलब जब तक
मिली बम बारुद अउरी बवाल।।
चटकल दीयना
नेह खेत के माटी से बनल
अजबे चमकत दीयना रहे,
गाँव जवार जे जे भी देखल
अंजोर करी इ सभे कहे।।
समरपन के पानी से सानल
मेहनत के माटी चिकनाइल,
आखर भाव के घाम तले
अचके दीयना छितराइल।।
बिन आवाज के दीया फूटल
कतनो जोड़नी नाही जुटल,
आस लावल भइल बेमानी
लागे ओखरी में मुड़ी कुटल।।
घरहीं के संइचल दीयना में
नीयत के तेल भरवले रहीं
जाने दीयना काहे भभकल
राय इ मरम कहवां कहीं।।
तन छनके तातल तावा प
तीन पइसा बड़ुए कमाई
सोझा तेरह पइसा गइल,
हम भकुआइल सोंचतानी
हमरा साथे काहे अइसन भइल।।
कतहीं जाके कतनो खोजी
ना होखतरुए समय प भेंट,
आवे गबुदना घंटा भ देरी से
कहे कहंवा बड़ुए तनिको देर।।
बन्द बा मन के बजर केवाड़ी
छनभर में बात में लेले लपेट,
केकरा प करीं भरोसा जग में
अइसने मिले लोग सेंट परसेंट।।
मन अझुराइल अजबे लपेटाइल
तन छनकता तातल तावा प,
सभकुछ हम आपन सौंपतानी
सोंचल समझल सभ रावा प।।
काटिल करेज राय पेट में समाके
मुँह प बात कल पीछे गरियाके,
लपटा जस लपटा जा लोभ में
जीनीगी में आगि लगाके।।
कवन पाठ पढ़ीं
दिन दुपहरिए में दरकल बा मनवा के गढी़,
सोझा किताब बा बुझात नइखे का हम पढ़ीं।
जाने छनही में इ कइसे बदल जाता रुप,
बिचार के चढ़ाई प कहीं कइसे हम चढ़ीं।
इहे सिखावत बा अब गली-गली में लोग,
आपना अंचरा के दोस रोज दोसरे प मढ़ीं।
छनही में छनकिला हमरा छुटतरुए गरमी,
केहु बतावत नइखे एह में तरीं आकि सरीं।।
दुलरुआ देवेन्दर के मन अजबे भकुआइल बा,
अइसन तातल भुभुरी में बताईं जीहीं कि मरीं।
(देवेन्द्र कुमार राय,ग्राम+पो०-जमुआँव,थाना-पीरो,जिला-भोजपुर, बिहार, पिन-802159)
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