कबड्डी-भोजपुरी-प्रदेश का यह सबसे प्रसिद्ध तथा लोकप्रिय खेल है। इसे लड़के तथा वयस्क समान रूप से खेलते हे। कबड्डी के इस खेल ने अब अन्तर-राष्ट्रीय ‘स्टेटस’ को प्राप्त कर क्रिया है। प्रति चौथे वर्ष संसार के भिन्न-भिन्न देशो जो अन्तर-राष्ट्रीय ओलम्पिक खेलों का आयोजन होता है उसमे कबड्डी का भी स्थान प्राप्त है। समस्त भारत से चुनकर कबड्डी के खिलाडियों की टीम इस खेल में सम्मिलित होती है और प्राय विजयश्री प्राप्त करती है। इस प्रकार यह खेल बहुत ही लोकप्रिय हो गया है।
कबड्डी के खेल में बालको का समुदाय दो दला में विभक्त हो जाता है। प्रत्येक दल में कितने बालक होगे इसकी कोई सख्या निश्चित नही है। इस खेल के प्रत्येक दल मे पन्द्रह-बीस लड़के भी हो सकते हैं परन्तु कम से कम दो लडको का होना आवश्यक है। खेल के मैदान में दोनों दलो के बीच में एक रेखा खींच दी जाती हैं। प्रत्येक दल इसी रेखा के एक-दूसरी ओर आमने-सामने खड़ा हो जाता है। हाकी या फुटबाल के पल की ‘मॉनि इन खिलाडियो के बड़े होने का कोई स्थान निश्चित नही है। वे स्वतन्त्रतापूर्वक अपने दल में जहाँ भी चाहे वडा रहकर खेल खेल सकते है।
खेल प्रारम्भ होने के पहले कौन-सा दल पहिले खेल खेलेगा इसका निश्चय ‘टॉसिंग’ के द्वारा किया जाता है अर्थात् किसी सिक्के को आकाश में उछाल कर उसके चित्त या पट होने के अनुसार निर्णय है। जो दल पहिले खेल को शुरू करता है, उस दल का एक सदस्य, उस ‘सौमित्र रेखा’ को पार कर दूसरे दल में प्रवेश करता है और उस दल के किसी व्यक्ति को छूकर अपने दल मे भागकर चला जाता है। दूसरे दन में जाते समय यह खिलाडी कबड्डी, कबड्डी, कबड्डी आदि शब्द की पुनरावृत्ति करता जाता है जिसे “कबड्डी पढ़ाना” कहते हैं। यदि इस शब्द का उच्चारण करते हुए वह दूसरे दल के किसी के अग का स्पर्श कर यदि अपने दल मे भागने में सफल हो गया तब उसकी जीत समझी जाती है और जिस व्यक्ति को उसने छुआ है “वह मर गया” ऐसा घोषित कर दिया जाता है। इस प्रकार ‘भरे हुए व्यक्ति का खेल में भाग लेने का तब तक अधिकार नही मिलता जब तक प्रथम दल का कोई खिलाड़ी भी न ‘मर जाय’ यदि “कबड्डी’ वाले बालक को “साँस टूट जाय और दूसरे दल वाले अपनी सीमा में ही उसे छू दें तो यह भी मर जाता है। इसलिए यह खिलाडी इस बात का सदा प्रयास करता है कि साँस टूटने के पहले ही वह अपने दल मे लौटकर वापस चला जाय। एक दल वाले दूसरे दल के ‘कबड्डी पढ़ाने वाले खिलाडी को पकड़ने की कोशिस करते हैं जिससे उसकी साँस टट’ जाय और वह मर जाय। वह खिलाड़ी दूसरे दल के अधिक से अधिक जितने भी व्यक्तियो को छकर भागने में समर्थ होता है वह उतना ही उत्तम तथा चतुर समझा जाता है। ‘कबड्डी’ पढ़ाते समय खिलाडी इसके अतिरिक्त कमी-कमी ये बोल भी बोलते है।
आम छू आम छू कउडी भनक छु। आम छू, आम छू कउडी झनक छु।
आव तानी हो, परह जनि हो । टाँग जाई टूठी, कपार जाई फूठी,
ए कबडिया रेता, भगत मोर बेटा। भगताइन मोरी जोरी, खेलबि हम होरी॥
इसके अलावा नीचे के बोल मे कबड्डी खेलने का भी उल्लेख हुआ है।
एक कबडिया अईलें, तबला बजाइले। तबला मे पईसा, लाल बगइचा॥
कबड्डी के खेल में कुछ खिलाडी कुछ दूसरे ‘बोल’ भी बोलते हुए पाये जाते है। जैसे–
चल कबड्डी धाइले, तबला घुडकाइले। तबला मे पइसा, लाल बगइचा॥
इन बोलो का कोई अर्थ नही होता। विभिन्न शब्दो को लाकर यहाँ जोड़ दिया गया और इस प्रकार एक तुकबन्दी तैयार कर दी गयी है। इन बोलो का अभिप्राय केवल इतना ही है कि दूसरे दल वालो को यह पता लगता रहे कि ‘कबड्डी पढाने वाले खिलाडी की साँस अभी टूटी नही है।
कबड्डी का खेलते समय जब किसी दल के-एक को छोडकर-दूसरे दल मे चुपचाप खेलने के लिए प्रवेश करता है। इसे ‘गूगी” कहते है। यह खिलाडी बिलकुल भी नही बोलता और मौन रहते हुए दूसरो को छूकर भागने का प्रयास करता है। इस खिलाडी के प्रतिद्वन्द्वी इसे पकडकर ‘गुदाते है तथा इसे बोलने के लिए बाधित करते है। ज्योही यह बोल देता है उसी समय यह मर गया’ समझ लिया जाता है और इस प्रकार खेल समाप्त होने पर ‘गुंगी’ के विरोधियों की जीत समझी जाती है। परन्तु अब हार-जीत की गणना ‘प्वाइन्ट’ से की जाने लगी है।
कबड्डी का खेल बडा स्वास्थ्यवर्धक है। इसमे दौडने के कारण पैरो को और धर-पकड के कारण हाथो का व्यायाम हो जाता है। तेज दौडने से शरीर मे स्फूर्ति भी आती है और रक्त का संचार शीघ्रता से होने लगता है। इसमे शारीरिक शक्ति को छोड़कर खेल के किसी अन्य उपादान या सामग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती। अत यह बडा ही सस्ता और सरल खेल है। नदी के बालुकामय तट पर खेत मे, मैदान मे, किसी बाग-बगीचा मे कबड्डी का खेल रचाया जाता है। अहीर के बालक अपने गायो को खेतो मे चराते समय इस खेल को खेलते है। आम के बगीचो की रखवाली करने वाले किसानो के लडके, अपने बगीचे मे ही इस खेल का आयोजन करते है। कहने का आशय यह है कि वर्षा-ऋतु को छोडकर कबड्डी का खेल किसी भी मौसम मे और किसी भी मैदान में खेला जा सकता है।
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