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भोजपुरी के हजार बरिस : सदानन्द शाही

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भोजपुरी के हजार बरिस
भोजपुरी के हजार बरिस

भोजपुरी के इतिहास हजार बरिस से पुरान हवे। भोजपुरी के लिखित रूप के उदाहरण बहुत पहिले से मिलेला।चौरासी सिद्धन के कविता में भोजपुरी के क्रिया रूप मिलेला। आगे चलि के गोरखनाथ के बानी में भोजपुरी के विकसित रूप देखाई परेला। गोरखनाथ के गुर कीजै गहिला निगुरा न रहिला / गुरू बिन ग्यान न पायला रै भाइला जइसन कई गो भोजपुरी कविता मिलेली। ओकरे बाद कबीर के बानी में भोजपुरी कविता मिलेली ।’झीनी झीनी बीनी चदरिया /काहे क ताना काहे के भरनी, कौने तार से बीनी चदरिया’ जइसन भोजपुरी कविताई के उदाहरण भरपूर मिलेला।कबीर दास के बाद ओनइसवीं सदी ले भोजपुरी में लिखे वाल निरगुन संतन के बहुत लमहर परम्परा बा।

धरमदास, कमालदास, पलटू साहेब, लक्ष्मी सखी, दरिया साहेब, शिवनारायण, गुलाल साहेब जइसन संतन कीहां भोजपुरी कविता के धारा अबाध रूप से बहि रहल बा। संतन के भोजपुरी कविता जेतना छपल बा ओसे कई गुना छपले के इंतजार में बा। संतन के भोजपुरी बानी कैथी लिपि में बा। बलिया के संत शिवनारायण के कैथी में लिखल पोथी कुलि शिवनारायणी सम्प्रदाय के मठन में भा, भक्तन के घर में धइल बाड़ि स। उनकर खाली पूजा अर्चना हो रहल बा।भोजपुरी इलाका में निरगुन संतन के परम्परा एतना जियादे बा कि भोजपुरी लोकगीतन में निरगुन गायकी के बहुत सम्पन्न विरासत मौजूद बा।

ओन्नइसवीं सदी के अन्त से आजु ले भोजपुरी में साहित्य रचना हो रहल बा। सरस्वती पत्रिका में छपल हीरा डोम के अछूत कविता होखो भा रघुवीर नारायण के बटोहिया होखो-भोजपुरी के कविता में आजादी आ नवजागरण के भावना गूँजत रहे। राहुल सांकृत्यायन आ महेन्दर मिसिर से ले के गोरख पांडेय आ प्रकाश उदय ले भोजपुरी रचना लगातार हो रहल बा। भोजपुरी के एगो रूप भिखारी ठाकुर के नाटकन में मिलेला त दुसरका रूप लोहा सिंह, (रामेश्वर सिंह कश्यप) के रेडियो रूपकन में भी मिलेला। महाकाव्य से ले के गीत, उपन्यास, कहानी, नाटक, निबन्ध कहले के मतलब कि साहित्य के सज्जी रूपन में भोजपुरी रचना हो रहल बा।

लिखित साहित्य के अलावा भोजपुरी के लोकसाहित्य के भण्डार अलगे बा। राहुल सांकृत्यायन, रामनरेश त्रिपाठी, हीरालाल तिवारी, आ कृष्णदेव उपाध्याय से लेके राम नारायन तिवारी ले भोजपुरी लोक साहित्य के खोजनिहार लोगन के झड़ी लागल बा। बाकि इ कहल मुश्किल बा कि केतना साहित्य जउरिया गइल बा, आ केतना बचल बा। भोजपुरी के कहावत आ मुहावरा में एह भाषा के रचनात्मक क्षमता के अन्दाज लगेला। भोजपुरी लोकगीतन के साहित्यिक श्रेष्ठता के बारे में एगो प्रसंग मन परेला। रामनरेश त्रिपाठी के नाव सभे जानत होई। भोजपुरी लोकगीतन के जुटवले आ जोगवले में रामनरेश त्रिपाठी के नाव पहिले पंघत में आवेला। रामनरेश त्रिपाठी ग्रामगीत नाव से भोजपुरी के गीतन के खोजि के संग्रह तइयार करत रहलें। एही बीचे एक बेर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक मालवी जी से भेंट भइल। मालवी जी उनसे पूछलें कि का करत हउव। त्रिपाठी जी बतवलें कि भोजपुरी के गीति जउरियाव तानी। मालवी जी उनका से कवनो गीत सुनावे के कहलन। त्रिपाठी जी इ गीत सुनवलें।

बाबा निबिया के पेड़ जनि कटिह
निबिया चिरइया बसेर। बलइया लेउ वीरन।
बाबा बिटिया के जनि केहू दुःख देहि
बिटिया चिरैया के नाईं। बलइया लेहु वीरन।
सगरे चिरइया उड़ि जइहैं, रहि जइहैं निबिया अकेल। बलइया लेहु बीरन।
सगरे बिटियवा चलि जइहैं, रहि जइहैं माई अकेलि। बइलया लेहु……..वीरन।
एह पर मालवी जी बहुत खुस भइलन आ कहलन कि इ कालिदास के टक्कर के गीति बा। कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम के चारि गो श्लोक बहुत प्रसिद्ध हवे। ओमे एगो ह-
यास्यति अद्य शकुन्तलेति हृदयं संस्पृष्ठं उत्कंठया
कण्ठः स्तम्भित बाष्पवृत्ति कलुषश्चिन्ता जडं दर्शनम्।
वैक्लव्यं मम तादीवदर्शमिंद स्नेहादरण्यौकसः
पीडन्ते गृहिणी कंथ नु तनया विश्लेषदुखैर्नवैः।

एमे कण्व रिसि कह ताने कि शकुन्तला आजु चलि जइहें, ई सोचि के जीउ बइठि गइल बा। आंसू रोकले से गला एतना रुधि गइल बा कि मुंह से बोली नइखे निकलत। एही चिन्ता में हमार आँखि धुँधला गइल बा। जब बेटी के बिदाई पर हमरे अइसन बनवासी तपस्वी के ई हाल बा, त गिरहस्थ लोग के का हाल होई जेकर पहिले पहिल लइकी विदा होत होइहें। कालिदास बेटी के विदा भइले प बाप के दुःख के बयान कइले बाड़ें। एह लोक गीत में विदा होत बेटी आपन दुःख अपने बाप से कहतिया। बाबा नीम के पेड़ न कटिह।़। ए पर चिरइ बसेली। चिरइ नीबि के पेड़ पर रहेली फेर उड़ि जाली। नीबि अकेले रहि जाले। तुरन्ते बेटी के अपने माई के खयाल आवत बा। कहतिया एही तरे बेटी कुलि अपना अपना ससुरा चलि जाली आ माई अकेले रहि जाले। एह गीत में एतना अर्थ छिपल बा कि पूछी मति। एमें पर्यावरण के चिन्ता बा। चिरई चुरूगं के चिन्ता बा। घर में अकेले छूटि गइल माई के चिन्ता बा। आ अपने भाई के चिन्ता बा। एतनि पहर दुनिया भर के साहित्य में विस्थापन के दर्द के बयान हो रहल बा। जब केहू के कवनो मजबूरी में आपन घर दुआर गाँव जवार छोड़ि के परदेस जायेके परेला त ओके विस्थापन कहल जाला। गिरमिटिया प्रथा में हमार तमाम पूर्वज जवन मारीशस, फिजी, सूरीनाम जइसन देसन में भेजल गइलें विस्थापन हवे। कबो-कबो त ई बुझाला कि लइकिन के जिन्दगी में हमेशा एगो विस्थापन मौजूद बा। ओके आपन घर छोड़हीं के बा। त एह गीति में ओ विस्थापन के पीड़ा भी बा।

भोजपुरिया फिल्मन में आ गीत संगीत में भोजपुरी साहित्य के एगो दोसर रूप सामने आ रहल बा। आजु से पचास सालि पहिले ए गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो जइसन फिल्म बनल रहे। ओकरे बाद से भोजपुरी फिल्म के एगो भारी बजार बनि गइल बा। एह बाजार के आजु केहू नजरअन्दाज नाही क सकेला। भोजपुरी फिल्मन पर विचार करत के एगो बाति पर जरूर ध्यान जाला कि भोजपुरी फिल्म कहाँ से कहाँ पहुँच गइल। ओकर फूहड़ रूप जनता के सामने ले आवल जाता। एसे भोजपुरी के छवि खराब भइल बा। एह माहौल के सुधारल भी बहुत जरूरी बा।

भोजपुरी भाषा के एक रूप बा जवन दुनिया भर में फइलल भोजपुरिया लोगन के मन में बचल आ बनल बा। भोजपुरी इलाका से दुनिया भर में जवन गिरमिटिया मजूर गइलन उनके काँधे पर सवार होके भोजपुरी आजु सात समन्दर पार पहुँचलि बा। जे मजूर बनि के आइल रहे आजु सरकार चला़वता। एह देसन में भोजपुरी खातिर प्यार बा। मारीशस के स्पीकिंग यूनियन एकर एगो जीयत जागत प्रमाण बा। स्कूलन में भोजपुरी के पढ़ाई लिखाई के प्रयास चलि रहल बा। एह तरे देखल जा त भोजपुरी के परम्परा हजार साल से चलल चलि आवत बा । इ खाली उत्तर प्रदेश, बिहार ले सीमित नइखे। आजु दुनिया के कई देसन में भोजपुरी के वजूद कायम बा। भोजपुरी क्षेत्र में आर्थिक पिछड़ापन बा। गरीबी बा। एसे भोजपुरी इलाका से अजुवो लोग रोजी, रोजगार खातिर देस के भीतर आ बाहर दुनिया के हर हिस्सा आ जा रहल बाने। एहतरे भोजपुरी भासा, साहित्य, गीत, संगीत के भी यात्रा दुनिया के कोने-कोने में हो रहल बा।

भोजपुरी के लिखित साहित्य आ लोक साहित्य के एह विशाल धरोहर में भोजपुरिया समाज के सांस्कृतिक जीवन के झांकी मिलेला।एसे एगो परिश्रमी ,ईमानदार,जीवन के रस के समझेवाला आ जरूरत परले प त्याग आ बलिदान खाती पहिला मोर्चा प ठाढ लोगन के जमात से परिचय होला।एह थाती के बचावल आ बढावल दूनो बहुत जरूरी बा।

-सदानन्द शाही

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