भोजपुरी के बढ़िया वीडियो देखे खातिर आ हमनी के चैनल सब्सक्राइब करे खातिर क्लिक करीं।
Home आलेख थारू जनजाति के लोक जीवन : सिपाही सिंह श्रीमंत

थारू जनजाति के लोक जीवन : सिपाही सिंह श्रीमंत

0
थारू जनजाति के लोक जीवन : सिपाही सिंह श्रीमंत

थारू जनजाति के लोक जीवन श्रीमंतजी के ‘थरूहट के लोक गीत’ से लिहल गइल बा। एह निबंध में थारू जन जाति के परंपरा, पर्व-त्योहार, घर-दुआर, रहन-सहन, विविध संस्कार के वर्णन बा। हिन्दी निबंध के भोजपुरी अनुवाद पाठ्य-पुस्तक विकास समिति कइलस जे में थारू जाति के जीवन शैली के स्पष्ट झलक मिलेला

हिमालय पहाड़ के निचला मैदानी भाग के तराई कहल जाला। नेपाल के दक्खिनी भाग नेपाल के तराई कहा ला। एकरा पूरबी भाग में पश्चिम बंगाल के जलपाई गुड़ी से पश्चिम में कुमाँ तक के गांवन में निवास करे वाली एगो विशेष जाति के ‘थारू’ कहल जाला। एह जनजाति के लोग बहुते पिछड़ल बा। इ लोग जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत के उपासना आदि अंध-विश्वास में आस्था राखे लें। बिहार के पश्चिम चम्पारण जिला के उत्तर-पश्चिम के पहाड़ी आ जंगली इलाका के रामनगर, मैनाटांड, हरनाटांड, बगहा आ शिकारपुर थाना थरूहट’, कहा लाएह थरूहट में थारू जाति के बहुलता बा।

सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’ जी

थारू लोगन के घरो-दुआर के आपन विशेषता बा। पहिले खाली लकड़ी आ फूस से बनल घर रहत रहे। गँवे-गवे छप्पर पर खपड़ा आ कुछ धनी-मानी थारू लोगन के ईंटो के घर मिले लागल। आजुओ अधिका लोगन के घर खरे-फूस के बा। गाँव का बीचो-बीच सड़क होला आ सड़क के दुनो ओरिया घर। घर के बीच में एगो अंगना होला आ चारो ओरिया घर। घर के दुआर सड़क के ओर रहेला। घर का बहरी एगो दालान होला, जहवाँ जानवरन के राखल जाला। घर के मेहरारू लोग घर के खूब नीमन, साफ-सुथरा सजा के राखे लीमाटी के देवाल के लीप-पोत के चिक्कन-चाकन राखे ली। देवाल के बहरी भाग में नीचे से दू-अढ़ाई फीट अधिका चौड़ा होला जे डांड़ अइसन लागे ला। एही से अइसन घर के डंडहर घर कहल जाला। मेहरारू लोग हाथ के तरहत्थी, अंगुरी भा मुट्ठी से चूना, गेरू, चउरठ, हरदी, सेनुर आदि का सहारे देवाल पर किसिम-किसिम के चित्र बनाके देवाल के सजावे ली। घर में अनाज राखे खातिर माटी के डेहरी भा लमहर-लमहर घइला जेकरा के भरौचा कहल जाला, पावल जाला।

थारू जाति में एगो अजबे रेवाज बा। जनाना लोग मरदाना के चउका में ना जाए देवे ली। पकावल खाना छुहहुँ ना देवे ली। हिन्दू लोगन में अपना मरद (पति) के जूठा खाए में पुण्य मानल जाला बाकिर थारू लोगन में एकरा उल्टा जनाना लोग मरदाना के जूठ ना खाए ली।

थारू जनजाति के लोक जीवन : सिपाही सिंह श्रीमंत
थारू जनजाति के लोक जीवन : सिपाही सिंह श्रीमंत

थारू लोग में पूजा-पाठ के खूब रेवाज बा। इन्हनी के अनेक देवी-देवता बाडें। देवता लोगन में ‘मनुसदेव’, ‘गन’, ‘बढ़म’, ‘महावीर’, ‘रसोगुरो’, ‘भोला धामी’ आदि के पूजा होला। देवी लोगन में ‘कालिका’, ‘चंडी’, ‘बनदेवी’, ‘हठी माई’, ‘कुँअरवर्ती’ के लोग पूजे ला। ‘मनुस देव’ आ गन के थारू लोग आपन कुल देवता माने लन। कुछ थारू ‘भोलाधामी’ के भी आपन कुल देवता माने लें। दशहरा के समय धूम-धाम से इनकर पूजा होलापूजा में परेवा (कबूतर) आ बकरा के बलि देबे के चलन बा। भोलाधामी खस्सी, परेवा, फूल, धूप, लौंग, सेनुर आदि से पूजल जालें। रसोगुरो के पूजो अईसही दशहरे के बेर होला। बढ़म के पूजा सामूहिक रूप से कुआर में भा बियाह आदि कवनो विशेष उत्सव का अवसर पर होलाकेहू-के-केहू फूल, धूप, आदि से पूजेला आ खीर परसादी चढ़ावे ला। नया धाजा, फूल के माला, धूप, सेनुर आदि से कातिक पूरनमासी के थारू महावीर के पूजा करेला।

देवी लोगन में ‘कलिका देवी’ के पूजा दशहरा में आ नौमी के बकरा, पाठी, कबूतर, चुनरी, टिकुली, सेनुर, चोटी, काजर, दारू मुर्गा से होला ‘बनदेवी’ के पूजा में कबूतर, दारू, फूल, धूप, साड़ी आदि चढ़ावल जाला। तीन बरिस में एक बे असाढ़-सावन में ‘हठी माई’ के पूजा होला जवना में खस्सी, भेंडा, भईंसा, कबूतर, मुर्गा के बलि दिहल जाला आ सेनुर, काजर, चोटी आदि चढ़ावा चढ़ावल जाला। कतहूँ-कतहूँ माटी के हाथिओ चढ़ावे के रेवाज बाअइसही फूल, धूप, मिठाई, पंचमेवा से कुँअरवर्ती के पूजा होला।

थारू लोग पर्व के पावन कहेला। जइसे नागपंचमी के ‘पुतरीपावन’। एकरा अलावे जन्माष्टमी, कजरी, तीज, अनंत, जिउतिया, पिंडवारी (पितृपक्ष), दशहरा, सोहराई, दिवाल, छठ, खिचड़ी, फगुआ, रामनौमी आदि पावन के चलन बा।

पुतरी पावन में लड़की लोगनि कपड़ा के पुतरी बनाके ओकर बियाह रचावे ली। दिन में उपवास राखे ली दुपहर बाद पुतरी के कवनो नदी भा पोखरा में दहवा के नहाए ली। घरे आके आनन्दी धान के लावा आ दूध खाइल जाला। भादो अँजोरिया में ‘बुढ़वा एतवार’ के पावन होला। दिन भर उपवास राखला के बाद दही-भूजा, दही-चिउरा, भा दही रोटी खाइल जाला जेकरा तरखा खरना कहल जाला। ‘पिंडवारी’ में अपना बराबरी के लोगन का संगे घरे-घरे घूम के दारू पिए के रेवाज बा। जनाना लोगनिओ सहेलियन का संगे घूमे ली’सोहराई’ में सांझ के गाय के पूजा होला आ दोसरा दिन गाय के फल, नून, भतुआ, तेल, हरदी आदि सिआवल जाला। अइसने एगो पावन बनपसार बा जे जंगल में गइअन के रक्षा खातिर मनावल जाला। ‘खिचड़ी’ में नेहा के चाउर आदि छू के दान कइल जाला आ खिचड़ी खाइल जाला। ‘फगुआ’ में सम्मत जरावे का पहिले दारू के दौर शुरू होला। सम्मत जरवला का बाद उहवाँ से लौटते बेर चौताल गावत दारू के दौड़ तेज हो जाला। जब आँख पर गुलाबी नशा चढ़ेला, तब रंग-अबीर से फगुआ होला।

थारू लोगन में पूजा, परब-त्योहार का अलावे अउरियो-अउरियो संस्कारन के प्रचलन बा। लड़िका के जनम के समय कवनो विशेष उत्सव के चलन इनखे, बाकिर मेहरारू लोग सोहर गावे ली आ कतहूँ-कतहूँ थालियो बजावल जाला। छठिआर में पास-पड़ोस के लोग के खियावल जाला। नामकरण संस्कार में पहाड़ी ब्राह्मण (पुरोहित) आके नामकरण करे लें। सभे ई संस्कार ना करे कुछ भरल-पूरल थारू लोग ई करे ले। एक बरिस, तीन बरिस भा पांच बरिस के उमिर में लड़िका के मुंडन होला। मुंडन में माई-बाप अपना लड़िका के ले के गुरो के पास जा लें। गुरो खस्सी, कबूतर, दारू, धोती आ नगदी रुपया ले के मंत्र पढ़ के मुंडन करावे लें। कुछ लोग कवनो देवी देवता के मनौती मानले रहे लें त उनको स्थान पर जा के महतारी आ लड़िका नया कपड़ा पहिने लें आ लड़िका के मुंडन होलाथारू लोगन में बियाह तीन तरह के होला- ‘गोलावट’, ‘तीन घरवा’ आ ‘कनिअउती’। गोलावट में लेन-देन ना होला। जे आपन लड़की दोसरा के लड़िका के देवेला अपना लड़िका ला ओकरो से लड़की लेवे ला। तीन घरवा में तीन घर में संबंध जोडल जाला। कनिअउती में लड़की खरीदल जाला। एह में लड़की के दहेज दिहल जा ला, बाकिर एकरा के दहेज ना कनिअउती कहल जाला। दुलहा उज्जर धोती, कुरता, पगड़ी आ गरदन में हँसुली पहिन के बियाहे जा लें। बैलगाड़ी पर मरद-मेहरारू का संगे-संगे लड़िकनो गीत गावत बरियात जा लें। सेनुरदानो के रेवाज दू तरह के बा। कतहूँ-कतहूँ ससुराल अइला पर सेनुर दिहल जाला। पहिला दिन बरियात के उपासे राखल जा ला। दोसरका दिन खिया-पिया के बिदा कइल जाला। नया-न्योचार मेहरारू लड़की के जबरदस्ती बैलगाड़ी पर चढ़ा के बिदा करे ली आ कुछ दूर तक संगे-संगे जाली सन। लड़की ससुरार में एक रात भा तीन दिन रहे ली। बाद में भाई भा बाप जाके बोला लावे लन। फेर कातिक में अँजोरिया एकादशी के गाँव के लड़की लोग ओकरा ससुराल पहुँचा आवे ली।

मजदूरन के मजदूरी का रूप में दिन भर के चार ‘हटहकी’ अनाज दिहल जाला आ दुपहर में भर पेट पनपिआव। जवन मजदूर हरवाही करे ले ओकरा तीन बेर खाना आ चार हटहकी अनाज दिआला। घर में एगो मरद मालिक होला, जे सभन के काम अरहावे लाआउरी मरद लोग हरवाही, गाय-भईंस-बैल के खिआवे, चरावे, रोपनी के काम करे लें। लड़की लोग घर-दुआर बहारे-सोहारे के, गोबर साफ करे के, लड़िका खेलावे के आ मेहरारू लोग धान कूटे के, चक्की चलावे के, खाना बनाबे के, कलेवा पहुँचावे के काम करे ली। बूढ़-पुरनिया औरत बच्चा के लालन-पालन में मदद करेली आ बगइचा के रखवारी करे ली।

कुल मिला के थारू लोगन के लोक जीवन पुरान परंपरा से जुड़ल बा। थारू लोग अपना सामाजिक मान्यता में निष्ठा राखे लें आ प्राकृतिक सम्पदा से संतुष्ट रहे लन। लोक गीतन में उनकर सामाजिक जीवन के धड़कन मिलेला। थारू लोग के जिनगी जादे करके कृषि प्रधान ह। फसल कटाई के बाद इ सब लोग मिल-जुल के गावे-बजावे आ नाचे लें। इनका नृत्य के ‘झुमरा’ कहल जाला।

लेखक: सिपाही सिंह श्रीमंत
इ आलेख कक्षा 8 खातिर भोजपुरी पाठ्य-पुस्तक भोर से लिहल गइल बा।

भोजपुरी के कुछ उपयोगी वीडियो जरूर देखीं

जोगीरा डॉट कॉम पऽ भोजपुरी पाठक सब खातिर उपलब्ध सामग्री

ध्यान दीं: भोजपुरी न्यूज़ ( Bhojpuri news ), भोजपुरी कथा कहानी, कविता आ साहित्य पढ़े  जोगीरा के फेसबुक पेज के लाइक करीं।

NO COMMENTS

आपन राय जरूर दींCancel reply

Exit mobile version