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श्री धरीक्षण मिश्र

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श्री धरीक्षण मिश्र

श्री धरीक्षण मिश्र भोजपुरी के लोकप्रिय और सम्मानित कवि रहे हैं, इनका जन्म चैत रामनवमी सम्बत् 1962, विक्रमी को पूर्वी उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गोरखपुर जनपद के वरियापुर गाँव में हुआ था।

खड़ी बोली तथा विशेष रूप से अपनी माटी की बोली भोजपुरी में सामाजिक एवं राजनीतिक विषयों पर व्यग्यपूर्ण रचनाओं में अच्छी ख्याति दिलाई। ‘शिवजी के खेती’ और ‘कागज के मदारी’ इनके बहुचर्चित काव्य-संकलन है।

मिश्र जी को काव्य शास्त्र की बारीकियों की गहरी समझ थी और उनकी कविताओं में अलंकारों की गहरी छटा सर्वत्र विद्यमान है। मात्रिक तथा वर्णिक दोनों प्रकार के छन्दों का सिद्ध प्रयोग काव्य-शास्त्र की साधना का उदहारण है। जीवन के हर क्षेत्र में अनुशासन की प्रेरणा भी यदि संस्कृत व्याकरण के प्रति श्रद्धा से ही निःसृत हो, तो आश्चर्य नहीं। अपने समय की राजनीति और सामाजिक विकृतियों को कवि ने अत्यन्त ईमानदारी से अपनी रचनाओं में व्यक्त किया है। हर सामाजिक राजनीतिक पेंच को मानवीय संवेदना की कसौटी पर परखना कवि का अभीष्ट है।

श्री धरीक्षण मिश्र
श्री धरीक्षण मिश्र

अपनी रचनाओं के माध्यम से मिश्र जी ने आदमी के भीतर दबी हुई मनुष्यता को जगाने की कोशिश की है। लोक जीवन के जागरूक रचनाकार के रूप में धरीक्षण मिश्र याद किये जाते रहेंगे। कौना दुखे डोलि में रोवत जाली कनियां भोजपुरी का एक सफल काव्य है, जिसमें स्त्री की सामाजिक स्थिति पर बहुत मार्मिक ढंग से प्रकाश डाला गया है।

कवि मन करूणा से ओत-प्रोत है और पाठक को भी भीतर तक प्रभावित करने वाली शक्ति इस कविता में है। दहेज प्रथा के साथ ही कन्या पक्ष को हीनतर स्थिति में समझने वाली मानसिकता के विरूद्ध इस कविता की पंक्तियाँ पाठक-मन को जिस तरह विचलित और उत्तेजित करती है वह महत्वपूर्ण है। भोजपुरी की यह कविता किसी भी भाषा की कविता के सामने चुनौती की तरह रखी जा सकती है।

गाँव के साँप के स्वभाव वाले लोगों की भर्त्सना करने वाली कविता ‘‘साँप के सुभाव” भी बहुचर्चित है। श्लेष प्रधान कविता साँप एवं अवसरवादी, स्वार्थी नेता-दोनों पर समान रूप से व्यंग्य करती है।

वर्ष 1977 में ‘शिव जी की खेती’, 1995 में ‘कागज के मदारी’, 2004 में ‘अलंकार दर्पण’, 2005 में ‘काव्य दर्पण’, 2006 में ‘काव्य मंजूषा’ के प्रकाशन के साथ ही उत्तर-प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा 1980 में मिले सम्मान के साथ ही ‘अंचल भारती सम्मान’ से राज्यपाल मोतीलाल बोरा द्वारा 1993, ‘भोजपुरी रत्न अलंकरण’ द्वारा अखिल भारती भोजपुरी परिषद लखनऊ 1993 में प्राप्त हुआ।

1994 में श्रीमहावीर प्रसाद केडिया साहित्य एवं संस्कृति संस्थान देवरिया द्वारा ‘श्री आनन्द सम्मान’, 1994 में उ.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन उरई द्वारा ‘गया प्रसाद शुक्ल सनेही पदक’, 1995 में प्रथम विश्व भोजपुरी सम्मेलन देवरिया में पूर्व प्रधान मंत्री चन्द्रशेखर द्वारा प्रथम ‘सेतु सम्मान’, 1997 में साहित्य आकादमी नई दिल्ली द्वारा ‘भाषा सम्मान’, विश्व भोजपुरी सम्मेलन नई दिल्ली द्वारा 2000 में मरणोपरांत ‘भोजपुरी रत्न’ आदि सम्मान से सम्मानित हुए।

मिश्र जी को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का नामित पुरस्कार अखिल भारतीय भोजपुरी परिषद का ‘भोजपुरी रतन अलंकर, साहित्य अकादमी नयी दिल्ली फेलोसिप, विश्व भोजपुरी सम्मेलन के ‘सेतु-सम्मान’ के अतिरिक्त अनेक महत्वपूर्ण सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए है।

मिश्र जी कुछ जिसमें भारतीय कुरूतियों पर कारगर व्यंग्य किया हैं। मिश्रजी की कुछ महत्वपूर्ण गीत है – जिसमें भारतीय समाज की कुरीतियों पर करारा व्यंग्य किया गया है

कौना दुखे डोली में रोवत जाति कनियाँ

भारत स्वतन्त्र भैल साढ़े तीन प्लान गैल
बहुत सुधार भेल जानि गैल दुनियाँ
वोट के मिलल अधिकामेहरारून का
किन्तु कम भैल ना दहेज के चलनियाँ
एहीं रे दहेज खातीं बेटिहा पेरात बाटे
तेली मानों गारि-गारि पेरत बा धनियाँ
बेटी के जनम बा बवाल भैल भारत में
ऐही दुखे डोली में रोवत जाति कनियाँ ।

दिल्ली के गद्दी पर बैइठल मेहरारू बा
ओहीं के बाटे उहाँ चलत परधनियाँ
जल थल आ नभ तीनू सेना के सेनापति
दागे सलामी ओ के साथ ले पलटनयाँ
यू0पी0 में तिरिया राज बाटै सुतारन भैल
गुप्ता आ त्रिपाठी जी में होत वा बजनियाँ
एहू तिरिया राजो में सुख ना बेटिन का
ऐहीं दुखे डोली में रोवित जाति कनियाँ ।

एके दू कौर खा के रातो दिन रहे के परी
देहि के जरावे लागि भूखि अगिनियाँ
खैला कै पहिले आ पाछे थाती जाँच करे
अइले बला के कुछ माई आ बहिनियाँ
ढेर खइला से सबे लागी बदनाम करे
एसने बा एकरा खन्दान के रहनियाँ
एही तरे केतने महीना ले रहे के परी
ऐहीं दुखे डोली में रोवित जाति कनियाँ ।

जाँचे के हमारे मन सासु धरि दीहे कबें
हमरा बिछौना तर लड्डू और बुनियाँ
कुक्कुर बिलारि मूस आ के खाई जाई तब
उल्टे घुमाई लोक हमरे पर घनियाँ
हँसि -हँसि के बानी कबे बिगिहें जेठानी आ
सासु कहि दीहें ई त बड़ी बा चटनियाँ
हमरी सफाई के रहीं ना सुनवाई कहीं
एही दुखे डोली में रोवत जाति कनियाँ ।

ओठर सासु दी कि एकरा नैहरवा से
आइल कबै ना तन ढंग से करिनयाँ
एकर खान्दान जरिए क भिखमंगा हवे
करनी ना कवनो बस खाली बा कथनियाँ
एकरा महतारी के फुआ बिआहलि रहे
हमरा मौसी का घरे पांडे का जमुनियाँ
जानि गैनी एकरा से घर ना चली हमार
एही दुखे डोली में रोवित जाति कनियाँ ।

आजु जात बानी बन्द होखे एक जेल बीच
जेलर जहाँ के सासु नन्दी जेठनियाँ
हमके दिन रात डेरवइहें धमकइहें
लंका में जानकी के जइसे रकसिनियाँ
दुइ चार साल के न बाटे जेल के इ सजा
जेले में बीती अब सउँसी जिन्दगियाँ
कवनो अदालत सुनी एकर अपील नाहीं
एही दुखे डोली में रोवति जाति कनियाँ ।

चोरी चुगलाई हम आजु ले न कइनी कहीं
तुरनी का कवनो सरकार के कनुनियाँ
कौन बटे कौन दफा लागू बा हमरा पर
एकर ना पौनी हम आजु ले समनियाँ
एकहू गवाही ना गुजरल विपक्ष में बा
केहु से ना बाटै हमरा से दुसमनियाँ
बेकसूर हमके दियात जेल बाटे आजु
ऐही दुखे डोली में रोवत जाति कनियाँ ।

काल कोठरी समान होइ जेलखाना उहाँ
जहाँ पैसि पाई ना प्रकाश के किरनियाँ
डेढ़ पोरसा पर कहीं जंगली जो होई एक
सासु उहीं साजि दहैं झाँपी अरू मोनियाँ
जेठो बइसखवा ने सीड़ सूखत होई जहाँ
धूआँ से भरल घर होई कहीं कोन्हियाँ
चउकठ के भीतरे रहे के परी आठो घरी
एही दुखे डोली में रोवत जाति कनियाँ ।

लेवे के साँस ना बतास ताजा पाइबि हम
ओढ़े के परिहें कई पर्त के ओढ़नियाँ
कहियो त गोड़ बड़ा जोर झिन्झिनाए लगी
कहियो दुखा अगियाएं लगी चनियाँ
डाक्टर कहीं की कमी भइल बा विटामिन बी
नइहर के भूत कहीं ओझा औरू गुनियाँ
केकर जवाब कौन कइसे दे पाइबि हम
एहीं दुखे डोली में रोवत जाति कनियाँ ।

हमके सौपिं देले बा भाई-बाप जेकरा के
जेकर रहे के बाटे बन के परनियाँ
उनहूँ से बोलत में देखि लहें सासु कहीं
खसिन बनी जइहें उ बन के बधिनियाँ
कहिहें कि कइसन कुरहनी ई आइल बा
एक नजर में बा तनिको ना पनियाँ
केहूँ कहीं अब्बे से आपन ई चीन्हें लगल
एही दुखे डोली में रोवति जाति कनियाँ ।

छूट जात बाटे आजु हमरा से भाई-बाप,
छूट जात बाटे आऊ भाई आ बहिनियाँ
काका औरू काकी के न आँखी देखि पाइबि हो
छूट जात नइहर के नाँव जगरनियाँ
बारी फुलवारी सखियारी सब छूट जात
सपना समान भइल नइहर के दुनियाँ
माई औरू बाप के रोवाई बा न बन्द होत
ऐही दुखे डोलि में रोवत जाति कनियाँ।

बखरा हमार पिता देले जे दहेज मानि
किन्तु बाटे एइसन समाज के चलनयाँ
कवने मशक्कत से रूपया इ जुटावल बा।
ई ना लोग बुझेला समझेला मॅगनियाँ
केहू का बिंदाई मिले केहू को पुजाई मिले
केहू नेग खाति बा चढ़ि जात छन्हियाँ
लूटे आ लूटावे हमरे धन बाटे इहे
एही दुस्खे डोली में रोवति जाति कनियाँ ।

बाप और दादा जवन सम्पत्ति कमाई गइले
अउरी से छोड़ि गइले जहू के नयाँ
सगरी दियाइल ह तब्बो ना ओराइल
तिलक दहेज वाला किश्त सोरहनियाँ
बेटहो का घर में ना हाय ! रहि पावल
लूटेले ओहू के नचनियाँ आ बजनियाँ
रोके के ई लूट अधिकार ना हमार बाटे
ऐही दुखे डोलि में रोर्वात जाति कनियाँ ।

चौदहे बरिस घर राम छोड़ि दिहले त
पोथी के पोथी लोग लिखले बा कहनियाँ
जन्मभूमि छोड़ देत बानी आजीवन हम
माथ पर चढ़ाके माई बाप के बचनियाँ
हमरी बेर बाकी त दुकाहे दो सुखि गइल
बाल्मीकी व्यास कालिदास के कलमियाँ
हमरा ऐ त्याग पै लिखाइल ना ग्रन्थ एको
एही दुखे डोलि में रोवति जाति कनियाँ ।।

रउवा खातिर:
भोजपुरी मुहावरा आउर कहाउत
देहाती गारी आ ओरहन
भोजपुरी शब्द के उल्टा अर्थ वाला शब्द
जानवर के नाम भोजपुरी में
भोजपुरी में चिरई चुरुंग के नाम

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