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भोजपुरी के आधुनिक कवि

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भोजपुरी के आधुनिक कवि

भोजपुरी साहित्य में काव्य की रचना सबसे पहले प्रारम्भ हुई, जबकि इसके गद्य का प्रादुर्भाव बहुत पीछे हुआ। भोजपुरी साहित्य के आधुनिक काल का प्रारम्भ सन् 1875 ई0 से माना जा सकता है और बाबू रामकृष्ण वर्मा आधुनिक काल के कवियों की श्रेणी में सर्व प्रथम स्थान के अधिकारी है। कालक्रम से सर्वप्रथम होने के अतिरिक्त अपने काव्य की मधुरता तथा सरसता के कारण भी ये कवियों की पंक्ति में उच्चस्थान पर रखने के योग्य है।

बाबू रामकृष्ण वर्मा

भोजपुरी के आधुनिक कवि
भोजपुरी के आधुनिक कवि

भोजपुरी साहित्य के इतिहास में बाबू रामकृष्ण वर्मा का एक विशिष्ट स्थान है। आप बड़े ही साहित्यिक जीव थे। इनके जीवन में मधुरता एवं सरसता कूट-कूटकर भरी थी। यही कारण है कि इनकी कविता में भी ये गुण विशेष रुप से पाये जाते है।
भोजपुरी में इन्होंने ‘विरहा नायिका- भेद’ नामक पुस्तक लिखी हैजिसमें बिरहा छन्द में विभिन्न नायिकाओं का वर्णन किया गया है इस पुस्तक में कुल 26 पृष्ठ हैं तथा विरहों की समस्त संख्या 59 है। इन्ही विरहों के माध्यम से इन्होंने नायिका- भेद का बड़ा ही सुन्दर सरस वर्णन किया है

श्री तेग अली ‘तेग’

श्री तेग अली ‘तेग बनारस के रहने वाले मुसलमान थे। इन्होंने ‘बदमाश-दर्पण’ नामक काव्य-ग्रन्थ की रचना की है जिसका प्रकाशन सन् 1895 ई० में लहरी प्रेस, वाराणसी से हुआ था। तेग अली की एकमात्र रचना ‘बदमाश दर्पण’ है जिसमें बनारसी जीवन की झाँकी पाठकों के सामने प्रस्तुत की गई है।

बाबू अम्बिका प्रसाद

प्रसाद जी बिहार प्रान्त के निवासी थे। ये एक अच्छे कवि थेइनकी कविताओं के कुछ उदाहरण भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने अपनी ‘ हिन्दी भाषा’ नामक पुस्तक में दिया है। इनकी कई कविताओं में रहस्यवाद की झलक दिखाई देती है।

बिसराम

भोजपुरी के वर्तमान कवियों में बिसराम का महत्वपूर्ण स्थान है। अनपढ़ होने पर भी इस जनकवि ने ऐसे सरस तथा भावपूर्ण बिरहों की रचना की है कि उन्हें पढ़कर हृदय सहज भाव से रसप्लावित हो जाता है। बिसराम के बिरहेकिसी भी साहित्य के लिए गौरव की वस्तु है। इनमें कातरता और दुःखपुर्ण हृदय की वेदना की अभिव्यक्ति ही नहीं अपितु इनके गीत भी रसात्मक है।

पं0 दूधनाथ उपाध्याय

उपाध्याय जी भोजपुरी के प्रतिभाशाली कवि थे। इनकी वाणी में ओज था और इनकी कविता का भोजपुरी पाठकों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता था। इन्होंने गो- विलाप सम्बन्धी अनेक पदों की रचना भोजपुरी में की थीकहा जाता है कि पण्डित जी द्वारा रचित पद इतने उत्तेजनापूर्वक थे कि कायरों के हृदय में भी वीर रस संचार कर देते थे।

रघुवीर नारायण

बाबू रघुवीर (३१ अक्टूबर १८८४ – १ जनवरी १९५५) भोजपुरी के प्रख्यात कवि थे। इनकी ‘बटोहिया’ शीर्षक कविता भोजपुरी भाषा–भाषी प्रान्तों में अत्यधिक प्रसिद्ध है। इस गीत में अखण्ड भारत का मनोरम चित्र खीचा गया है।

महेन्द्र मिश्र

मिश्र जी ने ‘पूर्वी’ नामक लोक गीतों की रचना की है जो उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में अत्यन्त लोकप्रिय है। इनकी प्रकाशित निम्नांकित् तीन रचनाओं का पता चलता है- 1. मेघनाथ वद्य 2. महेन्द्र मंजरी 3. कजरी संग्रह। इन्होंने रामायण का भोजपुरी में अनुवाद भी किया था जो संभवतः अभी तक अप्रकाशित है।

भिखारी ठाकुर

भोजपुरी के कवियों में भिखारी ठाकुर का नाम उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों और बिहार के पश्चिमी जिलों में प्रसिद्ध है। यद्यपि भिखारी ठाकुर शिक्षित नहीं थे। किन्तु ये प्रतिभावान व्यक्ति अवश्य है। इस जनकवि ने अपनी सरस रचनाओं के द्वारा भोजपुरी साहित्य के प्रचार और प्रसार में जितना विषयों को लेकर ठेठ तथा टकसाली भोजपुरी में कविता करने में ये सिद्धाहस्त है। यही कारण है कि इनके विदेसिया नाटक को देखने के लिए कई सहस्त्र व्यक्ति एकत्र हो जाते थे। और जहाँ इस नाटक का अभिनय होता था वहाँ विशेष प्रबन्ध करने की आवश्यकता होती थी। इस नाटक का एक गीत इस प्रकार है-

“दिनवॉ न बीते रामा तेरी इन्तजरिया में,
रतिया नयनना ना नींद के विदेसिया।
घरी राति गइली राम पिछली पहरवा से,
लहरे करेजवा हमार रे विदेसिया।
अमवा मोजरि गइले लगले लगले टिकोरवा से,
दिन पर दिन पियराला रे विदेसिया।
एक दिन अइहे रामा जुलुमी बयरिया से,
डार पात जइहें नसाई रे विदेसिया ।”

मनोरंजन प्रसाद सिन्हा

भोजपुरी के कवियों में मनोरंजन प्रसाद सिन्हा का एक विशेष स्थान है। सिन्हा जी सरल होने के साथ- साथ विद्वान भी थे। इनकी खड़ी बोली तथा भोजपुरी दोनों पर समान अधिकार था। यों तो इन्होंने भोजपुरी में कई पदों की रचना की है, किन्तु सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना ‘फिरंगिया है

महाराज खड़गबहादुर मल्ल

मल्ल जी बड़े मधुर प्रकृति के व्यक्ति थे। इनका उपनाय कविता में ‘लाल’ था। भोजपुरी में रचित कजलियों का संग्रह इनकी ‘सूधाबूंद’ नामक पुस्तक में पाया जाता हैकजली के ये गीत बड़े ही रसोत्पादक हैं।

प्रसिद्ध नारायण सिंह

प्रसिद्ध नारायण सिंह बलिया जिले के चित बड़ा गॉव के निवासी है। आरम्भ से ही इनकी प्रवृत्ति साहित्यिक रही है। इनकी प्रथम कृति “बलिया जिले के कवि और लेखक” नामक कृतियों में कवियों और लेखकों की कृतियों का परिचय पं० रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है कि “इनकी (कबीर की) भाषा साधुक्कड़ी अर्थात् राजस्थानी, पंजाबी मिली खड़ी बोली है, पर रमैनी और ‘सबद में गाने के पद है। जिनमें काव्यय की ब्रजभाषा और कहीं-कहीं पूरब की बोली का भी व्यवहार है।” आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का भी यही मत है कि कबीर के वीजक की भाषा भोजपुरी है।

भोजपुरी भाषा के सुप्रसिद्ध विद्वान डॉ. उदय नारायण तिवारी कबीर की भाषा के सम्बन्ध में लिखते है कि ” यह बोली (भोजपुरी) कबीर की मातृ भाषा थी। यह प्रसिद्ध है कि कबीर पढ़े लिखे न थे। अतएव अपनी मातृभाषा में रचना करना उनके लिए सवर्था स्वाभाविक था।”35 कबीर के अनेक पर आज भी बनारसी बोली अथवा भोजपुरी भाषा में उपलब्ध है।

कबीरदास की ही भाँति धरम दास भी एक सन्त कवि थे। जो उन्हीं की परम्परा में उत्पन्न हुए थे। इनके भी बहुत से पद भोजपुरी में उपलब्ध हुए है।

“इनकी रचना थोड़ी होने पर भी कबीर की अपेक्षा अधिक सरल है। इसमें कठोरता और कर्कराता नहीं है। इन्होने पूरबी भाषा का ही व्यवहार किया है। इनकी अन्योक्तियों के व्यञ्जक चित्र अधिक मार्मिक है क्योंकि इन्होंने खण्डन मण्डन से विशेष प्रयोजन न रख प्रेमतत्व को ही लेकर अपनी वाणी का प्रसार किया है।”

भोजपुरी सन्त कवियों में शिवनारायण, धरनीदास, लक्ष्मी सखी आदि का नाम श्री प्रसिद्ध है। शिवनारायण ने प्रधानरुप से पूर्वी अवधी का ही अपने ग्रन्थों में प्रयोग किया है। किन्तु ‘आँतसार’ और ‘घाटों (चेत्र में गाने के गीत) लिखे है, वहाँ भोजपुरी भाषा स्वाभाविक रीति से आ गई है।

धरनीदास के दो ग्रन्थ हस्तलिखित रुप में उपलब्ध है।
1. शब्द प्रगास
2. प्रेम प्रगास ।

ये दोनों ग्रन्थ माँझी के पुस्तकालय में सुरक्षित है। और इनकी भाषा अवधी–मिश्रित भोजपुरी हैं।

लक्ष्मी सखी भोजपुरी के प्रतिभा सम्पन्न कवि थे। ये सखी सम्प्रदाय के अनुयायी थे। इनके निम्नलिखित चार ग्रन्थ प्रसिद्ध है बड़ी सुन्दर रीति से दिया है। इनके द्वारा रचित कवितायें फुटकल रुप में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में विखरी हुई है।

रामविचार पाण्डेय

ये बलिया जिलान्र्तगत दामोदरपुर गॉव में सन् 1900 में पैदा हुये थै। इनके भोजपुरी कविता पाठ का ढंग इतना सरल होता था कि वह सहज ही श्रोताओं को अपनी आकृष्ट कर लेता था। पाण्डेय जी की काव्य भाषा बड़ी प्राञ्जल है। इनकी कविता में ओज और प्रसाद गुण की प्रधानता पायी जाती है। वीर रस का पल्ला पकड़कर इस कवि ने बहुत सुन्दर काव्य की रचना की है। इनकी भोजपुरी कविताओं का प्रकाशन ‘बिनिया-बिछिया’ ‘आशा’, ‘जीवन गीत’ आदि शीर्षकों से हुआ है।

पं0 महेन्द्र शास्त्री

महेन्द्र शास्त्री भोजपुरी के उन उन्नायकों में से है जिन्होंने भोजपुरी साहित्य की सेवा में अपना तन, मन और धन सभी कुछ अर्पित कर दिया है। इन्होंने जीवन भर भोजपुरी की सेवा की है। शास्त्री जी ने अपनी सशक्त लेखनी के द्वारा भोजपुरी के भण्डार की वृद्धि तो की है, इसके अतिरिक्त भोजपुरी भाषा और साहित्य के प्रचार, प्रसार तथा समुन्नति में भी इन्होंने प्रचुर योगदार दिया है। आचार्य जी को ही सर्वप्रथम ‘भोजपुरी’ नामक पत्रिका प्रकाशित करने का श्रेय प्राप्त है शास्त्री जी की भोजुपरी कविताओं के अनेक संग्रह प्रकाशित है जिनमें ‘आज की आवाज’ और ‘चोखा’ प्रसिद्ध है।

कविवर ‘चंचरीक

कविवर चंचरीक भोजपुरी के लब्ध प्रतिष्ठत कवियों में से एक है। ये गोरखपर जिले के निवासी थे। इनकी सर्वश्रेष्ठ रचना ‘ग्राम-गीताजिल है। यह गोरखपुर से प्रकाशित हुई है। इसकी भाषा सरल सरस और मधुर है।‘ग्रामगीतांजलि’ पुस्तक ने पूर्वी उत्तर प्रदेश में अनेक लोगों को भोजपुरी के गीत लिखने का प्रेरणा प्रदान किया।

अशान्त

भोजपुरी के कवियों में अशान्त भी एक है। इनकी भाषा प्राञ्जल और भाव उच्चकोटि के होते है। भोजपुरी में लिखित गीतों को ये इतने सुन्दर ढंग से गाते थे कि स्वाभाविक भाव से सुनकर लोग आकर्षित हो जाते थे।

श्री जगदीश ओझा ‘सुन्दर

‘सुन्दर’ जी एक प्रमुख गीतकार के रुप में प्रसिद्ध है। इन्होंने अनेक पुस्तकों की रचना की है जिनमें 1. स्वतन्त्रता 2. विद्रोही बलिया 3. क्रांति के बीज 4. भिखारिन तथा 5. दमयन्ती आदि प्रमुख है। भोजपुरी क्षेम ‘जुलुस भइले राम’ सुन्दर जी के भोजपुरी में रचित कविताओं का एक मनोरम संग्रह है। सुन्दर जी ने ‘रहनिद्वार बेटी’ शीर्षक से भोजपुरी में एक सरस उपन्यास भी लिखा है जो 1966 में भोजपुरी संसद जगतगंज (वाराणसी) से प्रकाशित हुआ।

श्री श्यामसुन्दर ओझा

‘मंजुल’ मंजुल जी कवि, कहानीकार तथा नाटककार भी है।ये भोजपुरी तथा खड़ी बोली में समान रुप से काव्य रचना करते है। आपकी खड़ी बोली की कविताओं का संग्रह ‘अरूणिमा’ के नाम से प्रकाशित हुआ है।

श्री राधा मोहन राधेश

राधेश जी भोजपुरी के उन्नायक ही नहीं प्रत्युत कवि भी है। इनकी कवितायें सदा पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है। इनकी शब्द योजना सुन्दर होती है। और पदावली में सरसता पायी जाती है इनकी ‘माटी की लाज कविता प्रसिद्ध है

श्री सतीश्वर सहाय वर्मा ‘सतीश’

सतीश जी भोजपुरी के प्रतिभाशाली कवि है। इनकी कविता में सरसता तथा कोमलता का सुन्दर सामंजस्य पाया जाता है। इनकी कविताओं का संग्रह ‘कठपुतरी’ के नाम से प्रकाशित हो चुका है। भोजपुरी में आप द्वारा रचित कई उत्कृष्ट नाटक भी है।

शोधार्थिनी – वन्दना तिवारी

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