रविन्द्र कुमार सिन्हा जी के लिखल तीन गो भोजपुरी गीत

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उर जाइब तो , लौट न आइब,
बाबूल तोहर गलियां रे।
मन की बिहवल तन की चंचल,
ं डाली की चिड़िया रे।
उर जाइब तो लौट न आइब,
बाबूल तोहर गलियां रे।

आंख खुलल त गोद बा तोहर,
ले लीं हम अंगराई ये,
बचपन बीतल तोरे अंगना,
खिलल गगन किलकारियां ये,
उर जाइब तो लौट न आइब
बाबूल तोहर गलियां रे।

जब आइल बिदाई के बेला,
काहे भरल आंसू अंखियां ये,
दुनिया के तो रीत एही है,
प्रित निभवलश सथिया रे।
उर जाइब तो लौट न आइब,
बाबुल तोहर गलियां रे।

बचपन बितल यौवन आइल,
सोलह की उमरिया रे,
चलल बसंती उड़ चुनरिया,
पिया मिलन की घरिया रे,
उर जाइब तो लौट न आइब,
बाबुल तोहर गलियां रे।

खेलत रहली कजरी,
सावन में सजना ।
हेरायल भोर कंगना,
पिया तोरे अंगना।।

देवरा से पूछली ,
ननदिया से पूछली।
केहू ना बतवलस ,
हेरायल मोर कंगना,
पिया तोहर अंगना।

घरवा में खोजली,
ओसरवा में खोजली।
कहूं न बुझाता,
हेरायल मोर कंगना।
पिया तोहर अंगना।

सुना भय्इल बा कलाई,
नयीहर कैसे जाइब।
भोजपुरी बजरिया से,
ला द मोर कंगना।
पिया तोहर अंगना।।

हो पिया खोले दीं , केवाड़ी के किल्ली ।
बुझाता अब भोर हो गयील।

रतिय से सूतल बाडु ,धके अंकवारी,
छोटकी ननदिया पिटेले केवाड़ी।
हो पिया छोड़ी अकवरिया के ढिल्ली,
बुझाता अब भोर हो गयील।
हो पिया खोले दीं, केवाड़ी के किल्ली।
बुझाता अब भोर हो गयील।

केशिया संवारे द, संवारी साया सारी,
दुअरे पर कार होई तोहर महतारी।
हो पिया छोड़ी न अचरवा के ढिल्ली,
बुझाता अब भोर हो गयील।

हो पिया खोलें दीं, केवाड़ी के किल्ली,
बुझाता अब भोर हो गयील।

का कहीं गोतनी, का कहीं सासु माइ,
घर में करे के होई साफ सफाई।
हो पिया छोड़ी अकवरिया के ढिल्ली,
बुझाता अब भोर हो गयील।

हो पिया खोलें दीं केवाड़ी के किल्ली,
बुझाता अब भोर हो गयील।

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