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रघुवीर नारायण : भोजपुरी के आधुनिक कवि

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रघुवीर नारायण : भोजपुरी के आधुनिक कवि

सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से
मोरे प्राण बसे हिमखोह रे बटोहिया।

इ गीत रउआ लोग जरूर सुनले होखेम। ई उहे गीत ह जवन आजादी के लड़ाई में जन-जन के कंठ के हार बनल रहे आ काहे कि ई खाली गीत ना ह बल्कि पूरा भारत के सांस्कृतिक आ प्राकृतिक व्याख्या ह। ‘बटोहिया’ गीत में भारत के उ सुन्दर सुभूमि के चित्र बा जहां के नदी मीठ आवाज में गावेले, जहां तीर्थधाम के वातावरण मन के अनन्त शांति से भर देला,जहां चारो ओर वेदगान के स्वर चारो दिशा में गूंजेला,जहां राम-कृष्ण लोग के अटूट आस्था के मूर्ति बारें जहां हर नारी में सीता के संस्कार बा। जहां व्यास, वाल्मीकी, गौतम, कपिलमुनि, रामानन्द, रामानुज आ कबीर जइसन परमज्ञानी लोग जनम लेले बा। जहां विद्यापति, कालिदास, सूरदास,जयदेव आ तुलसी जइसन महान कवि लोग के रचना गूंज रहल बा। जहां बुद्ध, पृथु, अर्जुन आ शिवाजी के चरित्र प्रेरणा के स्त्रोत बनेला उहे ह हमार अमर देश, जहवां के खेत में सोना उगेला,जेकरा एक ओर पर्वतराज हिमालय रक्षक बन के खाड़ा बा आ जेकरा तीनो ओर से सिन्धु एकर शोभा बढ़ा रहल बा। जहां कोयल के कूक पर लाखो लोग मोहित हो जाला। जौना देश के प्रकृति खूद अपना हाथ से सजवले होखे ओह पर के ना मुग्ध हो जाई।

अइसन प्रभावशाली संगीतमय ‘बटोहिया’ गीत के रचनाकार रघुवीर नारायण जी बारें। भोजपुरी, हिन्दी, आ अंग्रेजी साहित्य के अपना लेखनी के माध्यम से समृद्ध करेवाला कविवर रघुवीर नारायण के नाम बड़ा आदर आ सम्मान के साथ लिहल जालार

रघुवीर नारायण : भोजपुरी के आधुनिक कवि
रघुवीर नारायण : भोजपुरी के आधुनिक कवि

घुवीर जी आज भी अगर अमर बारें त खाली अपना एगो भोजपुरी गीत बटोहिया के कारण, जईसे भिखरी ठाकुर अपना एक्के गो कालजयी नाटक “बिदेसिया’ के रचना कके अमर हो गईनी। रघुवीर नाराणय के ‘बटोहिया’ आ प्रो. मनोरंजन प्रसाद सिंह के ‘फिरंगिया’- ई दूनो गीत राष्ट्रीय क्रांति के आधार तईयार करे में बहुत मदद कईले रहे जौना से आम लोग में गुलामी के बन्धन तुड़े ला त्याग, तपस्या, बलिदान, प्रेरणा आ पौरूष के भरे के जबरदस्त काम कईलक। आज भी बटोहिया के हर पंक्ति आ हर शब्द से भारत के अनमोल माटी के सोन्ह-सोन्ह महक उठेला।

आधुनिक बिहार के अईसन लोकप्रिय कवि बाबू रघुवीर नारायण के जन्म छपरा शहर के दहियावां मोहल्ला में 30 अक्टूबर, 1884 ई० में एगो प्रतिष्ठित परिवार में भइल रहेउनकर पूर्वज कश्मीर से आईल रहे लोग। एही कुल के एगो सदस्य ठाकुर पहलवान सिंह सम्राट अकबर के दरबार में ‘शाहिब दीवान’ रहले आ फारसी में शायरी आ गजल लिखत रहले आ कला के कारण अकबर दरबार में भी उनका बड़ा मान-सम्मान मिलत रहे। बाबू रघुवीर नारायण के पुश्तैनी मकान सारण जिला के नयागांव नामक स्थान में बा, जौन कि अब गंगा के कटाव में विलीन हो गइल बा। इनकर दादाजी के नाम मनियार सिंह रहे आ उ छपरा कलक्टर के पेशकार रहले आ छपरा के दहियावां मुहल्ला में आपन निजी मकान बनवा लेले रहलें। रघुवीर नारायण के बाबूजी के नाम जगदेव नारायण रहे, जोन कि छपरा के एगो नामी वकील रहले आ अपना बाबूजी के साथे एकही मकान में रहत रहले। इनकर परदादा ठाकुर भूपनारायण भी फारसी के एगो प्रकांड विद्वान आ एगो कुशल गद्य-लेखक रहले। उनके द्वारा लिखित फारसी पुस्तक बा “वाजहत आफजा’, जौन उनका परिवार में शायद अभी भी एगो धरोहर के रूप में सुरक्षित रखल बा। ई सब बतावे के इहे एगो कारण बा कि लोग जाने कि रघुवीर जी के साहित्य आ संगीत खानदानी विरासत रूप में मिलल रहे। उनकर प्रारंभिक शिक्षा के शुरूआत फारसी में सन् 1891 ई० भईल रहे। प्रारंभिक पढ़ाई पूरा भईला के बाद इनकर नाम छपरा जिला स्कूल में करावल गइल जहां प्रवेशिका के परीक्षा पास कईलन आ ओकरा बाद पटना कॉलेज में इनकर नामांकन भईल आ सन् 1903 में इंटर के परीक्षा में पास कईला के बाद ओही कॉलेज से स्नातक के पढ़ाई करे लगले। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इनका से दू क्लास आगे रहले बाकी ए दूनू जाना में बहुत मित्रता रहे। अम्बिकादत्त व्यासजी इनकर प्रिय शिक्षक रहलें। अग्रेजी आनर्स के साथ-साथ इनकर दोसर विषय रहे इतिहास, फारसी आ तर्कशास्त्र। लेकिन तबियत खराब रहला के कारण उ बी.ए. के परीक्षा में सम्मिलित ना हो पईले। उनका दिल के रोग के प्रकोप भईल आ डॉक्टर के सलाह पर उनका पढ़ाई छोड़े के पड़ल। पढ़ाई पूरा ना कईला के अफसोस उनका हमेशा रहल लेकिन उ हिम्मत ना हरले आ उनकर लिखाई जारी रहल। सन् 1905 में रघुवीर बाबू अंग्रेजी में “ए टेल ऑफ बिहार’ के रचना क के निम्मन-निम्मन अंग्रेजी के विद्वान के आश्चर्य में डाल दिहलें। उनकर झुकाव अध्यात्म के तरफ भी रहे, सन् 1927 में अयोध्या गईलें, जहां मधुरोपासना पंथ के साधक भक्त रूपकला जी के प्रभाव आ आशीर्वाद के फल ई भईल कि उनकर रोग ठीक हो गइल आ उन्हां से लौटला के बाद रघवीर जी कानून के पढ़ाई करे लगलें। लेकिन प्रधानाध्यापक से मतभेद के कारण आपन त्यागपत्र देके छपरा चल गइलें आ छपरा जिला स्कूल में अध्यापक के पर पर काम करे लगलें। एही घरी सन् 1911 में ई आपन अमर रचना बटोहिया के रचना कईलें।

रघुवीर बाबू अंगरेजी, हिन्दी, बंगला, संस्कृत, फारसी आ भोजपुरी में समान अधिकार रखे वाला विद्वान रहले। ई छौ भाषा में साहित्य-सर्जना कईले बारेंऐमें अंग्रेजी, हिन्दी आ भोजपुरी के रचना अधिक बा। सबसे जादा रचना अंग्रेजी में बा। लेकिन सबसे जादा नाम भोजपुरी के बटोहिया के कारण भइल। इनकर भाषाधिकार के हर जगह प्रशंसा भईल बा। सन 1906 में 16 जनवरी के लिखल आपन एगो चिट्ठी में इंग्लैण्ड के राष्ट्रीय कवि अल्फेड ऑस्टीन ई सकरले रहस कि बाबू रघुवीर नारायण के अंग्रेजी पर भाषाधिकार तत्कालीन अंग्रेज-कवियन से भी अच्छा बा। भारत के महान अंग्रेजी लेखक के लिस्ट बनल त ओमेमाइकल मधुसूदन दत्त, रवीन्द्रनाथ टैगोर, विवेकानन्द, महर्षि अरविन्द, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, के साथे बाबू रघुवीर नारायण के नाम भी बहुत सम्मान से लिखाईल। लेकिन एकरा बाद भी लोकधुन पर आधारित भोजपुरी के उनकर गीत राष्ट्रगीत बन गईल। राष्ट्रगीत की परम्परा पर जौन अनुसंधान आ सर्वेक्षण भईल ओकरा आधार पर चारगो गीतन के सबसे जादा सम्मान मिलल । उ रचना बा वन्दे मातरम् – बंकिमचन्द्र चटर्जी, (सन् 1882 ई.), तराना-ए-हिन्द (सारे जहां सं अच्छा..) – इकबाल (सन् 1905 ई.), बटोहिया– बाबू रघुवीर नारायण (सन् 1911 ई.) आ जनगणमन अधिनायक- रविन्द्रनाथ टैगोर (सन् 1912 ई.)।

लव कांत सिंह जी

बनैली राज के राजा कीर्त्यानन्द सिंह दिलदार आ साहित्यप्रेमी राजा रहलेओह दिन में उ अपना पसन्द के हिसाब से एगो सचिव खोजत रहले। रघुवीर बाबू के प्रशंसा राजाबहादुर के लगे चहुंपल आ उनकर बोलाहट भईल। ऐहीजा इनका जीवन में एगो नाया मोड़ आईल आ छपरा जिला स्कूल के शिक्षक के काम छोड़ के बनैली राजा के निजी सचिव के पद सम्हारत रघूवीर बाबू अपना कर्तव्य के एतना बन्हिया से निभवले कि राजा साहेब भी खुश हो गईलें। भागलपुर के मिरजान हाट में रघुवीर बाबू चाउर मिल बईठवलन बाकी इमानदारी आ सच्चाई के पुजारी से ई काम ना चलल आ पईसा के कमी के करण ई मिल राजासाहब के बेंच देहले। बनैली राजा के निजी सचिव के कार्यकाल में ही रघुवीर जी के दूगो काव्य-संग्रह प्रकाशित भईल- ‘रघुवीर रस रंग’ आ ‘रघुवीर पत्र-पुष्प’

असहयोग आन्दोलन के घरी भागलपुर में महात्मा गांधी के ‘बटोहिया’ गीत सुनावल गइल रहे, सुनके उहो भावविह्वल हो गईल रहले। महामहोपाध्याय पण्डित रामावतार शर्मा, पूर्वराष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद, सर यदुनाथ सरकार आ आचार्य शिवपूजन सहाय बार-बार हर सभा में बटोहिया सुने के आग्रह करे लोगआचार्य शिवपूजन सहाय कहले रहस कि ई भोजपुरी के वन्दे मातरम बा1916 में ओहघरी के एगो पत्रिका “लक्ष्मी” के अगस्त अंक में टिप्पणी छपल रहे कि- रघुवीर बाबू के बटोहिया कविता के प्रचार बिहार के घर-घर में पहुंच गइल बा। इहां तक कि मेहरारू जांता पिसत घरी, खेत में रोपनी करत में, कटनी-सोहनी करत समय, सूप में अनाज चुनत समय भी खुब गावेली, नवजवान गली-गली घूम-घूम के गावेले। “पाटलिपुत्र” नामक पत्र में 16 सितम्बर, 1917 ई. के अंक में लिखल गईल –’श्री भारत भवानी आ ‘बटोहिया’ शिर्षक कविता रघुवीर बाबू के यश के अचल-अटल बना देले बाराष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ लिखले बारें कि – ‘स्वर्गीय बाबू रघुवीर नारायण खातिर का कहल जाव। बिहार में उ राष्ट्रीयता के आदिचारण आ जागरण के अग्रदूत रहले। पूर्वी भारत के हृदय में राष्ट्रीयता के जौन भावना मचलत रहे, उ पहिले-पहल उन्हीं के ‘बटोहिया’ नामक पूर्वी गीत में फूटल आ अईसन फूटल कि उहे गीत उनका के अमर लोग के पंक्ति में पहुंचा देले बा राजेन्द्र प्रसाद जी के हिन्दी में कुछ लिखे के आग्रह पर उ ‘भारत-भवानी’ के रचना कईलन जौन 1912 के असहयोग आन्दोलन के घरी मंगलाचरण के तरह गावे जाए लागल। एकरा विरोधत्मक स्वर से प्रभावित होके जेल के कांतिकारियन में भी जोश जागल आ एकर देश पर असर पड़ल।

कहे कि जरूरत नईखे कि रघुवीर बाबू अपना युग के श्रेष्ठ कवियन में से एक रहले जौना तरह से उनका कविता में छन्द, लय, भाव, देश, काल, मित्र, गांव-गंवई, लोकभाषा, लोकसंस्कृति आ लोकसाहित्य आपन स्थान बना लेले बा ओही तरह उनका लेखनी में भी विविधता के भरमार मिलेलाइनका के बेसी लोग खाली एगो बन्हिया कवि के रूप में जानत बा बाकी उ एगो मंझल गद्यकार भी रहले। ‘आभा जईसन पत्रिका में छपल उनकर शोधपरक कईगो लेख आ दोसर भी पत्र-पत्रिका में छपल उनकर लेख एह बात के पुष्टि करेला। रघुवीर बाबू के दोसर सबसे लोकप्रिय रचना बा “भारत-भवानी असहयोग आन्दोलन के घरी ई गीत लोग के कंठहार बनल रहेएही कम में एकबेर सन् 1912 में पटना में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के महाधिवेशन में ‘वन्दे मातरम’ के जगह ‘भारत-भवानी’ ही गावल गईलभारत-भवानी के कुछ पंक्ति अईसे बा

गेंहू धान जामे राम सरसों विपिन फूले, सुख झुले मड़ई पलानी मेंरी जननी।
जेति जै जै पुण्य धाम धर्म की अनल भूमि, जेति जै जै भारत भवानी मेरी जननी।।

रघुवीर बाबू हिन्दी में भी बहुत स्तरीय रचना कईले बारें, जौना में बहुत सारा ना छपल रह गइल, छपे वाला में खाली ‘रघुवीर पत्र-पुष्प’ आ ‘रघुवीर रसरंग’ बा। उनकर ‘रम्भा नाम के खण्डकाव्य ना छप पावल। उनकर हिन्दी के कविता में भी छन्द के सफल प्रयोग के कारण सारा रचना बहुत लोकप्रिय आ प्रशंसनीय रहल लेकिन दुर्भाग्य से हिन्दी-साहित्य के इतिहास में रघुवीर जी के कहीं चर्चा तक नईखे। रघुवीर बाबू ‘बटोहिया’ आ ‘भारत भवानी’ जईसन राष्ट्रीय भावना से भरल गीत के अलावा बहुत अईसन गीत लिखले बारें जौना में इनकर देशप्रेम साफ-साफ झलकेला। ‘मेरी जननी भारतभूमि’ नामक उनकर गीत ‘बटोहिया’ गीत के बहुत हद तक हिन्दी संस्करण ही मानल जा सकत बा –

एक द्वार घेरे हिमचल कोतवार वीर
तीन द्वार अपर जलधि घहरत
घहर घहर घन गरजे सिन्ध
करे कोलाहल घोर, सुनि जिया डरपत।

‘जय जय बोलो भारतवासी भूमि भारत की’ नामक रचना में कवि सरयू, गंगा, जमुना के अगम जलधार के साथ भारत भूमि के मंगल स्मरण कईले बारें। रघुवीर जी एकर रचना देहाती खेमटा लय में कईले बारें –

प्रेम प्रवाह अगम जल धार हो
लहर मारे राम सरजू गंगा जमूना सी
हिम सिर मौर जलद पटकारी
ए सुभग केसिया, लोटे भूमि इन्दिरा सी

भारत भूमि के साथ आपन अनन्य प्रेम के साथ-साथ उनकर जन्मभूमि बिहार प्रेम के झलक भी साफ-साफ लउकत बा –

सदा जै हो बिहार तेरी महिमा है धन्य
शील, विद्या,बुद्धि गुण सब से सम्पन्न।

एगो आउर रचना ‘तेरी जय हो बिहार’ में इनकर प्रेम आउर साफ-साफ लउकत बा –

मेरी जननी सुखदायिनी तेरी जै हो बिहार
शेर सूर वीर सहस्वामी, श्री वाह गुरू नामी
गोविन्द पाटलग्रामी, हुए विजयी सरदार
तेरे सुभ गोद बीच लीन्हीं अवतार।

जादातर लोकगीतन पर कौनो ना कौनो राग के छाया रहेला। ‘बटोहिया’ गीत पर भी बिलावल राग के छाया बा, जेकरा के शुद्ध बिलावल भी नईखे कहल जा सकत। एह गीत के संगीत-रचना सात मात्रा रूपक ताल में कईल गईल बा आ अंतिम चार पंक्ति के ताल बदल के ओकरा के कहरवा चाहे आठ मात्रा में गावल जाला आ द्रुत लय के साथ एह गीत के समाप्ति होला।

29 अप्रैल, 1995 के उत्तर प्रदेश के देवरिया में पहिला विश्व भोजपुरी सम्मेलन भईल। ओह पावन अवसर पर भोजपुरी लोकगीत के स्वर-साम्राज्ञी पद्मश्री विन्ध्यवासिनी देवी आ मॉरिसस के प्रसिद्ध लोक गायिका श्रीमती सरिता बुधू जब ऐकरा के गावे लागल लोग त देश-विदेश से जुटल सभे लोग बड़ा आनन्द के साथ सुनल आ उ एगो यादगार रात बन गईल। हालांकि बटोहिया के प्रभाव अईसन रहल कि बहुत लोग ऐकरा से प्रेरणा लेके रचना कईलक आ आज भी करत बा लोग। बात ओही घर के ह जब राजेन्द्र कॉलेज, छपरा के प्राचार्य प्रो. मनोरंजन प्रसाद सिंह बटोहिया गीत से ही प्रेरित होके सन् 1918 ई. में अपना ओजपूर्ण राष्ट्रीय गीत ‘फिरंगिया’ के रचना कईलन जेकर प्रकाशन सन् 1921 ई. में असहयोग आन्दोलन के घरी भईल। बटोहिया में प्रकृति आ अतीत के गौरव के चित्रण कईल गईल बा त फिरंगिया में अंग्रेजी शासन के अत्याचार पर देश के दुर्दशा के चित्रण बा –
सुन्दर सुघर भूमि भारत के रहे रामा
आज उहे भइल मसान रे फिरंगिया।

ओह समय फिरंगिया के अतना प्रचार–प्रसार भइल कि ब्रिटिश सरकार ओह कविता के जब्त कर लेलक आ एकरा पाठ पर रोक लगा देलक।

राष्ट्रीय चेतना जगावे वाला आ भोजपुरी साहित्य के बड़ियार स्तम्भ रघुवीर जी के देहान्त 1 जनवरी, 1954 ई. के भईल। आज भले उ हमनी के बीच नईखीं बाकी उनकर देशप्रेम, उनकर गीत, उनकर राग आ उनकर याद हमनी के बीच ‘बटोहिया’ के रूप में मौजूद बा। हालांकि इनके से प्रेरित होके बटोहिया के धुन आ तर्ज पर कईगो रचना आईल जईसे – ‘फिरंगिया’, ‘बेटी बेचवा’, ‘वोकीलवा’, ‘मोख्तरवा’, ‘बिदेसिया के रचना भईल आ हाल फिलहाल में ही भोजपुरी पुरूष डॉ. जौहर शफियाबादी जी मितवा के रचना कईनी ह। त भले ही रघुवीर बाबू हमनी के बीच सशरीर नईखीं बाकी उनकर रचना समस्त भोजपुरिया खातिर बड़हन प्रेरणा के श्रोत बा। भले ही आजो उनकर रचना एतना प्रभावी आ जीवन्त बा बाकी ओह साहित्य-साधक के उनका मेहनत के अपेक्षा कौनो सम्मान ना मिलल। हालांकि बाबू रघुवीर नारायण जी बिहार-राष्ट्रभाषा परिषद से सम्मानित जरूर भइलें बाकि एह साहित्य साधक आ राष्ट्रकवि के कौनो राष्ट्रीय सम्मान ना मिलल। उनकर रचना पढ़ला से उनकर कठोर तपस्या के अन्दाजा लगावल जा सकत बारघुवीर बाबू के तीनगो बेटा रहलें आ सभे बन्हिया साहित्काभइल आ आज उनकर पोता लोग अपना-अपना नौकरी पेशा में लागल बा लोग।

– लव कान्त सिंह

रघुवीर नारायण जी के अमर रचना बटोहिया

सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से,
मोरे प्रान बसे हिमखाते रे बटोहिया ।

एक द्वार घेरे राम हिम कोतबलवा से,
तीन द्वार सिंधु घहरावो रे बटोहिया ।

जा जा भैया रे बटोही हिन्द देखि श्रा,
जहाँ कुहुकि कोइली बोले रे बटोहिया ।

पवन सुगन्ध मन्द अगर चनना से,
कामिनी विरहराग गावे रे बटोहिया।

विपिन अगम घनसघन बगन बीचे,
चम्पक कुसुम रंग देवे रे बटोहिया ।

द्रम वट पीपल कदम्ब निम्ब आम वृक्ष,
केतकी गुलाब फूलफूले रे बटोहिया ।

तोता तोती बोलेराम बोले भेगरजवा से,
पपिहा के पी पी जिया साले रे बटोहिया ।

सुन्दर सुभूमि भैया भारत के देसवा से,
मोरे प्रान बसे गंगाधार रे बटोहिया।

गंगा रे जमुना के झगमग पनियाँ से,
सरजू झमकि लहरावे रे बटोहिया।

ब्रह्मपुत्र पञ्चनद घहरत निसिदिन,
सोनभद्र मीठे स्वर गावे रे बटोहिया ।

अपर अनेक नदी उमड़ि घुमड़ि नाचे
जुगन के जड़ता भगावे रे बटोहिया।

आगरा प्रयाग काशी दिल्ली कलकतवा से,
मोरे प्रान बसे सरजू तीर रे बटोहिया ॥

जा जा भैया रे बटोही हिन्द देखि श्रा,
जहाँ ऋषि चारो वेद गावे रे बटोहिया ॥

सीता के विमल जस राम जस कृष्ण जस,
मोरे बाप दादा के कहानी रे बटोहिया ॥

व्यास बाल्मीक ऋषि गौतम कपिल देव,
सूतल अमर के जगावे रे बटोहिया ॥

नानक कबीर दास शंकर श्रीराम कृष्ण,
अलख के गतिया बतावे रे बटोहिया ॥

विद्यापति कालिदास सूर जय देव कवि,
तुलसी के सरल कहानी रे बटोहिया ॥

जा जा मैया रे बटोही हिन्द देखि आऊ,
जहाँ सुख झूले धान खेतरे बटोहिया ॥

बुद्ध देव पृथु वीर अरजुन शिवा जी के,
फिरि फिरि हिय सुधि आवे रे बटोहिया ॥

अपर प्रदेश देश सुभग सुघर वेश,
मोरे हिन्द जग के निचोड़ रे बटोहिया ॥

सुन्दर सुभूमि भैया भारत के भूमि जेहेि,
जन ‘रघुबीर’ सिर नावे रे बटोहिया ॥

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