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भोजपुरी नाटक जोंक : राहुल सांकृत्यायन

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महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आई पढ़ल जाव राहुल सांकृत्यायन जी के लिखल बेहतरीन भोजपुरी नाटक जोंक, पढ़ीं आ नाटक के आनंद लीं।

भोजपुरी नाटक जोंक के पात्र

नोहर राउत : मुखिया
बुझावन महतो : किसान
सिरतन लाल : जिमदार के पटवारी

(गीत गावल जात बा)

हे फिकिरिया मरलस जान ।
साँझ बिहान के खरची नइखे, मेहरी मारै तान
अन्न बिना मोर लड़का रोवै, का करिहैं भगवान
हे फिकिरिया मरलस जान
करजा काढ़ि-काढ़ि खेती कइलीं, खेतवै सूखल धान
बैल बेंचि जिमदरवा के देनी सहुआ कहे बेईमान
हे फिकिरिया मरलस जान

महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी
महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी

(बुझावन महतो एगो फाटल-मइल धोती पहिरले खड़ा बाड़े। एह घरी नोहर राउत के आँखि बुझावन महतो के फिल्ली पर पड़ल, झट से फिल्ली से कौनो चीजु नोच के बुझावन से कहलैं)

नोहर- हई देखऽ बुझावन महतो।
बुझावन- (थथमि के) नोहर भाई ! फेंकऽ होने, फेंकबो करबs… हमरा पँजरा जनि लेआवऽ, का दू करिया-करिया हिलऽता।

नोहर- तोहरे फिल्ली में से निकलनी हाँ, देखऽ नु हई गोड़। लोहू-लोहान भइल बा। ना जानी केतना बेरि से लागल रहल हा।
बुझावन- (खून से समुच्चा फिल्ली के भीजल देखि के) जोंक लागल रहल हो, नोहर भाई ! हमार माथा घूमऽता (बइठि गइले।) ।
नोहर- (बइठि के घाव के मुँह अँगुरी से दाब के) भँइसवा जोक है, बुझावन। आपन मतलब क चुकल बा। हो देखऽ नु अउठा कइसन मोट बा।

बुझावन- ओकरा ओर देखे के मन नइखे करत। पाव भर खून पियल होई नोहर भाई?

नोहर- ना, पाव भर ना, पाव भर बहुत होला, मुदा कनवा छटाँक से का कम होई ! केतना त खून बहि गइल हा। तोहरा मालूम ना भइल ह बुझावन ?

बझावन- जोंकि के लागल ना नु मालूम होखे! हम पोखरा में भँडसिया के धोवली हाँ, मिगडाह नु तपल बा, रोहिनी के पानी बरिसि गइल बा, से परवा में नयका पानी बहुत बा, पानी में ना जाने कहाँ से 3टी के छैटी जोंक ऊपर भइल बाड़न सन।

नोहर- तोहरा तनिको ना बुझाइल हा?

बझावन- ना नोहर भाई! हम अपना भँइसिया के ढोंढ़ी से चारिगो जोंक निकारि के बिगले रहली हँ, बाकी हमरा ई ना पता रहल ह कि हमरो जोंक लागल बा।

नोहर- आदिमी के खून मीठ होला बुझावन! एक कनवा पी के मोटाइल बा। हम फेंकि देनी, देखऽअतना पिअले बा कि मुँह से खून निकरि रहल बा। मदा पाकी ना, लोग कहेला कि जोंकि के काटल घाव पाके ना।

बुझावन- साचे नोहर भाई! नाहीं त हमार भँइसिया त सरि के मुई गइल रहित, रोजे ओकरा देहि से चार गो पाँच गो बीगीले। भगवान एहनी के काहे के बनौले!

नोहर- हमनी के देहि में जम्मा-पूँजी नव सेर-खून बतावल जाला।

बुझावन- त एक्के कनवा निकरला से कपार में घुमरी काहे आवेले नोहर भाई?

नोहर- घुमरिये के पूछत बाड़ऽ, बेसी खून गिरि गइला पर अदिमी मरि जाला। गोड़ के मोटकी नस काटि द, जो खून ना बन्न होई, त आदिमी मर जाई। दुई मन के समुच्चा देहि में उहै नौ सेर खून फइलल बा।

बुझावन- छोड़ द नोहर भाई अब बन्न हो गइल होई। नोहर- [हाथ हटा के] हँ खून बन्न हो गइल।

बुझावन- [उठि के जोंक पर हुमचि-हुमचि क पाँच-छ ऐड़ी मार के] नोहर भाई ! देखा केतना खून बहऽता, ई जोकिया सुटुकि के पातर हो गइल, बाकी मुअल ना।

नोहर- जोंकि के जिउ बड़ा कठकरेजी होला बुझावन ! जल्दी ना नु मूवै।

बुझावन- हँ नोहर भाई! लोग त कहेला कि सुखा के पीस के फेंक दोहल जाय, तबहूँ बरखा के पानी बरसते जोंक फेनु जी जाले।

नोहर- ई हमरा नइखे मालूम, बाकी जोंकि बड़ कठकरेजी होले, ई देखतै बाड़। [ गाँव के पटवारी सिर पर लाल टोपी-मिरजई पहिरले, कान में कलम खोंसले अइलें।]

बुझावन- सलाम देवान जी ! कहाँ घूमऽतानी ?

सिरतन लाल- मालिक के दू मन घिउ, पाँच मन दही, दू गाड़ी कटहर केतना कुली दे के अबगे बिदा कइनी हाँ, तीन दिन से परसान-परसान रहनी हाँ बुझावन महतो! आज इहै जाके साँस लेहनी हाँ।

बुझावन- देवान जी। ई पँच-पँच मन दही, दू-दू गाड़ी कटहर, एगो खस्सी हमहू देहनी हाँ, फेनू सुनऽतानी गाँव से बारह गो खस्सी अउर गइल हा. मालिक के छगो परानी ई कुलि लेके का करिहैं ?

सिरतन- तुहूँ नोनिये भुचेंग रहि गइला ! बड़का लोग के अपने देह ले नानु होखे, एक आदमी के पाछे पचास गो जियेला… तौंनौ में ई त बबुई जी के बियाह के सरजाम नु हवे!

बुझावन- एगो बरात के सरजाम त हमरे गाँव से गइल हा, फेनु हमनी के मालिक के छप्पन गौ मौजा बाटे, ई कुल्ह रखहू के जगह त ना होई !

सिरतन- राखै के कौन बात लेले बाड़ऽ, देखले नइखऽ, भंडार घर केतना बड़ बा? भंडारी के हाथ में चाभी के झब्बा नइखऽ देखले? फेनु सरकार संतोखी साह के गोला खाली करा देले बाड़े।

नोहर- हाँ जब गाँव भर के घर खाली करा दीहल जाय त छप्पन मौजा का छ सै मौजा के चीज बंतुस राखल जा सकैले।

सिरतन- बुझावन महतो! अबकी चला नु तूहीं, का केहू सवाँग के भेजबा मरदे! उहाँ दुसै ले त नोनियँ जुटिहें।

नोहर- बाबू के घर बरात आई; आ ई दुसै नोनिया जुटि के का करिहैं ? सिरतन-फरुहा कुदार के बहुत काम रहैला नोहर! बबुआजी के बियाह भइल रहल त गइल ना रहलऽ?

नोहर- ना देवान जी ! सुनीं ले खाये बिना गति बनि जाले, एही से ना जाईं। सिरतन-खाये के तकलीफ ना होले, हमरा त नइखे भइल

बुझावन- अपने के का होई, अपने के त बहनोइये बाड़े दरबार में… । बाकी देवान जी! एक ओर से लूट लागल बा। आदिमी बर-बेगारी में अपना कपारे चीज-बतुस लादि के दस कोस पहुँचावे जाला। मर-मजूरी त का मिली, अपना घर से सतुआ बान्हि के जाईंले, इहो ना होला कि हमनी के जुरतै छुट्टी मिल जाओ। चारि दिन चिट्ठियै पुरजां देवे में लगा देलें।

सिरतन- एमें सरकार के कौनो दोस नइखे बुझावन महतो! दरबार में अइसहीं चलेला। एगो सरकार के पाछे हजार गो आदिमी जीयेलें। बड़का के इहै नु ह!

नोहर- आठ आना रुपया महीना जब तनखाह दिआई, त आदिमी का करी देवान जी! ई त मालिक के नु सोचे के चाहीं कि रुपया आठि आना महिन्ना में हरवाहो-चरवाहो आजकल के दिन में ना मिली।

बुझावन- तीन ढेबुआ सेर त मडुआ बा नोहर भाई। आ ढेबुआ सेर महुआ।

नोहर- मडओ-महुआ से गुजारा करे ता खाली खोराकी में एक आदमी का डेढ रुपया महिन्ना लग जाई, आपन कपड़ा-लत्ता आ मेहरारू-लइका के त बातै फरका। मालिक ई नइखे देखत?

सिरतन- सनातन से दरबार में जेकर नौकरी लाग गइल बा, उहै चलि आवऽता आ देखत नइखऽ, हमार तनखाह पचीस रुपया साल हवे, दू रुपया के महिन्ना।

नोहर- मुदा देवान जी! अपने महरौली के बारह टोला के राजा बनि के बैठल बानी। छह हजार के तहसील में रुपया पीछे दू पैसा केतना होला?

बुझावन- आ खाये-पीये में एको पइसा खरच ना होये का? घर-भर के काम एही से चलैला?

सिरतन- अब का आमदनी बा बुझावन महतो! हमरा बाबूजी के बखत देखतऽ, एही महरौली में सोना बरसत रहल।

नोहर- महरौली में सोना अबहियो बरसऽता देवान जी। बाकी हमनी खातिर ना, पाँच हजार के तहसील अब छह हजार हो गइल, दू-दू पुहुत के जोतलि खेत मालिक निकासि के जिराति बना लेहलैं, दूसै बिगहा जिरात कबहीं रहल हा देवान जी! ई हमनी का मुँहै लगावल हऽनु?

बुझावन- आ सुनऽतानी मोटरवाला हरनु आवऽता, जौनो गाँव के हरवाहा दू महिन्ना जीअत रहले हँ, उहो बन्न भइल, ओकनी के मुँह के अन्न छूटल!

सिरतन- बकास के झगड़ा जिला-जवार में ना उठल होइत, त ना नु निकलते? सरकार के एमें कौनो कसूर नइखे।

नोहर- ए देवान जी! देखत-देखत आँख पाकि गइल। जान पड़ता कि महरौली में जेकर जनम-करम बा, जेकरा हजार पुहुत के हाड़ इहाँ गलि गइल, से किछुओ ना, आ दस कोस लमहरा ई अमहरा के बाबू साहेब महरौली के सब कुछ बाड़ें!

सिरतन- नोहर राउत! तोहार सिकायत कई बेर हमरा कचहरी में चहुँपल ह, मोहित राउत के खियाल आवऽता, नाहीं त जानत नु बाड़ऽ जिमदारी फन्ना!

नोहर- देवान जी। बाबू के खियाल मति करीं, जिनगी भर एगो भँइसि के उठौना बेपइसे के लगौले रहले, आ ओही से नु अपने के छोह बनल रहल हा।

सिरतन- मालिक के जमीन में बसल बाड़, उनकरा निगाह में जीअतखात बाड़, सेतिहे ना नु दही-दूध देलऽ?

नोहर- ए देवान जी, बघउछ बाबा के चौरा अबहिन ले हमरा इहाँ हर साले पुजाला। महरौली कुल्ह जंगल रहै, जब हमनी के पुरुखा अइले। हमार, बुझावन आ अउर लोग के पुरुखा जंगल काट के खेत-बारी बनौले; बघउछ बाबा लेले कतना सवांग के बाघ मुअवलस, घर के कतना बच्चा के हुँडार उठा ले गइल।

बुझावन- हुँडरहो त हाँ खानी हमरा दादा के होस तक होत रहल हा नोहर भाई।

मनोहर- आ खेत बनावे में केतना आदिमी साँप के कटला से म गइले. तब महरौली गाँव बसल, जब महरौली में सोना बरिसे लागल, तब ओही सोना के लुटे खातिर अमहरा के बाबू चहुँपले। अमहरा के बाबू के एको बुन्न पसीनो नइखे चुअल महरौली में।

सिरतन- विधि-बरम्हा के रेख पर मेख मारल तोहरा हाथ में नइखे नोहर! तोहार अमहरा के गढ़ में नइखे जनम भइल नाहीं त तूहूँ दू लाख के तसील पर बइठतऽ, मजिहटर साहेब तोहरो के कुरसी दीतें। आपन हसियत देखऽ।

नोहर- ए देवान जी! ई हमरा कहला के जबाब ना भइल। हमनी के जनम महरौली में भइल बा। हम त इहे जानीले कि मतारी के थने में दूध पहिले आवेला, तब लइका जनम लेला। हमनी के जनम जब महरौली में भइल बा, तब महरौली हमनी के जीये-खाये खातिर हवे।

सिरतन- जीअत-खात नइखऽ? महरौलिये का परताप से, बाबुए साहेब का परताप से नु? जौना पतरी में खाये के ओही में छेद ना करे के नोहर राउत!

नोहर- बाबू साहेब के पतरी होई त अमहरा में होई, महरौली में ना देवान साहेब! महरौली ओही के हवे जेकर पुरुखा जंगल काटि के बाघ हुँडार मारि के एके अबाद कइले; महरौली में सोना बरसऽता-ओही हाथन के परताप से, जौनन में दस-दस गो ठेला पड़ल बा।

सिरतन- तोहरा अकिल से सोचें के होई, तब नु? मुदा अन्हरा के आगे रोवै आपन दीदा खोवै। गँवार के बुधिए केतना?

नोहर- लूटे के बुधि नु नइखे, खून चूसे के बुद्धि नइखे, बाकी माटी के सोना इहे हथवा बनावेला देवान जी। छह हजार मालगुजारी द, तीन हजार बबुनी के बियाह में द, दू हजार मोटर के चिट्ठा में द, पाँच सै हाथी के चिट्ठा में द। सालभर बेगारी करत-करत मूअ। हेई मालिक के सवारी आइल, हेई पटवारी, हेई सवार, हेई सिपाही-पियादा, हेई गोराइत बराहिल। दुत् तोरी के! कमाईं हमनी के, आ हरियरो ना होवे पाईं, जेही आवत सेही कुपुटी के खा लेता।

सिरतन- घास जेतने कटाले-नोचाले ओतने फुनगी फेंकेले नोहर! तोहरा लोगन के एतना ना देवे के पड़ित; त इतना कमइबो ना करतऽ।

नोहर- कमा-कमा के मुवहीं भर काम हमनी का ह। आ हमनी के कमाई में आगि लगावे वाला उहाँ अमहरा में केहू बइठल बा। बबुआ के बरात गइल रहल. त कै हजार आदिमी गइल रहले? पाँच हजार त अतिशबाजी में उडावल गदल। बनारस, लखनऊ आ कलकत्ता तक के दस गो नामी-नामी तवायफ गरल रहली, ई केकरा कमाई से देवान जी?

सिरतन- अपना भाग से नोहर राउत! कमायेवाला कमाला, भाग वाला खाला। “करम प्रधान विस्व करि राखा। जे जस करै से तस फल चाखा।” बाबू साहेब ओह जनम में करम कइले बाड़े। “तप चकि राज” भइल बा। तू ओह जनम के पापी हवऽ, उहे भोगत बाड़ऽ ! केहूका हिरिस कइला से ना किछओ होला।

नोहर- त हमनी जे ई घाम में खेती कोड़त-जोतत मुईंले, बरखा में दिन भर भीजोंले, धान रोपीले, घास सोहीले, जाड़ा-पाला में कठुआते खेत में सती होईंले-ई करम किछुओ नइखे?

बुझावन- हमरा सोझवा अदिमी के बुधि में त इहे आवत बा कि भगवान जेकरा के जौना गाँव में जनम दिहलै, भगवान का ओर से गाँव ओकरे लिखा गइल; बाकी कागज पत्तर के बात, से भगवान का ओर से नइखे लिखा के आइल। महरौली के कचहरी से छपरा के कचहरी ले देखले नु बानी, कइसन कागज में ईमानदारी राखल जाले।

नोहर- बुझावन ! जे धरती माता के पाछे आपन खून-पसीना एक करेला, उहे ईमानदारी के अन्न खाला। नाहीं त ई जिमदार बड़का जोंक हवे। बाप रे बाप! हमना के देहि में इचको रकत ना रहि गइल, हाड़ो-चाम एक-जगह राखल मुसकिल बाटे, आ ओने गुलछर्रा उड़ऽता।

(परदा गिरि जात बा)

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