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पुरबी के बेताज़ बादशाह: महेंदर मिसिर

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पुरबी सम्राट महेन्दर मिसिर
पुरबी सम्राट महेन्दर मिसिर

कलकत्ता के मशहूर तवायफ सोना बाई गावत रहली।

माया के नगरिया में लागल बा बजरिया, ए सुहागिन सुन हो।

गीत खतम भइल, सब लोग ताली बजावल।

एगो सज्जन चुप चाप बइठल रहले, सोना बाई के उनकर इ व्यवहार चुभ गइल। उ तुनकि उठली।

लागत बा रउआ के हमार गीत पसन्द ना आइल हा।

सज्जन आपन मुखार बिन्द खोलले, राउर अलाप गज़ब बा, आवाज में कशिश बा ; लेकिन स्वर में आरोह अवरोह के कमी बा।

सोना बाई चमक के कहली, रउवा अइसे कहतानी कि जइसे खुद तानसेन होइँ।
सज्जन तानपुरा लेई के वो ही गीत के अपना अंदाज में गवलन। एमे गायकी में अलाप भी रहे, आवाज में कशिश भी रहे आ संगे संगे आरोह व अवरोह भी रहे।

सुनके सोना बाई मन्त्रमुग्ध हो गइली। पुछलि, रउआ के हईं ? पता चलल कि ई पुरबी के बेताज़ बादशाह महेंदर मिसिर हवे। जवन गीत सोना बाई गावत रहली हा महेंदर मिसिर के लिखल ह।

महेंदर मिसिर के कंठ से आवाज जब फूटत रहल हा त बुझात रहल हा कि पूरा सृष्टि रुक गईल बिया।
अइसन कवनो वाद्य यन्त्र ना रहे जवना के ना बजावत रहले। अइसन गाये व बजाये वाला महेंदर मिसिर के जनम छपरा, 16 मार्च 1886 बिहार के मिश्रवलिया गाँव में भइल रहे।

ओ घरी उनकर गीतन के धूम छपरा, मुजफ्फरपुर, बनारस आ कलकत्ता तकले रहे। बाई जी लो के पहिला पसंद महेंदर मिसिर रहले। उनकर लिखल गीतन के बाई जी लो गाई के गायिकी में कीर्तिमान स्थापित करत रहे लो।

उनकर स्त्री मन के अभिव्यक्ति वाला गीत दुनियां के मोहि लेति रहे . ऐजा हम कुछ गीतन क मुखड़ा लिखतानि जवना में स्त्री मन के अभिव्यक्ति अपना चरम पर बा …

  1. सासु मोरा मरलि रामा बाँस के छिकुनिया ….
  2. अंगुरी में डसले बिया नगिनिया ए ननदो दियरा जरा द…
  3. आधी आधी रतिया बोले कोयलरिया …
  4. पटना से बैदा बोला द…
  5. नज़रा गइली गुइयाँ ….
  6. हमनी के रहब जानी दुनो परानी ….

महेंदर मिसिर लोक मानस से सम्बाद करत रहले। समाज के प्रचलित हर विधा पर उनकर लेखनी बेरोक टोक चलल बिया। प्रेम गीत, विरह गीत, भजन, निरगुन आदि सभ पर उनकर लेखनी सरपट दौड़ल बिया। यानि कि कहल जा सकेला …

कवन सभा जहाँ नारद नाहीं।

महेंदर मिसिर पहलवानी के साथ साथ घुड़सवारी भी करत रहले, जब घोड़ा पर बइठ के चलस त लोग सड़क के दुनो बगल खड़ा हो के उनकर घुड़सवारी के नज़ारा देखत रहे। कइसनो बिगड़ैल घोड़ा होखसु महेंदर मिसिर उनकरा के साधि लेत रहले।

महेंदर मिसिर भिखारी ठाकुर से उमिर में बड़ रहले। भिखारी ठाकुर महेंदर मिसिर के आपन गुरु मानत रहले। हमार परम मित्र भगवती प्रसाद द्विवेदी ( दल छपरा , बलिया ) आपन एगो किताब में ई उल्लेख कइले बाड़े कि भिखारी ठाकुर महेंदर मिसिर के अतना बड़ भक्त रहले हा कि उनकर झोला लेके चलस आ उनकर पाँव दबावसु। ओ घरी के गुरु शिष्य के ई परम्परा रहे। महेंदर मिसिर के बारे में विस्तार पूर्वक जाने खातिर कुछ किताबन के हम सन्दर्भ देतानि शायद ई सब किताब दिल्ली के कनाट प्लेस में मिली जाइ।

  1. पाण्डेय कपिल के उपन्यास “फूल – सूंघी “
  2. राम नाथ पाण्डेय के ” महेंदर मिसिर “
  3. रवीन्द्र भारती के ” कम्पनी उस्ताद “
  4. डॉ सुरेश कुमार मिश्र के ” कविवर महेंदर मिश्र के गीत संसार

एकरा आलावा आरा जिला, गाँव -पियरो के चंदन तिवारी महेंदर मिसिर पर एगो गीत श्रृंखला निकलले बाड़ी ओकरे के सुने के चाहीं।

महेंदर मिसिर स्वतंत्रता सेनानी भी रहले, क्रान्तिकारियन के मदद आ अंग्रेजी साम्राज्य के अर्थ ब्यवस्था के ध्वस्त करे खातिर जाली नोट भी छापत रहले।

पकड़ाइला के बाद उनका के बक्शर जेल में राखल गइल, कहल जाला कि छपरा, मुज्जफरपुर, बनारस, पटना आ कलकत्ता के सब बाईजी लो एकजुट व एकमत होइ के ब्रिटिश सरकार से ई अनुरोध कइले रहे कि महेंदर मिसिर के बराबर रुपया देबे खातिर उ लोग तैयार बा लेकिन महेंदर मिसिर के छोड़ दिहल जाउ।

हमनी के गीत संगीत मरी जाइ यदि महेंदर मिसिर ना रहिये त। गीत संगीत के ई असर होला। जेल में गइला के बाद मिसिर जी पूरा रामायण भोजपुरी में काव्य के माध्यम में लिख दिहले। जेल में जब ई अलाप लगावसु त सुने खातिर अंग्रेज जेलर के मेहरारू इनकरा कोठरी के पास चलि आवसु। जेलर के मेहरारू के दबाव व महेंदर मिसिर के आपन अच्छा व्यवहार के वजह से ईनका के बहुत पहले छोड़ि दिहल गइल। जेल से छुटल महेंदर मिसिर आज़ादी के सूरज ना देखि पवले। 26 अक्टूबर सन् 1946 के दिने माया के बजरिया छोड़ के महेन्दर मिसिर सदा के लिए उहवाँ चल गइले जहवाँ उनकर गीतन के , सुर के , अलाप के हमनी से ज्यादा जरूरत रहे।

– ई. एस डी ओझा

रउवा खातिर:

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