माया शर्मा जी के लिखल एगो कजरी

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बदरा घीरि -घीरि आवेला अँगनवाँ।
मचावे सोर पवनवाँना।।

टुकुर-टुकुर धरती निहारे बदरिया ,
सूखल अँचरवा पसारे एहि कदरिया।

कि जइसे एक बूँद खातिर तड़पे,
तड़पे जल बिन मछरिया ना।।1।।

सूखले अषाढ बीतल भईल रोपनियाँ,
पानी के चलते बा सब पर गिरनियाँ।

गिरनियाँ एईसन सब पर आईल,
होईहें कईसे किसनियाँ ना।।2।।

एईसन मानसून अबकी पछता के आइल,
कतहूँ सूखार भइल कतहूँ दहाईल।

कि झंखे भागि पर अपने किसनवाँ,
साँसत में परलबा जनवाँनाँ।।3।।

एक भिनुसारे बोलेबन मोरईलवा,
रही-रही हुनुकेला मोर कोररईलवा।

कि आगे पीछे भईल बाटेपरनवाँ,
टूटल सगरो सपनवाँना।।4।।

माया शर्मा
उ. म. वि. नेहरूआ कला
पो. भठवां बाजार, प्र.-पंचदेवरी
जि. गोपालगंज , बिहार

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