ललना गईले ममहरवा
मनवा कईसे लागी हो ..२
भोरे से राती ले
रहले ऊहो आंखि के सोझा
एको पहरा छोड़नी नाहीं
बिनका उनके लेहले कोरा
ललना गईले ममहरवा
मनवा कईसे लागी हो..२
माई उनकर जब-जब उनपर
कढ़ली गोधनवा
रोवते ऊ आवस लगहीं
लेहले नलिसवा
लेई के कोरा उनके
बरी पुचकरनी
एही बीचे माईओं पर
खूबे खीसी झड़नी ,
फेनु जनी करींह अईसन
गलती ललन पर
जदि जे चली कबो
तहार चटकनवा
छोड़ेम नाहीं तोहके हमहु
बिना भेजले नईहरवा
ललना गईले ममहरवा
मनवा कईसे लागी हो ..२
राति में सुतला पर जब
फेंकस ऊ रजाई
बारी- बारी सोझा करी
फेरु दीहीं हम ओढ़ाई
ललना गईले ममहरवा
मनवा कईसे लागी हो ..२
भोरे -भोरे जब हम जगनी
ऊनकर पहिला दरसन कईनी
अब तs ऊहो ममहर गईले
तs हमहु अंखिआ खोलब कईसे
– प्रभास मिश्र जी
बहुते सुन्दर। माई के मन के भाव गहराई साफ लउकत बा।
इ लाइनन के कहही के नईखे प्रभाष जी
राति में सुतला पर जब
फेंकस ऊ रजाई
बारी- बारी सोझा करी
फेरु दीहीं हम ओढ़ाई