भोजपुरी सिनेमा इंडस्ट्री में मणि भट्टाचार्या ने धमाकेदार इंट्री की है, अभी हाल ही में खेसारीलाल यादव के साथ भोजपुरी फिल्म जिला चंपारण में नजर आई हैं। वे इस फिल्म एक अमीर जिद्दी लड़की की भूमिका में है, जिन्हें इंप्रेस करने के लिए खेसारीलाल खुद से चाइलेंज तक करते हैं। बता दें कि बांग्ला में इनकी फिल्म ‘चार’ को नेशनल अवार्ड भी मिल चुका है, जिसे संजीत रॉय ने बनाया था। इन्होंने अब तक कई टीवी सिरियल्स और नेशनल एड भी शूट किये हैं। बेबाक शख्सियत और बेहतरीन अभिनय कला से लबरेज अदाकारा मणि भट्टाचार्या से उनके रील लाइफ और रियल के बारे में बात की अतुल – रंजन ने। पेश है बातचीत के कुछ अंश –
मणि भट्टाचार्या जी सिनेमा इंडस्ट्री में आना कैसे हुआ और अब तक की जर्नी कैसी है ?
मैं बंगाल से हूं और सिनेमा इंडस्ट्री में मेरी अभी तक जर्नी काफी शानदार रही है। मुझे बचपन से ही हिरोईन बनने का शौक था, तो मैं घर में मां की साड़ी, लिपिस्ट आदि लगाकर आइने के सामने डॉयलॉग बोलती थी। मैंने पॉलिटिकल साइंस की डिग्री ली है और अभिनय के साथ पढ़ाई भी करती हूं। साथ ही मुझे म्यूजिक भी पसंद है। मेरा मां भी सिंगर रही है, इसलिए घर में मैं वाद्य यंत्र के साथ अभ्यास भी करती रहती हूं। मतलब मेरे घर का माहौल संगीत का है।
जहां तक मेरे फिल्मी करियर की बात है, तो ‘फागुन लागेछै बोने बोने’ मेरी पहली सिरीयल थी। इसके अलावा अग्निपरीक्षा, मोहन बागान, सौभाग्यवती भव मेरे बांग्ला में लोकप्रिय धारावाहिक हैं। मुझे याद है कि 2010 में ‘फागुन लागेछै बोने बोने’ के लिए कई नामचीन अभिनेत्रियों के बावजूद मेरा सेलेक्शन हुआ था। तब एक्टिंग स्कूल में मेरे भाई का एडिमिशन हुआ था, मगर उसे क्रिकेट में इंटरेस्ट था। मैं मां के साथ उसके स्कूल जाया करती थी। इसी दौरान मुंबई से आये प्रोड्यूसर – डायरेक्टर की नजर मुझे पर पड़ी और उन्होंने मेरी मां को अप्रोच किया। फिर मैंन स्क्रीन टेस्ट दिया और घर पहुंचने से पहले ही फोन आया कि मैं सेलेक्ट हो गई हूं।
मणि भट्टाचार्या जी भोजपुरी फिल्म जिला चंपारण अपकी आपकी डेब्यू फिल्म है भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री में। कैसा रहा इस फिल्म में करने का अनुभव ?
भोजपुरी फिल्म जिला चंपारण एक शानदार फिल्म है। इसके लिए मैंने साउथ की एक फिल्म को मना कर दिया। क्योंकि उसी समय मैं एक बांग्ला फिल्म ‘कौशा’ भी कर रही थी, जो हिरोइन बेस्ड एक्शन – थ्रिलर मूवी है। मगर मुझे इसका कोई पछतावा नहीं। ‘जिला चंपारण’ काफी अच्छी फिल्म है, जिसे मैंने खूब इंज्वाय किया। फिल्म में मेरा किरदार प्रिया नाम की लड़की का है। लोग फिल्म को और मेरे किरदार को पसंद भी कर रहे हैं।
बिना भोजपुरी बैकग्राउंड के भोजपुरी फिल्म जिला चंपारण की हिस्सा कैसे बनीं ?
सच कहूं तो बंगाल में भोजपुरी फिल्मों को बी ग्रुप मूवी समझा जाता है। मैंने सुना था इसमें अश्लीलता रहती है। इसलिए मैं कभी भोजपुरी फिल्में नहीं देखती थी और कभी मौका भी नहीं मिला था। हां, साउथ की फिल्में काफी देखी। प्रभास की मैं डायहार्ड फैन हूं। मगर जब फिल्म के निर्देशक लाल बाबू पंडित ने ‘जिला चंपारण’ मुझे ऑफर की, तब मैंने अपनी मां से इस बारे में बात की। उन्होंने मुझे मना नहीं किया। वे काफी सपोर्टिव रही हैं मेरे लिए। फिर में लाल बाबू के आफिस गई और उनसे कोई भी भोजपुरी की रफ स्क्रिप्ट मांगी। साथ में एक महीने का समय भी, ताकि मैं खुद समझ सकूं मैं कर पांउगी या नहीं। क्योंकि बंगाल से आने के कारण उच्चारण में दिक्कत होती, इसलिए मैं पशोपेश में थी। इसके लिए मैंने खेसारीलाल जी की कई फिल्में भी देखी। कोई और मेरी डबिंग करे ये मुझे पसंद नहीं। खैर, स्क्रिप्ट मिला। एक महीने तक मैंने एग्जाम की तरह उस पर मेहनत की और अंत में पास हुई और फिल्म का हिस्सा बनी।
भोजपुरी सेट पर पहला टेक देने में नर्वस थीं ? कैसा रहा सेट का अनुभव ?
मैं कर तो रही थी भोजपुरी की पहली फिल्म, लेकिन मुझमें नवर्सनेस नहीं था। इसकी वजह ये है कि मैंने इससे पहले बांग्ला में कई धारावाहिक करी है। तो कैमरे से मुझे कभी डर नहीं लगा। मेरा पहला टेक कोलकाता के ईको पार्क में था, खेसारीलाल और मोहिनी घोष के साथ। लेकिन मैंने पहला टेक आराम से दिया। इसको देख कर लाल बाबू समेत सभी ने मेरी तारीफ की। फिल्म के दौरान मेरे लगभग सभी सीन एक ही टेक में ओके हुआ। फिल्म में अवधेश मिश्रा, संजय पांडेय, आनंद मोहन, मनोज टाइगर सरीखे अभिनेताओं के साथ का करने का मौका मिला, जो मेरे लिए यादगार लम्हा है।
मणि भट्टाचार्या जी आप अपनी फिल्म के प्रामोशन को लेकर आप पहली बार बिहार आईं थीं, क्या कहना चाहेंगी बिहार के बारे में ?
बिहार के लोग काफी अच्छे हैं। यहां आकर मुझे काफी अच्छा लगा। मैंने कई बंगला फिल्में भी की है, मगर वहां इस तरह से प्रमोशन नहीं होता है। मुझे एक बात जो काफी प्रभावित करी वो ये कि कोई भी साधारण लोग स्टार तभी बनता है, जब लोग उसे तीन घंटे थियेटर में देखते हैं। मैंने देखा और निर्देशक लाल बाबू से कहा भी कि ये लोग तीन घंटे हमें हॉल में पसीना बहाते हैं, तब जाकर हम स्टार बनते हैं। मुझे ये देख कर दुख भी हुआ। मल्टीप्लेक्स में तो एसी लगी होती है, मगर सिंगल थियेटर में इसका अभाव रहता है। फिर भी लोग हमें देखने आते हैं। मैं तो उन्हें सलाम करती हूं। साथ ही फिल्म मेकरों और डिस्ट्रीब्यूटरों से उम्मीद करती हूं कि भोजपुरी फिल्मों को भी मल्टीप्लेक्स में रिलीज कराने की पहल करें।
आपकी आने वाली फिल्में कौन – कौन सी हैं ?
अभी मेरी एक फिल्म ‘घूंघट में घोटाला’ बनकर तैयार है, जिसमें मैं प्रवेशलाल यादव के साथ लीड रोल में हूं। उसके बाद दिनेशलाल यादव के साथ ‘सौगंध’ और प्रदीप पांडेय चिंटू के साथ ‘या आली बजरंग बली’ फ्लोर पर है।
Mani Bhattacharya rejected offer from South Film for Bhojpuri movie Jila champaran.