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महापंडित राहुल सांकृत्यायन के मातृभाषा भोजपुरी रहे : संतोष पटेल

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महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी

सबसे पहिले आजु हमके 125 वां जयंती पर आपन सरधा के फूल उहाँ का अर्पित करत बानी।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी
महापंडित राहुल सांकृत्यायन जी

बात शुरू करत बानी सुप्रसिद्ध हिंदी विद्वान आदरणीय सुधीश पचौरी जी के आजु हिंदुस्तान में प्रकाशित उहाँ के आलेख के ‘विचारों के लिए जीने वाले महापंडित’ जेकरा में पचौरी जी लिखत बानी कि- …”. वह 70 बरस तक जिए। 148 पुस्तकें लिखीं, मार्क्सवाद तक वैचारिक यात्रा की, संस्कृत, फ़ारसी, उर्दू, अंग्रेजी, पालि, प्राकृत पर अबाध पांडित्य रहा। राष्ट्रभाषा कोश तैयार किया, तिब्बती-हिंदी कोश तैयार किया।… त्रिपिटक का टीका लिख त्रिपिटिकाचार्य कहलाये।”

वइसे त सुधीश जी आपन एह वैचारिक आलेख में राहुल सांकृत्यायन जी के एगो बेबाक विचारक के रूप में उधृत कइले बानी बाकिर उहाँ के भाषाई पांडित्य के उल्लेख करत समय राहुल जी के मातृभाषा भोजपुरीके बड़ी बारीकी से छोड़ देले बानी। एकरा के रउरा भूल मान सकीला बाकिर हम एकरा अपराध मानब।

महापंडित राहुल सांकृत्यायन भोजपुरी समाज के समस्या के 1942 में आपन आठ गो नाटकन में बड़ी संजीदगी से उठवले बानी। एह आठ गो नाटकन में राहुल जी आपन विचार लोकल समस्या से लेके ग्लोबल समस्या तक सोझा ले के आइल रहीं।

जोंक, मेहरारू के दुर्दशा, देशरच्छक, नइकी दुनिया, ढुनमन नेता, जपनिया राछछ, जरमनवा के हार निहिचय बा, ई हमार लड़ाई इहे आठ गो नाटक भोजपुरी साहित्य में नज़ीर बन गइल।

राहुल जी इ कुल्ह आठो नाटक में ओह समय के समस्या के उल्लेख रहे त समाधानों उहाँ के सुझा देत रही।
प्रो जयकान्त सिंह के आलेख बा – “भोजपुरी नाट्य साहित्य के विकास में राहुल सांकृत्यायन के योगदान” ओकरा में राहुल जी बारे में अद्भुत आकलन बा-
“भारतीय नव जागरण का चेतना के महान अगुआ राहुल जी हिंदी भोजपुरी भाषा आ साहित्य के प्रगतिशील आ प्रौढ़ वैचारिक मूल्यन के जोड़के एगो नया रचना संस्कृति विकसित कइलें, जवना के प्रभाव उनकर लिखल भोजपुरी के आठो नाटक में देखल जा सकत बा।”

भइल एगो पुरहर मूल्यांकन, पता ना सुधीश पचौरी जी के भोजपुरी से का चिढ़ बा। बहुत पहिले सहारा समाचार पत्र के हस्तक्षेप कॉलम में सुधीश जी के भोजपुरी भाषा के प्रति विद्वेष देखे के मिलल रहे ओकर असर आजो देखे आ समझे के मिलल। इ दुखदायी बा।

राहुल जी बारे में प्रो सुनील कुमार पाठक के पढ़ल नीक लागेला-‘ Rahul sankrityayan- Buddhist studies in the Twentieth Century And CE Orientalism’ में लिखल बा कि ” He was a polyglot in literal sense for his high efficiency in speaking and writing multiple languages like South Indian Tamil, Urdu, Arabic, English, Russian,Chinese, Tibetan,Japanese, Sanskrit, pali, Hindi, Bhojpuri besides his mother tongues inclusive of local dialects of utter pradesh and Himalayan Tarai regions.”

आलेख प्रस्तुति : संतोष पटेल जी

अब समझल जा सकेला राहुल जी आपन मातृभाषा से केतना जुड़ाव राखत रहीं। आदमी जेतने बड़ होला लमहर गाछ लेखा ओकर सोर आपन माटी में बड़ा निचे ले पइसल रहेला आ उहे माटी से ओकरा खाद पानी मिलेला जेकरा से उ पल्लवित, पुष्पित आ फलित होखे ला।

देश में आजादी से पहिले भाषाई आधार पर प्रांत बने के मुहिम चलत रहे तब सबसे पहिले भोजपुरी प्रांतीय सभा के दूसरा अधिवेशन गोपालगंज में भइल जेकर अध्यक्षता राहुल जी कइनी। भोजपुरी भाषा में साहित्य के एगो रूप देवे के बात चलल त राहुल जी एकर समर्थन कइनी आ ओकर एगो आन्दोलनात्मक स्वरूप दिहनी। उहाँ के भोजपुरी भाषा के स्थापित करे में बहुत लमहर योगदान देले बानी।

एतवार के अखबारन में आदरणीय सुधीश जी के हमनी का पढेनी जा। बड़ा नीक लागेला। सुधीश जी के भोजपुरी विरोधी छवि से बाहर आवे के चाहीं। हमार निहोरा बा।

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