परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आई पढ़ल जाव निर्भय नीर जी के लिखल भोजपुरी रचना कुष्मांडा माई | नवरातन के चउथका दिन , रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा निर्भय नीर जी के लिखल रचना अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।
जेकरा उदर में त्रिविद्ध ताप से भरल संसार समाइल होखे, जे सगरी चराचर जगत के उत्पत्तिकर्ता होखे, जेकरा उर्जा ताप से सूरुज भगवान चमकत होखस, जेकरा कोहंड़ा के बलि मन भावे, जेकर आठ गो हाथ होखे, आ पहिलका में कमंडलु, दूसरका में धनुष, तीसरका में बाण, चउथका में कमल, पाँचवाँ में अमृत-कलस, छठा में चक्र, सातवाँ में गदा, के साथे आठवाँ हाथ में आठो सिद्धि आ नवो नीधि के देवे वाली जपमाला फेरत होखस, उनकरे नाम कूष्मांडा माई ह। इहाँ के अष्टभुजी माई भी कहल जाला। जेकर सवारी शेर हउवन।
जब सृष्टि के कवनो अता-पता ना रहे, चारो ओरि अंधरिया के करिया सम्राज फइलल रहे, ओही घरी माई कूष्मांडा जिनकर मूँहमंड सूरुज के प्रकाश जस दमकत रहे, उहाँ के मुस्की से सउंसी सृष्टि, (जे बूत बनल रही ऊ) पलक झपकावे लगली। जेह लेखा फूल में अंड के जन्म होला, ओही लेखा कुसुम जस माई के हँसी से एह ब्रह्मांड के जन्म भइल, आ कुष्मांडा माई के नाम से सुविख्यात भइली।
इहाँ के सउंसी ब्रह्मांड के उत्पत्तिकर्ता रहीं, एही से इहाँ के आदिस्वरूपा भा आदिशक्ति भी कहल जाला। इहाँ के निवास सूरुजमंडल के भीतरी लोक में होला, आ इहें के तेज से सूरुज भगवान एह दूनिया में आजहूँ चमकत बाड़न।
इहाँ के उपासना, पूजा, आ साधना भक्ति से आदमी के सगरी किस्म के रोग, शोक, पीड़ा व्यथा, व्याधि सब खत्म हो जाला, आ उमिर, यश, बल आरोग्यता आदि के प्राप्ति होला। योग साधक लोग के मन एह दिन अनाहत चक्र में विराजमान रहेला। इहाँ के किरपा जेकरा पर हो जाला ऊ कइसनो भय से मुक्ति पा जाला।
एह से आई सभे मिल-जुल के कुष्मांडा माई के आजु के दिन पूजा, पाठ, अर्चना, आराधना कइल जाव, आ आयु , बल, यश आ आरोग्यता पावल जाव।
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