परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प , रउवा सब के सोझा बा लवकान्त जी के लिखल भोजपुरी व्यंग खदेरन के पाठशाला ( Bhojpuri vyang khaderan ke pathshala) , एह पारी के मुद्दा बा चौकीदार, पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा लवकान्त जी के लिखल खदेरन के पाठशाला के इ कड़ी कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि शेयर जरूर करी।
(मोबाइल प फगुआ के गीत बजा के लड़िका सब खूब नाचत बारें स आ एक दोसरा के अबीर से नाहवा देले बारें स। दुगो लड़िका ई सबसे दूर कोना में खाड़ा बा। मास्टर साहब के प्रवेश। सब भाग के सीट पर पहुंच जाता)
मास्टर साहेब- अरे ई सब तुमलोग का किये हो….ई क्लास है कि फगुआ का मैदान…खीस त एतना बड़ रहा है कि मन कर रहा है कि सबका भुभुन रंग दें बाकी अबीर लयबे नहीं किये हैं।
लबेदा- हमरा लगे बा, दीं का मारसाएब?
मास्टर साहेब- मारते-मारते दम छोड़ा देंगे, हमरा अबीर का मतलब था सोटा… बैठो नहीं तो सोंटवस देंगे। तुम दुनू कोना में काहे खड़ा हो जी….रफ़ीक़ नाम है न तुम्हारा?
रफ़ीक़- जी, ई लोग अबीर खेल रहा था, अम्मी बोली है रंग अबीर से एकदम दूर रहना।
मास्टर साहेब – अच्छा अच्छा, ठीक है…लड़का सब भी समझदार है नहीं तो कोना तक जाना कौनो बड़ बात है का। लेकिन एक बात हमको बुझाया नहीं, हमारे जानकार हैं मुस्ताक उनका रंगे अबीर का होलसेल दुकान है उ कइसे दूर रहते होंगे?
(सब लड़िका हँसताs)
मास्टर साहेब- जादा हंसी आएगा तुम लोग को…!! अब आओ काम के मुद्दे पर….टास दिए थे सबको न लघु कथा लिखने को…चलो एक-एक करके सुनाओ सब, सबसे पहिले सुथनी सुनाएगा….चलो सुनाओ।
सुथनी- कहानी के सिरसक बा “हमहू चकुदार बानी”….
मास्टर साहेब- बाक बेहूदा कहीं का सिरसके गलत है…हमहू चोर बानी रहे के चाहीं।
लबेदा- मारसाएब ई राउर बात नइखे करत आपन करता…
(सबके ठहाका गूंज जाता)
मास्टर साहेब- बनोगे जादा बोलबाज, मार के धुरछके छोड़ा देंगे, हं चलो जी सुथनी बोलो कहानी।
सुथनी- एगो किसान रहे ओकर एगो बेटा एगो बेटी रहे। किसान के बेटा बहुत आलसी आ लापरवाह रहे। किसान बार-बार समझावे के कोशिश करे कि घर के जिम्मेदारी लs अब तुहु जवान हो गइलs..हमही कबले सब ढोएब। तुहु साथे आ जइबs त हमार ताकत बढ़ जाई। बाकी बेटा पर कवनो असर ना पड़ल। किसान एक बेर रात के खेत अगोरे गइल रहे तबतक घरे डकैती हो गइल…डकैत किसान के जवान बेटी के भी उठा ले गइलन स।
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जब किसान आइल आ लोग जुटल त पुछल उनका बेटा से की जब तहरा घर मे डकैती भइल आ तहरा बहिन के उठा ले गइलें स त तू कहाँ रहे। किसान के बेटा कहलस की हम त घरे में सुतल रहीं बाकी घर के चकुदार बाबूजी बारें हम चकुदार ना हईं ऐसे हम कुछ ना कहनी।
किसान आपन टायर के चप्पल निकाल के लागल बेटवा के बजावे- पहिलहीं कहले रहीं की रवीसवा जइसन घरफोरवा के साथे तोर संघत खराब हो गइल बा, तोहरा बहिन के चोर तोरा सामने उठा ले गइल आ ते कहत बारे की हम चकुदार ना हई, ई घर हमनी दुनु आदमी के बा…तुहु एकर सदस्य बारे तोर शक्ति से ही हमार शक्ति बढ़ी…किसान तबले पिटलक जब तक बेचारा के चप्पल टूटल ना।…. कहानी खत्म।
मास्टर साहेब- सही सही बोलो ई कहानी तुम अपने से लिखे हो कि खदेरन से लिखवाए हो, जल्दी बोलो नहीं तो हम मंगवाते हैं डंटा…
सुथनी- हं मारसाएब ई खदेरने लिखले बारें बाकी हमरा के मारब जन।
मास्टर साहेब- पहिलहीं हम समझे कि एतना राजनीति वाला कहानी इहे लिख सकता है। बेकार है कहानी।
खदेरन- काहे माहटर साहेब?
मास्टर साहेब- ई का लगे सब लोग चकुदारी करने, जो चोर है वही चकुदार बन रहा है।
खदेरन- का बात करत बानी माहटर साहेब जेकर बाप-दादा घोटाला क के मर गइल आ जवन चोरवा अपने बेल पर बा उहे सभे के चोर कहत फिरत बा।
ढोंढ़ा- हं जे मास्टरी के बाहली में घुस देके जाली सर्टिफिकेट पर माहटर बनल बा उहो दोसरा के चोर कहsता।
(जोरदार ठहाका)
मास्टर साहेब- हम जा रहे हैं हेड मास्टर से तुम सबका शिकायत करने,, तुमलोग हर बेर हमरे पर बोलबाजी करते हो।