केतना मुश्किल बा के अनुवादक डाॅ0 भगवानसिंह ‘भास्कर’ के ओर से
दुनिया में कुछ चीज सुन्दर होली, कुछ असुन्दर। सुन्दर चीजन के देखिके आदमी प्रसन्न हो जाला आ असुन्दर चीजन के देखि के नाक-भौं सिकोड़ ले ला। ‘साहित्य-प्रभा’ पत्रिका के सम्पादक चन्द्रसिंह तोमर ‘मयंक’ के साहित्यिक आयोजन प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त के जन्मस्थली कौसानी में 27 आ 28 जून, 2007 के रहे। ‘मयंक’ जी के निमंत्राण मिलल हमरा के सम्मानित करे के। हम बहुत खुश भइलीं कि चलऽ, एही बहाने पन्त जी के जन्मभूमि के दर्शन होई।
हम एगो गैर साहित्यिक पेशा में बानीं जहां साहित्य के कवनों महत्त्व नइखे। इहे ना, साहित्य के नाम पर लोग मजाक करे से भी बाज ना आवे। अइसन स्थिति में साहित्यिक कार्य के नाम पर छुट्टी मिले के त कवनो सवाले नइखे। पदाधिकारी रहला के चलते हमार दायित्व भी अउर लोगन से बेसी रहेला। संयोग से एही बीचे हमार स्थानान्तरण मैरवा से महाराजगंज हो गइल। हम महाराजगंज में योगदान करिके छुट्टी में चल दीहलीं। कवनों प्रभार ना रहला से आ तुरंते योगदान कइला से छुट्टी मिले में ज्यादा दिक्कत ना भइल।
कौसानी पहुंचि के हमरा बहुत खुशी भइल। शुरू में हमरा के सिवान के साहित्यकार जानिके साहित्यकार भाई लो हमार खूब मजाक उड़ावल। ओइजा देशभर के लगभग पांच दर्जन से बेसी साहित्यकार रहे लो। रात में कवि-सम्मेलन भइल। कवि-सम्मेलन में हिसार (हरियाणा) के डाॅ0 रामनिवास ‘मानव’ के कविता सुनि के हम बहुत प्रसन्न भइलीं। भाव, भाषा, शिल्प आ प्रस्तुति, हर दृष्टि से कविता बेजोड़ रहलीसन। उहां के कविता के खूब प्रशंसा
भइल। खूब ताली बजलीसन। पूछला पर मालूम भइल कि हिन्दी-कविता के विभिन्न विधा में उहां के दुई दर्जन से बेसी किताब प्रकाशित बाड़ीसन। हरियाणा, उत्तराखण्ड, गुजरात आ महाराष्ट्र आदि राज्यन में उहां के साहित्य, विशेषकरि के कविता के काफी प्रतिष्ठा बा। हम सोचे लगलीं कि डाॅ0 ‘मानव’ के कुछ चुनल कवितन के भोजपुरी में अनुवाद करब। फेर सोचलीं कि जे भोजपुरी जानता, ऊ हिन्दीओ जानता। त फेर ओकरा खातिर हिन्दी-कवितन के भोजपुरी अनुवाद कहां तक उचित बा ?
कौसानी में एकरा पहिले एगो घटना घट चुकल रहे। कार्यक्रम के पहिलका दिने सांझ के बेरा। कार्यक्रम गांधी आश्रम कौसानी में रहे। एह से गांधी जी के नियम के अनुसार सांझ के बेरा प्रार्थना-‘रघुपति राघव राजाराम’ भइल। फेर आयोजक ‘मयंक’ जी के मेहरारु दूगो भजन अपना सुरीली आवाज में सुनवली। लोग खूब ताली बजावल। संचालक के लहि गइल। ऊ कहले कि ई त मेहरारू लो का ओर से भइलहा। अब मरदानालो का ओर से हो जाव। सब साहित्यकार लो बगल झांके लागल। केहू ना सुगबुगाइल त हम खाढ़ भइलीं आ आपन दूगो भोजपुरी भजन-‘गोरी ! जइबू ससुररिया कवन दिनवा ?’ आ ‘बतावऽ गोरी ! केकरा से कहां मिले जालू ?’ सुनवलीं। खूब ताली बजलीसन। लोग खूब प्रशंसा कइल।
रात्रि कवि-सम्मेलन में कविता पढ़े खातिर हम खाढ़ भइलीं। हिन्दी में कविता पढ़े के चहलीं। चारु ओर से हल्ला भइल-‘‘रउवा भोजपुरी में कविता पढ़ीं। रउरा से हमनी भोजपुरी में कविता सुनब।’’ भोजुपुरिये में हम कविता-पाठ कइलीं।
भोजपुरी क्षेत्रा के बाहर देशभर के हिन्दी के नीमन-नीमन साहित्यकारलो का सामने भोजपुरी के झण्डा गड़ा गइल। भाषण, सरस्वती वन्दना, भजन, कवि-सम्मेलन, सब जगे हम आ हमार भोजपुरी आगे-आगे रहल। जे सिवान के नाम पर हंसत रहे, ऊ समे पीछे हो गइल।
भोजपुरी के ताकत आ मिठास के अहसास हमरा भइल। हम हिन्दी आ भोजपुरी दूनू भाषा में लिखिले। दूनू भाषा में हमार दू दर्जन किताब प्रकाशित बाड़ीसन। सैकड़ों राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय आ क्षेत्राीय आयोजनन में हम भाग लीहले बानीं। बिहार के बाहर दिल्ली, विलासपुर (छत्तीसगढ़), रानीगंज (प0 बंगाल), जमशेदपुर (झारखण्ड), राबर्टसगज, देवरिया, खुखुन्दु, गाजीपुर, भाटपार रानी (सब उत्तर प्रदेश) आदि अनेक जगहन पर भोजपुरी के झण्डा
फहरवले बानीं, बाकिर भोजपुरी भाषी लोगन के बीच। आज हिन्दी भाषी लोगन के बीच भोजपुरी के झण्डा एतना ऊंचा देखिके हमार मन सातवां केतना मुश्किल बा आसमान पर चढ़ि गइल। अपना मातृभाषा के मिठास आ आन्तरिक सौन्दर्य के हमरा साक्षात् दर्शन भइल। हम निश्चय कइलीं कि डाॅ0 रामनिवास ‘मानव’ के सुन्दर कवितन के भोजपुरी के मिठास से सराबोर करब। उहां के हिन्दी कवितन के भोजपुरी के रंग में रंगि देब। उनका कवितन के भोजपुरी में अनुवाद करब। भोजपुरी में एकर जरूरत बा।
डाॅ0 रामनिवास ‘मानव’ से हमार पहिल परिचय एहीजा भइल। धीरे-धीरे हमनी के परिचय प्रगाढ़ होते चल गइल। हम उहां के कवितन के भोजपुरी अनुवाद करे के आपन इच्छा जतवलीं। उहां के सहर्ष तइयार हो गइलीं। उहां के कहलीं-‘‘हमरा कवितन के अनेक भाषा में अनुवाद हो चुकल बा। भोजपुरी में हमरा कवितन के अनुवाद होखो, ई बहुत खुशी के बात बा। हमनी के हिन्दी के विश्वभाषा जानीले, बाकिर वास्तव में विश्वभाषा भोजपुरी बिया, हिन्दी ना। संसार में हिन्दी के नाम पर जवन प्रतिष्ठा बा, ऊ सब भोजपुरी के ह।
बाद में डाॅ0 ‘मानव’ आपन कविता हमरा लगे भेज दीहलीं। वोह कवितन के भोजपुरी अनुवाद हम करि दीहलीं। उन्हे अनुवाद- ‘बहुत मुश्किल बा’ रउरा हाथ में बा।
अनुवाद साहित्य के एगो महत्त्वपूर्ण विधा ह। कवनो भाषा के महत्त्वपूर्ण साहित्य के दोसरा भाषा में अनुवाद करि के वोह भाषा के साहित्य भण्डार भरे के पुरान परम्परा चलि आवत बिया। संसार के प्रायः सब देशन में ई प्रचलन बा। लगभग सब भाषा में अनुवाद के प्रक्रिया चलेले। शेक्सपीयर के अंग्रेजी पुस्तकन के अनुवाद प्रायः हर भाषा में पावल जाला। गोस्वामी तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ आ प्रेमचन्द के ‘गोदान’ उपन्यास के अनुवाद अनेक भाषा में भइल बा।
भोजपुरी भाषा भी एकर अपवाद नइखे। महाकवि कालिदास के ‘पूर्वमेघ’ के बटोहिया के छन्द में भावानुवाद 1954 ई0 में कैलाशनाथ ओझा कइले रहले। ई मात्रा 16 पृष्ठ के किताब बिया, बाकिर एकर ऐतिहासिक महत्त्व बा। ई भोजपुरी में अनुवाद के पहिल किताब बिया, भले पातरे स्वरूप में सही। एकरा बाद त अनुवाद के एगो सिलसिला चलि पड़ल। अनेक संस्कृत किताबन के भोजपुरी गद्य-पद्य में अनुवाद भइल। एने कुछ दक्षिण भारतीय किताबनो के अनुवाद भइल हा। बाकिर हिन्दी किताब के भोजपुरी अनुवाद शायद नइरवे भइल। हमरा बुझाता कि एह दृष्टिकोण से अपना ढंग के ई पहिल पुस्तक होखी। डाॅ0 रामनिवास ‘मानव’ के आधुनिक युगबोध के मुक्त छन्दवाली कवितन के भोजपुरी-अनुवाद के ऐतिहासिक महत्त्व रही।
डाॅ0 ‘मानव’ छन्द के मर्मज्ञ कवि बानीं। उहां के अनेक छन्दन में कवितन के रचना करिके विपुल यश अर्जित कइले बानीं। दोहा, त्रिपदी, हाइकू आदि छन्दन में रचल उहां के काव्य पुस्तकन के पढ़े के सौभाग्य हमरा मिल चुकल बा। हिन्दी-साहित्य में उहां के साहित्य-साधना के काफी प्रतिष्ठा बा। ‘बहुत मुश्किल बा’ के प्रकाशन से भोजपुरी के सुधी साहित्यकार, प्रबुद्ध पाठक आ विद्वान लोगन के उहां के कवित्व के सागर में डुबकी लगावे के सुअवसर मिली।
‘केतना मुश्किल बा’ हमार दोसरकी अनुवाद-पुस्तक ह। एइमें डाॅ0 रामनिवास ‘मानव’ के इक्यावन छन्दमुक्त कवितन के अनुवाद बा। हर कविता अपना-आपमें बेजोड़ बाड़ीसन। हम अनेक छन्दन में, गीतन का रूप में आ मुक्त छन्द में-तीनू तरे से कवितन के रचना कइले बानीं। छन्दमुक्त कवितन के आपन अलगे सौन्दर्य बा। एइमें कवि के तुकबन्दी आ मात्रा के फेरा में ना पड़े के पड़ेला आ एह से एकर उड़ान तनी बेसी ऊंचाई पर हो जाले। डाॅ0 ‘मानव’ के कविता चरम ऊंचाई पर बाड़ीसन। हमरा बुझाता कि ‘केतना मुश्किल बा’ के प्रकाशन से भोजपुरी-साहित्य के श्रीवृद्धि त होखबे करी, ओकरा प्रतिष्ठा में भी चार चांद लाग जाई। हमरा उमेदे ना, विश्वास बा कि भेाजपुरी-जगत् में ‘केतना मुश्किल बा’ के पुरजोर स्वागत होई।
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रउवा खातिर
भोजपुरी मुहावरा आउर कहाउत
देहाती गारी आ ओरहन
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