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कवि ह्रदयानन्द विशाल जी के लिखल तीन गो भोजपुरी कविता

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कवि ह्रदयानन्द विशाल जी

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लंगड़ाटोला के साधू बाबा
घुम घुम बियाह लगावसु
ओही के माथे मउर चढ़वा देसु
कुँआर जेकरा के पावसु

हमरे गाँव के सियाही मे एगो
लइका बकरी चरावत रहे
साधू के संगे बेटिहा एगो
एही के देखे आवत रहे

ओही बेरा बकरिया जा के
प्रधान के बाजड़ा मे ढुक गइल
जेतने हुलकावे ओतने गरियावे
बेटिहवा सुन के रुक गइल

काटल काटल चरवाह के गारी
लइकिया के भाई सुन लिहलस
बुधिये के बलिहारी कहि के
कान बेचारा मुन लिहलस

सोचे लागल बेहाया के गारी
सुन के हम सरमा तानी
लइकी के भाई जानत ना रहे
हम एही के देखे जा तानी

साधु बाबा त चिन्हते रहलन
रखलन भेद छुपा के
बेटहा के दुवारे पहुँचलन
झुँठ साँच बतला के

लइका के बोलवावल गइल
फरके बकरी बन्हाइल
बियाह के बात सुन के लइका
हाकासल पियासल आइल

तबले लइकी के भाई के
चरवाहवा पर नजर पर गइल
सियहिया मे के इहे ह सोचते
ओकर आधा खुनवे जर गइल

अब त ओकर साधू बाबा पर
भइल बा पारा गरम
कान मे कहलस टकसीं ना त
एही जा क देम बेभरम

काका के कान मे हम कहनी
बेटिहवा बड़ा मालदार बा
चालिस हजार के उपर मांगअ
ओतनो पर तइयार बा

जाते जाते बेटिहवा पुछलस त
चालिस हजार बेटहा मंगलें
सुनते बेटिहा आ साधू बाबा
चल दिहले धोती टंगले

व्यंगबाज लइकी के भाई
मरलस एगो व्यंग बरियार
साल भर मे एगो पाठी बियाले
एही पर मांगेल चालिस हजार

एतना बात चरवाहवा सुन के
झागरा के कइले तइयारी बा
बकरी के मरम हम बुझिले
ताहरा का जानकारी बा

दुगो खँसी आ तिन गो पाठी
करियइ उजरकी के हउवन सब
दुइये चार दिन मे बाचा दे दी
चितकबरी भइल बिया अब तब

एतना सुनते लइकी के भाई के
रोकले हँसी रोकाइल ना
लादि दिहलस एगो अउरी व्यंग
चरवाहवा के बात बुझाइल ना

जिनगी भर बकरिये चरइहअ
चुकिह मति ताहार फरज बा
तुहीं जब तत्पर रहतारअ त
बोंका के अब कवन गरज बा

लंगई के भय से केहु ना बोले
हँसत हँसत सभे ढहि गइल
ह्रदया विशाल एतने कारन
ढेर दिन ले बाँड़े रहि

हमरे गाँव के ई घटना ह बचपन के, ओकरा उपर भोजपुरी कविता

चौबिस इंच के साइकिल एगो
हमार बाउजी लियइलन किन के
पलखत पा के चलावे लागे
हमरे चाचा के लइका छिन के

राहता के कगरी टेम्पुवा के ईया
बइठल गर्हत रहली घाँस
ई सुरियाइले जाता एकरा
भइल नाही एहसास

साइकिल बड़ आ छोटका टंगरी
कुद कुद पवडिल दाबत रहे
टेम्पुवा एगो ँख तुर के
डगरिया छेंक के चाभत रहे

रोके रोके तले साइकिल जा के
बुढिया के पिठी पर चढ गइल
छाँटल रहे झागराह टेम्पुवा
ममिला आगे बढ़ गइल

ईया के आपना रोवत देख के
टेम्पुवा के गुस्सा फुट गइल
उठे उठे तले पिठी पर एकरा
कइ टुकी ँखिया टुट गइल

चाचा के लइका कहलस की
हमहुँ ँख तुरबि ताहरा पर
ढुका लागि के खेतवा वाला
बइठल रहलन पाहरा पर

जइसे खेत मे ढुकल तबले
पंडित जी ध के थुर देहलन
तुरले रहे तवनो ँखिया
पिठिये पर एकरा तुर देहलन

ह्रदया विशाल ओहदिने से
हमके देखते जरि मुवेला
आजुवो कहीं पैदले जाला
कहियो साइकिल ना छुवेला

चार गो परुवा बैल के उपर भोजपुरी कविता

एक समय मे चार गो बैल
एक जगे बटोरइले
असली परुवा के बा एइमे
एइपर चरचा कइले

पहिला कहलस हर लेके हम
परती खेत मे आ जानी
खेतवा त हम जोत दिले बाकी
हेंगावे के बेरा पाटा जानी

खेत भले हम जोतिले बाकी
कबो हेंगवले नइखीं
होस गवाँ के कहियो पुरा
जोस देखवले नइखीं

दुसरका कहलस हम त भाई
हर जुआठ तर डट जानी
देख लिले की इहे जोताई त
जोतलके खेतवा मे उलट जानी

हमरा के तइयार करे खाती
खरी खुदी खुब गोतले
पुरा सिजन बित गइल बाकी
ई एकहु खेत ना जोतले

तब तिसरका कहे लागल
हम खिंच के खुबे खाइले
हर सामने देख लीले त
ओही बेरा बेमार हो जाइले

काँड़ी के काँड़ी दवाई पिले
खुब तानि के सुतिले
जबले सोझा हर लउकेला
तबले हम ना उठिले

चउथा कहलस भाई हमरा
खुँटवे के लगे बाटे इनार
गाँव के लोग नहात घरी जब
हरहर महादेव करे पुका

हर हर सुन के कुदिले फानिले
लागिले नाद के ढेकले
साँच पुछअ त हर आजु ले
आँखि से नइखीं हम देखले

ह्रदयानन्द विशाल कहे जे
परुवा खान जिनगी बितावेला
मंगले भिख ना मिले ओकरा
कतहुँ इज्जत ना पावेला

कवि ह्रदयानन्द विशाल जी
कवि ह्रदयानन्द विशाल जी

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