रोवतारे बाबू माई
पुका फारि फारी,
बए क के कीन लेहलस
पपुआ सफारी।
साल भर के खरची बरची
कहवाँ से आई,
चाउर चबेनी के
कइसे कुटाई,
कइसे लगावल जाई
खिड़की केवारी।
छठ एतवार हमार
फाका परि जाई,
बुचिया के कहवाँ से
तिजीया भेजाई,
कइसे मनावल जाई
फगुआ देवारी।
पियरो जितौरा घूमी
घूमि गाँवाँ गाँईं,
ललकी पगरिया बान्ही
रायजी कहाई,
लफुअन से मिले खातिर
जाई माराफारी।
चिकन मटन के संगे
दारू खूब घोंकी,
पी के पगलाई
त कुकुर जस भोंकी,
कुरुता फरौवल करी
लड़ी फौजदारी ।
‘कइसे मनावल जाई फगुआ देवारी, के स्थान देवे खातिर आभार प्रकट करतानी.