घरे – दुआरे सगरों शोर
बनवा नाहीं नाचल मोर
कइसे काम चलइहें मालिक ॥
हेरत हेरत हारल आँख
केकर कहवाँ टूटल पांख
सात पुहुत के बनल बेवस्था
अब कइसे बतइहें मालिक ॥ कइसे काम चलइहें मालिक॥
बिन हरबा हथियार चलवले
कूल्हि जनता के मने भवलें
गाँव शहर के महल अटारी
कूल्हि खोल देखइहें मालिक ॥ कइसे काम चलइहें मालिक॥
नया नवेला बीरवा जामल
रोज सबेरे लाइन लागल
भरल तिजोरी कागज लेखा
खुदही आग लगइहें मालिक ॥ कइसे काम चलइहें मालिक॥
अकुताही मे भभकल दियरी
छुटल उनुका उबटन पियरी
गाँठ भइल बेकार अचानक
केकरा से बतइहें मालिक ॥ कइसे काम चलइहें मालिक ॥