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कइसे काम चलइहें मालिक ?

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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

घरे – दुआरे सगरों शोर
बनवा नाहीं नाचल मोर
कइसे काम चलइहें मालिक ॥

हेरत हेरत हारल आँख
केकर कहवाँ टूटल पांख
सात पुहुत के बनल बेवस्था
अब कइसे बतइहें मालिक ॥ कइसे काम चलइहें मालिक॥

बिन हरबा हथियार चलवले
कूल्हि जनता के मने भवलें
गाँव शहर के महल अटारी
कूल्हि खोल देखइहें मालिक ॥ कइसे काम चलइहें मालिक॥

नया नवेला बीरवा जामल
रोज सबेरे लाइन लागल
भरल तिजोरी कागज लेखा
खुदही आग लगइहें मालिक ॥ कइसे काम चलइहें मालिक॥

अकुताही मे भभकल दियरी

छुटल उनुका उबटन पियरी
गाँठ भइल बेकार अचानक
केकरा से बतइहें मालिक ॥ कइसे काम चलइहें मालिक ॥

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