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होरी : समूह गीत के एगो विधा ह

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होरी : समूह गीत के एगो विधा ह

होरी-होरी समूह गीत के एगो विधा ह, जवन ताल दीपचन्दी (चांचर) अवरु राग काफी में गावल जाला । एकर एगो धुन बन गइल वा । एकरा के तीन तरह के धून में गावल जाला, जवना के होरी, फगुआ और फगुई कहल जाला । होरी में सभ तरह के भाव प्रगट कइल जा सकेला बाकि एकरा में भक्ति औरु-शृगार के प्रधानता वा । गावत खानी समूह के लोगन के ताल सुर के ज्ञान ना रहलो पर सभे एक में मिल के गा लेला । गावते-गावते ताल सुर अवरु लय में रहे के आदत पड़ जाला । ताल के व्याकरण पूछला पर बहुत कमें आदमी बतलावेलन । इ लोक गीतन के खूवी ह कि गावते गावते लोग गवनिहार बन जाला । लोक गीत भाव प्रधान होला एह से एकरा के ठुमरी अंग के एगो विधा मानल जाला। भाव से रस तक पहुँचे खातिर रस के तत्व आश्रय आलंवन अनुभाव उद्वीपन और संचारी भावन के जरूरत पड़ेला। भक्तिभाव के प्रगट करे खातिर आलम्बन के जरुरत पड़ेला । एह से सगुण भक्ति के रामचन्द्र जी औरु कन्हइया जी होरी में आलम्वन बनल बाड़न ।

होरी : समूह गीत के एगो विधा ह
होरी : समूह गीत के एगो विधा ह

जब बसंत के पहुनाई के तेयारी होखे लामेला तब चारो और फूलन के सुगंध फैल जाला, सभ चर-अचर में उमंग के लहर दउगे लागेला । जब रुख बिरीछ फूलन से लदर जालन, आम में मोजर लाग जाला, आम के पतइ में कोइलर शान से तान के तीर मारे लागे ली तब मन-भंवरो गुनगुनाये लागेला । वसन्त-पंचमी के दिन कवनो देव स्थान पर झाल-ढोलक ले के सभेरात में जूट जाला। ओह में भगवान के गीत से सुमिरन कइल जाला। एह देश में ब्रज मंडल के होरी मशहुर मानल जाला । एही से सगरो-ब्रजमंडल के गीत गावल जाला । जवन होरी गावल जाला उ सूरदास के होखे चाहे तुलसीदास के, ओकरा के भोजपुरियाइन बना के गावल जाला । अधिक होरी शृगार रस उड़ेलत रहेला । जवना के आलंबन भगवान कन्हइया जी होखस, आश्रय गोपी लोग होखस जवना में उद्दीपन के काम खुद बसंत ऋतु करत होखे, बसंत के मद मातल समय होखे, नदी के किनार होखे तब फेर ओह रस के का पूछे के बा ? शृगार के उद्दीपन के बारे में कहल गइल बा कि
“चन्द्र नखत चन्दन अगरु वन-ऋतु बाग विहार,
उद्दीपन शृगार के, ये उज्ज्वल शृगार”
जहवा इ सभ जूट जाय त रस गाढ़ होइबे करी ।

होरी गीत – 1

वृज में ऐसी होरी मचाई।
होरी मचाई धूम मचाई-बृज में ऐसी होरी मचाई।
वाजत ताल मृदग झान्झ डंफ-मंजीरा सहनाई
उड़त गुलाल लाल भये बादल-रहत सकल वज छाई
मनों मेधवा झरिलाई ऽऽ वृज में ऐसी होरी मचाई।
इतसे निकली नवल राधिका उतसे कुवर कन्हाई
खेलत फाग परस्पर हिल-मिल सोभा वरनी , जाई
घरे घर बाजत बधाई 55 वृज में ऐसी होरी मचाई।
खेलत गेन्द गीरे जमुना में-केई मोर गेन्द चोराई
डाल हाथ अगिया वीचे ढूढो एक गये दूई पाई
लाल मोके चोरी लगाई ऽ वृज में ऐसी होरी मचाई ।
राधा जी सयेन दिये सखियनके-झूड-झूड उठिधाई
पकड़ो-पकड़ो ग्याम सुन्दर के, वहु दधि माखन खाई
विरिजवा में धूम मचाई ऽऽ वृज में ऐसी होरी मचाई।
छीन लियो वनमाल मुरलिया, सिर से चुन्दरी ओढ़ाई
बिन्दी भाल नयेन बीच काजर, नकवे सर पहिराई
लाल जीके नारी बनाई ऽऽ वृज में ऐसी होरी मचाई।
सुसुकत हैं मुख मोरि मोरि के, कहवा गइले चतुराई
कह्वां गइले तोर नन्दबवा हो, कहां गई जसुमति माई
लालजी के लेहूना छोड़ाईऽऽ वृज में ऐसी होरी मचाई ।
भर फगुआ तोहे जाने ना दिहवो, करिहों में कोटि उपाई
कसर चुकाई लेब सव दिनके, वहु तुम किन्ह ढिठाई
बहुत दधि मोखन खाईऽऽ वृज में ऐसी होरी मचाई ।
धन गोखुला घन मथुरा नगरी, जहां ऐसी होरी मचाई
सुर दास प्रभु तुम्हरे दरस के, हरि के चरन चितलाई
चहूं दिसि वाजत वधाईऽऽ वृज में ऐसी होरी मचाई।

एह होरी के नव ताल बना के गावल जाला व्रजमंडल में होरी के धूम मच गइल वा । ओह में मृदंग झांझ, डंफ, मजीरा, सहनाई इत्यादि बाज रहल वा, गुलाल के उड़ला से समूचे ब्रजमंडल में गलाल के बादल से बरसा हो रहल बा । होरी खेले खातिर एक देने से राधिका जी निकलली त ओने से कुवर कन्हइया चल अइलन । दूनों जाने हिल मिल के खूबे फाग खेल रहल बा जवनाके बरनन ना कइल जा सकेला । हरेक घरमें अनध-बधाव बाज बा, एक बार कन्या जी गेन्दा खेलत रहन त जमुना में गीर गइल । आके सखी भिरी हल्ला मचवलन कि हमार के गेन्दा चुरा लेल ? राधिका के चोली में हाथ डाल के खोजलन त एगो गेन्दा के बदले दूगो मिलल तब राधिका के चोरी का जी अपना सखियन के इशारा दे ली त सभे झूड के झड दउरल आगइल। राधिक जी कहली कि श्याम सुन्दर के पकड़ ललोग, इ वहुत दही अवरु मखन खा गइलन अवरु विरिजवा में धूम मचवले वाड़न । एह पर सहेली लोग कन्हइया के वनमाला छीन लेल, सिर पर से चुनरी ओढ़ा के लीलार पर बिन्दी कर देल अवरु नकवेसर पहिरा के कन्हइया जी के लोग औरत बना देल । तब कन्हइयाजी सुसुक सुसुक के मुह फेर के रोवे लगलन । सखी लोग पूछे लागल कि अव तोहार चतुराई कहाँ गइल, तोहार नन्द बाबा और माता जसोमति कहाँ लोग गइल, आके छोड़ा ले जाय ? फिर लोग कहे लागल कि भर फगुप्रा तोहरा के छोड़ल ना जाइ, कतिनो उपाय करब, बाकि छोड़ल ना जाई । अब सभ दिनन के कसर चुका लेवे के बा, तू बहुते ढिठाई करेल अवरुबहुत दही मखन खा गईल बाड़। सूर दास जी कह रहल बानी कि मथुरा और गोखुला धन्य बा, जहवां भगवान अइसन होरी मचवले बानी। सूर दास के नेह भगवान के चरन में लाग गइल कि कब दर्शन होई, एह प्रकार से सगरो आनन्दे आनन्द बा ।

एह गीत में सूरदास जी के नाँव के भोग लगावल गइल बा बाकि इ गीत सूरसागर में नइखे । ह भी सूरदासजी के, काहे कि एह गीत में शब्द-शक्ति से भरपूर काम लेल गइल बा । गीत में बा कि गेन्दा के बहाना से राधिकाजी के चोली में हाथ डालल गइल । एह पर राधिकाजी इशारा से सखी लोगन के बोला के कहली कि कन्हइया दही माखन खाके बिरिजवा में “धूम” मचवले बाड़न । एह ‘धूम’ के जरिये कन्हइया के सभ करतूत प्रगट कइल गइल बा, जवना से कन्हइया के सभ इतिहासभूगोल के जानकारी हो जात बा। ओसही ‘ढिठाई’ शब्द के जरिये कन्हइयाजी के मधुर-मधुर डांट पिलावल गइल बा साथे चेतावल भी गइल बा। विटाई से भी कन्हइया के पता लग जात बा। एह तरह से शब्दन से अइसन काम लेवे के गन सूरदासजी में बा । कन्हइया अइसन खेलाड़ी के अइसन शब्दन से संबोधित करेकेकाम कवनो रसदार खेलाड़ी के हो सके ला जे थोड़े में सभ कुछ कह दे । इ खेलाड़ी सूरदासजी के छोड़ के दोसर कोइ ना हो सकेला । सूरदासजी के एह पद्य के भोजपुरियाइन बनाके गावल जा रहल बा ।

होरी गीत – 2

भक्ति के साथे होरी के शृगारिक वन गइला से हरेक गांव के लोग झाल-ढोलक पर रातोभर झूमत रह जालें। अइसे त होरी के सामयिक गीत बहुत वनल । उ मेंट भी गइल बाकि कुछ गीत अइसन वा कि कंठ दर कंठ पुस्त दर पस्त चलल आरहल बा।

इ सम गीत अमर हो गल बा।

चरित्र सुनो री ऽऽ चरित्र सुनोरी ऽऽ सवरो के चरित्र सुनोरी
एक समय ब्रज के सभ सखिया जमुना तट पहूँचोरी
मज्जन हेतु धंसे जमुना में, कोउ सांवर कोउ गोरी
करत जल में झकझोरी 55 संवरो के चरित्र सुनोरी।
ताहि समय नन्दलाल कन्हैया, जमुना तट पहूंचोरी
लेकर चीर कदम चढ़ि बइठे-बढ़ि गये नन्दकिशोर
सुनर मुख आनन होरी ऽऽ सवरो के चरित्र सुनोरी।
ले डुबुकी उबुकी एक सखिया चीर पर दीठ पड़ोरी
एक सखी जब ढूढन लागे, सखिया से कहत पुकारि
चीर मोरी कवन हरोरी ऽऽ संवरो चरित्र सुनोरी ।
श्यामदास वोले रस वतिया, काहे सखिलाज लजोरी
लाज छाडि सनमख सभआव तब पट पइहों त गोरी
टेक सब जानत मोरी 5 सवरो के चरित्र सुनोरी
सभ सखिया मिलि यही बिचारी कृष्णजी टेक ना छोड़ा
लाज छाडि सनमुख सभ आये, नख सिख देख किशोरी
चीर तब मान दियोरी ऽऽ संवरो के चरित्र सुनोरी।
मोर मुकूट मुरली वाला कोई, होरी रंग में बोरी
छन में दूर करो भवसागर, सूर कहे मति भोर
श्यामजी से दोउ कर जोरी 5 सवरो के चरित्र सूनोरी।

चीर हरन के समय के गीत ह। एह में गोपियन के बारे में कहल जा रहल वाकि एक समय सभ सखी लोग आपन कपड़ा खोल के जमुना में चल गइल, केह सांवर रहे-त केहूं गोर रहे, सभे जलमें झाका झूमर खेले लागल। ओही समय नन्दलाल जी जमुना किनारे पहुँच के सभ कपड़ा लेके पेड़ पर चढ़ गइलन । जब कवनो सखी के ध्यान कपड़ा पर गइल त पुकार के कहे लगली कि हमनी के कपड़ा के ले गइल ? नन्दलाल जी तब कहलन कि हे सखी लोग ! काहे लजात बाड़ लोग, लाज छाड़ के सामने अइला पर तोहनी जानी के कपड़ा मिली। हमार टेक लोग जानते बाड़ । तब सखी लोग विचारल कि कन्हइया बात ना सुनौहें, सभे बाहर निकल आइल तव कन्हइया किशोरी लोगन के सिर से पैर तक देख के कपड़ा दे देलन । सूरदासजी अपना के भोलाभाला कह के कन्हइया के दुनों हाथ जोड़ के निवेदन कर रहल वाड़न कि जे मोर मुकुट अवरु मुरली धारन कइले रहेला उहे होरी के रंग में बोर के छन भर में भवसागर से दूर कर दिहन ।

एह गीत में संयोग शृगार रस के धारा तुरावत वेग से धावल जा रहल बा। गीत गावत खानी गवनिहार अवरु सुननिहार सभे भाव सहित रस आवरु लय के हिलकोरा खात, डूबत-उतरात जात रहेला। एह आनन्द के लिख के अवरु कह के प्रकट ना कइल जा सकेला। एह गीत में समर्पण के भाव चरम सीमा पर श। ब्रह्म के लगे जीव के लजाये से का मतलव ? ब्रह्म अवरु जीव के एक हो गइला पर कवनो दुराव छिपाव के भाव ना रह जाय। एह से ब्रह्म लगे लंगटे उधार रहला में कवनो भेद नइखे। भक्ति के लगे ज्ञान के अइसन समर्पन अन्यय दुर्लभ बा ।

होरी गीत – 3

सीताजी के हर के रावण अशोक वाटिका में रखले हवन । सीताजी के खोज में हनुमानजी अणोक वाटिका में चल गइलन। बाग बगइचा उजाड़ के, लंका के जलवलन । लौट के सीताजी लगे आगइलन । अब रामजी लगे उन्हकर आवे के तेयारी हो रहल बा। सीताजी हनुमानजी के समझा के कुछ संवाद भेज रहल बाड़ी:-

कहिह तू मोरी कहिह तू मोरी ऽऽ रघुवरजी से कहिह तू मोरी।
सुरपति-सुत से करनी सुनइह अवरु धनुस जेहिं तोरी।
पो भुज बल हम देखत नाहीं, दानव दूष्ट हरोरी
वेगि कहे जनक किसोरी ऽऽ रघुवरजी से कहिह तू मोरी
हे हनुमान तू अजनी के नन्दन कहिह सनेस तू मोरी
सिस नवाई चरनरज लेइके करिह विनय बहोरी
उहाँ से दोउ कर जोरी रघुवर जी से कहिह तू मोरी।
कहे हनुमान धीर धरु माता, लंक जरे जस होरी
रावन कुम्भ-करन हम मारब, मेघयेनाद हनोरी
देव सब वान छोड़ोरी रघुवर जी से कहिह तू मोरी।
तुलसीदास प्रभु तोहरे दरस के, अवधि आस रहे थोरी
प्रान दान दीजै रघुनन्दन, गावउँ मैं कृत तोरी
प्रीति अब करहूँ बहोरी ऽऽ रघुवर जी से कहिह तू मोरी।

सीता जी हनुमान जी से कह रहल बाड़ी कि हे हनुमान जी! रघुवर जो त जाके हमार सम्बाद कहीह । सुर पति सुत में कूट के छटा छहरा रहल बा। जे सभ बलवान राजा लोगन के पति ह ओकरा सुत में कतिना बल होखे के चाही इहे इयाद दिलवा के कहल गइल बा। फिर याद दिलावल गइल बा कि जवना भुजा से धनुष तोड़ के वियाह कइल गइल ओह भूजन में अब बल हम नइखी देखत, हमरा के दुष्ट रावन हर के ले आइल बा। इ सभ बात लक्षणिक भाषा में कहल गइल। शिकायत में बड़ाई टिपल बा एह से एह में व्याज स्तुति अलंकार बा । इ कमाल भले तुलसी दास के बा बाकि गवात बा त भोजपुरियन लोगन से । फिर कहल गइल बा कि है हनुमान जी त अंजनी के लइका हव, सिर नवा के, चरन पकड के विनती कर के भगवान जी से कहिह। तब हनुमान जी कहलन कि हे माता ! तू धीर धर। लंका त होली अइसन जल रहल बा।
कहल जाय त हम रावन, कुम्भकरन नेघनाद सर्भ र गिराई, देवता लोग बान छोड चकल बा। अन्त में तुलसीदास जी सीता के देने से कह रहल बानी कि रघुवर जी के चरण के दर्शन के आस लागल बा। उहा के आबे के समय तक हमार जीव रहबे करी अइसन आस बहत कमे ब उहाँ से तब तक खातिर हमार प्राण-दान माँग लिह । हम उन्हु के गुणगान कर रहल बानी, हमरा पर फेर से प्रीति कइल जाय । जवन कइनी तवना के छमा कइल जाय अन्तिम पद्य में गागर में सागर भर देल गइल बा । एह में मर्यादित वियोग शृगार बा।

होरी गीत – 4

भगवान सभ के गर्व चूर करे वाला हई। हनुमान जी के अपना बल पर घमंड भइल तब रामचन्द्र जी कहनी कि तोहार सभ वल भरत जी के एक बांह के बल के बराबर बा । बाकि हनुमान जी ना समझ लें। जब संजीवनी ले आवे लगलें तब भरत जी से भेंट भइल

अंजनी सुत मोरे मन भाई ।। टेक ।।
लाल ऽ लंगुर ऽ के का छबि बरनो, तेल-फुलेल लगाई
एक हाथे वन दूसर धवलागिरि, मध्य अयोध्या में आई
भरथ उठि बान चलाई ऽऽ अंजनी सुत मोरे मन भाई ॥
लागत वान गीरे धरती पर, राम ए राम गोहरा
अतिना सबद परी हरि कानन, नंगे पांव उठि धाई
मनो कोई मन्तन आई ऽऽ अंजनी सुत मोरे मन भाई ॥
केकर पुत्र काइ तोहर नामा  कवन दिशा से आई
कवन नृपति के करत चाकरी, काई लेन तुम आइ
संत मोसे कहो समुझाईऽऽ अंजनी सुत मोरे मन भाई ।।
अंजनि पुत्र नाम हनुमाना, दखिन दिशा से आई
राम नृपति के करत चाकरी, लक्षुमन शक्ति सताई
संजीवनि लेन हम आईऽऽअंजनी सत मोरे मन भाई ॥
ए हनुमान तू वान चढ़ि बइठ, वान विमान बनाई
संजिवनि कुटि लखन को दीजे, लखन उठे हरखाई
मनो कोई संत जिलाई ऽऽ अंजनी सुत मोरे मन भाई ।।

होरी गीत – 5

मंदोदरी अपना पति रावण के समुझा रहल बिया कि रघुवर जी से बैर ना करे के चाहीं।

रघुवर जी से बैर करो ना ।। टेक ।।
सत जोजन मरजाद सिन्धु के, ना कोई लांघ सकेना
ताहि बांधि उतरे रघुनन्दन, वानर सैन्य कोई जीत सकेना ॥
बीच सभा में कठिन पन अंगद, कपि के पांव अड़ेना
दे दे ताल वीर सभ हारे, टारेऽऽ पर टरेना ॥
सोने के लंका जराई दीन्हें, तुम प्रिय भाग सकोना
हाय ! हाय ! सभ घर में मचले, अब कोई जीयत बचेना ।।
हम अबला नित तो हसे कहनी, निशिचर कोई उबरेना
तुलसीदास मुझदा भये रावन, करम गति केहू के टारे टरेना

होरी गीत – 6

साहित्य में बहुत दिनन से बारह मासा के चलन आ रहल बा । हिन्दी के रीति काल में बारह मासा के उपयोग शृगार रस के उद्दीपन के रूप में कइल जात रहे । बहुत कम बारह मासा अइसन होलन जवन बारहो माह के वरनन खातिर होखे । होरी में बारह मासा के उपयोग शृगार के उद्दीपन के रूप में भइल बा । चढ़ते अषाढ़ पिया परदेश चल जात बाड़न । अषाढ़ से पूस तक सभ प्रकार के वियोग सहे के पडता।

केकरा सग खेलब होरी ॥ टेक ॥
खेलव होरीऽऽ खेलब होरीऽऽ केकरा संग खेलब होरी
फागुन फाग पिया संग खेले, चइत खेले बरजोरी
बइमाख मास सखि घाम पड़त बा, जेठ में लूक बहोरी
पिया मुख मलिन भयेरीऽऽ केकरा संग खेलव होरी ।।
चढ़त असाढ़ घटा घन गरजे, सावन पवन झंकोरी
भादो मास सखि रयेनि भयावन, आसिन आस लगोरी
पिया परदेश गयोरीऽऽ केकरा संग खेलब होरी ॥
कातिक कंत घरे ना अइले, अगहन ध्यान धरोरी
पूस माह सखि जाड़ के दि नवा, माघ में भाग लड़ोरी
पिया संग भेट भयेरीऽऽ एहि श्याम से खेलब होरी ।।

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