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हमरा नजर में प्रो वैद्यनाथ विभाकर जी, भोजपुरी साहित्य के एगो अनमोल हीरा : श्री जनकदेव जनक

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जनकदेव जनक जी
जनकदेव जनक जी

अचार, विचार आ बेवहार में कुशल प्रो वैद्यनाथ विभाकर जी के छवि हमरा दिल के आइना में झलकत बाटे, उहां लेखा स्वाभिमानी, निरभिमानी आ अभिमानी पुरूष कहां मिली! जेकर राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आ साहित्यिक फलक पर पहचान अमिट बाटे, विभाकर जी के आकृति, प्रवृ़ति आ प्रक़ृति से श्री ढोढ़नाथ आंचलिक क्षेत्र के लोग परिचित बाटे।

उहां के जिनगी खुलल किताब रहे. बेलकुल कवनों पारदरसी शीशा नियर, समाज के हरेक आदमी में विभाकर जी के छवि अलग अलग रहे, गांव जवार के लोग उहां के मास्टर साहेब कहत रहे त कालेजियन लक्ष्का उहां के सर भा प्रोफेसर साहब कहस. कवि पत्रकार आ राजनइक लोग उहां के विभाकर जी के नाम से पुकारे।

विभाकर जी बहुआयामी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व रहीं. उहां के क वि,पत्रकार, साहित्कार, नाटककार, रंगकर्मी , निर्देशक के रूप में अपना फन के जादू देश परदेश के विभिन्न कोना में देखइनीं। भोजपुरी भासा के उत्थान आ विकाखातिर उहां के जिनगी समर्पित रहे. ता उमिर संघर्ष करत रह गइनी, संविधान के आठवां अनुसूचि में भोजपुरी भासा के दरजा दिलावे खातिर उहां के प्रयास सराहनीय रहल बा. ओकरा के भुलावल ना जा सकेला।

प्रो वैद्यनाथ विभाकर जी

सन् 1970 के दशक में विभाकर जी आ स्व. जमादार भाई के संपादन में भोजपुरी पत्रिका ‘पपीहरा’ के प्रकाशन शुरू भईल. एकर कार्यालय जनता बाजार पर जमादार भाई के किताब दोकान रहे, बहुते तकलीफ आ जोखिम उठा के पत्रिका के प्रकाशन होत रहे, बाकिर दोनों विभूतियन के दिवंगत भइला के बाद से पत्रिका बंद हो गइल।

अतने ना भोजपुरी के विकास में साहित्यिक आ सांस्कृतिक संस्था भोजपुरी भारती के गठन भी भइल, जवन आजो चलत बा. एह संस्था के माध्यम से गांव गांव जाके क वि गोष्ठी कइल जाव आ भोजपुरी भासा के परचार प्रसार होखो। एह संस्था से धीरे धीरे बहुते नाटकार, कवि, पत्रकार, लेखक, गीतकार आदि जुड़लें. एकर संचालन में कइगो विघ्न बाधा भी आइल, बाकिर कर्म पथ पर अडिग रहेवाला विभाकर जी अपना लिक से कबहूं बिचलित ना भइनीं. एह संस्था से ‘भोजपुरी भारती’ नाम के एगो पत्रिका के प्रकाशन भी भइल. साथे कई गो लेखकन के किताबन के प्रकाशन भी हो रहल बा।

हमारा इयाद आवता, 11 नवंबर 2010 के सांझ के बेरा प्रभात खबर कार्यालय में हम समाचारन के संपादन करत रहीं. ठीक ओही टाइम विभाकर जी के फोन आइल। कुशल क्षेम के बाद उहां के कहनी कि तोहार कई गो रचना पढ़े के मिलल रल. ‘भोजपुरी भारती ’खातिर भी कुछ रचना भेज. हम कहनी कि राउर आदेश सिर माथे पर, जल्दीय कुछ रचना भेजब. अचनाक 26 नवंबर 2010 के साहित्यकार चंद्रेश्वर प्रसाद सुधांशु जी के फोन आइल कि हमनी के बीच अब विभाकर जी नइखीं।

अतना बात सुनते हमरा दिल में धक से लागल. मुंह से निकल, ‘हे ईश्वर ई का हो गइल.’ दिन भर मन बेचैन रहे. कभी विभाकर जी लक्ष्का अजय भोजपुरिया त कबही उहां के बड़ लक्ष्का विजय के फोन पर बात करे के कोशिश करत रहीं. आखिर में कवि वीरेंद्र मिसिर अभय जी से पूरा बात भइल. ओह दिन सांझ के बेरा झरिया में भी शोक सभा भइल. जेमे विभाकर जी के श्रद्धा सुमन अर्पित कइल गइल।

अबही अन्हेर बा हमारा आवाज के खामोस रहे द,
बहुत दुर सवेरा बा हमरा के गम में बेहोस रहे द.
सायद केहूं दर्द समझ जाव सुप्रभात होखे तक,
तब तक हमरा आंखिन के पलकन में ओस रहे द!

विभाकर जी के साथे बहुते अनमोल छन हमरो बितावे के मिलल रहे. जवना के अनुभूति त दिल में महसूस कइल जा सकेला. बाकिर ओकरा भाव के प्रगट करे के हमरा पास सबदन के कमी बा. विभाकर जी के अंदर एगो खूबी रहे कि उहां के विकट से विकट समयों में हरमेशा मुसकात रहीं। शांत चित्त कवनों योगर्षि नियर बइठले बइठले बहुते लोग के समस्या हल कर दी. जब हम डीएन हाई स्कूल जनता बाजार में पढ़त रही. ओही समय जमादार भाई के दोकान पर विभाकर जी से भेंट भइल. उहां के पूछनी ,‘स्कूल के लक्ष्का कहत रलहस कि तु एगो उपन्यास लिखले बाड़, तनी हमरो के देखाव ना..’ हम सकुचात जबाव देहनी कि रउरा ठीके सुननीं ह।

झरिया कोयलांचल के पृ़ष्ठभूमि पर एगो उपन्यास लिख रहल बनी.., बीच में बात काटत उहां के कहनी ,अरे वाह!आउर का का लिखत बाड़ हो..’हम कहनी कि कानपुर से प्रकाशित पत्रिका‘कंचन प्रभा’ के ‘रहस्य क्या था?’ स्तंभ में एगो रचना आइल बा.’
‘ओह जी तोहार केहूं रहेला का. ’
हम ना में जबाव देहनी.’ कहनी कि हमरा ओह पत्रिका में भेजे के सुझाव सुधांशु जी देहले रहीं.
‘अरे मरदवा, तोहार रचना बड़ पत्रिका में छपल आ हमनी के कानों कान खबर ना, एही तरह मेहनत करअ, एक दिन रंग चोखा होई.’
विभाकर जी के सराहना पाके हमार मन गद गद हो गइल. दिल दरियाव लेखा फुला गइल. दुसरके दिन उपन्यास के पांडुलिपि उहां के हम दे अइनी. एक सप्ताह बाद पांडुलिपि लउटावत उहां के खूब शबाशी दिहनीं. आ कहनी कि लेखनी त तोहार बेजोर बा. बाकिर ढेर पढ़ अभहीं लिख कम. आगे पढ़लके कामे आई. अइसे उपन्यास के कहानी, शिल्प, कथानक, पात्रन के चयन आदि ठीक बाटे. देश काल पर तोहार उपन्यास खरा उतरत बा…

आज हमरा बुझाला कि विभाकर जी के प्रशंसा हमरा के पत्रकार आ लेखक बनावे में जादा मददगार साबित भइल. उहां के सराहना के कोटि कोटि प्रणाम!
जमादार भाई के दोकान के बाद विभाकर जी के बइठकी क वि श्याम नारायण बाबा के दोकान पर होखे. उहवों लेखकन के जुटान होखे. सन 1984 के पहले हमरों अड्डा ओही लोग के साथे रहे.
बचपन में डोमकच, राम लीला, रास लीला, नाच देख देख के एगो नाटक‘ मजबुरी’ लिखले रहीं. गांव के लोगन के राय पर ओ नाटक के मंचन गांव में करावे के विचार भइल. ओह टाइम स्व. जमादार भाई, स्व. मुखलाल प्रसाद आ विभाकर जी के निरदेशन में नाटकन के मंचन होखे. हमरो दिल्ली तमन्ना रहे कि नाटक मजबुरी के निरदेशन विभाकर जी करती त अच्छा रहीत. एह सिल सिला में हम उहां से मिल के आपन बात रखनी त उहां के बडा खुश भइनी. नाटक के पाट के बंटवारा उहां के नाटक पढ़ले के बाद कइनीं।

सन 1976 में गांव के स्वतंत्रता सेनानी स्व. सरयुग प्रसाद गुप्ता जी के घर के सामने मंच बनल आ नाटक खेलल गइल. ओह में कलाकार रामदेव प्रसाद, नंदकिशोर प्रसाद, कृष्णा प्रसाद, मो कलामुद्दीन, ललन प्रसाद, रहिम मियां, तेग बहादुर , नसीम अंसारी,रहीम मियां आउर लोग रहे. नाटक में साज बाज के मदद स्व राघो बाबा कइले रहीं. ओकरा बाद तविभाकर जी आ जमादार भाई के निरदेशन में ढेरे नाटकन के मंचन भइल. जब नाटक के प्रसंग चलल बा त एगो बात आउर इयाद आवता. घटना सन 1974 के हटे।

हमरा गांव के राम पुकार प्रसाद के सहयोग से बीपी राजेश के नाटक ‘दौलत के पुजारी’ के मंचन के दिन रोपाइल. जवन वसंत पंचमी के खेले के रहे. नाटक के अभ्यास विभाकर जी आ जमादार भाई दुनू टाइम निकाल के करा दिहीं लोग. ओह नाटक में 17 गो कलाकार गांव के रहस ,जे रोज रिहलसल करे आवस. नाटक के तइयारी पुरकस भइल रहे. शामियाना,साजिंदा, लाउड स्पीकर आदि के साटा बंधा गइल रहे। ऐन मउका पर वसंत पंचमी के तीन दिन पहले रामपुकार जी एगो मौलवी साहब के बुला के अपना दुआर पर महलूद करा दिहले. एह से नाटक के कलाकार दु गो गुट में बट गइले। केहू कहे नाटक होई केहू कहे ना होई. ई दोहमच विभाकर जी आ जमादार भाई के पास पहुंचल त उहां के कहनी कि नाटक होई, बाकिर दौलत के पुजारी ना मतवाला के लिखल नाटक ‘ग्रेजुएट डाकू ’ होई. एह नाटक में मात्र सात पात्र बाड़ेन. तीन दिन में नाटक तइयार हो जाई. ओही दिन पाट के चयन भइल आ नाटक बसंत पंचन्मी के रात शानदार भइल

अब तनी विभाकर जी के जेपी आंदोलन बात भी हो जाव. सन 1974 में देश में इंदिरा कांगरेस सरकार रहे. उ देश में इमरजेंसी लगा दिहले रहे. ओकरा विरोध में जेपी आंदोलन शुरू भईल. जवना में वैद्यनाथ विभाकर के नेतृत्व में जगे जगे बैठक आ सभा होखे. एक दिन छपरा में सभा रहे. पुलिस सभा के दौरान लाठी भांजे लागल . कई लोग घायल भइल. सभा में भगदड़ मच गइल. एकमा के सभा में भी गोली चलल. उहां एको लक्ष्का गोली लगला से मर गइल. हमार साथी कृष्ण कुमार सहित कई गो साथियन के जेल जाये के पड़ल. जेपी आंदोलन के प्रभाव से जन चेतना जागल। कांगरेस के विरोध में 1977 के चुनाव में जनता पाटी भारी बहुमत से जीतल. बिहार में श्री लालू प्रसाद यादव मुख्य मंत्री के पदभार संभलनी. मुख्यमंत्री से विभाकर जी के अच्छा संबंध रहे. लेकिन उहां के राजनीति में ना आ पइ़नी. बाकिर लालू प्रसाद यादव जब जब चुनाव प्रचार में महाराजगंज संसदीय क्षेत्र में जाई त विभाकर जी के अपना साथे जरूर राखीं.विभाकर जी कबहूं राजनीति के गलत उपयोग ना कइनी. सकारात्मक सोच के कारण क्षेत्र में हमेशा विकास आ उत्थान के काम कइनीं।

लेखक:- श्री जनकदेव जनक
धनबाद(झारखण्ड)

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