एह देश के जवना भूभाग के हिन्दी के क्षेत्र कहल जाला, ओह भूभाग के एगो बड़हन क्षेत्र के प्रमुख भाषा भोजपुरी ह । बलुक, एह देश के हिन्दी बेल्ट कहायेवाला भूभाग के सबसे बड़ अंश भोजपुरी-भाषी ह । साँच पूछल जाव त हिन्दी के समृद्ध करे में जेतना बड़ योगदान भोजपुरी-भाषी लोग कइले बा, ओतना आउर कवनो दोसर भाषा-भाषी लोग नइखे कइले । हिन्दी के राष्ट्रभाषा के रूप में ठाढ़ करे में भोजपुरी-भाषियन के सबसे जादे योगदान रहल बा; एह तथ्य से केहू इनकार नइखे कर सकत । एकर वजह ई रहल बा कि एह बहुभाषी राष्ट्र के सामने एगो राष्ट्रभाषा देवे के सपना शुरू से रहल बा । हिन्दी में एह देश के राष्ट्रभाषा होखे के माद्दा बाटे, ई सभे महसूस कइल । अमीर खुसरो के कलम से जे साहित्य रचल गइल, ओकरा भाषा के ‘हिन्दवी’ भा ‘दवकनी’ कहल गइल, आ ओकरे से आज के खड़ी बोली हिन्दी के रचनात्मक स्वरूप के श्रीगणेश भइल ।
हिन्दी आ भोजपुरी
बाकिर हिन्दी साहित्य मात्र खडी बोली में रचाइल साहित्य ना ह, आ ना ओकर इतिहास मात्र खड़ी बोली में रचाइल साहित्य के इतिहास ह । खड़ी बोली में रचाइल साहित्य त हिन्दी साहित्य के परवर्ती अंश ह । साँच पूछल जाय त द्विवेदी युग से पहिले रचाइल हिन्दी साहित्य उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रीय भाषा भा लोकभाषा सभन में रचाइल साहित्रू के ही समन्वित रूप ह, जवना में ब्रजभाषा, अवधी आ भोजपुरी के प्रधानता रहल बा । कबीर के भाषा भोजपुरी रहे, सूरदास के भाषा ब्रजभाषा रहे आ तुलसीदास के भाषा अवधी रहे। आ एह सबके हिन्दी के साहित्य मानल गइल।
द्विवेदी-युग से मुख्य रूप से खड़ी बोली, पद्य आ गद्य, दूनू के रचना के भाषा होखे लागल, जवना के हिन्दी के अभिधान मिलल । तेहू पर, ओही युग में बाबू रघुवीर नारायण भोजपुरी में ‘बटोहिया’ जइसन राष्ट्रगीत के रचना कइले, जवना के सार्वदेशिक स्वीकृति आ प्रशंसा मिलल । जगन्नाथ दास ‘रलकर’ ब्रजभाषा में ही लिखत रह गइले, जेकरा के हिन्दी साहित्य से आ ओकरा इतिहास में नकारल ना जा सकल । तेग अली ‘तेग’ आ रामकृष्ण वर्मा ‘बलवीर’ भोजपुरी के रचनाकार रहले, जिनका के हिन्दी नकार ना सकल । भिखारी ठाकुर अपना भोजपुरी गीत आ नाट्य कृतियन से जे सार्वदेशिक स्वीकृति आ प्रशंसा पवले, ऊ जगजाहिर बा । भोजपुरी के एह उपलब्धियन में हिन्दी सहित कवनो भाषा बाधक नइखे भइल । भिखारी का अलावें, एगो आउर विशिष्ट रचनाकार भइले महेन्दर मिसिर, जिनका रचनन के ओहू क्षेत्र में भरपूर स्वागत भइल, जवन क्षेत्र भोजपुरी भाषी ना ह । प्राचार्य मनोरंजन के भोजपुरी रचना ‘फिरंगिया’ के गैर-भोजपुरी क्षेत्र में भी ओइसने स्वागंत भइल, जइसन भोजपुरी क्षेत्र में । मनोरंजन बाबू के ‘फिरंगिया’ गीत सुन के महात्मा गाँधी बहुत प्रभावित भइल रहले, आ एही भोजपुरी गीत का चलते ऊ मनोरंजन बाबू के ‘फिरंगवा’ कहके पुकारे लागल रहले ।
प्राचार्य मनोरंजन के शिष्य कविवर अशान्त आ अनिरुद्ध के भोजपुरी गीतन के सम्पूर्ण हिन्दी-क्षेत्र में ओइसने प्रशंसा आ समादर मिलल, जइसन कि भोजपुरी क्षेत्रमें । आचार्य महेन्द्र शास्त्री के भोजपुरी कविता में जवन माटी के गंध रहे, ओकर समादर सम्पूर्ण हिन्दी क्षेत्र में भइल । उमाकान्त वर्मा आ सतीश्वर सहाय वर्मा ‘सतीश’ के भोजपुरी रचना के सम्पूर्ण हिन्दी क्षेत्र में ओइसने आदर-समादर मिलल, जइसन कि भोजपुरी क्षेत्र में मिलत रहे । पुजारी मुँहदूबर के खाँटी भोजपुरी व्यंग्य कविता के उहे प्रशंसा गैर-भोजपुरी क्षेत्र में मिलत रहे, जइसन कि भोजपुरी क्षेत्र में । आजो, गैर-भोजपुरी क्षेत्र में भोजपुरी कविता के सुननिहार आ ओकर रस-लेनिहार कम नइखन । ई अन्तर-भाषिक प्रेम-भाव, भोजपुरी के विकास में बाधक ना, बलुक साधक बनल रहल बा ।
हिन्दी के निर्माण आ विकास में पूरा देश के योगदान रहल बा । खास करके, उत्तर भारत के विभिन्न भाषा-भाषी क्षेत्रन में हिन्दी के प्रति प्रेम-भाव सदा से रहल बा । एह में पूरा के पूरा भोजपुरी-भाषी क्षेत्र समाहित बा । एह से, भोजपुरी के विकास में, ना त हिन्दी कबो बाधा बनल, ना आउर कवनो भाषा । भोजपुरी के विकास का प्रति सगरो से सहयोग के भाव रहल बा । एह भाषिक सौहार्द-भाव से भोजपुरी के विकास निरन्तर हो रहल बा ।
भोजपुरी के विकास के अवधारणा के पीछे कवनो संकुचित दृष्टिकोण कबो ना रहल एह बहुभाषी राष्ट्र के राष्ट्रीय सुर में सुर मिलावे में भोजपुरी कबो पीछे नइखे रहल । इहे वजह बा कि भोजपुरी के विकास में हिन्दी सहित कवनो अन्य भाषा बाधक ना भइल, आ ना आगे होई।
भाषा जोड़े के हथियार ह, तूड़े के ना। एह से कवनो एगो भाषा के विकास से दोसरा कवनो भाषा के विरोध के कवनो आधार नइखे, कवनो कारण नइखे। भोजपुरी के बढ़न्ती से हिन्दी भा दोसर कवनो भाषा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ी, ई सोचल गलत बा। भोजपुरी के बढ़न्ती होखे त ओकर विरोध हिन्दी का ओर से होखे, ई सवाले गलत बा । भारत के सब भाषा बहिन ह। अब बड़की बहिन छोटकी के विकास में बाधा बनके खड़ा होखे, ई सोचले गलत बा । भोजपुरी के बढ़न्ती होई, त प्रकारान्तर से हिन्दी के बढ़न्ती होई।
भारत के भाषा सभन के परस्पर सम्बन्ध पर विचार करीं त एक भाषा-क्षेत्र से दोसरा भाषा-क्षेत्र के अलगाव के कवनो कड़ियल सीमा-रेखा निर्धारित नइखे कइल जा सकत । एक भाषा-क्षेत्र से, धीरे-धीरे, ठहर-ठहर के, ठमक-ठमक के, गुजरत, रउआ दोसरा भाषा-क्षेत्र में चलत जाईं, त एकाएक ई ना लागी कि हम दोसरा भाषा-क्षेत्र में चल गइलीं । जइसे दूगो नदी जब आपस में मिल जाला; त आगे चल के ई अलगावल कठिन होजाला कि हम जवना पानी में खडा बानी ऊ एह नदी के पानी ह आ कि ओह नदी के । भाषा के स्थिति भी कुछ ओइसने बा । एक भाषा के विकास से दोसरा भाषा के कवन फरक पड़ेवाला बा कि परस्पर विरोध आ बाधा के स्थिति पैदा होई । भोजपुरी भाषा के विकास में हिन्दी भा कवनो दोसर भाषा बाधा खड़ा करी, ई सोचल गलत बा । भोजपुरी के विकास में ना त हिन्दी कबो बाधक होई, ना दोसर कवनो भाषा रहीम कवि कहले बाड़े कि
“यों रहीम सुख होत है बढ़ति देख निज गोत
ज्यों बड़री अँखिया निरखि, आँखिन को सुख होत”
ऊहे हाल भाषा के भी बा । भोजपुरी के विकास में हिन्दी भा दोसर कवनो भाषा बाधक बनी, ई सोचल गलत बा । भोजपुरी के विकास में हिन्दी भा आउर कवनो भाषा बाधक नइखे हो सकत ।
ध्यान दीं: इ आलेख पाण्डेय कपिल जी के लिखल किताब लेखाञ्जलि ले लीहल बा।
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