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धनंजय तिवारी जी के लिखल हरियर चूड़ी

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धनंजय तिवारी जी
धनंजय तिवारी जी

पूनम जईसे ही रसोइया घर से बाहर निकलली उनकर मोबाइल के घंटी बाज उठल। मोबाइल अन्दर कमरा में रहे। जाके देखली त रिंकी के पापा कालिंग आवत रहे। उनका शादी के छठवा साल पूरा हो गईल रहे अउरी उ रिंकी के साथे पिंकी के भी माई बन गईल रहली पर फ़ोन पर अभियो उनका पति के नंबर रिंकी के पापा के नाम से ही सेव रहे।

“हमरा लगे अभी बात करे के समय नईखे। बस तहके बतावे खातिर फ़ोन कईनी ह कि सब सामान ख़रीदा गईल बा। खालतहार हरिहर चूड़ी बाकी बा। उहे ख़रीदे जातानी। बाकि बात जब ट्रेन में बयिठेब त होई।” कहिके रिंकी के पापा फ़ोन काट देहले।

हरिहर चूड़ी के नाम सुनके पूनम के चेहरा अजोर हो गईल। सावन में अपना पति के हाथ के खरीदल हरिहर चूड़ी पहिने के बात सोच के उनका ख़ुशी के धरान ना रहे। शादी के बाद पहिला बार सावन में उनकर पति आवत रहले। पिछला पाच साल में उनका कबो छुट्टी ना मिलल अउरी पूनम के मन के इच्छा कि पति के खरीदल हरिहर चूड़ी उ सावन में पहिनस बस इच्छा ही बन के रह गईल रहे। ऐ बेरी उनकर इ मन के बात पूरा होखे वाला रहे।
बचपन से ही उनका हरिहर चूड़ी बहुत पसंद रहे। उनका निमन से याद बा। उ १२ साल के रहली जब पहिला बार उ अपना पड़ोस के उमा बो भाभी के हरिहर चूड़ी लेके अपना हाथ में पहिन लेले रहली अउरी तब भौजी उनसे मजाक में कहली – बबुनी तनी सबुर रख। हरिहर चूड़ी जब बियाह होई तब पहिनिह। उनका भौजी के बात ना समझ में आईल अउरी उ पूछ देहली – काहे?

तब भौजी उनके समझवली “हरिहर चूड़ी सुहागिन लोग के निशानी ह। सावन में इ खूब भायेला।”
उमा बो भाभी उनका पड़ोस में रहली अउरी उमा भैया बाहर नौकरी करस। उमा बो भाभी अपना बुढ सास अउरी दुगो बच्चा लोग के साथे गांवे रहस। पूनम के जब भी टाइम लगे भौजी के लगे चल जास। उमिर में भले बड अंतर रहे पर दुनु जानी एक दूसरा के सबसे गहिर सखी रहे लोग।
हरिहर चूड़ी सावन में भावेला भा ना इ त ना उनके पता चलल पर दू साल बाद उनका इ जरूर मालूम भईल कि चूड़ी सुहाग के निशानी होला जब उमा भैया के दुर्घटना के मौत के बाद भौजी के चूड़ी फोर दिहल गईल।

रही रही के उनका दिमाग में एक ही सवाल आवे के का भौजी फेरु सुहागिन नईखी बन सकत। का फेरु उनकर बियाह नईखे हो सकता अउरी तब उनकर माई उनके समझली। हमनी किहाँ दुसर बियाह ना करे के परम्परा बा। ऐ रिवाज के माने के पड़ेला तबे समाज में इज्जत रहेला।

सवाल त ढेर रहे पूनम के मन में पर उ चुप रह गईली। केहू के पति के मरला के बाद खाली ओकर चूड़ी ही ना फूटेला बल्कि ओकर बहुत कुछ लूटाला। लोग के वर्ताव एकदम बदल जाला। पति के मरते उ सुहागिन सबके शक के पात्र बन जाले अउरी उमा बो भाभी के साथे भी इहे भईल रहे। पूनम के एकर अहसास हरदम होखे काहे कि कवनो भी निमन काम करे के समय लोग उनके ना देखे के चाहे। लोग जतरा पर निकले से पहले उनका से बचे अउरी कवनो शुभ काम उनका हाथ से ना होखे एकर पूरा धियान दियावु। इहाँ तक कि उनकर माई भी ना चाहस कि उ भौजी के लगे जास।
फेरु एक दिन उहो आईल जब पूनम के शादी तय भईल। शादी के दिने उमा बो भौजी बड़ा उत्साह से उनका घरे मदद खातिर आईल रहली पर उनकर बडकी माई अईसन ना देख के मुह बनवली कि उ दुखित होके वापस लौट गईली।

उमा बो भाभी सबसे चोरा के उनका खातिर हरिहर चूड़ी अपना लईका से भेजले रहली अउरी ऐ बात के पता उनका अपना माई अउरी बडकी माई के बात सुनके चलल।

“बताव ना भल बिया उ राड़ी।” उनकर माई उनका बडकी माई से कहत रहली “आपन सुहाग त मुआ देहलस अउरी अब अपना हाथ से हमरा बेटी खातिर सुहाग के निशानी भेजले बिया।”

“तू सही कहतारू दुल्हिन” बडकी माई कहली “अईसन विधवा के हाथ से चूड़ी लेहला के मतलब अपना बेटी पर अपशकुन के छाया डालल बा।”
पूनम के मन में आईल कि उ जाके चूड़ी छीन के कही देस कि इ सब बकवास बा पर उ लाज लिहाज से चुप रहली।

एही सब उधेड़ बन में उ डूबल रहली कि बाहर से जोर से लोग के चिल्लायिला के आवज आवे लागल अउरी ओकरा बाद उनका होश ना रहे।
रिंकी के पापा के दुर्घटना में मौत हो गईल रहे। इहे खबर आईल रहे बाहर।

फेरु पूनम के ओइदीन तनी सा होश भईल जब उनकर सुहाग के चूड़ी फोरायिल। पति के लियायिल हरिहर चूड़ी पहिने के उनकर इच्छा मन में ही रही गईल। सबका मालूम रहे कि अब उ कबो चूड़ी ना पहिन पयिहे।

सब बीत गयीला के बाद उनकर बाबूजी उनकर मन बदले खातिर उनके लियावे आईल रहले जब उनकर बड़का भसुर उनसे कहले “संजय के हमनी के वापस त नईखी जा लिया सकत पर रउवा भरोसा राखी। पूनम के अउरी रिंकी पिंकी के कबो कवनो दिक्कत ना होखे देब जा।”

उनकर बाबूजी सहमती में मूडी हिला दिहले अउरी ओही समय उनकर सासु ओयिजा अयिली।
“समधी जी हम पूनम के बेटी बना के ऐ घर से विदा करेब।” उनकर सासू बाबूजी से कहली।
उनका कुछु ना बुझाईल अउरी उ पूछले “मतलब?”
हम पूनम के दुसर बियाह करेब?” सासु दृढ़ता से कहली।
“का कहत बानी” उनकर बाबूजी उछल पडले “हमनी के समाज में दुसर बियाह कईसे होई। इ हमनी के परम्परा नईखे। हमनी के नया रीति रिवाज शुरू कईल जाई?”

“समधी जी रीति रिवाज, परम्परा लोग के भलाई खातिर होला, लोग रीतिरिवाज खातिर ना।” उनकर सासु कहली “कवनो भी परम्परा के नदी के पानी के जईसन होखे के चाहि। दुनिया भर के गंदगी ओयिमे मिलला के बाद भी नदी के पानी साफ़ रहेला काहे कि उ सदा बहत रहेले अउरी ओकर प्रवाह सगरो गन्दगी के बाहर क देला जबकि तालाब के पानी एक जगह स्थिर रहेला अउरी एही वजह से उ कुछ दिन बाद सड के बसाये लागेला। पुरान रीति रिवाज परम्परा भी तालाब के पानी जईसन सरी के बसा रहल बा। हमनी के एके बदलला के जरुरत बा अउरहम इ करेब। हम पूनम के कन्यादान खुद करेब।”

पूनम के बाबूजी के लगे कवनो सवाल जबाब ना रहे। उहो सहमत रहले कि परंपरा के नदी के पानी बनला के जरुरत बा।
एक साल बाद पूनम फेरु से दुल्हिन बनली अउरी ऐ बेरी उनकर सासु उनकर हरिहर चूड़ी देके विदा कईली। उमा बो भाभी एहू बेरी उनके हरिहर चूड़ी भेजले रहली अउरी ऐ बार केहू उनके चूड़ी देबे से ना रोकल काहे कि सब के पता चल गईल रहे कि केहू अशुभ ना होला।

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