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जगदीश खेतान जी के लिखल गुड़ भेली आ महिया

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जगदीश खेतान जी के लिखल मोबाइल महिमा
जगदीश खेतान जी के लिखल मोबाइल महिमा

गुड़ के नमवे से समझ लेईं कि येमे केतना गुड़ होला।गुड़ मुख्यतः गन्ना के रस से बनेला। गुड़ खजूर के आ ताड़ के पेड़े मे से जौन रस चुआवल जाला ओहू से बनेला।गन्ना के रस से बनल गुड़ सब$तर मिलेला बाकी खजूर आ ताड़ के गुड़ न सब$तर बनेला ना सब$तर मिलेला। अलग-अलग प्रांत के गुड़ के सवाद मे भी फरक होला।येमे खजूर के गुड़ सबसे महंग होला आ स्वाद मे भी सबसे नीक।अब त पातंजली मे भी पावडर आ ढेला के रूप मे गुड़ मिलेला। पातंजली के पावडर वाला गुड़ के सवाद नीक बा। ये के छेना मे मिला के खाईं त बंगाल के गुड़ के संदेश के मुकाबला करेला। बंगाल मे गुड़ के रसगुल्ला आ संदेश खाली जड़वै मे बन पावेला।येसे जड़वे मे उपलब्ध होला। हम सबसे पहीले खजूर के गुड़ लखनऊ के हजरतगंज मे गांधी आश्रम से खरीदले रहलीं।

अब गुड़ भेली आ महिया मे अंतर भी जान लीं।हम कुशीनगर जिला के येगो कप्तानगंंज कस्बा के निवासी हईं आ हमार खेती मिश्रौली गांव के टोला चिलवान मे बा। येसे हमके इ सब जानकारी बा।कलकत्ता भी आईल जाईल करीलां त खजूर आ ताड़ के भी गुड़ ओ ओसे बनल संदेश के सवाद भी मिलल करेला। गुड़ बनावे खातीर पहिले गन्ना या खजूर या ताड़ के रस कड़ाही या कड़ाहा पर चढा के ओके तबले बदकावल जाला जबले कि उ ओतना गाढ हो जा की ओकर लड्डू बान्हल जा सके। ओके लड्डू रूप मे बनवले पर भेली कहाला आ ओकर टूकड़ा-टूकड़ा जौन होला उहे गुड़ कहाला।

येकर एक रुप अउर हवे जेके गुड़ के चक्की कहाला। इ बड़ा आकार के चक्की के डिजाइन मे ढारल जाला। येकर वजन भी ज्यादा होला। इ मुख्यतः पश्चिमी उत्तर प्रदेश मे बनावल जाला।अब महीया के बारे मे भी जान लीं।गन्ना के रस कड़ाही मे रख के धीकावल जाला आ जब येगो निश्चित अनुपात मे गाढ हो जाला तब इहे महीआ हो जाला।येके कब्बो जब मनकरे धीका के आ येमे घीव भा मकखन मिला के खइले पर अइसन सवाद मिलेला जौन शहर वालन खातीर दूरलभ बा। महीया बनले के कुछ दिन के बाद येमे चीनी लेखां दाना भी पड़े लागेला आ सवादो बढ जाला।

जब हम छोट रहलीं त पहली भा दूसरी कक्षा के पुस्तक मे एगो गीत कुछ ये प्रकार के रहल “इश्वर के गुण गाओ”। हमार बड़़ भाई डाः मोतीलाल जब ४-५ साल के रहलं त शौचालय मे इ गीत ये प्रकार से गावत रहलं “इश्वर के गुड़ गाओ भेली गाओ। “उ बहुत अच्छा कवि हवं।येसे पता चलता कि उनके मे कविता लिखे के जनमजात प्रतिभा रहल।कहावत ह की “गुड़ गोबर हो गइल।” जब गुड़ सड़ जाला आ खाये लायेक ना रहेला त गुड़ गोबर हो जाला।गोबर कम लाभदायक ना हवे। गोबर जेतने सड़ेला ओतने खेते खातीर लाभदायक होला।ओइसे गुड़ जेतने पुरान होला उ दवा के दृष्टि से नीक कहाला।गुड़ के सड़ा के शराब भी बनावल जाला।आसव अरिष्ट मे भी गुड़ पड़ेला। गुड़ के महत्व रउवा लोग के मालूमे होई।न मालूम होखे त किसान से पूछीं भा रामदेव से।गूगल के सहायता भी ले सकेलीं।

गुड़

हमरे देश के येगो मशहूर शहर हवे गुड़गांव। बहुत पहिले गुड़गांव येगो गांव रहल होई आ उहां गुड़ बहुतायत से बनत रहल होई ओसे ओकर नाव गुड़गांव पड़ल होई।अ ब ओकर नाव लोग गुरुग्राम कइल चाहता। येकर मजीगरे विरोध होखे के चाहीं। शकरपुर नाम के कस्बा बंगाल मे बा आ हम उहां दू बेर हो आइल बानी। हां चीनीगांव देश मे कहीं ना बाटे।

येगो और कहावत बा “गुड खाये आ गुलगुला से परहेज।” इ सरासर गलत बा। इ होखे के चाहीं “गुलगुला खाये आ गुड़ से परहेज।” गुलगुला बनवले मे तेल या घी के अलावा गुड़ या चीनी के भी जरूरत पड़ेला।इ सबके मालूम होइ की घीव आ तेल खइले से ढेर बेमारी होला जइसे मोटापा, मधुमेह हृदयरोग आदि।जबकि गुड़ हर तरह से लाभदायक हवे।

तीस-चालीस साल पहीले जब आज के मुकाबले गांव देहात के लोग के आय कम रहल तब जब कौनो अतिथि आवे त ओके मिट्ठा देहल जात रहे।मिट्ठा गुड़वे के येगो नाम ह$ जेकरे उच्चारण से येगो मिठास झलकेला। लोग के आमदनी बढ$ल आ लोग ज्यादे शहरी भइल त केहू-केहू पानी पियाव मे चीनी देवे लागल।लोग और सभ्य भइल त बड़कवा लोग बिसकुट आ मिठाई परोसे लागल।

अब गुड़ आ चीनी के लाभ-हानि भी जान लीं।चीनी महा हानिकारक पदारथ हवे।येकर जेतने कम प्रयोग करीं ओतने ठीक। चीनी के प्रकृतिक चिकित्सा मे जहर कहाला। चीनी मैदा आ वनस्पति घी तीनो जहर कहाला। चीनी के प्रयोग से दांत आ आंत दूनो खराब होला। चीनी के बेमारी भी ज्यादे चीनी खइले से होला। चीनी मे शरीर के लिये लाभदायक पदारथ भी कम होला। येकरे विपरीत गुड़ मे अनगिनत गुड़ बा। येकरे खइले से होखेवाला कुछ लाभ ये प्रकार बा।

गुड़ खइले से होखेवाला कुछ लाभ ये प्रकार बा।

  1. येकरे सेवन से पाचन तंत्र मजबूत होला आ इ पाचन तंत्र से होखे वाला बेमारी से बचावेला।
  2. दमा के बेमारी मे येकरे सेवन से राहत मिलेला विशेष करके शीत काल मे जब दमा जोर करेला।
  3. इ खून साफ करेला।
  4. येकरे सेवन से वजन घटेला जबकि चीनी से बढेला।
  5. चीनी से एसिड यानी अम्ल बढेला जबकि गुड़ से घटेला।
  6. गुड़ मे कैलसियम आ फास्फोरस होला जेसे हड्डीयन के मजबूती मिलेला जेकरे वजह से दांत के रोग ना होला।चीनी आ चीनी से बन$ल सामान जइसे चाकलेट, टाफी, मिठाई आ कोल्डड्रिंक आदि के सेवन से हड्डी कमजोर होला आ दांत के रोग बचपने मे लाग जाला।
  7. गुड़ खइले से मूत्र के मात्रा मे बढोतरी होला। फलस्वरूप पथरी, ब्लडप्रेशर आ मूत्र संबंधी रोग भइले के संभावना ना रहेला।
  8. रोज रात के सूतले से पहिले गरम दूध के साथे एक टुकड़ा गुड़ खइले से कई बीमारियन से राहत मिलेला। अगर ओही मे आधा चम्मच हल्दी पावडर मिलालीं त का पूछे के बा। सूजन आ गटई के खराश मे भी लाभ करी। गुड़ मे सोंठ पावडर मिला के खाईं त गठिया आ वातरोग मे लाभ करी। गोरखपुर मे कई दूकानन पर सोंठ मिलल गुड़ उपलब्ध बा।जे मधूमेह याने शूगर के रोगी बा उ डाकटर के सलाह लेके ही गुड के उपयोग करी।हमार बात मानी त आजु से गुड खाइल शुरू करीं आ चीनी के त्याग करीं।येसे किसान के आर्थिक स्थिति मजबूत होई आ आपो के दवाई के खरच कम हो जाई।यूपी बिहार के लोग जबसे गुड़ आ सतुआ भुजा छोड़ के चीनी आ पीजा बर्गर आदि विदेशी खाद्य पदार्थ के सेवन करे लागल ह बीमारीन के बाढ आ गइल बा। आज आधा गोरखपुर डाकटरन से पैथालॉजी वालन से अस्पतालन से दवाई के दूकान से पट गइल बा। लखनऊ बनारस आ दिल्ली के अस्पताल भी मरीजन से पटल बा। लरीकइये मे ब्लडप्रेशर, मधुमेह,कैंसर आ हृदयरोग होखे लागल बा। येसे बचले के जरुरत बा।

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    देहाती गारी आ ओरहन
    भोजपुरी शब्द के उल्टा अर्थ वाला शब्द
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    कइसे भोजपुरी सिखल जाव : दुसरका दिन
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    कइसे भोजपुरी सिखल जाव : छठवा दिन
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