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भोजपुरी सिनेमा के पचास वर्ष…. मेरा सन्देश: पद्मश्री शारदा सिन्हा

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Padmashree Sharda Sinha
Padmashree Sharda Sinha

वर्ष तो बीतेंगे ही , पड़ाव भी स्वयं बनते जाएंगे , और अपनी बोली से जुड़े लोग इन महवपूर्ण पड़ावों का महोत्सव भी ज़रूर मनाएंगे . . . पर सवाल यह उठता है मेरे ज़हन में कि बदलाव कब आएगा ? मुझे हर बार आमंत्रित किया जाता है ऐसे मौके पर बोलने को ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे लोग इस काबिल समझते हैं पर मन में सवाल तो यही उठता है कि परिवर्तन कब आएगा… सिनेमा जगत के तर्ज़ पर हम भोजपुरी फ़िल्म फेस्टिवल तो मनाएंगे पर फेस्टिवल किस ख़ुशी में मनाए ? , क्या सिर्फ इसलिए कि पचास वर्ष पूरे हो गए ? हाँ ख़ुशी है कि भोजपुरी सिनेमा का दौर बंद नहीं हुआ , चलता रहा ! पर ख़ुशी तो इस बात कि मानते जब भोजपुरी सिनेमा हमारे समाज का सही और सच्चा आइना बनने का काम करता ! मुझे नहीं लगता है कि इन पचास वर्षों में हमारा पूर्वांचल समाज फूहड़ हो गया है और यह भी नहीं मानता है मन कि हम बिहारियों में सिर्फ निम्न स्तर कि सोच भरी है । मैं इंकार करती हूँ कि इन पचास वर्षों में बिहारी समाज या बिहार-उत्तर प्रदेश -झारखण्ड के भोजपुरी समाज के सभी ” देवर” अपनी “भाभियों” को सिर्फ और सिर्फ घटिये मज़ाक से ही सम्बोधित करना पसंद करते हैं । मेरे मन ने अभी तक यह स्वीकार नहीं किया है कि हम भोजपुरिया संस्कृति के लोगों कि जीवन शैली ऐसी है कि कोई बहार से यदि आकर देखे तो शर्मसार हो जाए ! , फिर क्यों इन पचास वर्षों में से पिछले पंद्रह बीस वर्षों में एक भी ऐसी भोजपुरी फ़िल्म बनी जिसमे हमारे भोजपुरी समाज के लोक-गीतों का गलत इस्तेमाल किया गया या फ़िल्म के गाने जो कि हर भारतीय सिनेमा का प्राण है ,उनमे फूहड़ता का प्रदर्शन हुआ ? क्यों गलत प्रदर्शन किया गया समाज का ? और इसका समर्थन यदि बिहार कि जनता ने नहीं किया तो और किसने किया है ? प्यार क्यूँ नहीं होता अपनी बोली से भोजपुरिया समाज के लोगों को ? यदि प्रेम है अपनी बोली से तो एक स्वर में विरोध कर हटा क्युँ नहीं देते ?, नहीं बनने दें ऐसी फिल्मे जो हमारी सुसंस्कृत और सुंदर भोजपुरी का सच्चा आइना नहीं हो। बाज़ार पर अपना कब्ज़ा रखने वालों से मै अनुरोध कर थक गयी ! प्रोडूसर , निर्देशकों से कई बार बात हुई , अपने लोक गीत के कार्यक्रमों में सदा आवाज़ उठती रही , अब मेरे पास अपने प्यारे भोजपुरी जनता से आग्रह करने के सिवाए और कोई रास्ता नहीं है कि आप सब स्वयं ही अपनी माँ कि इज़ज़त कि रक्षा करें । अगले पचास वर्ष ऐसे हों कि आने वाली नयी पीढ़ी उन भोजपुरी सिनेमा को देख कर अपने सुसंस्कृत समाज को इज़ज़त कि नज़र से ही देखें , हमारे बच्चे जब परदेस जाएं तो गर्व करे कि हम भोजपुरी समाज के हैं .. और बिहारी हैं, उन्हें शर्मसारी न हो कि उन्हें कोई “बिहार से आने वाला” समझ कर किसी बिहारी सिनेमा का कोई फूहड़ गाना बता कर सम्बोधित करे! अच्छा तो बहुत है कहने को पर बुरे ने इतनी परत डाल दी है कि जब तक भोजपुरी सिनेमा अपनी गरिमा को पुनः स्थापित न कर ले , कुछ भी कहना सुनना व्यर्थ होगा । हमें ज़रूरत है कि आने वाले पचास वर्षों को हम भोजपुरी सिनेमा का वो काल बनाएं जिसे लोग “रेनेसां ” यानि पुनर्जागरण या नवजागरण के काल के रूप में याद रखें । हमारी भोजपुरी को क्षिप्त – विक्षिप्त न होने दें । भोजपुरी को हमारे प्रेम, स्नेह, और ममता कि ज़रूरत है । उसका लालन -पालन, भोजपुरी समाज के हर वर्ग के लोगों के हाथ में हैं ।

हम भी गुजरात ,बंगाल , महाराष्ट्र ,पंजाब जैसे राज्यों कि तरह अपनी बोली कि फिल्मों को गरिमामंडित कर सकते हैं। आने वाले पचास वर्षों में से यदि हर वर्ष एक भी ऐसी फ़िल्म निकलती रही तो कुल ५० फिल्मे ऐसी होंगी जो हमारा सर ँचा करेंगी । बिहार कि राजनीती एवं जमीनदरी प्रथा जैसे मुद्दों से अलग हट कर और अनेक कई मुद्दे हैं जिनको हमारी फिल्मों में दिखाया जाना चाहिए । बदलते समय कि तस्वीर ज़रूर दिखे भोजपुरी सिनेमा में लेकिन बदलते समय में जहाँ नारी का स्वरुप पहले से बदल कर अच्छा हुआ है , मज़बूत हुआ है , जहाँ वो अपनी पर्दा दरी को छोड़ कर समाज में आगे बढ़ कर पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर हर काम करने में सक्षम हुई है वहाँ नारी को कामुकता भरे अंदाज़ में ही क्यों दिखाएँ ? दर असल तो भोजपुरिया समाज में ये होता है कि जब भी कोई महिला किसी पुरुष के सामने आ जाती है तो वह उस वक्त यदि कुछ खराब शब्द मुह से निकाल भी रहा हो तो वो चुप हो जाता है , और महिला वर्ग से मधुरता और सम्मान के साथ पेश आता है फिर अपनी फिल्मों में हमें ऐसा नहीं करना चाहिए कि हम उनके साथ फिल्माए हुए सीन्स में उत्तेजक शब्दों और प्रतीकों का इस्तेमाल करें ।

जुड़ाव रहा है अपनी बोली से लोगों का इसलिए पचास वर्ष निरंतर अनेक उतार चढ़ाव के बावजूद भोजपुरी सिनेमा ने अपनी गति टूटने नहीं दी , बस अब ज़रूरत है कि इसे सुंदर बनाएं, गरिमामय बनाएं , लोक गीतों को उचित स्थान दें , लोक संस्कृति को उचित मान दें , अपनी बोली पर कोई आघात करे तब उसकी रक्षा के लिए अपने प्राण दें ! भोजपुरी सिने प्रेमियों को एवं समस्त बिहार वासियों को इन्ही संदेशो द्वारा मैं अपनी शुभकामनाएं देती हूँ । रविराज को मेरा आशीर्वाद है और ख़ुशी है कि उसने ऐसा प्रयास किया ! भविष्य में भोजपुरी फ़िल्म फेस्टिवल और भोजपुरी सिनेमा से गर्व के साथ जुड़ पाँ यही कामना है ।

भोजपुरी सिनेमा के पचास वर्ष…. मेरा सन्देश: पद्मश्री शारदा सिन्हा

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