दीपक तिवारी जी के लिखल दू गो रचना

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लागेला निमन मीठ भाषा भोजपुरी,
चाँहे केहूँ कहि रहे बुझाला नाही दूरी।

गाँव से लेके शहर ले,
भीतर से लेके बहर ले
चहुँ ओर दिशा में शोर रहे,
दुपहरियाँ साँझ चाँहे भोर रहे।

डेग डेग प मिलिहैं,
हर एक दिशा में
भाषा भोजपुरी बोले वाला,
दया दृष्टि बनवले रहs,
एह पर हे उपर वाला।

सभका मन के भावे ला,
भोजपुरी बोलल चाँहे ला
एतना मिठाश बा एमें,
लोग एकरे गुनवा गावे ला।

आज नाही त काल्ह एके,
मिलवे करि आजादी
बाग बगीचा गुलशन एकर,
खिल जाई वादी।

लोक प्रिय बा जन प्रिय बा,
सभका कंण्ठ में बसल बा
बहुत आगे भोजपुरी बाटे,
तब काहे शिकंजा कसल बा।

कण कण में समाइल बा भोजपुरी,
आँख में बसल बन के नूरी
एकर केतना बखान करि,
लागत बाटे नाही जरूरी।

भाषा भोजपूरी के केना जानेला,
झूठे गड़ही नाला फानेला,
शान से कहि हम भोजपुरीया हई,
खड़ा होई त लोग लोहा मानेला।

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दूसरा के तनिको तू आश जनि करिहs

केहूँ के कबहुँ तू निराश मत करिहs
दूसरा के तनिको तू आँश जनि करिहs

खोजेला लोग समइया प सभके,
भूल जाला करनी कोसेला रब्ब के
सोच समझ के डेग आपन धरिहs…….
दूसरा के तनिको तू आँश जनि करिहs,

दे दिहs आपन तू माँगे जनि जइ हँ,
बांह ल गठरी तू एके जनि भुलइ हँ
उच्च खाल देखी धीरे से उतरीहs……..
दूसरा के तनिको तू आँश जनि करिहs,

बनी जइबs बाउर जदि मुँह खोलबs,
नीक नाही होई तनिको जो बोलबs
माना ना बा दुःख पीड़ा के हरिहs………..
दूसरा के तनिको तू आश जनि करिहs,

धूर्त लो सिखावे बतावे में रहे आगे,
ओ लो से निमन केहू ना लागे
दीपक सुधर जा जनि फेरा में परीहs……..
दूसरा के तनिको तू आश जनि करिहs,

दीपक तिवारी,श्रीकरपुर, सिवान।

दीपक तिवारी जी
दीपक तिवारी जी

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